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सामान्य एवं संक्रामक रोग | COMMON AND INFECTIONS DISEASE

सामान्य एवं संक्रामक रोग | COMMON AND INFECTIONS DISEASE
सामान्य एवं संक्रामक रोग | COMMON AND INFECTIONS DISEASE

सामान्य एवं संक्रामक रोग | COMMON AND INFECTIONS DISEASE

छूत का अर्थ (MEANING OF INFECTION)

छूत का अर्थ है-शरीर में कुछ रोगजनक जीवाणुओं (Pathogenic Micro-organism) की उत्पत्ति । इन जीवाणुओं में शरीर के अन्तर्गत अपनी वृद्धि करने की क्षमता होती है। ये जीवाणु अपनी अभिवृद्धि बीमार व्यक्ति के सम्पर्क में आये बिना भी कर सकते हैं। इनके द्वारा जीव-विष (Toxin) उत्पन्न किया जाता है। इस प्रकार के छूतों पर आधारित बीमारियों को संक्रामक या छूत के रोग कहते हैं।

संक्रामक रोग का अर्थ (MEANING OF INFECTIOUS DISEASE)

इसका अर्थ उस रोग से लगाया जाता है जो छूत का परिणाम होता है छूत जब एक-दूसरे को प्रत्यक्ष रूप से लग जाता है तो उसे संसर्गज रोग (Contageous Disease) कहते हैं, परन्तु संक्रामक रोग वह है जिसमें छूत अप्रत्यक्ष माध्यम जैसे-वायु, जल, भोजन, आदि से लग जाता है।

छूत के स्त्रोत (SOURCES OF INFECTION)

छूत के स्रोत कई प्रकार के हो सकते हैं मनुष्य, वायु, जल, भोजन, पशु, कीड़े, आदि। छूत का सबसे प्रमुख स्रोत मनुष्य ही है छूत अप्रत्यक्षतः एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को लग जाती है। मनुष्य रोगवाहक के रूप में कार्य करके विभिन्न संक्रामक रोगों को फैलाता है। वायु छूत को फैलाकर विभिन्न संक्रामक रोगों को जन्म देती है। जीवाणुओं से प्रभावित जल एवं भोजन दोनों छूत के स्रोत हैं। मच्छर, मक्खियाँ, आदि भी छूत के स्रोत हैं। पशु भी मनुष्यों को बीमारियाँ प्रदान करते हैं।

छूत की धाराएँ (CHANNELS OF INFECTION)

छूत मनुष्य के शरीर में निम्नलिखित के द्वारा प्रवेश करती है.-

(अ) चर्म (The Skin)– गिल्टी, टिटनस, खुजली, आदि रोग की छूत चर्म द्वारा शरीर में पहुंचती है। काटने वाले कीड़े चर्म में काटकर छूत को पहुंचाते हैं। उदाहरणार्थ–मलेरिया, पीत ज्वर, प्लेग, आदि कीड़ों के काटने से फैलते हैं। अत: चर्म का अन्तःकरण द्वारा (By Inoculation) छूत को मनुष्य के शरीर में पहुँचाया जाता है।

(ब) साँस द्वारा (By Inhalation) विभिन्न रोगों की छूत श्वास के द्वारा शरीर में प्रवेश करती है। इधर-उधर फेंका गया थूक-खखार या नेटा धूल में मिल जाते हैं। कुछ समय बाद उनकी तरलता समाप्त हो जाती है, परन्तु उसमें उपस्थित जीवाणु वायु द्वारा उड़ाये गये धूल के कणों के साथ श्वास के द्वारा शरीर में प्रवेश करके रोग फैलाने का कारण बन जाते हैं। इस प्रकार से फैलने वाले रोगों में डिप्थीरिया, कुकर खाँसी, सर्दी ज्वर (Influenza), आदि आते हैं।

(स) अन्तर्ग्रहण द्वारा (By Ingestion)-पाचन नली (Digestive Tract) के द्वारा भी शरीर में छूत या रोगाणु पहुँचाये जाते हैं। रोगाणुग्रस्त भोजन तथा पेय पदार्थों तथा कीड़ों के माध्यम से ये रोगाणु शरीर में प्रवेश करते हैं। इस प्रकार से फैलने वाले संक्रामक रोगों में हैजा, पेचिश, आदि प्रमुख हैं।

छूत के संचरण के साधन (MODES OF TRANSMISSION OF INFECTION)

छूत के संचरण के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं-

(अ) प्रत्यक्ष साधन (Direct Modes)- इस प्रकार के साधनों में किसी बीच के पोषक या व्यक्ति या वस्तु का हस्तक्षेप नहीं होता है। इस कारण इसे सम्पर्क छूत (Contact Infection) भी कहते हैं। बीमार व्यक्ति के विसर्जन स्वस्थ व्यक्ति को सीधे बिन्दु-संक्रमण (Droplet Infection) द्वारा प्रदान किये जाते हैं। इनमें सर्दी ज्वर, कुकर खाँसी, खसरा, क्षय रोग, आदि प्रमुख हैं। कुछ रोग शारीरिक सम्पर्क (Physical Contact) के परिणाम हैं; जैसे—उपदंश (Syphilis) । संसर्गित (Contaminated) हाथ तथा उँगलियाँ हैजा, पेचिश तथा टाइफाइड जैसे रोगों को फैलाती हैं।

(ब) अप्रत्यक्ष साधन (Indirect Modes)-छूत अप्रत्यक्ष रूप से किसी दूसरे व्यक्ति से भी हस्तान्तरित की जाती है। अप्रत्यक्ष साधन निम्नलिखित हैं-

(i) निर्जीव साधन (Inanimate Modes) इनमें संसर्गित वस्तुएँ; जैसे—बर्तन, खिलौने, पुस्तकें, स्लेट, पेन्सिल, आदि आती हैं। इनमें संसर्गित भोजन भी आते हैं जो टाइफाइड, पेचिश, हैजा, आदि को फैलाते हैं।

(ii) सजीव साधन (Animate Modes)— इनमें कीड़े-मकोड़े आते हैं जो छूत को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास ले जाते हैं। ऐसे रोगों में मलेरिया, प्लेग, आदि प्रमुख हैं।

(स) वाहकों द्वारा (By Carriers) मानवीय वाहक दो प्रकार के होते हैं—(1) अस्थायी वाहक तथा (2) दीर्घ स्थायी या पुराने वाहक (Chronic Carriers)। अस्थायी वाहकों को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है- (1) संस्पर्शी वाहक (Contact Carriers), (2) उपशमी वाहक (Convalescent Carriers) तथा (3) प्रारम्भिक वाहक (Incubation Carriers)। इन सभी वाहकों का संक्षिप्त विवेचन नीचे दिया जा रहा है-

(1) प्रारम्भिक वाहक— ये वाहक वे व्यक्ति होते हैं जो संक्रामक रोगों के उद्भवन काल में मरीज के पास रहते हैं।

(2) संस्पर्शी वाहक– ये वाहक वे होते हैं जो संक्रामक रोगी के सम्पर्क में रहते हैं और रोगाणुओं को लाते हैं।

(3) उपशमी वाहक- ये वाहक वे व्यक्ति होते हैं जो उपशमन के समय रोगाणुओं को धारण करते रहते हैं। इनको कभी-कभी उग्र वाहक भी कहा जाता है।

(4) पुराने वाहक- ये वाहक वे व्यक्ति होते हैं जो रोग के ठीक होने के बाद भी दीर्घ समय तक संक्रामक जीवियों को धारण करते हैं। ये वाहक अस्थायी वाहकों से अधिक घातक होते हैं।

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Anjali Yadav

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