Contents
दार्शनिक आधार (Philosophical Basis)
दर्शन, पाठ्यचर्या विकास की नींव है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पाठ्यचर्या का संगठन शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। शिक्षा के ये उद्देश्य हमें ‘दर्शन’ से ही प्राप्त होते हैं। पाठ्यचर्या के इतिहास पर ऐतिहासिक विचार किया जाए तो ज्ञात होगा कि पाठ्यचर्या के अन्तर्गत पाठ्यवस्तु की आवश्यकता प्रचलित सामाजिक बन्धनों, नियमों एवं लक्ष्यों पर निर्भर करती थी। इसलिए विभिन्न देशों में प्रचलित समय के अनुसार ही पाठ्यचर्या का विकास हुआ है। उदाहरण के लिए- यूरोप का पाठ्यचर्या वहाँ के क्षेत्रों का अनुभव कराती है, यूनान के स्पार्टा को ज्यादातर युद्धों में व्यस्त रहना पड़ता था। इस कारण वहाँ की पाठ्यचर्या शारीरिक विकास, शस्त्रों की शिक्षा, हथियारों का उपयोग एवं निर्माण, युद्ध के नियम आदि पर आधारित थी। उसी प्रकार एथेन्स के वातावरण में शान्ति तथा समृद्धि होने के कारण वहाँ संगीत, साहित्य एवं दर्शन आदि को महत्त्व दिया गया था। ऐसी स्थिति बहुत अधिक अवधि तक रही। हमारे देश में भी कुछ वर्षों पूर्व तक खेलकूद एवं अन्य क्रियाकलापों को अध्ययन विरोधी प्रवृत्ति माना जाता था किन्तु बाद में यह अनुभव किया गया कि शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त भी व्यक्ति जीवन में असफल तथा बेरोजगार रह जाता है। इस कारण विचारों में परिवर्तन हुआ तथा यह पाया गया कि जीवन में शिक्षा के अतिरिक्त अन्य पक्षों का भी अध्ययन किया जाए तो वह भी सामाजिक, व्यक्तिगत, आर्थिक तथा व्यवसायिक मार्ग प्रशस्त करता है।
अरस्तु के अनुसार, “दर्शन एक ऐसा विज्ञान है जो परम तत्त्व के यथार्थ स्वरूप की जाँच करता है।”
According to Aristotle, “Philosophy is a science which investigates the nature of being, as it is in itself.”
फिक्टे के अनुसार, “दर्शन ज्ञान का विज्ञान है।”
According to Fichte, “Philosophy is the science of knowledge.”
इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि दर्शनशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है एवं दर्शन का सम्बन्ध मानव जीवन की अनुभूतियों से है। दर्शन एवं शिक्षा में घनिष्ठ सम्बन्ध है। शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या, शिक्षण विधियाँ व अनुशासन व्यवस्था आदि सभी पक्ष समसामयिक दर्शन से ही प्रभावित होते हैं। जब भी किसी दार्शनिक विचारधारा का जन्म होता है तो उस समाज की पाठ्यचर्या उससे अवश्य ही प्रभावित होती है। इस तथ्य के अनुरूप रस्क महोदय ने उचित ही लिखा है कि, “दर्शन पर पाठ्यचर्या का संगठन जितना आधारित है, उतना शिक्षा का कोई भी अन्य पक्ष नहीं है।”
दर्शनशास्त्र मात्र शिक्षा की पाठ्यचर्या निर्धारण में ही योगदान नहीं देता बल्कि यह पाठ्य-विषयों की संख्या का भी निर्धारण करता है। इसका कारण यह है कि जब समाज में विभिन्न प्रकार की परिस्थितियाँ, आवश्यकताएँ व आदर्श उत्पन्न हो जाते हैं, तो उनकी पूर्ति के लिए शिक्षा के उद्देश्यों में भी वृद्धि करनी पड़ती है साथ ही साथ शिक्षा के उद्देश्यों में वृद्धि के कारण उनकी पूर्ति के लिए पाठ्य-विषयों में भी वृद्धि करनी पड़ती है। आज के भौतिकवादी युग में मानवता का किसी भी प्रकार से उल्लंघन तथा उपेक्षा न हो, इसके लिए इन्जीनियरिंग आदि के प्रशिक्षण में मानव विज्ञान को भी स्थान दिया जाने लगा है। यह दर्शन के द्वारा ही सम्भव हो सका है। अतः विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं के अनुसार पाठ्यचर्या को विधिवत् रूप से निर्धारित एवं विकसित किया जाता है।
दर्शन एवं शिक्षा का बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यचर्या शिक्षण विधियों आदि समस्त पक्ष समसामायिक दर्शन से प्रभावित होते हैं। दर्शन, पाठ्यचर्या का मेरुदण्ड है। बालक को क्या पढ़ाना चाहिए और क्या नहीं पढ़ाया जाए? इस प्रश्न का उत्तर व्यक्ति एवं समाज की दार्शनिक मान्यता के अनुरूप ही तय किया जाता है। शिक्षा की पाठ्यचर्या का निर्धारण शिक्षा के उद्देश्यों के अनुरूप किया जाता है। समय के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन होता रहता है जिससे पाठ्यचर्या भी परिवर्तित हो जाती है। चूँकि शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण दर्शन के द्वारा होता है। अतः पाठ्यचर्या पर दर्शन का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है।
उदाहरण के लिए- प्राचीनकाल में शिक्षा का उद्देश्य आत्मानुभूति करना था। उस समय इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पाठ्यचर्या में धर्मशास्त्र तथा नीतिशास्त्र के अध्ययन तथा इन्द्रिय निग्रह को अधिक महत्त्व दिया जाता था। इसके विपरीत आधुनिक युग में जब भौतिकवादी उद्देश्य प्रबल है तब हमारी शैक्षिक पाठ्यचर्या में तकनीकी ज्ञान, प्रशिक्षण तथा भौतिक विज्ञानों को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है। दर्शन के कुछ वाद हैं जिनके आधार पर भी पाठ्यचर्या का निर्धारण होता है। दर्शन के वाद निम्नलिखित हैं-
दार्शनिक आधार (Philosophical Basis)
- आदर्शवाद (Idealism)
- प्रकृतिवाद (Naturalism)
- प्रयोजनवाद (Pragmatism)
- यथार्थवाद (Realism)
- मानववाद (Humanism)
Important Link…
- अधिकार से आप क्या समझते हैं? अधिकार के सिद्धान्त (स्रोत)
- अधिकार की सीमाएँ | Limitations of Authority in Hindi
- भारार्पण के तत्व अथवा प्रक्रिया | Elements or Process of Delegation in Hindi
- संगठन संरचना से आप क्या समझते है ? संगठन संरचना के तत्व एंव इसके सिद्धान्त
- संगठन प्रक्रिया के आवश्यक कदम | Essential steps of an organization process in Hindi
- रेखा और कर्मचारी तथा क्रियात्मक संगठन में अन्तर | Difference between Line & Staff and Working Organization in Hindi
- संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले संयोगिक घटक | contingency factors affecting organization structure in Hindi
- रेखा व कर्मचारी संगठन से आपका क्या आशय है? इसके गुण-दोष
- क्रियात्मक संगठन से आप क्या समझते हैं? What do you mean by Functional Organization?