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प्रचलित पाठ्यचर्या से सम्बन्धित मुद्दे (Issues Related to Existing Curriculum)
प्रचलित पाठ्यचर्या से सम्बन्धित मुद्दे इस प्रकार है-
1) पाठ्यचर्या योजना तथा उसका क्रियान्वयन- सदैव शिक्षा के सन्दर्भ में पाठ्यचर्या की योजना तथा क्रियान्वयन एक मुख्य मुद्दा रहा है। यह देश की स्वतन्त्रता के बाद से ही एक शैक्षिक मुद्दा है जिसके कुछ कारण देश में विविधता, जनसंख्या, आवश्यकताओं, अवसरों की कमी हैं। यद्यपि देश की स्वतन्त्रता के बाद शिक्षा की पाठ्यचर्या में बदलाव आ रहे हैं। शिक्षा से सम्बन्धित नीतियों से शिक्षा का विकास भी हुआ। इसमें राधाकृष्णन कमीशन, मुदालियर कमीशन, कोठारी कमीशन, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आदि सम्मिलित हैं जिनका योगदान सदैव ही शिक्षा जगत में रहा है। पाठ्यचर्या के सदैव दो भाग होते हैं अर्थात् प्रथम-योजना और द्वितीय-क्रियान्वयन। प्रथम भाग अर्थात् ‘योजना’ में उसकी समीक्षा, साहित्य, लाभ, विकास की योजना आदि पर विचार किया जाता है तथा उन विचारों का क्रियान्वयन बाद में किया जाता है किन्तु यह प्रक्रिया वर्तमान अथवा प्रचलित शिक्षा में कितनी सफल हो पा रही है, यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। अतः प्रचलित शिक्षा का मुख्य मुद्दा पाठ्यचर्या की योजना तथा क्रियान्वयन है जिसमें सुधार की आवश्यकता है।
2) पाठ्यचर्या एवं पाठ्यचर्या नीतियाँ- पाठ्यचर्या एक संस्थागत पाठ्यवस्तु होता है। पाठ्यचर्या नीति का स्तर पाठ्यचर्या का विकास है। इसके अन्तर्गत पाठ्यचर्या अभिकल्प, क्रियान्वयन, निरीक्षण एवं मूल्यांकन आते हैं किन्तु ये सब एक बड़े पाठ्यचर्या से जुड़े मुद्दे हैं किन्तु इन पर कार्य कितना होता है, वास्तव में यह कहा नहीं जा सकता। पाठ्यचर्या की नीतियों के लिए कहा जाता है कि “विद्यालयों में नियमों व कानूनों की एक औपचारिक पाठ्यचर्या का ढाँचा भेजा जाता है। अतः पाठ्यचर्या से जुड़े मुद्दे बहुत ही अधिक महत्त्व रखते हैं। सामान्यतः पाठ्यचर्या नीति-निर्माताओं से यह आशा होती है कि संगठनात्मक उत्तरदायित्व बनाकर विभिन्न स्तरों पर विद्यालय के साथ संयोजन बना कर चलें तथा कार्य करें जिसके द्वारा छात्रों को व्यवहारिक ज्ञान भी प्राप्त हो।
3) ग्रामीण भारत में पाठ्यचर्या- भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों के अनुकूल पाठ्यचर्या की पाठ्यवस्तु नहीं है। यह क्षेत्रों की व्याख्या नहीं करता, स्थानीयता को नहीं बताता, प्रतिदिन के जीवन से जुड़ा हुआ नहीं है, गरीब वर्ग मूल्यांकन करने में सक्षम नहीं है। शिक्षकों के प्रशिक्षण तथा पुस्तकों में आपसी जुड़ाव नहीं है। पाठ्यचर्या संरचना खण्ड के अनुसार पाठ्यचर्या में सुधार की आवश्यकता देखते हुए उसका नवीनीकरण किया गया। पाठ्य पुस्तकों को राज्य स्तर पर बदला तथा नई शिक्षण विधियों को सम्मिलित किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में गुणात्मक शिक्षा देने के लिए अजीम प्रेमजी फाउन्डेशन (2004) के द्वारा भी विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं जिसमें वर्ग, जाति, लिंग आदि से ऊपर उठकर शिक्षा के अवसरों को उपलब्ध कराया जा रहा है।
4) पाठ्यचर्या का विकास – केन्द्र सरकार के अनुसार राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की संरचना के विकास के लिए नई विधियाँ अपनायी जा रही हैं। यह अत्यन्त ही संघर्षपूर्ण मुद्दा है। पाठ्यचर्या के विकास एवं सुधार के लिए प्रत्येक राज्य में अधिक से अधिक शिक्षक-प्रशिक्षण केन्द्र खोले जा रहे हैं जिनमें यदि शिक्षक प्रशिक्षण लेकर विद्यालयों में पहुँचेगा तो वह वास्तव में शिक्षण विधियों के उपयोग से ही शिक्षण कार्य करेगा तथा अपने मन से, हृदय से तथा आत्मा से शिक्षण करेगा तथा एक उत्तम वातावरण के साथ श्रेष्ठ नागरिकों का निर्माण करेगा। पाठ्यचर्या में आवश्यक परिवर्तन करके बालकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाए जिससे उन्हें नया प्रारूप मिले जिनसे उनके जीवनयापन में भी सहायता मिले। पाठ्यचर्या विकास के लिए यह आवश्यक है कि उसकी अन्तर्वस्तु बालकों के भविष्य में कितनी उपादेयता रखती है क्योंकि इसके सम्बन्ध में गाँधी जी ने कहा है, ‘ऐसी शिक्षा किसी काम की नहीं, जो भविष्य में जीवनयापन का साधन न बने। अतः शिक्षा को लाभप्रद बनाने के लिए पाठ्यचर्या में आवश्यक परिवर्तन करके उसका विकास करना चाहिए जिससे बालकों को उचित लाभ प्राप्त हो सके।
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