मूल्यांकन की प्रविधियाँ (TECHNIQUES OF EVALUATION)
मूल्यांकन के द्वारा छात्रों के व्यवहार में आए परिवर्तन का पता चलता है। ये परिवर्तन बालक के सर्वांगीण व्यक्तित्व में आते हैं। जिसमें पढ़ना, लिखना, बोलना, सोचना, समझना आदि सम्मिलित रहता है। मूल्यांकन करने के विभिन्न उद्देश्य होते हैं और इन उद्देश्यों के आधार पर ही मूल्यांकन की प्रविधियों में बदलाव आता रहता है। विद्यालय में प्रयुक्त होने वाली प्रमुख मूल्यांकन प्रविधियाँ निम्नलिखित हैं-
- लिखित प्रविधि (Written Technique)
- मौखिक प्रविधि (Oral Technique)
- प्रयोगात्मक प्रविधि (Practical Technique)
- ग्रेडिंग सिस्टम (Grading System)
लिखित प्रविधि (Written Technique)
वर्तमान समय में लिखित परीक्षाओं के माध्यम से मूल्यांकन का प्रचलन अधिक है। परीक्षण के लिए प्रश्नों का निर्माण किया जाता है। परीक्षण के लिए विभिन्न प्रकार के प्रश्नों को उनके प्रारूपों के अनुसार तैयार किया जाता है। प्रश्नों का निर्माण परीक्षण के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है। प्रश्नों को आवश्यकता अनुसार तैयार कराया जाता हैलघु उत्तरीय प्रश्नों को निर्मित करते समय उनके उद्देश्यों को स्मरण रखना चाहिएयह निदान एवं उपचार प्रक्रिया में भी सहायक होते हैं।
इनके निर्माण के दौरान छात्रों की आयु, रुचि एवं पाठ्यक्रम को ध्यान में रखा जाता है। प्रश्नों के निर्माण में उनके प्रारूप को भी ध्यान रखा जाता है। प्रश्नों का निर्माण छात्रों के मूल्यांकन पर केन्द्रित होता हैं। रचनात्मक मूल्यांकन में यह निदानात्मक एवं उपचारात्मक उद्देश्यों को पूर्ण करते हैं। संकलनात्मक मूल्यांकन में ये छात्र के निष्पादन मूल्यांकन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्नों को दीर्घ प्रारूप में सिर्फ विवरणात्मक रूपरेखा को ध्यान में रखकर लिखा जाता है जबकि लघु प्रारूप में उसके विशिष्टात्मक रूपरेखा को ध्यान रखा जाता है। प्रश्नों के द्वारा छात्रों के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों का परीक्षण किया जाता है जिससे छात्र की अभिरुचि, अभिवृत्ति मानसिक विकास आदि का परीक्षण किया जा सके। लिखित परीक्षा के अन्तर्गत निम्न प्रश्नों को सम्मिलित किया जाता हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है-
- निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
- लघुउत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
मौखिक प्रविधि (Oral)
ग्लेडाइड्स ने मौखिक परीक्षा का प्रारम्भ किया था तथा इसे सुकरात ने महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। यह प्रविधि मुख्यतः वैयक्तिक होती है। इसमें छात्र से मौखिक रूप से प्रश्न करके उसके ज्ञान, अभिव्यक्ति की क्षमता एवं उसके आत्मविश्वास को परखा जाता हैशिक्षण में मौखिक परीक्षण का प्रयोग एक पूरक परीक्षण के रूप में किया जाता है। इसके माध्यम से शिक्षण के आधारभूत सिद्धान्तों में छात्र की सूझ का पता लगाया जाता है। बहुत बार परीक्षण में एकांश अस्पष्ट होते हैं, जिनमें छात्र प्रश्न के उद्देश्य और अर्थ के सन्दर्भ में भ्रमित हो जाते हैं। इसमें प्रश्नों के उद्देश्य व अर्थ की व्याख्या की जा सकती है।
