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अनुपात विश्लेषण क्या है?
अनुपात विश्लेषण के जन्मदाता एलेक्जेन्डर वाल थे, जिन्होंने सन् 1909 में अनुपात -विश्लेषण की एक विस्तृत पद्धति प्रस्तुत की। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि वित्तीय विवरणों में प्रदत्त तथ्यों के मध्य संख्यात्मक सम्बन्ध स्थापित करके निर्वचन का कार्य सुगम बनाया जा सकता है। अनुपात विश्लेषण के पूर्ण अध्ययन के लिए अनुपात का आशय समझ लेना आवश्यक है।
किसी संस्था की आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाने के लिए विभिन्न मदों के मध्य अनुपात निकाले जाते है एवं एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है। दो या दो से अधिक मदों के मध्य एक तर्कयुक्त व नियमबद्ध पद्धति के आधार पर सम्बन्ध स्थापना का परिणाम ही अनुपात कहलाता है। दो विभिन्न मदों के मध्य सम्बन्ध निम्न विधियों द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है-
(1) दर के रूप में (In the Form of Rate) – दर एक राशि में दूसरी राशि के भाग से प्राप्त होने वाला भागफल है, जैसे-स्टॉक का टर्नओवर प्रतिवर्ष 7 हो, तो यहाँ पर यह कुल बिक्री में स्टाक का भाग देने से भागफल के रूप में प्राप्त हुई संख्या 7 है।
(2) प्रतिशत के रूप में (In the Form of Ratio) – प्रतिशत के द्वारा सैकड़ो के आधार पर दर प्रकट की जाती है। प्रतिशत ज्ञात करने हेतु दो मदों के बीच की दूरी का 100 से गुणा द्वारा प्रकट किया जाता है।
(3) अनुपात के रूप में (Meaning of Ratio-Analysis)- इसमें दो मदों का अनुपातिक सम्बन्ध स्पष्ट किया जाता है, जैसे चालू सम्पत्ति व चालू दायित्व का अनुपात 2 और 1 है अतः 2:1 इसे 2% इस रूप में अनुपात द्वारा बताया जाता है
अनुपात विश्लेषण का आशय (Meaning of Ratio-Analysis)
अनुपात विश्लेषण का आशय वित्तीय विवरणों की मदों के बीच सम्बन्ध स्थापित करके व्यवसाय के वित्तीय विश्लेषण से होता है। इसके अन्तर्गत निर्धारित उद्देश्य के अनुरूप वित्तीय विवरणों की किन्ही दो या अधिक मदों के मध्य अनुपान ज्ञात करके एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है। किसी वर्ष के वित्तीय विवरणों से अनेक अनुपात ज्ञात किये जा सकते हैं, किन्तु उनमें से केवल कुछ ही हमारे उद्देश्य के लिए सहायक होते है। अतः अनुपातों की स्थिति के अनुसार उचित चुनाव करना तथा उन्हें सही स्वरूप में रखना ही अनुपात विश्लेषण की प्रधान समस्या है।
अनुपात विश्लेषण के उद्देश्य (Objects of Ratio Analysis)
अनुपात विश्लेषण के अनेक उद्देश्यों की पूर्ति होती है। सामान्यता प्रबन्ध के निर्णयन कार्य में सहायता पहुँचाना ही अनुपात विश्लेषण का प्रमुख उद्देश्य होता है। अनुपात विश्लेषण के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार है –
(1) अनुपात द्वारा वित्तीय समंको में एकरूपता लाने के अनुपातों का प्रयोग क्षमता के माप के रूप में किया जा सकता है।
(2) लागत नियन्त्रण में विक्रय नियन्त्रण में अनुपातों की सहायता ली जा सकती है।
(3) भूतकालीन अनुपात के आधार पर भावी घटना के विषय में भी लागत, विक्रय लाभ आदि का पूर्वानुमान लगाया जा सकता हैं।
(4) आदर्श अनुपातों की रहस्य करके उन्हें इच्छित समन्वय के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
(5) अनुपात द्वारा संवहन का कार्य सरल हो जाता हैं।
अनुपात विश्लेषण की उपयोगिता का महत्व एवं आवश्यकता (Significance, Need or Importance of Ratio – Analysis)
अनुपात विश्लेषण के अध्ययन की उपयोगिता निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है-
