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रेखा एवं कर्मचारी संगठन (LINE AND STAFF ORGANISATION)
एक व्यावसायिक उपक्रम का विस्तार होने पर एक बिन्दु ऐसा आ जाता है जब विशेषज्ञों (Specialist) की आवश्यकता पड़ती है। जब किसी रेखीय संगठन में विशेषज्ञों का प्रावधान कर दिया जाता है उस संगठन का रूप व नाम बदलकर ‘रेखा एवं कर्मचारी संगठन’ हो जाता है। ये विशेषज्ञ संगठन को अपने-अपने क्षेत्रों में विशिष्ट परामर्श प्रदान करते हैं।
स्टाफ की आवश्यकता क्यों?
कम्पनी का विस्तार होने पर रेखीय या परिचालक प्रबन्धकों (operating manager) पर कार्य के परिचालन तथा अपने अधीनस्थों के कार्य को नियंत्रित व समन्वित करने का भार इतना बढ़ जाता है कि उन्हें अन्य सहायक विशिष्ट कार्यों के सम्बन्ध में सूचनाएं एकत्रित करने व सोचने को समय नहीं मिलता और न उन विशिष्ट कार्यों के सम्बन्ध में और न उन विशिष्ट कार्यों में वे पारंगत (expert) ही होते हैं। परिणामस्वरूप रेखीय प्रबन्धकों को उनसे सम्बन्धित विशिष्ट क्षेत्रों में परामर्श प्रदान करने के लिए ‘स्टाफ’ की नियुक्ति की जाती है।
स्टाफ की सुविधाएं किनको?
अब प्रश्न यह उठता है कि रेखीय प्रबन्धकों को ‘स्टाफ’ सेवाएं उपलब्ध करायी जाती हैं। सामान्यतया यह माना जाता है कि एक निर्माणी उपक्रम में उत्पादन, विपणन तथा वित्त कार्यकारी या रेखीय विभाग हैं, अतः प्रबन्ध संचालक या मुख्य प्रबन्धक के अतिरिक्त उत्पादन प्रबन्धक, विपणन प्रबन्धक तथा वित्त प्रबन्धकों को ‘स्टाफ’ सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इन स्टाफ सुविधाओं में सेविवर्गीय विभाग (personnel department), शोध एवं विकास विभाग (research and development), क्रय विभाग, गुणवत्ता नियंत्रण विभाग (quality control), रख-रखाव एवं मरम्मत विभाग (maintenance and repairs), औद्योगिक इंजीनियरी व डिजाइन विभाग, विपणि सर्वेक्षण विभाग, समंक, संग्रहण व विश्लेषण विभाग प्रमुख है। ‘स्टाफ’ का प्रयोग सामान्यतया सम्पूर्ण उपक्रम के लिए होता है; जैसे सेविवर्गीय विभाग की स्टाफ सेवाएं, उत्पादन विभाग, विपणन, वित्त विभाग एवं अन्य सभी विभागों में कर्मचारियों की नियुक्ति प्रशिक्षण, पदोन्नति, कार्य-मूल्यांकन आदि के सम्बन्ध में प्रदान की जाती हैं। इसी प्रकार वित्त एवं लेखा स्टाफ उपक्रम के सभी विभागों जैसे उत्पादन विभाग, क्रय विभाग आदि में लेखों के स्वरूप व विधि के. सम्बन्ध में परामर्श देता है (देखिए चित्र )
स्टाफ के प्रकार (Types of Staff)
स्टाफ या विशेषज्ञ सेवाएं तीन प्रकार की होती हैं- (i) परामर्श (advisory), (ii) सेवा (service), तथा (iii) नियंत्रण (control)। एक ही ‘स्टाफ’ विभाग कभी-कभी तीनों स्थितियों में कार्य करता है और कभी इनमें से किसी एक या दो स्थितियों में ही करता है।
उदाहरण के लिए सेविवर्गीय विभाग को लीजिए। यदि सेविवर्गीय प्रबन्धक उत्पादन प्रबन्धक को कार्यशाला में किसी विशिष्ट श्रम संघ को मान्यता देने को कहे तो यह परामर्श कार्य माना जाएगा। जब सेविवर्गीय प्रबन्धक उत्पादन विभाग के कर्मचारियों की नियुक्ति व प्रशिक्षण की व्यवस्था करे तो यह सेवा (service) कार्य माना जाएगा और जब वह उत्पादन विभाग के कर्मचारियों के कार्यों का समय व गति अध्ययन करके प्रमापित समय तथा प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति लागू करे तो नियंत्रण (control) कार्य माना जाएगा।
इसी प्रकार शोध एवं विकास विभाग नए उत्पाद विकसित करने, पुराने उत्पादों में सुधार करने, उत्पाद विविधीकरण करने के सम्बन्ध में मुख्य प्रबन्धक को परामर्श देती है तो यह परामर्श (advisory) कार्य माना जायेगा और जब इनको उत्पादन विभाग में क्रियान्वित करने में सहायता करता है तो यह सेवा कार्य माना जाएगा।
