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गुरुकुल प्रणाली का शिक्षा संगठन | Educational Organization of Gurukul System in Hindi

गुरुकुल प्रणाली का शिक्षा संगठन | Educational Organization of Gurukul System in Hindi
गुरुकुल प्रणाली का शिक्षा संगठन | Educational Organization of Gurukul System in Hindi

गुरुकुल प्रणाली का शिक्षा संगठन (Educational Organization of Gurukul System)

गुरुकुल प्रणाली का शिक्षा संगठन निम्नलिखित प्रकार से हैं-

1) ब्रह्मचर्य आश्रम- ब्रह्मचर्य आश्रम का पाठ्यक्रम दस वर्षीय होता है। पाठ्यक्रम में वेदों का अध्ययन, संस्कृत एवं हिन्दी अनिवार्य है। ब्रह्मचर्य आश्रम में चरित्र निर्माण तथा नैतिक विकास सम्बन्धी शिक्षण पर बल दिया जाता है। अभिभावकों को अपने बालकों के लिए 25 वर्ष की आयु तक विवाह न करने की प्रतिज्ञा करनी पड़ती है। इस प्रतिज्ञा के पश्चात् ही बालक को ब्रह्मचर्य आश्रम में प्राथमिक कक्षा में प्रवेश दिया जाता है।

2) महाविद्यालय- इसमें स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा प्रदान की जाती है। स्नातक स्तर पर निम्नलिखित विषयों की शिक्षा दी जाती है-

i) अनिवार्य विषय-वैदिक साहित्य, दर्शनशास्त्र, संस्कृत साहित्य, अंग्रेजी साहित्य, आर्य भाषा साहित्य (हिन्दी) तथा विभिन्न धर्मों का आर्य वैदिक धर्म से तुलनात्मक अध्ययन ।

ii) ऐच्छिक विषय-पाश्चात्य दर्शन, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, इतिहास एवं गणित।

3) वेद महाविद्यालय- वेद महाविद्यालय में आर्य समाज के प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इसका पाठ्यक्रम महाविद्यालय के पाठ्यक्रम के समान है किन्तु इसमें शिक्षण विधियों पर बल देते हुए दर्शन, तुलनात्मक धर्माध्ययन, खगोलशास्त्र एवं ज्योतिष विज्ञान तथा वेदाध्ययन पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

4) आयुर्वेद महाविद्यालय- यहाँ पर आयुर्वेद चिकित्सा एवं शल्य विज्ञान की शिक्षा दी जाती है। अब आधुनिक एलोपैथी को भी समाविष्ट करके शल्य सम्बन्धी तुलनात्मक अध्ययन तथा अभ्यास पर जोर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक चिकित्सा पर भी बल दिया जाता है।

5) स्त्री शिक्षा- गुरुकुल प्रणाली में स्त्रियों के लिए पृथक शिक्षा की व्यवस्था होती है। आर्य समाज का लक्ष्य पुरुषों के समान स्त्रियों को भी शिक्षित करना था इसीलिए कन्या गुरुकुलों की भी स्थापना की गई है। कन्या गुरुकुल देहरादून, आर्य कन्या महाविद्यालय बड़ौदा, कन्या महाविद्यालय सासनी (अलीगढ़) की स्थापना प्रमुख है।

इसके अतिरिक्त कन्या गुरुकुल कनखल एवं ज्वालापुर पुर (हरिद्वार) भी उल्लेखनीय है। कन्या गुरुकुलों का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं को 16 वर्ष की आयु तक पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना तथा भारतीय नारी एवं गृहिणी धर्म के सद्गुणों की शिक्षा प्रदान करना है।

गुरुकुल प्रणाली में 14 वर्षीय अध्ययन के बाद स्नातक उपाधि तथा स्नातक शिक्षा के बाद स्नातकोत्तर उपाधि प्रदान की जाती है जिसे क्रमशः शतक वाचस्पति कहते है।

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Anjali Yadav

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