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क्रियाशीलता लागत लेखांकन की अवधारणा क्या है? (Concept of Activity Based Costing)
क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन का आशय एक ऐसी प्रणाली से है जो विभिन्न क्रियाओं को केन्द्रित करते हुए उनकी आधारभूत लागतों को ज्ञात करती है तथा विभिन्न क्रियाओं की लागतों का उपयोग दूसरी वस्तुओं की लागतों को जानने के लिए किया जाता है। इस लागत लेखांकन की प्रमुख अवधारणाएँ निम्न हैं
(1) जातीय अवधारणा (Generic Concept) – क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन एक जातीय अवधारणा पर आधारित है। यह जॉब आदेश लागत लेखांकन प्रणाली या प्रक्रिया लागत लेखांकन प्रणाली दोनों का एक अंग हो सकती है। यह प्रणाली किसी विशेष क्रिया के निष्पादन और उस क्रिया द्वारा संगठन के संसाधनों द्वारा की जाने वाली मांग को जोड़ती है।
(2) स्पष्टता की अवधारणा (Concept of Clearness) – क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन एक प्रबन्धक को स्पष्ट तस्वीर खींचकर यह दर्शा सकता है कि किस प्रकार उत्पाद, ब्राण्ड, उपभोक्ता सुविधाएँ, क्षेत्र और वितरण के माध्यम से आय सृजित कर संसाधनों का उपभोग कर सकते हैं।
(3) क्रियाशीलता लागत लेखांकन के मुख्य बिन्दु स्पष्ट होने चाहिए (The Main Points of A.B.C. Must be Clear)- क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन के मुख्य बिन्दु स्पष्ट होने चाहिए। इस विधि के अन्तर्गत प्रत्येक क्रिया के लिए लागतें एक अलग लागत वस्तु के रूप में एकत्र की जाती है (यह परम्परागत लागत लेखांकन से भिन्न होती है)। फिर इन लागतों को उन उत्पादों पर लागू किया जाता है जिनके द्वारा विभिन्न क्रियाओं से लाभ प्राप्त होता है।
(4) अन्तिम उत्पाद की लागत का निर्धारण विशिष्ट क्रियाओं के आधार पर (Determination of Final Product Cost on the Basis of Specific Activities) – इस लेखांकन के अन्तर्गत अन्तिम उत्पाद की लागत का निर्धारण सम्पन्न की गयी विशिष्ट क्रियाओं की लागत के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिए, सामग्री हस्तयन (Material Handling) सम्भवतः एक इलैक्ट्रिक मोटर निर्माण में प्रथम क्रिया है। अगर मोटर निर्माण में पुर्जा जोड़ने का कोई मानवीय कार्य न हो तो उत्पाद की लागत में उस क्रिया की कोई भी लागत नहीं होगी।
(5) परम्परावादी लागत लेखांकन अवधारणा का त्याग (Conceptual Break From Traditional Cost Accounting System)- क्रियाशीलता लागत लेखांकन की पद्धति को अपनाने से पहले प्रबन्धक के लिए यह आवश्यक है कि वह परम्परावादी लागत लेखांकन की अवधारणा को छोड़ दे। इसके लिए प्रबन्धक को पुनः प्रशिक्षित होना चाहिए कि एक व्यक्तिगत इकाई को ही सारे खर्चे आवंटित न हो। उन्हें संसाधनों को अलग कर क्रियाशीलता के उस स्तर से मिलान करना चाहिए जो संसाधनों का उपभोग करती है।
(6) एक व्यापार क्रियाओं का समूह ( A Business is Reviewed as Collec- tion of Activities) – क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन की अवधारणा के अन्तर्गत एक व्यापार को क्रियाओं के समूह की दृष्टि से देखा जाता है, जो डिजाइन, उत्पाद, बाजार सुपुर्दगी और उत्पाद तथा सेवाओं के सहायतार्थ सम्पन्न की जाती है। व्यापारिक क्रियाएँ पूर्तिकर्त्ता द्वारा प्रदान सामग्री को उत्पादन में परिवर्तित करती है। व्यापार क्रियाओं द्वारा उपभोक्ताओं के लिए उपयोगिता को जोड़ता है, जो सामग्री पर सम्पादित की जाती है।
