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मैस्लो का आवश्यकताओं की क्रमबद्धता का सिद्धांत | मैस्लो के सिद्धांत की आलोचनाएं

मैस्लो का आवश्यकताओं की क्रमबद्धता का सिद्धांत | मैस्लो के सिद्धांत की आलोचनाएं
मैस्लो का आवश्यकताओं की क्रमबद्धता का सिद्धांत | मैस्लो के सिद्धांत की आलोचनाएं

मैस्लो का आवश्यकताओं की क्रमबद्धता का सिद्धांत (MASLOW’SNEED HIERARACY THEORY)

अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धांतों में प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अब्राहम मैस्लो का “आवश्यकताओं की क्रमबद्धता का सिद्धांत” एक महत्वपूर्ण एवं बहुचर्चित सिद्धांत माना जाता है। यह सिद्धांत निम्न तीन मान्यताओं पर आधारित है।

(i) व्यक्तियों की कुछ निश्चित आवश्यकताएं होती हैं जो उनके व्यवहार या कार्य को प्रभावित करती हैं।

(ii) संतुष्ट आवश्यकताएं मानव व्यवहार को प्रभावित नहीं करतीं, केवल वे आवश्यकताएं ही जो अभी तक संतुष्ट नहीं की जा सकी हैं, मानव व्यवहार को प्रभावित करती हैं।

(iii) ये आवश्यकताएं एक क्रम में व्यवस्थित रहती हैं और एक व्यक्ति इन्हें इसी क्रम में एक के बाद एक पूरा करने का प्रयास करता है।

आवश्यकताओं की क्रमबद्धता (Need Hierachy)

मैस्लो के अनुसार महत्व की दृष्टि से चढ़ते हुए क्रम में मानवीय आवश्यकताओं के निम्न पांच प्रकार है— (1) जीवन निर्वाह आवश्यकताएं, (2) सुरक्षात्मक आवश्यकताएं, (3) सामाजिक आवश्यकताएं (4) सम्मान या स्वाभिमान सम्बन्धी आवश्यकताएं, एवं (5) आत्मविश्वास सम्बन्धी आवश्यकताएं। इसी क्रम में व्यक्ति अपनी इन आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं:

(1) जीवन निर्वाह आवश्यकताएं (Physiological Needs) – भोजन, वस्त्र और मकान सम्बन्धी आवश्यकता सामान्यतया जीवन निर्वाह आवश्यकताओं में सम्मिलित की जाती हैं। संस्थाएं सर्वप्रथम कर्मचारियों को वेतन तथा अन्य मौद्रिक लाभ प्रदान कर उनकी इन आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। मैस्लो की यह धारणा है कि जब तक व्यक्तियों की ये आवश्यकताएं एक उचित स्तर तक पूरी नहीं होतीं, अगली आवश्यकताएं उसके व्यवहार को प्रभावित नहीं करेंगी।

(2) सुरक्षात्मक आवश्यकताएं (Security or Safety Needs)- व्यक्तियों की जीवन निर्वाह आवश्यकताएं पूरी हो जाने के बाद उनके सामने कार्य की सुरक्षा (Job Security), खतरे से सुरक्षा तथा सम्पत्ति, आदि के खोये जाने के भय से सुरक्षा की आवश्यकताएं उत्पन्न होती हैं। इन आवश्यकत्ताओं की पूर्ति के लिए कम्पनी अपने कर्मचारियों को जॉब गारण्टी, स्वास्थ्य बीमा पेंशन तथा अन्य वृद्धावस्था सुविधाएं तथा अच्छी कार्य दशाएं उपलब्ध कराती हैं जिनसे वे बेहतर कार्य करने को प्रेरित होते हैं।

(3) सामाजिक आवश्यकताएं (Social Needs)- चूंकि मानव एक सामाजिक प्राणी है, अतः वह दूसरों से प्यार, मित्रता तथा घनिष्ठता के सम्बन्धों की आकांक्षा रखता है। इसीलिए वह अपनी सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपने व्यक्तिगत जीवन में तथा कार्य पर मित्र बनाता है, विभिन्न धार्मिक व सामाजिक संगठनों की ऐच्छिक सदस्यता ग्रहण करता है। कम्पनियां समान प्रकृति व स्वभाव वाले लोगों को समूह में कार्य देकर इस आवश्यकता की पूर्ति करती हैं।

