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छात्रालयाध्यक्ष के गुण (QUALITIES OF WARDEN)
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि छात्रालयाध्यक्ष के कन्धों पर छात्रावास के अनुशासन, उसकी व्यवस्था तथा निरीक्षण, आदि सभी कार्यों का भार है। इस पद के दायित्व का निर्वाह करने वाले व्यक्ति में कुछ विशिष्ट गुणों का होना आवश्यक है। नीचे संक्षेप में उन पर प्रकाश डाला जा रहा है-
1. प्रशासकीय योग्यता– छात्रावास में सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए छात्रालयाध्यक्ष को कुशल संगठनकर्ता एवं प्रबन्धक होना चाहिए।
2. सामाजिक गुण– छात्रालयाध्यक्ष में सहयोग, सहानुभूति, न्यायप्रियता, आदि गुणों का होना आवश्यक है, जिससे बालकों के लिए छात्रावास में सहयोगी वातावरण निर्मित कर सके। इसके अतिरिक्त उसे मृदुभाषी, धैर्यवान, निष्पक्ष व्यवहार करने वाला व्यक्ति होना चाहिए।
3. व्यक्तित्व- छात्रालयाध्यक्ष में उन गुणों का होना आवश्यक है जो एक उत्तम व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं; उदाहरणार्थ- नेतृत्व करने की क्षमता, उच्च चरित्र, सहनशील एवं स्पष्ट चिन्तन, निष्पक्षता एवं दूरदर्शिता, आदि। उसमें वात्सल्य भाव का होना भी परमावश्यक है जिसके अभाव में वह छात्रावास में वास्तविक पारिवारिक जीवन की पूर्ति नहीं कर सकता।
4. मानवीय दृष्टिकोण- छात्रालयाध्यक्ष में मानव प्रकृति की विशेषताओं एवं मानवीय सम्बन्धों को समझने की क्षमता होनी चाहिए। इसके अभाव में वह छात्रों एवं उनके अभिभावकों तथा शिक्षकों, आदि से उचित सम्बन्ध स्थापित करने में असमर्थ रहेगा। इसके अतिरिक्त उसको उदार दृष्टिकोण रखना चाहिए। वह छात्रों की योग्यता एवं शक्ति में निष्ठा रखने की क्षमता रखे। मानव प्रकृति को समझने के लिए उसे मनोविज्ञान का ज्ञान भी होना आवश्यक है।
बालिकाओं के लिए छात्रावास से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण बातें (SOME IMPORTANT THINGS RELATED TO GIRLS’ HOSTEL)
माध्यमिक विद्यालय में जब बालिकाएँ प्रवेश पाती हैं तब उनकी आयु 11 वर्ष से कुछ अधिक होती है। सामान्यत: इस आयु में उनको घर पर गृहस्थी सम्बन्धी शिक्षा प्रदान की जाती है। अतः जब वे छात्रावास में प्रवेश पाती हैं तो उनके लिए यहाँ भी इस प्रकार की शिक्षा के लिए उचित वातावरण की व्यवस्था हो जिससे उन्हें गृहस्थी के कार्यों का यथासम्भव व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त हो सके।
बालिकाओं के छात्रावास में सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या उनकी सुरक्षा की है। इसके लिए आवश्यक है कि उनका छात्रावास सुरक्षित स्थान पर हो तथा इस हेतु चारदीवारी हो तो अच्छा है। इसके अतिरिक्त फाटक पर पहरेदार भी रहे जिससे बिना अनुमति के कोई व्यक्ति छात्रावास के अन्दर न जा सके।
बालिकाओं के छात्रावास की एक और महत्त्वपूर्ण समस्या उनके मिलने वालों की है। इसके लिए छात्रावास के अध्यक्ष को प्रवेश के समय ही उनके माता-पिता से जान लेना चाहिए कि उनको किन-किन सम्बन्धियों तथा स्थानीय संरक्षकों से मिलने की तथा छुट्टियों में किन लोगों के यहाँ जाने की आज्ञा दी जाए। मिलने वालों का उद्देश्य तथा आने-जाने की तिथियों का विवरण रखा जाए। छात्रावास में जो पुरुष मिलने आएँ, उनको छात्रावास में ठहराने की आज्ञा नहीं दी जा सकती है। यदि बालिकाओं की माताएँ या बहनें, आदि दूसरे शहरों से आयें तो उनके ठहरने के लिए सम्भव हो तो पृथक् कक्ष में व्यवस्था कर दी जाए।
बालिकाओं को अकेले बाजार से वस्तुएँ खरीदने के लिए अनुमति देना भी उचित प्रतीत नहीं होता। इसके लिए छात्रालयाध्यक्षिका को स्वयं उनके साथ जाना चाहिए या किसी अध्यापिका की संरक्षकता में उन्हें जाने की अनुमति देनी चाहिए।
जब बालिकाएँ लम्बी छुट्टियों में अपने घर जाएँ तो वे किसी-न-किसी की संरक्षकता में जाएँ तो उचित होगा। प्रत्येक छात्रा के माता-पिता को लम्बी छुट्टियों की तिथि के विषय में पूर्व सूचित कर देने से वे उनको घर ले जाने का उचित प्रबन्ध कर सकेंगे।
बालिकाओं के छात्रावास में नौकरों को रखने की भी महत्त्वपूर्ण समस्या है। इसके लिए जहाँ तक सम्भव हो, स्त्रियों को ही नौकर रखा जाए। परन्तु कुछ ऐसे कार्य हैं; जैसे बाहर से सामान लाना या रात्रि का पहरा, इन कार्यों के लिए पुरुष नौकर रखने ही पड़ेंगे। उनकी नियुक्ति बहुत ही सावधानी से करनी चाहिए।
सम्भवतः इन प्रतिबन्धों से छात्राओं को छात्रावास नीरस लगे। इसलिए छात्रावास के जीवन को आकर्षक एवं उपयोगी बनाने के लिए आवश्यक है कि छात्राओं के लिए मनोरंजन द्वारा शिक्षा प्रदान करने के लिए उपयुक्त प्रबन्ध किया जाय। इस हेतु नियमित खेलों की व्यवस्था करना सर्वोत्तम प्रतीत होता है। कभी-कभी शैक्षिक फिल्में भी दिखाई जानी चाहिए। छात्रावास को उपयोगी व आकर्षक बनाने के लिए आवश्यक है कि उसमें एक समृद्ध पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का रोचक कार्यक्रम संचालित किया जाय, जिससे छात्राएँ अपनी रुचियों के अनुसार क्रियाएँ चयन करके छात्रावास में व्यस्त व सुखी जीवन व्यतीत कर सकें तथा भावी जीवन के लिए उचित शिक्षा प्राप्त कर सकें।
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