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पाठ्यचर्या विकास का अर्थ एवं परिभाषाएँ | Meaning and Definitions of Curriculum Development in Hindi

पाठ्यचर्या विकास का अर्थ एवं परिभाषाएँ | Meaning and Definitions of Curriculum Development in Hindi
पाठ्यचर्या विकास का अर्थ एवं परिभाषाएँ | Meaning and Definitions of Curriculum Development in Hindi

पाठ्यचर्या विकास (CURRICULUM DEVELOPMENT)

पाठ्यचर्या विकास एक अत्यन्त प्राचीन एवं विशिष्ट प्रत्यय है। यद्यपि पाठ्यचर्या विकास एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है परन्तु इसका आरम्भ कहाँ से हुआ इस तथ्य का किसी को भी बोध नहीं है। पाठ्यचर्या विकास का सम्बन्ध वर्तमान पाठ्यचर्या के सुधार तथा परिवर्तन से होता है, यही पाठ्यचर्या का उद्देश्य भी है। पाठ्यचर्या विकास का सम्बन्ध पाठ्यचर्या प्रबन्धन से है। पाठ्यचर्या विकास एक कार्य के रूप में अत्यन्त व्यापक होता है। इसमें भविष्य की अपेक्षाओं तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर पाठ्यचर्या के विशिष्ट विषय का विशिष्ट स्तर के लिए परिवर्तन किया जाता है। यह परिवर्तन बोर्ड एवं परिषद के अनुभवी व्यक्तियों के द्वारा किया जाता है। पाठ्यचर्या स्वयं ही शिक्षा का प्रतिनिधित्व करता है। पाठ्यचर्या शब्द साधारण नहीं होता है। पाठ्यचर्या को साधारण से विशेष बनाने वाले उसमें उपस्थित उसके संग्रहित तत्त्व होते हैं जो पाठ्यचर्या को विशेषता प्रदान करते हैं।

अतः पाठ्यचर्या का विकास भी उसकी विशेषता है। समय के साथ-साथ पाठ्यचर्या का भी सामाजिक परिप्रेक्ष्य में उचित विकास होता रहा है। पाठ्यचर्या का उचित प्रबंधन तथा क्रियान्वयन ही पाठ्यचर्या का विकास है। परिवर्तनों तथा अनुभवों के आधार पर पाठ्यचर्या का विकास किया जाता है। शिक्षा विकास के साथ-साथ पाठ्यचर्या विकास की प्रक्रिया भी निरन्तर रूप से चली आ रही है। पाठ्यचर्या का विकास प्रत्येक युग में होता है। प्रचलित पाठ्यचर्या में सुधार का नया स्वरूप पाठ्यचर्या विकास है। इसके द्वारा भावी जीवन का मार्ग प्रशस्त होता है। व्यक्तिगत तथा सामूहिक लाभ प्राप्त होते हैं। पाठ्यचर्या का विकास विशेष बोर्ड, समितियों तथा परिषदों के सदस्यों की सहमति तथा विचारों द्वारा किया जाता है। इसके अंतर्गत विषय विशेषज्ञों की सलाह पर परिवर्तन किए जाते हैं।

पाठ्यचर्या विकास का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Curriculum Development)

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पाठ्यचर्या विविध पाठ्य-विषयों तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं तथा विद्यालयों में किए जाने वाले समस्त क्रियाकलापों का योग है परन्तु पाठ्यचर्या का निर्धारण तत्कालीन समाज की आवश्यकताओं एवं विचारधारा के अनुसार किया जाता है। चूँकि सामाजिक परिस्थितियाँ हमेशा परिवर्तनशील रहती हैं अतः पाठ्यचर्या को भी समयानुसार नवीनीकरण की आवश्यकता होती है। इस नवीनीकरण के साथ ही शिक्षा समाज के द्वारा नवनिर्मित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम होती है। इस प्रकार शिक्षाशास्त्रियों तथा विद्वानों के द्वारा शिक्षा की पाठ्यचर्या में किए जाने वाले नवीनीकरण को ही पाठ्यचर्या विकास की संज्ञा दी जाती है। यह निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया के अन्तर्गत समाज के लिए अनुपयोगी विषयों तथा क्रियाकलापों को पाठ्यक्रम में से निकालकर इसमें समाजोपयोगी विषयों, क्रियाकलापों एवं दृष्टिकोणों को सम्मिलित किया जाता है। पाठ्यचर्या विकास के माध्यम से यह आशा की जाती है कि तत्कालीन समाज व संस्था के दृष्टिकोण व विचारधारा भी पाठ्यचर्या के अनुसार ही विकसित व परिमार्जित होगी।

