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बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास (Emotional Development in Childhood)
इस अवस्था में बालक विद्यालय जाना प्रारम्भ कर देता है। घर से बाहर नवीन वातावरण में बालक के लिए संवेगात्मक समायोजन में थोड़ा कठिनाई होती है। अध्यापक को चाहिए कि वह कठोर अनुशासन की अपेक्षा बालकों में स्वतंत्र व स्वस्थ संवेगों का विकास करे। इस अवस्था में बालक भय और क्रोध पर नियत्रंण स्थापित करने की कोशिश करता है। सामाजिक मूल्यों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए वह अपने संवेगों का दमन कर समूह के प्रति सहभागिता का परिचय देता है।
क्रो एवं क्रो के अनुसार, “बाल्यावस्था में संवेगों में निरंतर परिवर्तन होता रहता है।
बाल्यावस्था में बालकों में 6 वर्ष की उम्र तक मुख्य आठ प्रकार के संवेगों का विकास हो जाता है-
संवेग (Emotion)
- खुशी (Joy) हँसना, तालियाँ बजाना, गाना, उछलना, कूदना
- क्रोध (Anger) रोना, चीखना, चिल्लाना वस्तुओं को फेंकना, पैर पटकना
- उत्सुकता (Curiosity) प्रश्न करना, क्यों? क्या? कैसे? कहाँ?
- जलन (Envy) दूसरे बालक के पास अपने से अच्छी वस्तु को देखकर अपनी वस्तु की शिकायत करना
- दुःख ( Sorrow) रोना, खाने, खेलने तथा अपने प्रिय क्रिया कलापों को करने से मना करना
- डर (Fear) भागना, छिपना, चिल्लाना
- ईर्ष्या (Jealousy) माता-पिता द्वारा अपने दूसरे भाई-बहन के प्यार किए जाने का विरोध करना
- अनुराग (Affection) उन सभी वस्तुओं तथा व्यक्तियों के प्रति अनुराग प्रदर्शित करते जो उन्हें पसन्द हैं
बाल्यावस्था के अंतिम चरण में अर्थात् 12 वर्ष की अवस्था तक संवेगों में परिपक्वता आ जाती है तथा संवेगों की अभिव्यक्ति करना एवं संवेगों को नियंत्रित करना सीख लेते हैं। घर से बाहर का वातावरण जैसे समाज या विद्यालय एवं घरेलू वातावरण में परिवर्तन के फलस्वरूप सांवेगिक असन्तुलन की (Emotional Imbalance) स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में बालक को संवेगों में तीव्रता आ जाती है जैसे, विद्यालय में समायोजन न कर पाने की स्थिति में, बीमार रहने की स्थिति में चिड़चिड़ापन, क्रोध आदि संवेग तीव्र हो जाते हैं।
उत्तर बाल्यावस्था में बालक कभी-कभी अपने संवेगों को इतना दबा लेते हैं अर्थात् व्यक्त नहीं करते ऐसी दशा में उनमें सांवेगिक तनाव (Emotional Stress) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जो बालक के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। ऐसी स्थिति में बालक शैक्षिक उपलब्धियों में भी अच्छा नहीं कर पाता। अपनी इस असफलता का कारक बालक इस अवस्था में स्वयं भी जानने लगते हैं और वे अपनी इस परिस्थिति से उबरना चाहते हैं क्योंकि इसके कारण उन्हें निन्दा एवं शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। इस के लिए बालक स्वयं भी वे उपाय ढूँढने का प्रयास करने लगते हैं जिससे वे इन परिस्थितियों से ऊबर सकें अर्थात वे अपने संवेगों को शान्त करने के रास्ते ढूँढने लगते हैं। बालकों द्वारा संवेग शान्ति की राह तलाशने की प्रक्रिया सांवेगिक भावशान्ति (Emotional Catharsis) कहलाती है। बालक को सांवेगिक भावशान्ति में माता-पिता, परिवारजनों, मित्रों, भाई-बहनों एवं शिक्षकों के दिशा-निर्देशन की आवश्यकता होती है तथा वे इनकी सहायता से सांवेगिक भाव शान्ति के प्रयासों में सफल हो जाते हैं।
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