(4) सम्मान या स्वाभिमान सम्बन्धी आवश्यकताएं (Esteem or Ego Needs)- जीवन निर्वाह, सुरक्षात्मक तथा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद एव व्यक्ति के मन में स्वाभिमान सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति की इच्छा जाग्रत होती है। वह चाहता है कि दूसरे लोग उसे महत्वपूर्ण समझें तथा उसे सम्मान प्रदान करें। लोग उसके कार्यों की सराहना करें और समाज में उसे प्रतिष्ठा प्राप्त हो । कम्पनियां व्यक्तियों के जॉब का अच्छा नामकरण करके, उसके पद के नाम तथा दायित्वों में वृद्धि करके तथा उचित समय पर उनकी प्रशंसा करके इस आवश्यकता की पूर्ति करती हैं।

(5) आत्मविकास सम्बन्धी आवश्यकताएं (Self-actualisation Needs) – यह आवश्यकताओं के क्रम में सर्वोच्च स्तर पर है। यह आवश्यकता परिपक्वता की परिचालक है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति चुनौतीपूर्ण कार्यों का उत्तरदायित्व वहन करना चाहता है तथा वह विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करके अपनी क्षमताओं को अनुभव करता है । उदाहरण के लिए, अवकाश प्राप्त कर लेने के बाद भी प्रोफेसर द्वारा नई पुस्तक लिखा जाना तथा खिलाड़ी द्वारा स्वयं अपने रिकार्ड तोड़कर नए कीर्तिमान स्थापित करना आत्मविश्वास सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।

प्रो. मैस्लो का आवश्यकताओं की क्रमबद्धता का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि एक उपक्रम में विभिन्न व्यक्तियों की आवश्यकताओं की संतुष्टि का स्तर भिन्न भिन्न होगा, अतः प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता के संतुष्टि स्तर का पता लगाकर उसकी अगली आवश्यकता की पूर्ति सम्बन्धी उपाय किए जाने चाहिए तभी वे अधिकतम कार्य के लिए प्रेरित होंगे। जैसे एक नए श्रमिक को जीवन निर्वाह आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ऊंची मजदूरी दी जानी चाहिए तो एक पुराने अधेड़ उम्र के श्रमिकों को प्रशंसा या सम्मान प्रदान करना अधिक अच्छा प्रेरक सिद्ध होगा।

मैस्लो के सिद्धांत की आलोचनाएं (Criticisms of Maslow’s Theory)

यद्यपि मैस्लो के आवश्यकताओं की क्रमबद्धता के सिद्धांत को विश्व भर में मान्यता प्राप्त हुई है तथापि वह आलोचना से परे नहीं है। इस सम्बन्ध में निम्न आलोचनाएं प्रमुख हैं:

(1) आवश्यकताएं पांच प्रकार की न होकर मात्र दो प्रकार की होती हैं- जैविकीय आवश्यकताएं (Biological Needs) तथा अन्य आवश्यकताएं। जैविकीय आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद ही अन्य आवश्यकताएं जाग्रत होती हैं।

(2) सभी आवश्यकताओं का महत्व बराबर न होकर भिन्न-भिन्न होता है। उच्च पदों पर आसीन प्रबन्धकों के लिए जीवन निर्वाह तथा सुरक्षात्मक आवश्यकताओं का महत्व न्यून होता है तथा सम्मान सम्बन्धी और आत्मविश्वास सम्बन्धी आवश्यकताओं का महत्व अत्यधिक होता है, जबकि मैस्लो सभी आवश्यकताओं का समान महत्व मानते हैं।

(3) मैस्लो का यह कहना कि एक आवश्यकता की पूर्ति के बाद ही अगली आवश्यकता जाग्रत होती है, सही नहीं है। कुछ लोगों में कई आवश्यकताएं जैसे सुरक्षा व सम्मान साथ-साथ हो सकती हैं, यह अवश्य है कि उसके लिए इनमें से किसी एक का महत्व अधिक हो और एक का कम । इसी प्रकार उच्चस्तरीय आवश्यकताएं पद में वृद्धि द्वारा जाग्रत होती हैं न कि निम्नस्तरीय आवश्यकताओं की पूर्ति द्वारा जैसा कि मैस्लो मानते हैं।

(4) मैस्लो का सिद्धांत इतने छोटे निदर्शन ( Sample) पर आधारित है कि उसके निष्कर्षों को पूर्ण विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता।

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Anjali Yadav

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