(7) उत्पाद या सेवाएँ प्रत्यक्ष रूप से संसाधनों का उपभोग नहीं करते (Product or Services do not Directly Consume Resources) – क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन बताता है कि उत्पाद और सेवाएँ प्रत्यक्ष रूप से साधनों का उपभोग नहीं करते हैं बल्कि वे क्रियाओं का उपभोग करते हैं जो संसाधन का उपभोग करती है। इसलिए क्रियाशीलता लेखांकन का प्रमुख ध्यान क्रियाओं पर होता है न कि उत्पादों पर। अगर क्रियाएँ ठीक तरह से व्यवस्थित होती हैं तो लागत कम आयेगी तथा उत्पाद अधिक प्रतियोगी होगा।
क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन के आधार (Basis of Activity Based Costing)
क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन के प्रमुख आधार निम्न हैं-
(1) मुख्य क्रियाओं को पहचानना (Identify the Major Activities)- क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन का प्रथम आधार लेखांकन की मुख्य क्रियाओं को पहचानना है, जैसे- सामग्री हस्तयन, यान्त्रिक पुर्जों का जमाव, पुर्जों का मानवीय जमाव, गुण, जाँच आदि को पहचानना।
(2) प्रत्येक क्रिया के “लागतों चालकों” को निर्धारित करना ( Determine the ‘Cost Drivers’ for Each Activity)- लागत लेखांकन की इस विधि का दूसरा मुख्य आधार प्रत्येक क्रिया के ‘लागत चालकों’ को निर्धारित करना है। लागत चालक ही वे मुख्य घटक होते हैं, जिनके कारण किसी क्रिया की लागत आती है। लागत चालकों के उदाहरण- श्रम समय, मशीन समय, मात्रा जो बनायी गयी, बीजक जो तैयार किये गये, पुर्जों की संख्या और सैट -अपों की संख्या इत्यादि है। लागत चालक क्रियाओं और संसाधनों के उपभोग को जोड़ते हैं और इस प्रकार लागतों को इच्छित सीमा तक कम करने का निर्णय लेते हैं।
(3) लागत कुण्डों का सृजन (Create Cost Pools)- इस विधि में लागत चालकों द्वारा क्रियाओं की लागतों को इकठ्ठा कर लागत कुण्डों (Cost Pools) का सृजन किया जाता है।
(4) क्रियाओं की लागतों का बँटवारा ( Attribute the Cost of Activities)- विभिन्न क्रियाओं की लागतों का लागत कुण्ड में बँटवारा उत्पाद और सेवाओं के लागत चालकों के आधार पर किया जाता है।
क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन के लाभ (Advantages of Activity Based Costing)
क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन के निम्न लाभ हैं-
(1) उपरिव्यय लागतों के व्यवहार को समझने में सहायक (Helps to Understand the Behaviour of Overhead Costs)- क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन उपरिव्यय लागतों के व्यवहार को समझने तथा उसके उत्पाद, सेवा, उपभोक्ता और बाजार खण्ड से सम्बन्ध बनाने में सहायता करता है, जिसके आधार पर उपरिव्ययों को कम करने में सहायता मिलती है।
(2) संसाधनों के आबंटन में सहायक ( Helps to Allocate the Resources)- यह विधि संसाधनों को उन क्रियाओं में आबंटित करने में सहायता करती है जो अंशधारियों के मूल्य को बढ़ाती है।
(3) लाभदायकता विश्लेषण से कार्य संचालन का निर्णय (Links Profitabil- ity Analysis to Operational Decisions) – यह विधि लाभदायकता विश्लेषण को कार्य संचालन निर्णय से जोड़ती है, जिसके आधार पर किसी उत्पादन के आगे उत्पादन करने या बन्द करने के सम्बन्ध में निर्णय लेना सरल हो जाता है।