(1) वित्तीय पूर्वानुमान में सहायक (Helpful in Financial Forcasting)- अनुपात विश्लेषण भूतकालीन अनुपात लागत, विक्रय, लाभ तथा अन्य सम्बद्धं तथ्यों की आपूत्ति पर प्रकाश डालते हैं तथा उनके विश्लेषणात्मक अध्ययन में सहायक होते हैं। यह अध्ययन वित्त प्रबन्धक को भावी घटनाओं के पूर्वानुमान में बहुत सहायक होता है।
(2) समन्वय में सहायक (Helpful in Co-ordination)- अनुपात विश्लेषण से आदर्श अनुपाती की रचना की जा सकती है और प्रमुख अनुपातों के बीच पाए गए सम्बन्धों का प्रयोग व्यावसायिक क्रियाओं के वांछनीय समन्वय के लिए किया जा सकता है।
(3) कार्य निष्पादन एवं लागत नियन्त्रण में सहायक (Helpful in Perfomance of Work and Cost Control)- अनुपात विश्लेषण का प्रयोग कार्य निष्पादन और लागतों पर नियन्त्रण के लिए भी किया जा सकता है।
(4) प्रबन्ध को सहायता (Help to Management)- इसके अध्ययन से प्रबन्धकों को संस्था की वित्तीय गतिविधियों को समझने एवं कर्मचारियों की कार्यकुशलता बढ़ाने में सहायत मिलती है। अनुपात के प्रयोग एवं विश्लेषण से प्रबन्धकों को नियोजन, नियन्त्रण, समन्वय, संवहन, पूर्वानुमान, निर्वाचन, नीति-निर्धारण आदि के लिए सहायता मिलती है।
(5) बजट एवं नियन्त्रण में सहायक (Helpful in Budgeting and Controlling)- अनुपातों की सहायता से भविष्य की योजनाओं को भली-भाँति स्पष्ट किया जा सकता है, जिससे बजट एवं नियन्त्रण प्रणाली को सफलतापूर्वक लागू करने में सहायता प्राप्त होती है।
(6) विभिन्न संस्थाओं की तुलना (Comparison of Various) – अनुपात विश्लेषण के अध्ययन से विभिन्न संस्थाओं के मध्य तुलना की जा सकती है तथा उनकी कार्यकुशलता एवं क्षमता को ज्ञात किया जा सकता है।
(7) प्रतिमानों की स्थापना (Establishment of Standards) – अनुपातों के अध्ययन के आधार पर संस्था की क्षमता एवं कार्यकुशलता जानी जा सकती है एवं उचित प्रतिमानों (Standards) की स्थापना की जा सकती है।
(8) लेखांकन प्रक्रिया में एकरूपता (Uniformity in Accounting Process)- इनके द्वारा सही निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि विश्लेषण एवं लेखांकन में एकरूपता हो इसलिए अनुपात प्रणाली को अपनाने से ही लेखांकन की प्रक्रिया में एकरूपता आ जाती है।
(9) संवहन में सहायक (Helpful in Communication)- अनुपात संस्था के आन्तरिक और बाह्य पक्षों को उनसे सम्बन्धित सूचनाओं के सावहन में सहायक होते हैं। अनुपात विश्लेषण में यह आसानी से एवं स्पष्टतया जाना जा सकता है कि एक अवधि के मध्य क्या परिवर्तन हुये हैं।
(10) वित्तीय निष्पादन का मूल्यांकन (Evaluation of Financial Performance)- अनुपात विश्लेषण का प्रयोग वित्तीय कुशलता का मूल्यांकन करने के लिए भी किया जा सकता है।
(11) अन्य उपयोग (Other Uses) – अनुपात विश्लेषण वित्तीय प्रबन्ध की संस्था के वित्तीय स्वास्थ्य के निदान में सहायता देता है। ऐसा व्यवसाय की सरलता, शोधन क्षमता, लाभप्रदत्ता, पूँजी दन्तिकरण आदि महत्वपूर्ण पहलुओं के मूल्यांकन द्वारा किया जा सकता है।
अनुपात विश्लेषण की सीमाएँ (Limitations of Ratio – Analysis)
अनुपातों का प्रयोग करते समय यह समस्या बनी रहती है कि किस अनुपात को प्रमाप के रूप में प्रयोग किया जाए। इसके अतिरिक्त अनुपातों का प्रयोग करते समय कुछ सावधानियाँ उपयोग में लाना आवश्यक हैं। अनुपाती के प्रयोग सम्बन्धी सावधानियों या सीमाएँ निम्नलिखित है:-
