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किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास (Emotional Development in Adolescence)
किशोरावस्था मानसिक शक्तियों के विकास का समय है। इस उम्र में संवेग आकस्मात् प्रकट होते हैं तथा परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं।
हालिंगवर्थ के अनुसार, “प्रौढ़ावस्था की अपेक्षा किशोरावस्था में संवेगात्मक व्यवहार अधिक उग्रता लिए होता है।”
इस अवस्था में विभिन्न प्रकार के भावों के विकास के साथ-साथ बालक में कल्पना शक्ति का भी विकास होता है। इस अवस्था में संवेगों पर नियंत्रण करना बहुत ही कठिन कार्य होता है। इस उम्र में बालकों में लिंग भेद एवं यौन सम्बन्धी परिवर्तन देखे जा सकते हैं। किशोरावस्था में सामाजिक व्यवहार के साथ-साथ समायोजन की भी समस्या होती है।
इस अवस्था में परोपकार, साहसिक कार्य, समाज सेवा एवं देशभक्ति की भावना प्रबल होती है और कई बालक समाज सुधारक तथा राजनीति के स्वप्न देखते हैं। संवेगात्मक विकास में असफल होने पर क्रोध, निराशा एवं कुण्ठा की स्थिति पैदा हो जाती है और बालक तनावग्रस्त रहते हुए चिड़चिड़ापन का व्यवहार करने लगता है।
अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जी.एस.हॉल (G.S. Hall) ने किशोरावस्था को “तनाव एवं तूफान” (Stress and Storm) की अवस्था कहा है। इस अवस्था में संवेग का विकास चरम सीमा पर होता है। किशोर / किशोरियों में संवेदनशीलता अधिक होती है। अनुचित व्यवहार एवं उनके मनपसन्द का कार्य न होने की स्थिति में उनके आत्म-सम्मान पर उन्हें आघात प्रतीत होता है और ऐसी दशा में उसका प्रतिकार करने के लिए अलग ढंग अपनाते हैं। संवेगों पर नियन्त्रण करना सीख लेते हैं परन्तु उसकी अभिव्यक्ति का दूसरा तरीका अपनाते हैं जो व्यक्ति या जो परिस्थिति उनके क्रोध या तनाव का कारण होती है उसकी आलोचना करके तथा उसका मूक रहकर विरोध करते हैं।
किशोरावस्था के प्रारम्भिक चरण में संवेगों में तीव्रता होती है तथा संवेग पर नियन्त्रण कम होता है। किशोरावस्था के अन्तिम चरण 19-20 साल तक पहुँचते-पहुँचते संवेगों की तीव्रता में कमी आ जाती है तथा संवेगों पर नियन्त्रण अधिक हो जाता है।
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