(4) अनुपयोगी क्रियाओं की लागतों का ज्ञान ( Knowledge of Non-Value Added Activities) क्रियाशीलता लागत लेखांकन विधि प्रबन्ध को अनुपयोगी क्रियाओं की लागतों का ज्ञान कराती है, जिसके आधार पर प्रबन्धक इन क्रियाओं को बन्द कर लागतों में कमी लाते हैं।
(5) निष्पादन मूल्यांकन के लिए सही सूचना प्रदान करना (Provides the Right Information for Performance Measurement)- यह निष्पादन मूल्यांकन के लिए सही सूचना प्रदान करती है, क्योंकि यह संसाधनों की अपेक्षा क्रियाओं पर केन्द्रित है, जिससे सभी क्रियाओं का सही-सही मूल्यांकन कर लागत में कमी व लाभ में वृद्धि करना सम्भव हो पाता है।
(6) लागत के प्रत्यक्ष घटकों की जानकारी देना ( Gives the Information for Each Cost Factors)- क्रियाशीलता लागत लेखांकन लागत चालकों को प्रत्येक क्रिया के लागत घटकों की जानकारी देता है जिससे उन घटकों पर नियन्त्रण किया जा सके जो लागत को बढ़ाते हैं, इससे लागत को कम करने व लाभ को बढ़ाने में सहायता मिलती है।
(7) लाभ मार्जिन की सही जानकारी देना (Provide the Accurate Information on Profit Margin)- लागत लेखांकन की यह विधि लाभ मार्जिन की सही जानकारी कराती है और लाभ सुधार के लिए निष्पादन मूल्यांकन करती है, जिससे लाभ मार्जिन में वृद्धि करने में सहायता मिलती है।
(8) व्यापार की प्रतिस्पर्द्धात्मक स्थिति में सुधार ( Improve the Business Competitive Position)- क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन से संस्था द्वारा उत्पादित वस्तुओं की लागत लागत केन्द्रों पर अच्छा नियन्त्रण होने के कारण कमी आती है, जिससे वह संस्था वर्तमान प्रतियोगी बाजार में अपनी वस्तु कम मूल्य पर बेचने में सफल हो पाती है। इस प्रकार यह विधि व्यापार को अच्छी जानकारी कराकर अपनी प्रतियोगी स्थिति सुधारने का अवसर प्रदान करती है।
क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन की हानियाँ (Disadvantages of Activity Based Costing)
(1) यह विधि सभी कठिनाईयों का हल नहीं है ( It is Essentially not the Panacea for All Ills)- क्रियाशीलता लेखांकन उत्पादन क्षेत्र की सभी कठिनाईयों का एकमात्र हल नहीं है। बहुत-सी ऐसी समस्याएँ भी हैं जो इससे हल नहीं हो सकती। अतः इसका प्रयोग एक निर्धारित सीमा तक ही करना चाहिए।
(2) अधिक खर्चीली (More Expensive)- लागत लेखांकन की यह विधि संसाधनों का अत्यधिक अवशोषण करती है जिससे छोटे संस्थान जो लघु स्तर पर उत्पादन करते हैं, उनके लिए यह विधि उपयुक्त नहीं है।
(3) बिक्री में कमी होने का भय (Potentially Lower Sales)- यह विधि उपभोक्ताओं की सेवा पर ज्यादा जोर देती है जिससे अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जैसे- अधिक सस्ती वस्तुएँ बनाना जिससे भविष्य में वस्तु के टिकाऊपन में कमी होने पर उसकी बिक्री कम होने का भय बना रहता है।
(4) यह कमजोर उपभोक्ताओं का विभाजन कर सकती है (It May Lead Weaker Customer Segmentations) – इस विधि को अपनाने से यह भी हो सकता है कि यह कमजोर उपभोक्ताओं को विभाजित कर दे जिससे उपभोक्ता किसी एक ब्राण्ड की वस्तु का उपभोग न करके अलग-अलग प्रकार की वस्तुओं का उपभोग करने लगते हैं, जिस कारण बिक्री में कमी आती है।
