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शिक्षा में टैगोर का योगदान | Contribution of Tagore in Education in Hindi

शिक्षा में टैगोर का योगदान | Contribution of Tagore in Education in Hindi
शिक्षा में टैगोर का योगदान | Contribution of Tagore in Education in Hindi

शिक्षा में टैगोर का योगदान (Contribution of Tagore in Education)

शिक्षा के क्षेत्र में टैगोर की देन महान है। संक्षेप में हम इसका उल्लेख निम्न प्रकार से कर सकते हैं-

1) टैगोर ने शिक्षा का अर्थ समृद्ध और पूर्ण रूप से लिया है। उनका यह दृष्टिकोण प्लेटो और स्पेन्सर से कही अधिक व्यापक है। जीवन की पूर्णता के लिए टैगोर ने जो विधान निर्मित किया है वह भारतीय और पाश्चात्य दोनों ही जीवन को स्पर्श करता है। उसमें आध्यात्मिक और भौतिक दोनों तत्त्वों का समन्वय है।

2) टैगोर ने प्रकृति से स्वस्थ एवं निकटवर्ती सम्बन्ध स्थापित किया और बताया कि प्रकृ ति का प्रभाव, रहन-सहन, विचार-व्यवहार, कार्य-कलाप, विषय-वस्तु और विधि में पाया जाता है।

3) दर्शन और वास्तविक जीवन परिस्थिति का समन्वय करके टैगोर ने भारतीय शिक्षा में महान क्रान्ति की है।

4) टैगोर ने प्रकृति में सौन्दर्य और आनन्द, शक्ति और ओज, स्वतन्त्रता और आत्मप्रेरणा का दर्शन किया तथा उससे मानव जीवन एवं शिक्षा को ओत-प्रोत किया।

5) टैगोर ने भारतीय संस्कृति के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा की नींव डाली। टैगोर ने बताया कि शिक्षा में समस्त सत्यों का एकीकरण होना चाहिए तथा हमें जीवन के सत्य के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।

6) बालक के विकास में कृत्रिमता नहीं लानी चाहिए और न जल्दबाजी करनी चाहिए वरन् स्वाभाविक ढंग से उसका विकास होना चाहिए।

7) पुस्तकों एवं पाठन विधि की अपेक्षा टैगोर ने बालक पर अधिक ध्यान देने के लिए कहा।

8) टैगोर का शिक्षा में स्वतन्त्रत्ता का दृष्टिकोण विशेष महत्त्वपूर्ण है। इन्होंने कहा कि बालक की मानसिक शक्तियों के विकास में और व्यवहार में किसी प्रकार का बन्धन नहीं होना चाहिए।

9) टैगोर ने शिक्षा में नवीनता एवं मौलिकता को महत्त्व दिया, जिसके फलस्वरूप प्रचलित रूढ़िवाद का अन्त होकर शिक्षा के मौलिक रूप का सृजन हुआ।

10) टैगोर ने शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया और कहा कि शिक्षा केवल शिक्षक द्वारा ही दी जा सकती है।

11) मानवतावादी भावना पर विश्व-बन्धुत्व एवं विश्व-शिक्षा का प्रयास करने वाले सर्वप्रथम शिक्षाशास्त्री आज के युग में टैगोर को ही माना जा सकता है।

12) टैगोर ने फ्रोबेल, पेस्टालॉजी, हरबर्ट, ड्यूवी आदि शिक्षाशास्त्रियों की तरह बड़े मौलिक और आश्चर्यजनक ढंग से अपने शिक्षा-सम्बन्धी विचारों का सफल प्रयोग किया है। विश्व भारती इसका प्रमाण है।

यद्यपि टैगोर के शिक्षा दर्शन पर फ्रोबेल, रूसो, ड्यूवी आदि महान शिक्षाशास्त्रियों का प्रभाव पड़ा लेकिन अपनी तीव्र बुद्धि और बहुमुखी प्रतिभा के आधार पर इन्होंने अपना स्थान इन पाश्चात्य शिक्षाशास्त्रियों में और भी ऊँचा बना लिया। यद्यपि टैगोर ने रूसो और फ्रोबेल के समान प्रकृतिवादी शिक्षा का विचार प्रस्तुत किया लेकिन इन्होंने प्रकृति से सम्पर्क रखने और उसके फलस्वरूप शिक्षा पर पड़ने वाले उसके प्रभावों को कहीं अधिक अच्छी तरह से समझा।

एक शिक्षाशास्त्री के रूप में टैगोर के कार्यों का मूल्यांकन करते हुए डॉ. एच.वी. मुखर्जी ने लिखा है, “टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी विचार एवं प्रयोग बिल्कुल नवीन एवं मौलिक जान पड़ते हैं। यद्यपि उनमें से अधिकांश को प्राचीन समय के शिक्षाशास्त्रियों ने किसी न किसी रूप में विकसित कर दिया था और तत्कालीन शिक्षाशास्त्री कम या अधिक मात्रा में उनका प्रयोग कर रहे थे किन्तु महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बीसवीं शताब्दी के प्रथम भाग के भारतीय शिक्षाशास्त्रियों में टैगोर का स्थान सर्वश्रेष्ठ है।”

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Anjali Yadav

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