(1) समस्या के गुणात्मक विश्लेषण का अभाव (Lack of Qualitative Analysis the Problem) – अनुपात विश्लेषण परिमाणात्मक विश्लेषण का यन्त्र है। इसमें समस्या के गुणात्मक कारकों पर ध्यान नहीं दिया जाता है। चाहे ये परिमाणात्मक कारकों से भी अधिक महत्वपूर्ण क्यों न हो। उदाहरण के लिए, ग्राहक को उधार का निर्णय उसकी वित्तीय स्थिति के समंको के आधार पर किया जाता है। लेकिन इसमें उसका चरित्र और उसकी प्रबन्धकीय योग्यता उसकी वित्तीय स्थिति से भी अधिक महत्व रखते है।
(2) एक अकेले अनुपात का सीमित महत्व (Limited Use of Single Ratio) – अनुपात विश्लेषण में किसी एक अकेले अनुपात का बहुत ही सीमित महत्व होता है क्योंकि विश्लेषण में प्रवृत्ति का स्थान महत्वपूर्ण होता है। किसी अनुपात का महत्व तभी स्पष्ट होता है जबकि उसका अध्ययन अन्य सम्बन्धित अनुपातों के साथ किया जाए।
(3) लेखांकन की स्वाभाविक सीमाओं का प्रभाव (Effect of Inherent Limitations of Accounting)- चूँकि अनुपात की गणना लेखा अभिलेखों से प्राप्त समको से ही की जाती है, अतः इनमें से सभी कमियों और त्रुटियाँ होगी जो लेखा समंको में विद्यमान हैं, जैसे स्थानी सम्पत्तियों से सम्बन्धित अनुपातों की गणना में ये अनुपात सम्पत्तियों के मूल्यांकन की प्रथा तथा हास पद्धति में परिवर्तन से प्रभावित होगें।
(4) विश्लेषक की व्यक्तिगत योग्यता व पक्षपात का प्रभाव (Effect of Personal Ability and Bias of the Analysis) – अनुपात वित्तीय विश्लेषण के साधन मात्र होते हैं ये स्वयं में कोई साध्य नहीं होते। इन अनुपातों से प्राप्त निष्कर्ष विश्लेषक की व्यक्तिगत योग्यता व उसके पक्षपात से प्रभावित हो सकते हैं। अतः सही सम्दर्भ में न विचारने पर ये अनुपात भ्रामक निष्कर्ष भी दे सकते हैं।
(5) अंकगणितीय प्रभाव (Arithmetical Effect) – अनुपात विश्लेषण में अनुपाती पर कुछ प्रकार के व्यवहारों के अंकगणितीय प्रभाव से सजग रहना चाहिए। एक कम्पनी अपने चिट्ठे में ऊपरी दिखावट द्वारा इन अनुपातों में इच्छित परिवर्तन ला सकती है।
(6) उचित प्रमापों का अभाव (Jack of Proper Standards) – अनुपात विश्लेषण तुलना के लिए उचित प्रमापों का अभाव पाया जाता है। प्रायः ऐसा कोई प्रमाणित अनुपात नहीं है जिसे तुलनात्मक अध्ययन में प्रयोग किया जा सकें।
(7) मूल्य स्तर में परिर्वतन के लिए कोई व्यवस्था नहीं (No Allowance for Change in Price level) – इन अपुपातों के आधार पर तुलना करते समय सामान्य मूल्य स्तर में परिवर्तनों के लिए कोई समायोजन नहीं किया जाता है। मूल्य स्तर में परिवर्तन विभिन्न समायावधियों के लिए संगणित अनुपातों से तुलनाओं की वैधता को गम्भीर रूप प्रभावित कर सकता है। अतः ऐसी स्थिति में गल अवधियों के अनुपातों से तुलना के आधार पर निकाले गये निष्कर्ष गलत एवं भ्रमपूर्ण हो सकते है।
(8) केवल कुछ सूचनाओं की उपलब्धि (Availability of Few Informations)- अनुपात विश्लेषण निर्णय लेने के लिए केवल कुछ निश्चित सूचनाएँ ही दे पाता है । यह विस्तृत विश्लेषण व सुदृढ़ निर्णय के लिए वे सभी सूचनाएँ नहीं दे पाता जिनकी आवश्यकता होती है।
(9) भूत के आधार पर भावी अनुपात (Future Estimates on the Basis of the Past)- अनुपातों की गणना भूतकालीन समंकों से की जाती है। इन्हें वर्तमान या भविष्य के लिए प्रयोग करना सदैव ही वांछनीय नहीं होता क्योंकि भूतकालीन घटनाएँ भविष्य की सम्भावित घटनाओं से भिन्न हो सकती है।
(10) गैर सम्बन्धित मदों के बीच अनुपात निकालना (Calculating Ratios between unrelated items)- लेखा अनुपात किन्हीं भी दो मदों के लिए निकाले जा सकते हैं। चाहे वे एक-दूसरे से बिल्कुल भी सम्बन्धित न हो, जैसे-विक्रय और सरकारी प्रतिभूतियों में विनियोग के बीच निकालना । ऐसे अनुपात भ्रामक निष्कर्ष ही देते हैं।
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