पुनर्बलन कौशल क्या है? पुनर्बलन कौशल की शिक्षण अधिगम में उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
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पुनर्बलन कौशल (Reinforcement Skill)
पुनर्बलन छात्रों को प्रेरणा प्रदान करने की वह कला है जिसके माध्यम से शिक्षक अपनी शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बना सकता है। छात्रों द्वारा उत्तर प्राप्त होने पर उन्हें प्रदान किये जाने वाला पृष्ठ-पोषण ही पुनर्बलन का कार्य करता है। यद्यपि-पृष्ठ पोषण एवं पुनर्बलन में व्यापक अन्तर है तथापि इसका कार्यक्षेत्र लगभग समान ही होता है। अन्य शिक्षण कौशलों की भाँति पुनर्बलन भी शिक्षक के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है जिसकी जानकारी होना पाठ को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है।
पुनर्बलन कौशल के प्रकार (Types of Reinforcement Skill)
पुनर्बलन कौशल प्रमुख रूप से दो प्रकार के होते हैं इसका वर्गीकरण निम्न रेखाचित्र के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है-
इस प्रकार पुनर्बलन के मुख्य चार प्रकार हमारे सामने आते हैं-
- सकारात्मक शाब्दिक पुनर्बलन,
- नकारात्मक शाब्दिक पुनर्बलन,
- सकारात्मक अशाब्दिक पुनर्बलन,
- नकारात्मक अशाब्दिक पुनर्बलन,
इनमें से सकारात्मक पुनर्बलन का प्रयोग वांछित अनुक्रियाओं को प्रभावी बनाने के लिए किया जाता है। वहीं नकारात्मक पुनर्बलन का प्रयोग अवांछित अनुक्रियाओं को निष्प्रभावी करने के लिए किया जाता है। नकारात्मक पुनर्बलन का उचित प्रयोग सफल शिक्षण कला की कसौटी है। सकारात्मक पुनर्बलन के द्वारा शिक्षक छात्रों को कक्षा में लगातार प्रेरित एवं उत्साहित कर सकता है।
पुनबर्लन कौशल के प्रकारों की स्पष्ट व्याख्या निम्न प्रकार की जा सकती है-
(1) सकारात्मक शाब्दिक पुनर्बलन- इस पुनर्बलन में अध्यापक ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जिससे छात्र उत्साहित होकर पाठ में अधिक से अधिक भाग लें। अध्यापक “अच्छा”, “बहुत सही”, “शाबास”, “ठीक है” आदि सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करता ” है। सही उत्तर प्राप्त होने के बाद जब प्रशंसा सूचक शब्दों का प्रयोग अध्यापक द्वारा किया जाता है तो छात्र उत्साहित होता है एवं आगे की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में रुचिपूर्वक भाग लेता है।
(2) नकारात्मक शब्दिक पुनबर्लन- इसके अन्तर्गत “नहीं”, “गलत है”, “पुनः बताओ” जैसे शब्द आते हैं जिनके द्वारा छात्र की गलत अनुक्रिया को निरुत्साहित किया जाता है, जिससे सभी छात्रों को उत्तर के गलत होने का सन्देश प्रसारित हो। नवीन सिद्धान्तों के अनुसार इसका प्रयोग करने से यथासम्भव बचना चाहिए।
(3) सकारात्मक अशाब्दिक पुनर्बलन- अध्यापक बिना बोले या बगैर शब्दों का प्रयोग किये जब छात्रों को उत्साहित करता है उसे सकारात्मक अशाब्दिक पुनर्बलन कहा जाता है। “सहमति में सिर हिलाना”, “मुस्काराना” अथवा उसके उत्तर को सुनते समय प्रशंसात्मक संकेत प्रदान करना आदि इसके उदाहरण हैं। प्रभावी शिक्षण में इसकी भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। अतः अध्यापक को इनका प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
(4) नकारात्मक अशाब्दिक पुनर्बलन- अध्यापक द्वारा नाराजगी से छात्र की ओर देखना, नकारात्मक सिर हिलाना, घूर कर छात्र को देखना, पैर से जमीन थपथपाना या तेज गति से चलना आदि ऐसे व्यवहार हैं जिनके द्वारा छात्रों को गलत उत्तर देने या अनुचित बात कहने पर अध्यापक अपनी अस्वीकृति को प्रदर्शन करता है। इससे छात्र गलत उत्तरों के प्रति निरुत्साहित होता है।
पुनर्बलन की शिक्षण-अधिगम में उपयोगिता (Advantage of Reinforcement Skill in Teaching Learning Process )
एक शिक्षक के लिए पुनर्बलन कौशल निम्न प्रकार से उपयोगी हो सकता है-
- पुनर्बलन द्वारा कौशल के प्रयोग से छात्रों का मानसिक विकास भी होता है और उनके अन्दर चिन्तन करने की क्षमता बढ़ती है।
- पुनर्बलन द्वारा नवीन ज्ञान के लिए छात्रों के मन में उत्सुकता जागृत होती है।
- पुनर्बलन द्वारा छात्रों में रुचि का विकास होता है।
- पुनर्बलन द्वारा प्रयोग से छात्र कक्षा में सक्रिय बने रहते हैं।
- पुनर्बलन द्वारा छात्रों में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।
- पुनर्बलन द्वारा यह छात्रों को प्रोत्साहन प्रदान करता है।
- पुनर्बलन द्वारा स्वस्थ मानसिकता का विकास होता है।
- पुनर्बलन द्वारा छात्रों की पर्याप्त सहभागिता बनी रहती है।
पुनर्बलन कौशल के घटक (Factors of Reinforcement Skill)
पुनर्बलन कौशल के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं जो कि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रभावित करते हैं-
- शिक्षण अधिगम हेतु पुनर्बलकों का उचित प्रयोग।
- शिक्षण अधिगम हेतु ऋणात्मक अशाब्दिक पुनर्बलकों का प्रयोग।
- शिक्षण अधिगम हेतु ऋणात्मक शाब्दिक पुनर्बलकों का प्रयोग ।
- शिक्षण अधिगम हेतु धनात्मक अशाब्दिक पुनर्बलकों का प्रयोग।
- शिक्षण अधिगम हेतु प्रशंसा सूचक शब्दों का प्रयोग।
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