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प्रयोजनवाद एवं पाठ्यचर्या (Pragmatism and Curriculum)
यह विचारधारा भी बालक को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है। प्रयोजनवादी विचारधारा बालकों को शिक्षा का केन्द्रबिन्दु मानने के साथ-साथ उपयोगिता के सिद्धान्त पर बल देती है। प्रयोजनवाद का प्रयोगों से अटूट सम्बन्ध एवं विश्वास है। इस वाद का मानना है कि प्रयोग द्वारा परखे जाने से पहले कोई वस्तु अच्छी या बुरी नहीं होती। मात्र वही वस्तु सुन्दर व अच्छी होती है जो प्रयोगवाद द्वारा लाभदायक होती है अर्थात् उपयोगिता ही सत्य की कसौटी है। जहाँ एक ओर आदर्शवाद मन-केन्द्रित, प्रकृतिवाद प्रकृति-केन्द्रित है वहीं दूसरी ओर प्रयोजनवाद अनुभव-केन्द्रित है जो कि मानवीय अनुभव को ही वास्तविकता का केन्द्र मानता है। प्रयोजनवादी विज्ञान एवं वैज्ञानिक तथ्यों और विषयों में विश्वास रखते हैं।
प्रयोजनवादी पाठ्यचर्या का निर्माण बालक की विभिन्न अभिरुचियों के अनुसार करते हैं। प्रयोजनवादी के मुख्य समर्थक जॉन ड्यूवी हैं। इनकी विचारधारा के अनुसार जिसके द्वारा स्वयं का प्रयोजन सिद्ध होता है वही सत्य है तथा वही जीवन का निर्माण करता है। इस विचारधारा के अनुसार जिसके द्वारा स्वयं असीम अलौकिक प्रयोजन सिद्ध किए जाते हैं वहीं जीवन का निर्माण करता है। इस प्रयोजनवादी विचारधारा में प्रारम्भिक कक्षाओं की पाठ्यचर्या का निर्माण जिज्ञासा, कलात्मक अभिव्यक्ति, रचनात्मक, अभिरुचि एवं विचारों के आदान-प्रदान के आधार पर किया जाता है ताकि बालक अपने भावी जीवन को सफलतापूर्वक व्यवस्थित करने में सफल हो सके। ड्यूवी ने बालक की चार स्वाभाविक शक्तियों को माना है-
- बातचीत एवं विचारों के आदान-प्रदान की अभिरुचि,
- कौतूहल अथवा जिज्ञासा की अभिरुचि,
- रचनात्मक अभिरुचि, एवं
- कलात्मक अभिरुचि की रुचि ।
ड्यूवी ने इन रुचियों को प्रारम्भिक कक्षाओं की पाठ्यचर्या का आधार बनाया। अतः पाठ्यचर्या में कला, भाषा, कताई-बुनाई, दुकानदारी, बागवानी, गणना, काष्ठकला आदि को स्थान प्रदान किया गया है। इसके अतिरिक्त इस विचारधारा ने पाठ्यचर्या का आधार सामाजिक जीवन तथा उसकी क्रियाओं को माना। इस वाद के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक कुशलता माना गया। इसलिए पाठ्यचर्या में सामूहिक क्रियाओं के निर्धारण पर बल दिया गया जिससे छात्रों में सामाजिकता की भावना का विकास हो सके।
पाठ्यचर्या निर्माण के सम्बन्ध में प्रयोजनवादी विचारकों के अनुसार निम्न सिद्धान्त दिए गए हैं-
1) उपयोगिता आधारित पाठ्यचर्या- प्रयोजनवादियों ने पाठ्यचर्या निर्माण का आधार उपयोगिता को बताया है। इसके अनुसार पाठ्यचर्या में ऐसे विषयों को ही समाहित करना चाहिए जो वर्तमान तथा भविष्य जीवन के लिए उपयोगी हों। इसी विचार को दृष्टिगत करते हुए पाठ्यचर्या में गृह विज्ञान, कृषि विज्ञान, इतिहास, भूगोल, शारीरिक शिक्षा, स्वास्थ्य विज्ञान, विभिन्न भाषा आदि विषयों को समाहित करने की संस्तुति की गई है। उपरोक्त विषयों के द्वारा व्यावसायिक शिक्षा की माँग को पूर्ण किया जा सकता है। इस प्रकार उपयोगिता की दृष्टि से यह पाठ्यचर्या उपयुक्त है।
2) रुचि आधारित पाठ्यचर्या- प्रयोजनवादियों के अनुसार पाठ्यचर्या का दूसरा आधार रुचि है। इसके अनुसार बालकों की रुचिपूर्ण क्रियाओं तथा अभिक्रियाओं को पाठ्यचर्या में सम्मिलित करना चाहिए, जैसे-कलात्मक क्रियाएँ, खेल में रुचि, हस्तकला, ड्राइंग, पेंन्टिग, नाट्यकला, संगीत-नृत्य, रचनात्मक क्रियाएँ, नवीन अवधारणाओं की खोज आदि।
3) अनुभव आधारित पाठ्यचर्या- इस प्रकार की पाठ्यचर्या अनुभव पर आधारित होती है। वर्तमान शिक्षा का मुख्य आधार बालकों की अभिक्रियाएँ, व्यवसाय तथा अनुभव है। इन तीनों में अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रयोजनवादियों ने शिक्षा में रटने की प्रणाली का विरोध किया है तथा अनुभवों को महत्त्व दिया है। इनके अतिरिक्त स्वतन्त्र, सामाजिक तथा उद्देश्यपूर्ण क्रियाओं के द्वारा बालकों को पाठ्यक्रम प्रदान किया जाता है।
4) एकीकृत पाठ्यचर्या- प्रयोजनवादी पाठ्यचर्या का अगला आधार एकीकृत तत्त्वों का समावेश है। इसके अनुसार ज्ञान एक संगठित इकाई है। इस प्रकार ज्ञान प्रदान करने की व्यवस्था ऐसी हो कि विभिन्न प्रकरणों तथा विषयों को संकुचित रूप में न रखकर परस्पर सम्बन्धित करके ज्ञान छात्रों को उपलब्ध कराया जाए। इस प्रकार यह शिक्षा एवं ज्ञान का एकीकृत एवं सरल स्वरूप है।
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