(5) यह अवसर लागत पर ध्यान नहीं देती (It takes No Account of Oppor tunity Cost)- क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन की विधि अवसर लागत पर भी ध्यान नहीं देती। इसकी यह मान्यता है कि परिस्थितियाँ समान रहती हैं जो कि व्यावहारिक दृष्टि से गलत है, क्योंकि अवसर लागतों का भी वस्तु की उत्पादन लागत पर प्रभाव पड़ता है।
क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन के लागू होने के कारण (Reasons for Introduction of Activity Based Costing)
व्यावसायिक क्षेत्र में क्रियाशीलता लागत लेखांकन के लागू होने के निम्न प्रमुख कारण है-
(1) परम्परागत लेखांकन पद्धति की असफलता (Failure of Traditional Costing)- क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन के लागू होने का प्रमुख कारण परम्परागत लेखांकन पद्धति की असफलता है, क्योंकि यह पद्धति कारण और परिणाम में सम्बन्ध स्थापित करने में असफल रही है।
(2) विभिन्न क्रियाओं के अर्न्तसम्बन्धों का स्पष्ट न होना (To Fails the Highlight of Inter-relationship among Activities)- परम्परागत लागत पद्धति विभिन्न विभागों की विभिन्न क्रियाओं में अर्न्तसम्बन्धों के सम्बन्ध में भी प्रकाश डालने में प्रायः असफल रही।
(3) कार्यकारी अधिकारियों में बढ़ता असन्तोष (Growing Dissatisfaction Among the Working Executives)- परम्परागत लागत लेखांकन के प्रति कार्यकारी अधिकारियों में बढ़ता असन्तोष भी इसका कारण रहा है क्योंकि यह केवल माध्यों और अनुमानों पर आधारित है।
(4) स्टॉक के मूल्यांकन पर जोर (Stress on the Value of Stock)- परम्परावादी लागत लेखांकन के मूल्यांकन की आवश्यकता पर जोर देता है न कि उत्पाद की यथार्थपूर्ण लागत पर।
(5) प्रत्यक्ष श्रम (Direct Labour)- बहुत सी कम्पनियों में प्रत्यक्ष श्रम को कुल लागत के प्रतिशत के रूप में जोड़ा जाता है। अभी भी यह आधार उत्पाद की ऊपरी लागत के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
(6) ऊपरी लागतों को कम करना (To Minimise the Upper Costs)- ऊपरी लागतों को न्यूनतम करना केवल मात्र एक बोझ या भार नहीं है, वरन समय की माँग है। आज ऊपरी कार्य, जैसे उत्पाद डिजाइन, गुण नियन्त्रण, उपभोक्ता सेवा, उत्पादन नियोजन और बिक्री, आदेश का क्रियान्वयन आदि उपभोक्ताओं के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि किसी किये जाने वाले भौतिक कार्य । दुकान में
(7) उत्पादन श्रृंखला की व्यापकता (Vastness of Production Range)- उत्पादन के क्षेत्र में आज जटिलताएँ बढ़ गयी हैं। उत्पादन श्रृंखला व्यापक हो गयी है। उत्पादन चूँकि छोटे हो गये हैं और वस्तुओं में श्रेष्ठ गुणों की माँग ज्यादा है, इन सबके कारण भी क्रियाशीलता आधारित लागत लेखांकन विधि का प्रादुर्भाव हुआ।
(8) बाजार में कड़ी प्रतियोगिता (Market is Very Competitive)- वर्तमान समय में बाजार में तीव्र प्रतियोगिता है। इस गलाकाट प्रतियोगिता का सामना करने के लिए क्रियाशीलता आधार लागत लेखांकन की आवश्यकता महसूस की गयी।
(9) कम्प्यूटर की उपलब्धता (Availability of Computer)- कम्प्यूटर की ने सूचना एकत्र करने की तकनीक में वृद्धि कर दी है, जिससे अग्रिम निर्णय लेकर उपलब्धता प्रतियोगी लाभ प्राप्त किया जा सके।
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