रेखा एवं कर्मचारी संगठन के गुण या लाभ (Merits or Advantages)
रेखा एवं कर्मचारी संगठन के निम्न लाभ बताए गए-
(1) विशेषज्ञों का परामर्श- इस संगठन में रेखीय प्रबन्धकों को उन क्षेत्रों में विशेषज्ञों का परामर्श प्राप्त हो जाता है जिनमें कि वे परिचालन कार्य में रहने के कारण ध्यान नहीं दे पाते। इस प्रकार कुल मिलाकर उपक्रम की उत्पादकता में सुधार होता है।
(2) नियंत्रण सोपान (Span of Control) में वृद्धि – इस संगठन के अन्तर्गत रेखीय प्रबन्धक पूरी तरह अपने परिचालन कार्य पर ध्यान दे सकते हैं क्योंकि तकनीकी एवं विशिष्ट समस्याओं के समाधान के लिए ‘स्टाफ’ सेवाएं उपलब्ध रहती हैं। परिणामस्वरूप अब वे अधिक स्तरों या कर्मचारियों पर नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं।
(3) प्रबन्ध में सहायक- कभी-कभी इन विशेषज्ञों को रेखीय प्रबन्धकों की सहायतार्थ भी प्रयोग कर लिया जाता है। उनका कार्य मात्र परामर्श तक सीमित न रखकर उसे सम्बन्धित विभाग में लागू करने तक बढ़ा दिया जाता है। इस प्रकार ‘स्टाफ’ रेखीय प्रबन्धक द्वारा किए जाने वाले नियंत्रण व समन्वय में सहायक हो जाता है।
(4) लोच – रेखा एवं संगठन में व्यवसाय की आवश्यकतानुसार संगठन संरचना को छोटा या बड़ा करने की गुंजाइश बनी रहती है, अतः यह प्रारूप लोचपूर्ण माना जाता है।
(5) सही निर्णय – चूंकि इस प्रारूप में प्रबन्धकों के निर्णय विशेषज्ञों द्वारा एकत्रित सूचनाओं व आंकड़ों के वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित होते हैं, अतः उन निर्णयों के गलत हो जाने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है।
रेखा एवं कर्मचारी संगठन के दोष या हानियां (Demerits or Disadvantages)
रेखा एवं स्टाफ संगठन के अन्तर्गत गुण होने के साथ-साथ दोष भी हैं जिनमें प्रमुख निम्न हैं:
(1) व्यय साध्य – इस प्रारूप के अन्तर्गत उपक्रम में ऊंचे वेतन पर बहुत सारे विशेषज्ञ – नियुक्त करने पड़ते हैं, साथ ही उनके विभाग के लिए तमाम साज-सज्जा जुटानी पड़ती है, परिणामस्वरूप उपक्रम के व्ययों में काफी वृद्धि हो जाती है।
(2) विशेषज्ञों का अधिकारविहीन होना- इस प्रारूप में विशेषज्ञों का कार्य रेखा प्रबन्धकों को मात्र परामर्श देने तक सीमित रहता है, कार्यान्वित करने के अधिकार उन्हें नहीं दिए जाते। परिणामस्वरूप ‘स्टाफ’ अपने परामर्श के औचित्य के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराए जा सकते।
(3) सत्ता का केन्द्रण- विशेषज्ञों के परामर्श को मानना या न मानना रेखा अधिकारियों की इच्छा पर निर्भर करता है, जिससे रेखा अधिकारियों के पास अधिकारों का केन्द्रण हो जाता है। इसका उपक्रम की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
(4) आदेश की एकात्मकता के सिद्धांत का उल्लंघन – कभी-कभी विशेषज्ञ अपने परामर्श को अत्यन्त उपयोगी मानकर स्वयं ही उसे सम्बन्धित विभागों में लागू करने का प्रयास करते हैं जबकि रेखा प्रबन्धक इसका विरोध करते हैं, इससे अधीनस्थों को एक व्यक्ति से आदेश न मिलकर दो भिन्न-भिन्न अधिकारियों से आदेश प्राप्त होने लगते हैं और इससे अधीनस्थ लोगों के सामने कठिनाई उपस्थित हो जाती है।
(5) संघर्ष या टकराहट- रेखा प्रबन्धक और ‘स्टाफ’ के मध्य अधिकारों की सीमा नियत करना व्यावहारिक दृष्टि से सम्भव नहीं हो पाता। फलस्वरूप कभी-कभी विशेषज्ञों के परामर्श को कार्यरूप देने में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
रेखा एवं कर्मचारी सम्बन्धों की समस्या (PROBLEM OF LINE AND STAFF RELATIONSHIP)
