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समाजमिति (Sociometry) : विशेषताएँ, प्रक्रिया, गुण एंव दोष

समाजमिति (Sociometry) : विशेषताएँ, प्रक्रिया, गुण एंव दोष
समाजमिति (Sociometry) : विशेषताएँ, प्रक्रिया, गुण एंव दोष

समाजमिति (Sociometry)

समाजमिति अन्तवैयक्तिक / सामाजिक सम्बन्धों के मापन एवं अभिलेखन की मात्रात्मक (Quantitative) प्रविधि है। इसका विकास मनोचिकित्सक जैकब एल. मोरेनो (Jacob L. Moreno) ने सामाजिक संरचना एवं मनोवैज्ञानिक भलाई के बीच सम्बन्धों के अध्ययन के दौरान किया।

Sociometry शब्द लैटिन भाषा के दो शब्दों ‘Socius’ और ‘Metrum’ के योग से बना है। Socius का अर्थ है साथी (Companion) और ‘Metrum’ का अर्थ है माप (Measure) इस प्रकार Sociometry का अर्थ हुआ ‘साथियों का मापन’ ।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ सामाजिक वातावरण से समायोजन स्थापित कर रहता है। समायोजन स्थापन हेतु उसे समाज के अन्य व्यक्तियों से मधुर सम्बन्ध बनाने होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि एक ही व्यक्ति को सभी व्यक्ति चाहते हों या ऐसा भी सम्भव है कि एक परिस्थिति में जिस व्यक्ति को सभी पसन्द करते हों उसे ही दूसरी परिस्थिति में सभी नापसन्द भी करें। समाजमिति वह प्रविधि है जिसके द्वारा व्यक्ति का समाज में क्या स्थान है? पता लगाया जा सकता है। इस प्रविधि द्वारा व्यक्तियों की पसन्द-नापसन्द, आकर्षण-विकर्षण आदि का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार समाजमिति वह प्रविधि है जिसके द्वारा पारस्परिक पसन्द (Interpersonal Choice), पारस्परिक सम्प्रेषण (Interpersonal Communication) और पारस्परिक अन्तःक्रियाओं (Mutual Interactions) का विश्लेषण और अध्ययन किया जाता है।

जे. डब्लू. बेस्ट ने समाजमिति को निम्न शब्दों में परिभाषित किया है, “समाजमिति एक समूह के सदस्यों में सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन करने की एक प्रविधि है।”

According to J.W. Best, “Sociometry is a technique for describing social relationship that exist between individuals in a group.”

ब्रोनफैनब्रेनर महोदय के अनुसार, “समाजमिति सामाजिक स्तर, संरचना एवं विकास को समूह के सदस्यों के मध्य स्वीकृति और अस्वीकृति की सीमा को मापकर, अन्वेषित करने, वर्णन करने और मूल्यांकन करने की एक विधि है।”

According to Bronfenbrenner, “Sociometry is the method for discovering, describing and evaluating social status, structure and development through measuring the extent of acceptance or rejection between individuals in groups.”

एन्ड्रयू और विली ने समाजमिति को परिभाषित करते हुए लिखा है, “समाजमिति एक रेखाचित्र है जिसमें कुछ संकेतों एवं चिह्नों को समूह के सदस्यों में सामाजिक स्वीकृ ति और अस्वीकृति की पद्धति को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

According to Andrew and Willey, “A sociogram is a graphic drawing using certain symbols and marks to indicate the pattern of social acceptance and rejection among members of a social group.”

वर्तमान में समाजमितीय विधि में अनेक तकनीकियों का विकास हो चुका है। सामाजिक मनोविज्ञान से सम्बन्धित भिन्न-भिन्न समस्याओं के अध्ययन में भिन्न-भिन्न तकनीकियों को उपयोग में लाया जाता है। सामान्यतः यह विधि छोटे समूहों के लिए उपयुक्त रहती है। सामाजिक मनोविज्ञान में इसका उपयोग अन्तर्वैयक्तिक अध्ययनों, आकर्षण-विकर्षण, पसन्द-नापसन्द आदि से सम्बन्धित समस्याओं के अध्ययन में किया जाता है। इसके अतिरिक्त समूह-संरचना, नेतृत्व, सम्प्रेषण, समूह सम्बन्धशीलता (Cohesiveness) आदि से सम्बन्धित समस्याओं के अध्ययन में भी यह विधि बहुत उपयोगी है।

