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विपणन विचार का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definitions of Marketing Concept)
विपणन विचार का अर्थ एवं परिभाषा- वर्तमान में विपणन व्यवसाय का पर्यायवाची बनता जा रहा है। विपणन के इस बढ़ते हुए महत्व ने व्यावसायिक चिन्तन को एक नवीन दिशा देना प्रारम्भ किया है जिसे विपणन विचार की संज्ञा दी गयी है। विपणन विचार प्रबन्ध का वह दर्शन है जो विपणन क्रियाओं का मार्गदर्शन करता है। यह सामाजिक-आर्थिक सन्तुष्टि की मान्यताओं पर आधारित ऐसा व्यवसायिक दर्शन है जो ग्राहक को समस्त विपणन क्रियाओं का केन्द्र बिन्दु बनाने पर बल देता है। उसकी कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं-
आर्थर पी० फैल्टन के अनुसार, विपणन विचार संस्था की वह स्थिति है जो समस्त विपणन क्रियाओं के एकीकरण एवं समन्वय पर बल देती है ताकि ये विपणन क्रियायें संस्था के अन्य कार्यों से संयोजित हो सके और संस्था दीर्घकालीन अधिकतम लाभों की उत्पत्ति के मूल लक्ष्य को प्राप्त कर सके।”
कंडिफ, स्टिल एवं गोवोनी के अनुसार, “मूलतः विपणन विचार वह प्रबन्ध दर्शन है जो इस विचार को अपनाने वाली कम्पनियों के विपणन प्रयासों के प्रबन्ध को सुदृढ़तापूर्वक प्रभावित करता है।”
फिलिप कोटलर के अनुसार, “विपणन विचार विपणन प्रयासों के पथ-प्रदर्शन का दर्शन है।”
इस प्रकार स्पष्ट है कि “विपणन विचार” विपणन क्रियाओं का मार्गदर्शन करने वाला ऐसा प्रबन्ध दर्शन है जो ग्राहकोन्मुखी है और विपणन संस्था की समस्त क्रियाओं को एकीकृत करते हुए उचित लाभार्जन पर बल देता है।
विपणन की विभिन्न अवधारणायें (Various Concepts of Marketing)
विपणन के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अपने मतानुसार अलग-अलग विचार प्रकट किये हैं, उनके ये विभिन्न विचार ही पृथक-पृथक अवधारणाओं को व्यक्त करते हैं। विभिन्न अवधारणाओं के अध्ययन से विपणन के अर्थ को समझने में सहायता मिलती है। विपणन के सम्बन्ध में प्रमुख अवधारणाओं का विवेचन निम्न प्रकार है-
(1) उपयोगिता सृजन की अवधारणा (The Creation of Utilities Concept)- रिचार्ड बसकिर्क (Richard Buskirk ) ने विपणन के सम्बन्ध में जो दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। उसके अनुसार विपणन उपयोगिता सृजन करने वाली क्रिया है। दूसरे शब्दों में विपणन की सभी क्रियाओं द्वारा वस्तु की उपयोगिता में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए (क) विपणन की उत्पाद, नियोजन एवं विकास क्रियायें रूप उपयोगिता का सृजन करती हैं। (ख) वितरण श्रृंखलायें (Distribution Channels) वस्तु को उत्पादन स्थल से उपभोक्ता स्थल तक पहुँचाकर वस्तु में स्थान उपयोगिता का सृजन करती है। (ग) वस्तु की माँग उत्पन्न होने से पूर्व निर्माता, थोक व्यापारी एवं फुटकर व्यापारी अपने पास वस्तु का स्टाक एकत्रित कर लेते हैं, जिससे कि वस्तु की माँग उत्पन्न होने पर उसकी पूर्ति की जा सके। निर्माता एवं मध्यस्थ मौसमी वस्तुओं को स्टॉक भी कर लेते हैं ताकि गैर मौसम में वस्तुओं को अधिक मूल्य पर बेचा जा सके। इस प्रकार निर्माता और मध्यस्थ वस्तुओं का स्टॉक करते समय उपयोगिता का सृजन करते हैं। (घ) निर्माता एवं मध्यस्थों द्वारा विज्ञापन एवं संवर्धन की सहायता से वस्तु की माँग उत्पन्न की जाती है और फिर अन्तिम उपभोक्ताओं को वस्तु बेच दी जाती है। इस प्रकार उनके द्वारा विपणन की विक्रयण क्रिया द्वारा स्वामित्व उपयोगिता का सृजन किया जाता है।
इस प्रकार उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि विपणन एक सुग्रन्थित प्रणाली है जिसके द्वारा रूप, स्थान, समय एवं स्वामित्व उपयोगिता के सृजन से वस्तु के मूल्यों में वृद्धि हो जाती है।
2. जीवन स्तर प्रदाता की अवधारणा (Delivery of Standard of Living Concept)– यह अवधारणा पॉल मजूर (Paul Mazur) द्वारा प्रस्तुत की गई है। इसके अनुसार, “विपणन समाज को जीवन-स्तर प्रदान करता है।” प्रो० मेलकोम मेकनायर (Malcolm Mcnair) ने उपरोक्त विचार में संशोधन करके अपना विचार इस प्रकार प्रस्तुत किया है, “विपणन का आशय जीवन स्तर का सृजन करके उसे समाज को प्रदान करना है।” यह अवधारणा विपणन की आधुनिक विचारधारा प्रस्तुत करती है। विपणन के द्वारा ग्राहकों की इच्छाओं और आवश्यकताओं का पता लगाया जाता है तत्पश्चात् उनके अनुरूप ही वस्तु के उत्पादन की योजनायें बनायी जाती हैं और वस्तुओं का उत्पादन करके ग्राहकों तक वस्तुयें पहुँचायी जाती है। विपणनकर्त्ता विक्रय