रेखा एवं स्टाफ की व्यवस्था इस मान्यता पर आधारित है कि वे परस्पर सद्भाव बनाए रखेंगे और दोनों मिलकर उपक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करेंगे, परन्तु व्यवहार में रेखा प्रबन्धकों और स्टाफ के मध्य टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है जिससे उपक्रम को हानि होती है। इस टकराव की स्थिति के उत्पन्न होने के प्रो. एवं ओ’ डोनेल ने निम्नांकित कारण बताए-
(1) रेखा प्रबन्धकों के अधिकारों पर चोट (Attack on Line Authority)- अधिकांश दशाओं में रेखा प्रबन्धक विशेषज्ञों (स्टाफ) को संदेह की नजर से देखते हैं और उन्हें अपने अधिकारों पर चोट करने वाले समझते हैं। चूंकि विशेषज्ञों की राय वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित होती है, अतः कम्पनी का प्रबन्ध संचालक सम्बन्धित रेखा प्रबन्धकों को विशेषज्ञों के परामर्श को लागू करने का आदेश दे देता है, जबकि रेखा प्रबन्धक विशेषज्ञ के परामर्श को व्यावहारिक एवं उपयोगी नहीं समझते। इससे रेखा प्रबन्धकों में रोष व्याप्त हो जाता है और ये असहयोगात्मक रुख अपना लेते हैं जिससे उपक्रम को हानि होती है।
(2) स्टाफ के उत्तरदायित्व का अभाव (Lack of Responsibility)- विशेषज्ञ केवल योजना प्रस्तुत करते हैं, उसको क्रियान्वित करने का कार्य रेखा अधिकारियों का है। परिणामस्वरूप योजना सफल न होने पर विशेषज्ञ इसका दोष प्रबन्धकों पर थोप देते हैं कि उन्होंने योजना को सही तरीके से लागू नहीं किया। इसके विपरीत रेखा प्रबन्धक इसका दोष विशेषज्ञों पर डालने का प्रयास करते हैं कि योजना स्वयं ही अव्यावहारिक व दोषपूर्ण थी।
(3) रिक्तता में सोचना (Thinking in a Vacuum) – स्टाफ या विशेषज्ञों को विभागीय कार्यसंचालन का अनुभव नहीं होता, अतः उनके द्वारा सोचे गए विस्तार तथा प्रस्तावित योजनाएं रिक्तता में उत्पन्न होती हैं। वे योजना बनाते समय बहुत-सी उन कठिनाइयों को नहीं देख . पाते जो योजना को क्रियान्वित करने में उत्पन्न होंगी। कभी-कभी वे स्वयं को उस क्षेत्र में विशेषज्ञ समझकर रेखा प्रबन्धकों द्वारा प्रस्तुत सुझावों को नजरन्दाज भी कर लेते है।
(4) सफलता का श्रेय पाने की होड़ (Competition to get Recognition for Success)- कभी-कभी कुछ रेखा प्रबन्धक योजनाओं की सफलता का सारा श्रेय स्वयं ही लेना चाहते हैं परिणामस्वरूप वे अति कठिन परिस्थितियों को छोड़कर विभागीय कार्य संचालन में स्टाफ का परामर्श नहीं लेते। इसके विपरीत कभी-कभी अपनी योजना का श्रेय लेने के लिए अपनी परामर्श देने मात्र की सीमा का अतिक्रमण कर योजना को क्रियान्वित व नियंत्रित करने तक आगे बढ़ जाते हैं। फलस्वरूप रेखा प्रबन्धकों के साथ टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। एक उदाहरण (An Example)
प्रो. . कूण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल ने स्टाफ संघर्ष का एक उदाहरण इस प्रकार प्रस्तुत किया है— विस्तार की ओर बढ़ रही एक कम्पनी के मुख्य प्रबन्धक ने एक ऐसे जवान व्यक्ति को स्टाफ के रूप में नियुक्त किया जो विभिन्न औद्योगिक उपक्रमों का नियंत्रण तथा आन्तरिक अंकेक्षण का अनुभव रखता था। इस ‘स्टाफ’ को मुख्य प्रबन्धक ने स्पष्ट रूप से यह कार्यभार सौंपा कि वह उपक्रम में उत्पादन लागत कम किए जाने, धन का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग किए जाने तथा उपक्रम का व्यवस्थित रूप में विस्तार किए जाने के सम्बन्ध में अपने सुझाव मुख्य प्रबन्धक को देगा। परन्तु ‘स्टाफ’ के दिमाग में यह स्पष्ट न था कि उसका कार्य मात्र सुझाव देना ही है या वह भी कि सुझावों को