इस विधि को विकसित करने वाले मोरेनो (Moreno) महोदय ने इसका प्रयोग सामूहिक मनोबल के मापन हेतु किया था। इनकी इस विधि में जैकिसेन (J.G. Jenkinson, 1964) ने महत्त्वपूर्ण सुधार किया। उन्होंने इस विधि का नाम Nomination Technique रखा। जैकिसेन के अतिरिक्त भी अनेक मनोवैज्ञानिकों ने इस विधि में सुधार एवं संशोधन कर इससे सम्बन्धित अनेक तकनीकों का विकास किया।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि समाजमिति एक समूह के सदस्यो के बीच आपसी सम्बन्धों की माप करना है अर्थात् इस विधि से यह ज्ञात होता है कि कौन सा व्यक्ति/विद्यार्थी अपने समूह में अपना स्थान बनाने में सफल नहीं हुआऐसी परिस्थिति में उस विद्यार्थी / व्यक्ति में सामाजिकता की भावना विकसित करने की आवश्यकता होती है जिससे कि वह इस योग्य बन सकें कि अपने समूह के अन्य सदस्यों के साथ मित्रता स्थापित कर सके।

समाजमिति की विशेषताएँ (Characteristics of Sociometry)

इस प्रविधि की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

1) इनकी सहायता से एक समूह के सदस्यों के अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों का सफलतापूर्वक अध्ययन किया जा सकता है।

2) इसकी सहायता से अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों का अध्ययन आकर्षण (Attraction), विकर्षण (Repulsion), तथा उदासीनता (Indifference) के विकल्प के माध्यम से अध्ययन किया जा सकता है।

3) इसकी सहायता से उन्हीं समूहों के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जा सकता है जो एक-दूसरे से परिचित होते हैं।

4) इस विधि की सहायता से स्कूल/महाविद्यालयों, सरकारी-गैर सरकारी प्रतिष्ठानों, कम्पनियों में कार्य करने वाले व्यक्तियों में नेता/प्रतिनिधि चयन हेतु, सम्प्रेषण अध्ययन हेतु सामूहिक मनोबल या सामूहिक नैतिकता हेतु समूह गुटबाजी के अध्ययन हेतु आदि से सम्बन्धित समस्याओं का सफलतापूर्वक अध्ययन किया जा सकता है।

5) इस प्रविधि द्वारा गुणात्मक स्वरूप वाले अन्तर्सम्बन्धों को मात्रात्मक रूप में दर्शाया जाता है या रेखाचित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है। इसमें पारस्परिक सम्बन्धों के अध्ययन में सामाजिक पक्ष को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

6) इस विधि द्वारा औपचारिक सम्बन्धों का अध्ययन सम्भव नहीं है। केवल अनौपचारिक सम्बन्धों के अध्ययन इसके द्वारा किया जाता है।

7) इस विधि की सहायता से केवल छोटे समूहों (10-10 सदस्यों वाले) का ही अध्ययन सुस्पष्ट ढंग से सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

8) इसका उपयोग किसी भी अनुसन्धान समस्या के अध्ययन में स्वतन्त्र अध्ययन विधि के रूप में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य सहायक विधियाँ, जैसे- साक्षात्कार, निरीक्षण आदि का उपयोग भी किया जा सकता है। अन्य विधियों के साथ इसे सहायक विधि के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।

समाजमितीय प्रविधि की प्रक्रिया (Procedure of Sociometric Technique)

समाजमितीय प्रविधियाँ अनेक हैं और इनकी प्रक्रियाओं में थोड़ी बहुत भिन्नताएँ होती हैं फिर भी इन प्रविधियों की एक सामान्य प्रक्रिया के कुछ निश्चित बिन्दु है। इनकी सामान्य प्रक्रिया इस प्रकार हैं-

1) इस प्रविधि द्वारा किसी समूह के व्यक्तियों के अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों का अध्ययन करते समय सबसे पहले कुछ कसौटियों (Criteria) को बनाना / निर्धारित करना आवश्यक होता है। यह कसौटी या कसौटियाँ समूह के अधिकतर क्रिया-कलापों से सम्बन्धित होता है।

2) समूह के सदस्यों की पारम्परिक पसन्द या आकर्षण-प्रतिकर्षण के अध्ययन हेतु समाजमितीय परीक्षण का उपयोग किया जाता है।

3) समाजमितीय परीक्षण के साथ सहायक प्रविधियाँ, यथा- व्यक्तिगत साक्षात्कार या निरीक्षण का उपयोग किया जा सकता है। इनके उपयोग से अध्ययन में विश्वसनीयता और सुस्पष्टता आ जाती है।

