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मापन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | Historical Background of Measurement in Hindi

मापन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | Historical Background of Measurement in Hindi
मापन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | Historical Background of Measurement in Hindi

मापन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background of Measurement)

सामान्यतः मानव जाति द्वारा मापन क्रिया एवं विभिन्न मापन इकाइयों का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आ रहा है लेकिन स्वतंत्र विज्ञान के रूप में इसका इतिहास 100 वर्ष पुराना ही माना जाता है। 19वीं शताब्दी में प्रयोगात्मक मनोविज्ञान से सम्बन्धित समस्याएँ तथा असामान्य व्यक्तियों के समायोजन हेतु समस्याओं ने मापन की नींव रखी जिसके फलस्वरूप बीसवीं शताब्दी के पूर्व में विभिन्न मानसिक क्रियाओं के मापन हेतु इन परीक्षणों का निर्माण हुआ तथा मापन के क्षेत्र का तेजी से विकास हुआ। मापन के क्षेत्र में सर्वप्रथम फ्रांस के दो व्यक्तियों ट्सवियूरल तथा सैगुइन ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इन दोनों ने ही मनोवैज्ञानिक मापन सम्बन्धी सिद्धान्तों को बनाया। इनके द्वारा किए गए कार्य से प्रभावित होकर वेबर तथा फैक्नर ने 1879 ई. में मनोदैहिक कार्यक्रम प्रारम्भ किया तथा इन्होंने मनोविज्ञान के प्रयोगात्मक स्वरूप पर विशेष बल दिया। तत्पश्चात् उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में वुण्ट (Wundt) ने 1880 ई. में लिप्जिंग में मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला स्थापित की तथा उसके बाद मापन को उच्च स्तर पर लाने का श्रेय मनोवैज्ञानिक गाल्टन महोदय (1884) को जाता है जिन्होंने व्यक्तिगत विभिन्नताओं (Individual Differences) पर कार्य किया फिर सन् 1905 में विने साइमन ने बुद्धि मापन का परीक्षण बनाया। फिर सन् 1912 में मानसिक आयु तथा वास्तविक आयु में सम्बन्ध स्थापित करने के लिए स्टर्न (Stern) ने एक सूत्र प्रतिपादित किया जिसे बाद में टर्मन (Termen) ने बुद्धि लब्धि की संज्ञा दी।

बच्चों की मानसिक योग्यता का मापन करने के लिए डॉ. चिले ने कुछ प्रभावीकृत परीक्षाओं का निर्माण किया फिर मापन के विकास में डॉ. कैटल का योगदान अभूतपूर्व रहा जिसमें उन्होंने मानसिक आयु प्रत्यय का सर्वप्रथम प्रयोग किया। कैटल तथा गाल्टन के कार्यों से प्रभावित होकर उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में जेस्ट्रो, एहर्न तथा एविंगहास आदि मनोवैज्ञानिकों ने मापन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस तरह हम कह सकते हैं कि 19वीं शताब्दी में दैहिक तथा प्रयोगात्मक मनोविज्ञान सम्बन्धी समस्याओं, वैयक्तिक भिन्नताओं पर आधारित समस्याओं ने मनोवैज्ञानिक मापन की आधारशिला रखी। जिसके परिणामस्वरूप बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में अनेक मानसिक एवं भौतिक परीक्षणों का निर्माण होने लगा। स्टोन ने गणितीय परीक्षण, बकिंघम ने शब्द विन्यास परीक्षण, थार्नडाइक ने हस्तलेख मापनी आदि अनेक उपलब्धि परीक्षणों का निर्माण किया। इसके अतिरिक्त कनिंगे इन्स्टीट्यूट द्वारा रुचि मापन सम्बन्धी क्षेत्र एवं मुन्सटरबर्ग द्वारा अभिक्षमता मापन के क्षेत्रों में कार्य प्रारम्भ हुआ। 19वीं शताब्दी में प्रायः समस्त मानसिक मापन क्षेत्रों में मुख्य प्रवर्तकों का जन्म हो चुका था तथा उनके अनुयायियों ने उसके विकास में भी योगदान दिया।

भारत में बुद्धि परीक्षाओं के मापन का श्रेय लाहौर के डॉ.सी.एच. राइस को जाता है। सन् 1922 में उन्होंने बिने करण बिन्दुमाप (Hindustani Binet Performance Point) को प्रकाशित किया जो बिने की बुद्धि मापनी परीक्षा पर आधारित थी। सन् 1927 में जे. मोरे. ने जो इविंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद के थे इन्होंने भारतीय वातावरण के अनुकूल कुछ शाब्दिक समूह परीक्षण तैयार किया था। भारतीय बुद्धि परीक्षण निर्माताओं में जो नाम उल्लेखनीय हैं उनमें लज्जा शंकर झा, आर.आर. कुमारिया, एल.के. शाह, सी.टी. फिलिप्स, सोहनलाल, डॉ. एस. जलोटा, जोशी एवं त्रिपाठी आदि हैं।

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Anjali Yadav

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