मुख्य प्रबन्धक की ओर से वह क्रियान्वित भी कर दे। उस जवान विशेषज्ञ (स्टाफ) ने सांख्य (statistician), नियोजक (planner), अर्थशास्त्री ( economist), उत्पादन दक्षता विशेषज्ञ, बजट, व्यक्ति तथा संगठन विशेषज्ञ को साथ लेकर उन विभिन्न स्थलों (spots) का पता लगाया जहां लागतों में कमी तथा उत्पादन में सुधार किया जा सकता है और धन बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से व्यय किया जा सकता है। भावावेश में उसने इन सुझावों को क्रियान्वित करने का भी स्वयं प्रयास किया जो रेखा प्रबन्धकों को पसन्द नहीं आया और उन्होंने इसे अपने अधिकारों का हनन माना। इससे उपक्रम में असहयोग की स्थिति उत्पन्न हो गयी। परिणामस्वरूप मुख्य प्रबन्धक को न केवल इस योजना का क्रियान्वयन ही रोकना पड़ा बल्कि उस जवान विशेषज्ञ को भी उपक्रम से हटाना पड़ा।
रेखा एवं कर्मचारी सम्बन्धों में सुधार के उपाय
रेखा प्रबन्धकों एवं विशेषज्ञों के मध्य टकराहट को टालने के लिए निम्नांकित उपाय सुझाए गए हैं :
(1) योग्य विशेषज्ञों की नियुक्ति (Appointment of Capable Staff) – स्टाफ की नियुक्ति करते समय योग्य तथा कर्मठ व्यक्तियों को प्राथमिकता दी जाए ताकि उनके द्वारा सुझायी गयी योजनाएं उपयोगी सिद्ध हो सकें और रेखा प्रबन्धक उनकी योग्यता पर विश्वास करने लगें।
(2) समझाने-बुझाने पर जोर (Emphasis on Persuasion) – स्टाफ को चाहिए कि वह अपने सुझावों व योजनाओं को रेखा प्रबन्धकों पर लादने का प्रयास न करें बल्कि उन्हें योजनाओं की उपयोगिता दर्शाकर क्रियान्वित करवाने के लिए समझायें। रेखा प्रबन्धकों को यह आभास न हो कि स्टाफ उनके अधिकारों का अतिक्रमण कर रहा है।
(3) सीमा का अतिक्रमण नहीं (Not Crossing the Limits) – ‘स्टाफ’ का कार्य अधिकांश दशाओं में रेखा प्रबन्धकों को मात्र परामर्श देना है, उनका क्रियान्वयन व नियंत्रण करना नहीं। स्टाफ को चाहिए कि वह अपनी सीमाओं का अतिक्रमण न करे। उसके सुझावों को कार्यरूप देने का श्रेय रेखा प्रबन्धकों को ही प्राप्त करने दें।
(4) मत-मतान्तर का समाधान (Reconciliation of Differences) – यदि किसी बात पर रेखा प्रबन्धकों तथा स्टाफ में मतभेद है तो उसे वरिष्ठ प्रबन्धकों या मुख्य प्रबन्धक द्वारा दोनों पक्षों के तथ्यों को सुनकर निष्पक्ष रूप से निपटाना चाहिए।
(5) पूर्ण सुझाव (Complete Plan) – स्टाफ को यह ध्यान रखना चाहिए जब भी कोई समस्या समाधान हेतु उसके सामने रखी जाय, उससे सम्बन्धित समस्त सूचनाओं को विश्लेषित करके ही सुझाव दें ताकि वह सुझाव या समाधान स्पष्ट तथा व्यावहारिक सिद्ध हो। अपनी योजना या सुझाव से सम्बन्धित अच्छाइयों तथा खतरों को भी पूर्ण स्पष्ट कर दें ताकि रेखा प्रबन्धकों को क्रियान्वयन में कठिनाई उत्पन्न न हो।
Important Link…
- अधिकार से आप क्या समझते हैं? अधिकार के सिद्धान्त (स्रोत)
- अधिकार की सीमाएँ | Limitations of Authority in Hindi
- भारार्पण के तत्व अथवा प्रक्रिया | Elements or Process of Delegation in Hindi
- संगठन संरचना से आप क्या समझते है ? संगठन संरचना के तत्व एंव इसके सिद्धान्त
- संगठन प्रक्रिया के आवश्यक कदम | Essential steps of an organization process in Hindi
- रेखा और कर्मचारी तथा क्रियात्मक संगठन में अन्तर | Difference between Line & Staff and Working Organization in Hindi
- संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले संयोगिक घटक | contingency factors affecting organization structure in Hindi
- रेखा व कर्मचारी संगठन से आपका क्या आशय है ? इसके गुण-दोष
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