अध्यापक शिक्षा हेतु कोठारी आयोग की संस्तुतियों का सविस्तार उल्लेख कीजिए।
शिक्षा आयोग ने कहा है – शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए यह अनिवार्य है कि अध्यापकों में वृत्तिक शिक्षण का एक समुचित कार्यक्रम हो। अध्यापकों के प्रशिक्षण पर किए गए व्यय का प्रतिफल सचमुच काफी मूल्यांकन होगा क्योंकि उससे लाखों छात्रों को शिक्षा में जितना सुधार होगा, उसकी तुलना में आर्थिक व्यय की मात्रा बहुत कम होगी। अध्यापकों की शिक्षा व्यवस्था पर कोठारी कमीशन ने गम्भीरतापूर्वक विचार किया है। इससे शिक्षा का स्तर तो ठीक होगा ही, हमारे राष्ट्र निर्माण का प्रश्न भी हल होगा। कोठारी कमीशन ने अध्यापकों की शिक्षा के सम्बन्ध में मुख्य सिफारिशे इस प्रकार की हैं। पुनश्चर्या तथा ग्रीष्मकालीन पाठ्यक्रमों का सुझाव दिया है।
(1) व्यावसायिक शिक्षा- व्यवसायिक शिक्षा को प्रभावशाली बनाने के लिए उसे विश्वविद्यालय की मुख्यधारा से जोड़ना पड़ेगा जिससे दूसरे पहलू का विकास सरलता से हो सकता है।
(2) शिक्षकों में अलगाव की प्रवृत्ति- विश्वविद्यालय तथा अध्यापक-शिक्षा के मध्य अलगाव को दूर करने के लिए यह आवश्यक है-
1. शिक्षा को पहली तथा दूसरी डिग्री में ऐच्छिक विषय के रूप में लागू किया जाए।
2. विश्वविद्यालयों में शिक्षा विश्वविद्यालय खोले जाएँ जो प्रशिक्षण अध्ययन तथा अनुसन्धान के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली समस्याओं का समाधान कर सके।
विद्यालय से इस अलगाव के लिए निम्नलिखित कार्य किए जाएं-
1. प्रत्येक प्रशिक्षण विद्यालय में भी प्री-प्राइमरी प्राइमरी तथा सेकेण्डरी स्तर पर प्रसार सेवा विभाग खोले जाएँ। यह विभाग स्कूलों में आवश्यक सुविधाएँ दिलाएँ।
2. पुरातन-छात्रों की एक संख्या बने जो समय-समय पर पाठ्यक्रम सम्बन्धी सुझाव दे।
3. प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को शिक्षण अभ्यास के लिए मान्यता प्राप्त स्कूलों में भेजा जाए। इन्हें साधन सामग्री जुटाने के लिए विशेष अनुदान मिलना चाहिए।
4. विद्यालयों में कक्षा पर्यवेक्षक का स्थानान्तरण समय-समय पर दूसरे स्कूलों में होते रहना चाहिए।
5. विशेष विषय, जैसे कला, शरीर शिक्षा आदि में पृथकता हेतु निम्नलिखित प्रयत्न किए जायें-
(i) प्रशिक्षण, कॉलेजों, को विश्वविद्यालय के कॉलेजों के स्तर पर ले जाया जाए। सभी प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाए। ये सभी विश्वविद्यालय के अन्तर्गत हों।
(ii) नियोजित आधार पर सघन प्रशिक्षण कॉलेजों की स्थापना हो।
(iii) प्रत्येक राज्यों में स्तर पर राज्य शिक्षा परिषद की स्थापना हो।
(3) व्यावसायिक शिक्षा का विकास – अध्यापक की शिक्षा गुण पर आधारित होती है। इसके अभाव में धन तथा मानव शक्ति दोनों का अपव्यय होता है। इसके लिए आयोग के सुझाव इस प्रकार है-
1. विषय का ज्ञान अध्यापक के लिए अत्यन्त आवश्यक है। विश्वविद्यालय या परास्नातक महाविद्यालयों की विषय की पूरी जानकारी छात्र को देनी चाहिए।
2. विश्वविद्यालयों में समन्वित (Integrated) कार्यक्रम को सघन बनाना।
3. शिक्षण अभ्यास में सुधार करना और इन्टर्नशिप (Internship) कार्यक्रम को सघन बनाना।
4. विशेष पाठ्यक्रम तथा कार्यक्रम विकसित करना।
5. आधारभूत आदर्शों की प्राप्ति के लिए समय-समय पर अध्यापकों की शिक्षा पर विचार करना।
(4) प्रशिक्षण अवधि – अध्यापकों के गुणात्मक विकास के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का महत्व सर्वाधिक है। प्रशिक्षण की अवधि कितनी हो, यह प्रश्न विवाद-ग्रस्त रहा है। आयोग ने अध्यापक शिक्षण की अवधिं सम्बन्धित संस्तुतियाँ इस प्रकार हैं-
1. माध्यमिक पास विद्यार्थियों के लिए प्रशिक्षण काल दो वर्ष का होना चाहिए। ग्रेजुएट छात्रों के लिए यह एक वर्ष का होना चाहिए। काम के दिन 230 कर दिए जायें।
2. राज्य अध्यापक-शिक्षा परिषद (S.B.T.E) को देश का सर्वेक्षण कर उसी के अनुसार पाठ्यक्रम का निर्माण करना चाहिए।
3. प्रधानाचार्यों तथा प्रशिक्षण कॉलेज के अध्यापकों के लिए समय-समय पर विशेष पाठ्यक्रम चलाए जाए।
