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बेसिक शिक्षा के गुण एंव दोष | Merits and Demerits of Basic Education in Hindi

बेसिक शिक्षा के गुण एंव दोष | Merits and Demerits of Basic Education in Hindi
बेसिक शिक्षा के गुण एंव दोष | Merits and Demerits of Basic Education in Hindi

बेसिक शिक्षा के गुण (Merits of Basic Education)

गाँधी जी ने मनुष्यों के सर्वांगीण विकास के माध्यन के रूप में बेसिक शिक्षा को आवश्यक माना है। बेसिक शिक्षा के गुण निम्नलिखित हैं-

1) मानव के सर्वांगीण विकास की प्रधानता- बेसिक शिक्षा का आधार मनुष्य के सर्वांगीण विकास की प्रधानता पर आधारित है। मानव के सर्वांगीण विकास का तात्पर्य शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, चारित्रिक एवं व्यवसायिक उन्नति से है।

2) मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा- गाँधी जी ने सामाजिक एकता एवं समानता के उद्देश्य को साकार करने के विचार को ध्यान में रखकर मातृभाषा (हिन्दी) को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया क्योंकि उस समय कुछ प्राथमिक स्कूलों का माध्यम मातृभाषा थी परन्तु अंग्रेजी माध्यम के प्राथमिक स्कूल भी चल रहे थे।

3) स्व-आश्रित शिक्षा- देश में उन दिनों प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क बनाने हेतु पर्याप्त धन उपलब्ध नही था। अतः हस्तकौशलों पर आधारित बेसिक शिक्षा में निर्मित वस्तुओं को बेंच कर विद्यालयों के लिए धन की व्यवस्था का विचार किया गया परन्तु ये उद्देश्य साकार नहीं हो सके।

4) व्यावसायिकता पर बल- इसके अंर्तगत शिक्षा को व्यवसायिकता से जोड़ते हुए इसमें हस्तकौशलों एवं ग्राम्य उद्योगों जैसे- खिलौने, कृषि, पशुपालन, बुनाई एवं कताई आदि की शिक्षा अनिवार्य की गई। इस विचार के साथ कि व्यक्ति शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् अपनी आजीविका चला सके।

5) छुआछूत एवं वर्गभेद समाप्ति के प्रयास- समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे- छुआछूत एवं वर्गभेद आदि को समाप्त करने हेतु बेसिक शिक्षा में समान शिक्षा एवं समान सेवा कार्य पर बल दिया गया है। इसके द्वारा इन कुरीतियों को कम किया जा सकता है।

6) वास्तविक जीवन से सम्बन्धित पाठ्यचर्या – इसकी पाठ्यचर्या मनुष्य के वास्तविक जीवन से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत उन सभी विषयों और क्रियाओं को सम्मिलित किया गया है जिससे मनुष्य का सर्वांगीण विकास सम्भव हो सके।

7) क्रिया आधारित शिक्षा- बेसिक शिक्षा क्रिया आधारित होने से बालकों को स्वयं के अनुभवों द्वारा सीखने के अवसर प्राप्त होते हैं। इस मनोवैज्ञानिक विधि से अर्जित ज्ञान एवं कौशल को स्थायित्व मिलता है।

8) ज्ञान एवं क्रियाओं में एकरूपता- इसके अन्तर्गत समस्त ज्ञान और क्रियाओं को महत्त्वपूर्ण मानकर समस्त विषयों और क्रियाओं (हस्तकौशल, उद्योग, सामाजिक पर्यावरण, प्राकृतिक पर्यावरण को एक इकाई माना जाता है) शिक्षण की इस व्यवस्था को समवाय विधि कहते हैं।

9) विद्यालय एवं सामाजिक में अंतर्सम्बन्ध- बेसिक शिक्षा प्रणाली में विद्यालय एवं समाज अंतः सम्बन्धित है जबकि अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली में विद्यालयों का सामाजिक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं था। बेसिक शिक्षा मे समाज से जुड़े विभिन्न पक्षों जैसे- भाषा, हस्तकौशल, उद्योग, उत्सव आदि को विद्यालय से सम्बन्धित किया गया।

बेसिक शिक्षा के दोष (Demerits of Basic Education)