4) समाजमितीय परीक्षण (Sociometric Test) एक समूह के सदस्यों की पसन्द (Choices) जानने के लिए सावधानीपूर्वक कुछ प्रश्न किए जाते है। यहाँ पसन्द का कोई भी अर्थ हो सकता है-

  1. समूह के सदस्यों या सदस्य विशेष की पसन्द ।
  2. सदस्यों के सम्प्रेषण सूत्रों की पसन्द ।
  3. अल्पसंख्यक समुदाय की पसन्द आदि।

इस विधि से अध्ययन करते समय समूह के प्रत्येक सदस्य से एक या कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं। ये प्रश्न निम्न प्रकार के हो सकते हैं-

  1. अपने दो सबसे प्रिय मित्रों का नाम बताइए।
  2. आप अपने समूह के किन व्यक्तियों के साथ उठना-बैठना पसन्द करते हैं?
  3. आपके कार्यालय में ऐसे व्यक्ति कौन है जिनका आप बहुत आदर करते हैं?
  4. अपने कॉलेज के सबसे लोकप्रिय शिक्षक कौन है? आदि।

5) उपरोक्त प्रकार के प्रश्नों को तैयार कर लेने के पश्चात् अध्ययन समूह के प्रत्येक सदस्य से प्रश्न पूछे जाते हैं और उनकी पसन्द समाजमितीय प्रविधि में वर्णित नियमों के अनुसार समाजमिति आलेख या समाजमितीय मैट्रिक्स (Sociometric Matrix) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। अध्ययन समूह के प्रत्येक सदस्य से उपरोक्त सभी प्रश्न नहीं पूछे जाते बल्कि आवश्यकतानुसार अधिकतर एक ही प्रश्न पूछे जाते हैं।

6) समूह के प्रत्येक सदस्य के उत्तर को आलेख रूप में साथ-साथ अंकित कर लेते हैं या समाजमितीय मैट्रिक्स बना लेते हैं। यदि पारस्परिक सम्बन्धों के अध्ययन करते समय आवश्यक होता है तो समूह के सदस्यों का साथ ही साथ साक्षात्कार भी ले लेते हैं और आवश्यक होने पर निरीक्षण भी कर लिया जाता है। इस विधि द्वारा किसी समूह विशेष के सदस्यों का अध्ययन सफतापूर्वक तब किया जा सकता है जब सदस्य से प्रश्न पूछने से पहले उसके साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर लिए गए हॉ जिससे कि समूह का सदस्य अध्ययनकर्ता के प्रभाव में आ जाए। उसके बाद अध्ययनकर्ता को चाहिए कि समूह के उस सदस्य से समाजमितीय परीक्षण से सम्बन्धित प्रश्न सावधानीपूर्वक पूछे जिससे कि उसे सही-सही उत्तर प्राप्त हो सकें। समाजमितीय प्रविधि का उपयोग यदि साक्षात्कार विधि के साथ किया जाता है तब परिणाम और अधिक विश्वसनीय प्राप्त होते हैं।

समाजमिति प्रविधि के गुण/लाम (Merits/Advantages of Sociometric Technique)

इस प्रविधि के निम्नलिखित प्रमुख गुण/लाभ हैं-

1) पारस्परिक पसन्द-नापसन्द का अध्ययन (Study of Mutual Liking- Disliking)- इस प्रविधि के द्वारा एक समूह के सदस्यों की पारस्परिक पसन्द-नापसन्द का अध्ययन सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

2) पारस्परिक अन्तःक्रियाओं का अध्ययन (Study of Mutual Interaction)- इन प्रविधियों के द्वारा एक समूह के सभी सदस्यों की पारस्परिक अन्तःक्रियाओं का अध्ययन सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

3) प्रतिनिधि/नेता चयन सम्बन्धी अध्ययन (Study Related to Selection of Representative/Leader) – इन प्रविधियों के द्वारा प्रतिनिधि/नेता चयन सम्बन्धी अध्ययन सफलतापूर्वक किए जा सकते हैं। शिक्षा, औद्योगिक क्षेत्रों, सेना या किसी समूह विशेष में जहाँ यह ज्ञात करना है कि समूह के सदस्य किस व्यक्ति को नेता चुनना चाहते हैं, इन प्रविधियों के द्वारा यह जाना जा सकता है।