4. शिक्षा (Education) में पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम को अच्छे कॉलेजों में तीन सत्रों (Terms) में चलाया जाए।
(5) प्रशिक्षण विद्यालयों में सुधार – प्रशिक्षण विद्यालयों में सुधार लाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किये जाएं।
(1) माध्यमिक विद्यालयों के अध्यापक (Secondary School Teachers) – इसके सुधार हेतु निम्नलिखित बिन्दुओं को दिया गया है-
1. माध्यमिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए दो विषयों में एम०ए० होना आवश्यक है। उनमें से कुछ को पी०एच०डी० की उपाधि भी प्राप्त हो। अध्यापक-शिक्षण का अनुभव हो।
2. विशेष विषयों-विज्ञान, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान तथा गणित में उन व्यक्तियों को रखा जा सकता है जिन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है।
3. किसी भी छात्र को उस विषय में विशेष योग्यता (Specialisation) प्राप्त करने दी जाए जिसमें वह बी०ए० न हों।
4. अध्यापकों को स्कूलों में उन्हीं विषय को दिया जाएं जिन्हें उन्होंने उपाधि प्राप्त करने के लिए पढ़ा है। यदि उन्हें विषय दिए जाते हैं तो उनमें अपेक्षित योग्यता प्राप्त करना आवश्यक है।
5. प्रथम तथा द्वितीय श्रेणी को छात्रों को अध्यापन-शिक्षा के लिए चयन किया जाए और उन्हें आवश्यक छात्रवृत्ति भी दी जाए।
(2) प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापक (Primary School Teachers) – इनके सुझावों को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा दिया गया।
1. प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापकों के प्रशिक्षण देने वाले अध्यापकों की योग्यता एम०ए० या इसके समकक्ष हो। साथ ही वे बी०एड० भी हों। प्राइमरी अध्यापक शिक्षण में विशेष योग्यता प्राप्त हो।
2. प्राथमिक प्रशिक्षण स्कूल में वे ही अध्यापक रखे जाएं जो कम से कम 10 वर्ष स्कूल में पूरे कर चुके हैं। आदिवासी क्षेत्रों तथा महिलाओं के लिए इस नियम में शिथिलता बरती जा सकती है।
3. डाक द्वारा शिक्षा तथा अध्ययन के लिए अवकाश में उदारता आवश्यक है।
4. बी०ए० पास वे व्यक्ति जो प्राथमिक विद्यालयों में जाना चाहे, विशेष पाठ्यक्रम प्राप्त करें।
5. प्रशिक्षण का कार्यक्रम 2 वर्ष हो।
(6) प्रशिक्षण सुविधाओं का विस्तार – प्रशिक्षण की सुविधाओं को प्राथमिकता के आधार पर प्राप्त कराया जाना चाहिए। इनका उद्देश्य है कि नियुक्ति के समय अध्यापक प्रशिक्षित नहीं है तो उसे प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु भेजना चाहिए। यह आयोग का विचार है।
1. प्रत्येक राज्य को अपनी आवश्यकता के अनुसार प्रशिक्षण विद्यालयों का विस्तार करना चाहिए, सेवाकालीन (In-Service) प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की जानी चाहिए।
2. सेवा अंशकालीन तथा पत्राचार प्रशिक्षण की सेवा का विस्तार हो। इसमें यह ध्यान रखा जाए कि पूर्ण सेवाकालीन संस्थाओं का स्तर गिर न जाए।
3. अप्रशिक्षित अध्यापकों को प्रशिक्षित किया जाए।
4. प्रशिक्षण संस्थाओं का आकार बड़ा होना चाहिए और उन्हें उचित रूप से नियोजित किया जाए।
(7) विद्यालय के अध्यापकों का सेवाकालीन प्रशिक्षण- ज्ञान का विकास तथा प्रसार इतनी प्रगति पर है कि समय के साथ-साथ यदि विकसित ज्ञान से सम्पर्क न रखा गया तो हम पिछड़ जायेंगे। साथ ही सेवाकाल से पूर्व जिन व्यक्तियों कों प्रशिक्षण की सुविधाएँ नहीं मिल पातीं, उनके लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण की व्यवस्था आयोग न की है।
1. प्रत्येक स्तर पर हर अध्यापक को पाँच वर्ष में एक बार तीन महीने का सेवाकालीन प्रशिक्षण प्राप्त करना आवश्यक है।
2. ग्रीष्मकालीन संस्थाओं (Summer institutes) का सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए विस्तार किया जाए। पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों का आयोजन हो।
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