संवर्धन और विक्रय श्रृंखलाओं आदि में उचित परिवर्तन द्वारा विपणन लागत में कमी करने के। लिए सदैव जागरूक रहता है। परिणामतः वस्तुओं की कीमतों में कमी होती है। वस्तुएँ सस्ती होने के कारण उन ग्राहकों की पहुँच में आ जाती हैं जो कि पहले कीमतें अधिक होने के कारण उन वस्तुओं को नहीं खरीद पाते थे। विक्रय संवर्धन के विभिन्न तरीकों के द्वारा ग्राहकों को वस्तु क्रय करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसका प्रभाव यह होता है कि पहले से अधिक संख्या के ग्राहक वस्तुओं का उपभोग करना शुरू कर देते हैं जिसके फलस्वरूप उनके स्तर में सुधार होता है। यह विपणन का ही परिणाम है कि पहले जिन वस्तुओं और सुविधाओं को विलासिता समझा जाता था आज उन्हीं वस्तुओं एवं सुविधाओं को साधारण लोगों द्वारा भी प्रयोग किया जाने लगा है, जैसे- रेडियो, कुकर, पंखे, कुकिंग गैस, टेलीविजन, रेफ्रीजरेटर, स्कूटर आदि । इस प्रकार से स्पष्ट है कि विपणन समाज में विभिन्न वस्तुओं के उपभोग को प्रेरित करके) उपभोग के ढंग एवं रहन-सहन के तरीकों को प्रभावित करके समाज को उच्च जीवन-स्तर प्रदान करता है।
3. वस्तुओं और सेवाओं के वितरण की अवधारणा (The Distribution of Goods and Service Concept)- इस अवधारणा के अनुसार विपणन एक ऐसी व्यावसायिक प्रक्रिया है। जिसके द्वारा उत्पादक या निर्माता द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं को ग्राहकों तक पहुँचाने की क्रिया निष्पादित की जाती है।
विपणन की उपरोक्त अवधारणा एक संकीर्ण विचारधारा प्रस्तुत करती है। इसके अनुसार, विपणन को वितरण की क्रिया समझा गया है जिसमें मुख्य रूप से परिवहन, भण्डारण, श्रेणीयन तथा विक्रयण आदि क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है। वास्तव में यह अवधारणा उत्पाद अभिमुखी है। आधुनिक युग में, वस्तु विचार के उत्पन्न होने से लेकर ग्राहकों के सन्तुष्ट होने तक की जाने वाली सभी क्रियाओं को विपणन के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है अर्थात् उत्पादन, नियोजन एवं विकास, विपणन अनुसंधान क्रियायें, उत्पादन करने से पहले और वस्तु के विक्रय के बाद विक्रयोपरान्त सेवायें भी विपणन के अन्तर्गत सम्मिलित की जाती हैं।
4. आय उत्पन्न करने की अवधारणा (The Generation of Revenue Concept)– यह अवधारणा रिचार्ड बसकिर्क द्वारा प्रस्तुत की गयी है। उसके अनुसार, “विपणन का उत्तरदायित्व एक ऐसी लागत पर आय प्राप्त करना है जिसके क्रियाकलापों द्वारा उचित लाभ वसूल किया जा सके।” बिना उचित लाभ कमाये कोई भी संस्था दीर्घकाल तक अपने व्यवसाय का संचालन नहीं कर सकती। सफल विपणन के द्वारा ही उचित लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं। इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना चाहिए कि अत्यधिक व्यय करके आय प्राप्ति को उचित नहीं कहा जा सकता। विपणन के द्वारा सदैव यह प्रयत्न किया जाता है कि कैसे लागतों में कमी करके लाभों में वृद्धि की जाये।
विपणन की अन्य अवधारणायें या तो उत्पादन की ओर ध्यान देती हैं या उपभोक्ता की ओर लेकिन यह अवधारणा फर्म या कम्पनी की ओर ध्यान देती है। इस अवधारणा के अनुसार अर्जित करने के उद्देश्य से की जाने वाली सभी क्रियायें विपणन कहलाती हैं।
5. विपणन एक प्रणाली है (Marketing is a System)- यह अवधारणा विलियम आय जे० स्टेन्टन द्वारा प्रस्तुत की गयी है। उनके अनुसार, “विपणन का आशय उन अर्न्तसम्बन्धित क्रियाओं की सम्पूर्ण प्रणाली से है जिसका उद्देश्य वर्तमान तथा भावी ग्राहकों की आवश्यकता संतुष्टि करने वाली वस्तुओं और सेवाओं का नियोजन, कीमत निर्धारण, संवर्धन एवं वितरण करना है।”
इस अवधारणा के अनुसार विपणन को एक ऐसी प्रणाली कहा गया है कि जिसमें अनेक व्यावसायिक क्रियायें सम्मिलित होती है और ये परस्पर सम्बन्धित होती हैं। यह अवधारणा ग्राहक अभिमुखी है क्योंकि सभी विपणन क्रियाओं में वर्तमान एवं भावी ग्राहकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है।
6. ग्राहक सन्तुष्टि की आधुनिक अवधारणा (Modern Concept of Customer’s Satisfaction) – विपणन की आधुनिक अवधारणा ग्राहक सन्तुष्टि पर बल देती हैं। इस अवधारणा के अनुसार विपणन की क्रियायें वस्तु विचार के उत्पन्न होने से शुरू होती है और ग्राहक की संतुष्टि होने तक विपणन क्रियाएँ क्रियाशील रहती हैं। दूसरे शब्दों में, कहा जा सकता है कि विपणन उपभोक्ता से हो आरम्भ होता है और उपभोक्ता पर ही समाप्त होता है।
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