मौखिक प्रविधि का प्रयोजन (Purpose of Oral Technique)
मौखिक परीक्षा के प्रमुख प्रयोजन इस प्रकार हैं-
- विद्यार्थियों में विचार शक्ति तथा कल्पना शक्ति विकसित करना।
- स्मरण शक्ति का विकास करना।
- विद्यार्थियों में रचनात्मकता एवं एकाग्रता का विकास करना।
- मौखिक परीक्षण से विद्यार्थियों में गति एवं शुद्धता से कार्य करने की आदत डालना।
- अध्ययन किए गए पाठ का अभ्यास एवं पुनरावृत्ति कराना।
मौखिक प्रविधि का महत्त्व (Importance of Oral Technique)
मौखिक परीक्षा का महत्त्व निम्नलिखित है-
1) परिश्रम तथा समय की बचत- प्रत्येक कार्य को लिखित रूप में सम्पन्न करने से अधिक समय लगता है जबकि मौखिक रूप से कार्य करने से समय की बचत हो जाती है और परिश्रम भी अधिक नहीं लगता।
2) शीघ्र गति से कार्य- मौखिक परीक्षा की मदद से विद्यार्थी विभिन्न कार्यों को याद रखकर शीघ्रता से कार्य कर सकतें हैं।
3) यर्थात एवं शुद्ध आदत का विकास- मौखिक कार्य करने से विद्यार्थियों को मानसिक कार्य अधिक करना पड़ता है। विद्यार्थी चिन्तन यथार्थता मनन् अधिक करते हैं। इस प्रकार कार्य करने से उसके विचारों में शुद्धता एवं यथार्थता आ जाती है।
4) आत्मविश्वास में वृद्धि- जब कोई विद्यार्थी किसी समस्या को मौखिक रूप से करते हैं तो वह शीघ्रतापूर्ण उचित कार्य कर लेती हैं। शीघ्रता से कार्य पूर्ण होने पर उनमें आत्मविश्वास की वृद्धि हो जाती है जिससे वे अधिक उत्साहपूर्वक कार्य कर सकते हैं।
5) स्मरण एवं कल्पना शक्ति का विकास- अध्ययन के समय विद्यार्थियों को अधिक ध्यानपूर्वक तथ्यों को याद रखना पड़ता है। इन्हें याद रखने से उनकी स्मरण एवं कल्पना शक्ति का विकास होता है।
मौखिक परीक्षा के गुण (Merits of Oral Test)
मौखिक परीक्षाओं के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-
- मौखिक परीक्षाएँ निदानात्मक कार्यों के लिए अति उपयोगी हैं।
- छात्रों में आत्मविश्वास जाग्रत करती हैं।
- विचाराभिव्यक्ति, उच्चारण आदि ऐसी योग्यताएँ हैं, जिनका मूल्यांकन मात्र मौखिक परीक्षा द्वारा ही हो सकता है।
- इन परीक्षाओं से छात्रों के आत्मविश्वास का सरलता से मापन हो जाता है।
- ये परीक्षाएँ मुख्यतः व्यक्तिगत होती हैं।
- जिन क्षेत्रों में लिखित परीक्षाएँ सम्भव नहीं होती हैं वहाँ मौखिक परीक्षाएँ कराई जाती हैं।
- नियमित शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में मौखिक परीक्षाओं को सरलतापूर्वक प्रयुक्त किया जा सकता है।
मौखिक परीक्षा के दोष (Demerits of Oral Test)
मौखिक परीक्षा के कुछ दोष निम्न हैं-
- इनमें विश्वसनीयता एवं वैधता का अभाव होता है।
- व्यक्तिगत रूप से परीक्षा लेने के कारण समय अधिक लगता है।
- समस्त विषयों एवं समस्त स्तरों पर इसका प्रयोग करना सम्भव नहीं है।
- इस परीक्षा पर परीक्षक के विचारों का भी प्रभाव पड़ता है।