4) समूह सामन्जस्यता / सम्बद्धशीलता (Group Cohesiveness) – का अध्ययन-समूह संसजकता / सम्बद्धशीलता का आशय है- समूह के सदस्यों में पारस्परिक आकर्षणएक समूह में एकता और संगठन तब अच्छा होगा जब उसमें सम्बद्धशीलता का गुण होगाइन प्रविधियों द्वारा समूह की सम्बद्धशीलता एवं एक जुटता का अध्ययन किया जा सकता है।

5) सम्प्रेषण मार्गों का अध्ययन (Study of Communication Channels)- इन प्रविधियों के द्वारा एक समूह के सदस्यों में किस-किस प्रकार के सम्प्रेषण मार्ग हैं? पारस्परिक सम्प्रेषण किस प्रकार का है? आदि का अध्ययन सफलतापूर्वक किया जा सकते हैं।

6) समूह नैतिकता/सामूहिक मनोबल एवं पूर्वाग्रह का अध्ययन (Study of Group Ethics/Group Morale and Prejudice) – इन प्रतिविधियों के द्वारा एक समूह के सामूहिक मनोबल तथा पूर्वाग्रहों का अध्ययन सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

7) विश्वसनीय अध्ययन (Reliable Study)- चूंकि अध्ययनकर्ता इस प्रविधि में स्वयं तथ्यों / सूचनाओं का संकलन करता है तथा तथ्यों / सूचनाओं का संकलन एक या कुछ प्रश्नों के आधार पर करता है इसलिए अध्ययनकर्ता को जो तथ्य /सूचनाएँ प्राप्त होती हैं वे विश्वसनीय होते हैं।

8) कम खर्चीली प्रविधि (Less Expensive Technique) – इस प्रविधि के प्रयोग में धन एवं समय दोनों अपेक्षाकृत कम खर्च होते हैं। यह एक मितव्ययी प्रविधि है।

समाजमितीय प्रविधियों के दोष/कमियाँ/सीमाएँ (Demerits/Limitations of Sociometric Techniques)

इन प्रविधियों में निम्नलिखित प्रमुख दोष हैं-

1) केवल छोटे समूहों का अध्ययन सम्भव (Study of Only Small Groups is Possible) – इन प्रविधियों की सबसे बड़ी सीमा यह है कि ये केवल छोटे समूह के लिए ही उपयुक्त होती है (अधिकतम 40-50)। इसमें समूह के सदस्यों की संख्या जितनी बढ़ती है यह प्रविधि उतनी ही अनुपयुक्त हो जाती है।

2) अध्ययन की पूरकविधि (Supplementary Technique of Study) – यह प्रविधि अपने आप में पूर्ण नहीं है। इसका बेहतर उपयोग साक्षात्कार एवं निरीक्षण प्रविधि के साथ होता है। यदि इनका प्रयोग अध्ययन में नहीं किया जाता है तो इस प्रविधि से प्राप्त तथ्य अधिक विश्वसनीय नहीं माने जाते।

3) केवल कुछ प्रश्नों की जानकारी (Information About Only Few Questions)- किसी समूह के अध्ययन में इन प्रविधियों द्वारा केवल एक या कुछ प्रश्नों की ही जानकारी प्राप्त होती है।

ये प्रश्न चाहे पारस्परिक अन्तःक्रियाओं से सम्बन्धित हों, चाहे समूह सम्बद्धशीलता से या समूह मनोबल से अर्थात् इन सबका सम्पूर्ण अध्ययन इन प्रविधियों द्वारा सम्भव नहीं क्योंकि अध्ययन एक या कुछ प्रश्नों के उत्तर पर आधारित होता है।

4) गहन अध्ययन सम्भव नहीं (Intensive Study is not Possible)- इन प्रविधियों द्वारा सामाजिक अन्तःक्रियाओं, पारस्परिक प्रतिक्रियाओं, पारस्परिक पसंद, सामूहिक मनोबल आदि का अध्ययन गहनतापूर्वक सम्भव नहीं होता क्योंकि इनका अध्ययन एक या कुछ प्रश्नों के उत्तरों पर आधारित होता है।

5) कुशल एवं अनुभवी अध्ययनकर्ताओं का अभाव (Lack of Skilled and Experienced Learners)- इन प्रविधियों के उपयोग हेतु कुशल एवं अनुभवी अध्ययनकर्ताओं की आवश्यकता होती है जो सरलता से उपलब्ध नहीं होते हैं।

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Anjali Yadav

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