हिल्दा टाबा के अनुसार, “पाठ्यचर्या परिवर्तन का अर्थ एक प्रकार से एक संस्था का परिवर्तन करना है।”

According to Hilda Taba, “To change a curriculum means, in a way, to change an institution.”

यहाँ यह स्पष्ट कर देना भी अति आवश्यक हो जाता है कि परिवर्तन एवं विकास में अन्तर अत्यन्त सूक्ष्म होता है। वस्तुतः दोनों ही पाठ्यक्रम को एक सकारात्मक रूप देने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं।

सेलर एवं अलेक्जेन्डर के अनुसार, “विद्यालयी पाठ्यचर्या में होने वाले परिवर्तनों में समुदाय, छात्र जनसंख्या, क्षेत्र व्यावसायिक स्टाफ एवं समाज में हुए परिवर्तन परिलक्षित होने चाहिए एवं इन समस्त परिवर्तनों के द्वारा पाठ्यचर्या परिवर्तन होना चाहिए।”

According to Sayler and Alexander, “Change in the community, its population, the professional staff and society should be reflected in or prompted by related changes in school curriculum.”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि पाठ्यचर्या विकास एवं विद्यालय, बालकों के व्यवहार एवं समाज में होने वाला विकास परस्पर एक-दूसरे पर आश्रित रहते हैं साथ ही दोनों तथ्य अन्योन्याश्रित होते हैं। हमारी वर्तमान समस्या यह है कि पाठ्यचर्या विकास में किए गए कार्य बहुत ही कम हैं। यद्यपि विश्व के विभिन्न विकसित देशों में पाठ्यचर्या विकास के लिए अनेकानेक कार्य किए जा रहे हैं किन्तु भारत में पाठ्यचर्या विकास की दिशा में अभी भी अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है तथा स्वतन्त्रता प्राप्ति के इतने वर्षों के उपरान्त भी ब्रिटिश काल में निर्मित पाठ्यचर्या को ही बालकों को पढ़ाया जा रहा है। इस सम्बन्ध में ‘नेशनल एजूकेशन एसोशिएसन’ अमेरिका की एक विशेषज्ञ समिति ने एक प्रतिवेदन में कहा है, “पाठ्यचर्या परिवर्तन की प्रक्रिया वैसे तो उसी समय से अनवरत् रूप से चल रही है, जब से विद्यालयों की स्थापना आरम्भ हुई है परन्तु कुछ वर्ष पूर्व तक यह कार्य बगैर किसी क्रमबद्धता के छुट-पुट रूप में होता रहा एवं मात्र कुछ प्रतिभासम्पन्न तथा उत्साही व्यक्ति, व्यक्तिगत या सामूहिक ढंग से इस दिशा में क्रियाशील रहे। विगत कुछ दशकों में परिवर्तन की गति तीव्र हो जाने के परिणामस्वरूप विश्व के सभी देशों में पाठ्यचर्या पुनर्निर्माण का विकास कार्य संस्थागत होता जा रहा है।” प्रस्तुत प्रतिवेदन पाठ्यचर्या विकास की धीमी गति को दर्शाते हुए यह आशा करता है कि यह कार्य भविष्य में अत्यन्त सुव्यवस्थित ढंग से होता रहेगा।

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Anjali Yadav

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