- इसमें पक्षपात की अधिक सम्भावना रहती है।
- इसमें परीक्षा के आधार पर अन्तिम, व्यापक एवं सम्पूर्ण मूल्यांकन सम्भव नहीं है।
प्रयोगात्मक प्रविधि (Practical Technique)
प्रयोगात्मक कार्यों का उपयोग विद्यार्थियों द्वारा सैद्धान्तिक ज्ञान के व्यावहारिक प्रयोग की क्षमता उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। प्रयोगात्मक परीक्षा के अन्तर्गत प्रयोग के माध्यम से विषय सम्बन्धी विभिन्न कार्यों का परीक्षण किया जाता है। प्रयोग के समय निरीक्षण हेतु कक्षा निरीक्षक भी उपस्थित रहता है जो छात्रों की गतिविधियों पर ध्यान रख सके तथा उनकी सहायता कर सके।
प्रयोग कायों में छात्रों को कुछ निर्देश देकर कुछ उपकरण तथा सामग्री दे दी जाती है जिससे वे स्वयं कार्य करके उसका निरन्तर निरीक्षण तथा परीक्षण करते हैं तथा परिणाम निकालते हैं। इसमें छात्र बताए गए उपयोगी उपकरणों का स्वयं प्रयोग करते हैं तथा उनसे क्रिया करके उनके प्रयोग का अभ्यास करते हैं। प्रयोगात्मक शिक्षण में छात्र निरन्तर क्रियाशील रहते हैं जिससे वे चेतन तथा चुस्त रहते हैं तथा उनका शारीरिक, मानसिक व नैतिक विकास होता है। प्रायोगिक मूल्यांकन को दो भागों में बाँटा जा सकता है।
1) आन्तरिक प्रयोग- छात्र द्वारा जब किसी सूत्र या अवधारणा को प्रयोगशाला में सामग्री, उपकरण की सहायता से कार्य किया जाता है जिससे उसकी सफलता-असफलता का मूल्यांकन किया जाता है तब इसे आन्तरिक मूल्यांकन कहते हैं। यह प्रायः विज्ञान विषय में किया जाता है।
2) बाह्य प्रयोग- इस प्रकार के मूल्यांकन को छात्र के जीवन से जोड़कर ज्ञान, सिद्धान्त को व्यवहार रूप में परिवर्तित करने को कहा जाता है जैसे- कुछ दूरी दौड़ना, सत्य बोलना, चित्र बनाना, मिट्टी का कार्य करना आदि। यह मूल्यांकन-शारीरिक शिक्षा, गृह विज्ञान, कला, नैतिक शिक्षा, कृषि विज्ञान आदि विषयों में किया जाता है।
प्रयोगात्मक परीक्षा में सुधार के सुझाव (Suggestions for the Improvement in Practical Test)
यद्यपि प्रयोगात्मक परीक्षण अत्यन्त आवश्यक है परन्तु अभी इसमें कुछ सुधार की आवश्यकता है। प्रयोगात्मक परीक्षाओं के सुधार हेतु कुछ सुझाव इस प्रकार हैं-
1) प्रवेश के पहले छात्रों का मूल्यांकन होना चाहिए जिससे विद्यार्थियों की सीखने की गति एवं उनकी योग्यता देखें।
2) विद्यार्थियों के दैनिक कार्यों का मूल्यांकन प्रयोगात्मक परीक्षाओं के रूप में हो जिससे उनकी प्रगति का दैनिक ज्ञान प्राप्त होता रहे।
3) अन्तिम मूल्यांकन भी किया जाए परन्तु इसे उतना महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए।
4) विद्यार्थी प्रयोगात्मक परीक्षाएँ निडरतापूर्वक दें इसके लिए सतत् रूप में मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
5) प्रयोगात्मक परीक्षाएँ वास्तविकता पर आधारित हों।
6) परिणामों के अतिरिक्त सम्पूर्ण क्रिया को महत्त्व देना चाहिए।
7) परीक्षार्थी एवं परीक्षक के मध्य सम्बन्ध मधुर हों।
8) प्रयोगात्मक परीक्षाएँ वास्तविक जीवन से सम्बन्धित होनी चाहिए ताकि छात्र इसका उपयोग दैनिक जीवन में कर सकें।