बेसिक शिक्षा की सैद्धांतिक रूप से विवेचना करने पर यह उपयोगी सिद्ध हुई है परन्तु यदि हम इसे व्यावहारिक रूप में समझे तो यह प्रणाली असफल सिद्ध हुई है।

1) ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित- देश की अधिकांश जनसंख्या ग्रामों में निवास करती है किन्तु जनसंख्या का एक बड़ा भाग नगरों में निवास करता है। यह शिक्षा नगरीय बच्चों के जीवन से सम्बन्धित न होकर ग्रामीण बच्चों एवं उनकी आवश्यकताओं से सम्बन्धित है। ऐसा प्रतीत होता है कि बेसिक शिक्षा केवल ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ही बनाया गया है।

2) केन्द्रीय विषय-हस्तकौशल- बेसिक शिक्षा में हस्तकौशल शिक्षा पर अत्यधिक बल दिया गया है। इसे पाठ्यक्रम का केन्द्रीय विषय निर्धारित किया गया है। इसे केन्द्र बनाकर अन्य विषयों एवं क्रियाओं को इसी के अनुसार निर्देशित करने पर बल दिया गया। जाकिर हुसैन समिति ने स्कूली समय के 5 घंटे 30 मिनट में से घटाकर 3 घण्टे 20 मिनट इसके लिए निर्धारित किए। शिक्षा में समस्त विषयों एवं क्रियाओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए न कि केवल एक विषय या क्रिया पर।

3) अधूरी व्यवस्था- इस योजना में नगरीय बच्चों की उपेक्षा करके मात्र ग्रामीण बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति का ध्यान रखा गया है। इस व्यवस्था में अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की योजना ही मात्र है जबकि इसको राष्ट्रीय शिक्षा योजना कहा जाता है।

4) प्राथमिक स्तर तक सीमित- बेसिक शिक्षा मुख्यतः ग्रामीण बच्चों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर 7 से 14 वर्ष आयु के बच्चों की शिक्षा से सम्बन्धित है। इसकी शिक्षा प्रणाली को उच्च कक्षाओं जैसे- माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा की पाठ्यचर्या से सम्बन्धित नहीं किया गया है जबकि बालकों के विकास के लिए शिक्षा का क्रमबद्धीकरण होना आवश्यक है।

5) निरर्थक शिक्षण विधि- बेसिक शिक्षा में शिक्षण विधि को स्वाभाविक एवं मनोवैज्ञानिक बताया गया है जबकि हस्तकौशल, उद्योग, पर्यावरण, अथवा सामाजिक क्रियाओं को केन्द्रीय विषय मानकर पाठ्यचर्या के अन्य विषयों एवं क्रियाओं के साथ एकीकरण किया जाता है। जिसके फलस्वरूप शिक्षण की स्वाभाविकता और प्रभाविकता दोनों नष्ट हो जाती हैं।

6) कच्चे माल की बर्बादी- जो कुछ भी बच्चे विद्यालय में बनाते हैं उसे उपयोग नहीं किया जा सकता और न ही उन्हें विक्रय किया जा सकता है। छोटे-छोटे बच्चों से इस तरह की उम्मीद करना बेवकूफी होती है जिसके परिणाम मात्र कच्चे माल की बर्बादी होती है और कुछ भी प्राप्त नहीं होता।

7) समय एवं शक्ति का हास- छोटे-छोटे बच्चों को हस्तकौशल में पारंगत करना कठिन है। अतः उनसे किसी प्रकार के उत्पाद को प्राप्त करके विद्यालयों का व्यय निकालना सम्भव नहीं हो सका। इस प्रक्रिया में कच्चे माल की बर्बादी तो होती ही है साथ ही साथ बच्चों का समय एवं शक्ति का भी ह्रास होता है।

8) धार्मिक शिक्षा की कमी- भारतीय समाज का आधार धर्म है और बेसिक शिक्षा को आधारभूत शिक्षा कहा जाता है किन्तु इसमें धर्म की शिक्षा को कोई स्थान नहीं दिया गया बल्कि केवल नैतिक शिक्षा को ही मान्य किया गया।

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Anjali Yadav

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