ग्रेडिंग सिस्टम (Grading System)
भारतीय शिक्षा प्रणाली ने सत्र 2009-10 में ग्रेडिंग प्रणाली की शुरूआत के साथ शिक्षा प्रणाली को पुनःजीवित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया। इसके द्वारा परीक्षा के दौरान छात्रों पर दबाव को कम करने में सहायता मिलेगी। पिछले वर्षों के दौरान छात्रों के लिए शिक्षा का अर्थ ज्ञान के स्थान पर मात्र अंकों को प्राप्त करना था, इसी के परिणाम स्वरूप इस तरह की नीतियों को बनाने की व्यवस्था हुई।
सी.बी.एस.ई. ने कक्षा 6 से 10 तक के बच्चों के लिए यह प्रणाली प्रारम्भ की हैइस प्रणाली द्वारा परीक्षा के समय पढ़ाई के बोझ को कम करने में सहायता मिलेगी क्योंकि इसके अन्तर्गत छात्रों को सत्र के दौरान केवल एक नहीं बल्कि कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ेगा। ग्रेडिंग प्रणाली का उद्देश्य बालकों का सम्पूर्ण विकास करना है। यदि छात्र किसी एक विषय या क्षेत्र में दक्ष होता है तो उसे उसी क्षेत्र में प्रोत्साहित किया जाता है। यदि बालक शैक्षिक रूप से कमजोर होता है तो उसे कला, खेल-कूद आदि में अच्छे अंक अथवा ग्रेड प्राप्त हो जाते हैं।
प्राचीन अंकन प्रणाली में दोष एवं वैचारिक भिन्नता के कारण समय-समय पर इसकी भी आलोचना होती रही, प्राप्तांक के आधार पर ही छात्रों की मानसिक स्थिति एवं ज्ञान का आंकलन होता थायदि 59.99% प्राप्त करने वाला द्वितीय श्रेणी में आता है तो वहीं 60% प्राप्त करने वाला प्रथम श्रेणी में आ जाता है जबकि इससे यह स्पष्ट होता है कि दोनों छात्रों की योग्यता में कोई विशेष अन्तर नहीं है। अंकन प्रणाली की इन्हीं कमियों को दूर करने के लिए माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-1953) तथा शिक्षा आयोग (1964-66) ने अंको के स्थान पर ग्रेड प्रणाली का सुझाव दिया।
ग्रेडिंग प्रणाली के गुण (Merits of Grading System)
ग्रेडिंग प्रणाली के निम्नलिखित गुण हैं-
1) ग्रेडिंग छात्रों के अध्ययन एवं परीक्षा सम्बन्धी तनाव को कम करता है।
2) वे छात्र जो वर्ष भर मेहनत एवं लगन से पढ़ाई करते हैं परन्तु परीक्षा के दौरान अच्छा नहीं कर पाते हैं, उनके के लिए यह सहायक है।
3) ग्रेडिंग अंकों के आधार पर छात्रों के मध्य वर्गीकरण को कम करता है।
4) यह अति योग्य छात्रों के मध्य अस्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा को समाप्त करता है।
5) यह अधिगमकर्ता के लिए लचीला होता है तथा सामाजिक दबाव को भी कम करता है।
ग्रेडिंग प्रणाली के दोष (Demerits of Grading System)
ग्रेडिंग प्रणाली के निम्नलिखित दोष हैं-
1) छात्र जो कक्षा में अच्छी स्थिति में होते हैं उन्हें अपने वास्तविक अंक नहीं ज्ञात हो पाते।
2) यह परिश्रमी छात्रों हतोत्साहित करता है।
3) ग्रेडिंग परिश्रम के द्वारा प्राप्त अच्छे अंक की अवधारणा को समाप्त कर दिया।
4) ग्रेडिंग प्रणाली 90 प्राप्तांक एवं 99 प्राप्तांक करने वाले में कोई विभेद नहीं करता है।
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