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प्रबन्धकीय लेखांकन एवं लागत लेखांकन में अन्तर कीजिए।
प्रबन्धकीय लेखांकन एवं लागत लेखांकन में अन्तर-prabandhkiya lekhankan or lagat lekhankan me antar- प्रबन्धकीय लेखांकन, नीति निर्धारण तथा व्यावसायिक क्रिया-कलापों को नियन्त्रित करने के लिए प्रबन्धकों का मार्गदर्शन करने की एक अवधारणा है। इस लेखांकन के स्त्रोत परिव्यय लेखांकन व वित्तीय लेखांकन होते है। परिव्यय लेखा प्रबन्धकीय निर्णय लेने के उद्देश्यों से प्राप्त सूचना का प्रस्तुतीकरण करता है। अतः लागत लेखांकन प्रबन्ध लेखांकन का आधार है। हालांकि दोनों में कुछ हद तक समानताएँ होने के बावजूद भी असमानताएँ है जो निम्न प्रकार है-
अन्तर के आधार | प्रबन्धकीय लेखांकन | लागत लेखांकन |
1. विकास (Growth) | इसका विकास गत चार दशकों से हुआ है। | इसका विकास औद्योगिक क्रान्ति की देन है। इसका विकास बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही हो गया था। चूँकि वित्तीय लेखांकन से प्रबन्ध को आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती थी अतः आवश्यक सूचनाओं की प्राप्ति हेतु इन (लागत लेखांकन) का विकास किया गया। इससे मात्र लागत संरचना की ही जानकारी नहीं होती बल्कि इससे नियोजन व निर्णयन में भी सहायता मिलती है। |
2. उद्देश्य (Object) | इसका उद्देश्य प्रबन्ध को व्यवसाय का सही संचालन करने हेतु आवश्यक सूचना प्रदान करना होता है। | इसका उद्देश्य उत्पत्ति वस्तु की लागत ज्ञात करना होता है। |
3. क्षेत्र (Scope) | इसका क्षेत्र काफी व्यापक है। इसके अन्तर्गत लागत लेखांकन, वित्तीय लेखांकन, पुर्नर्मूल्यांकन लेखांकन, नियन्त्रण लेखांकन, निर्णय लेखांकन एवं सांख्यिकी व अर्थशास्त्र आते हैं। | इसका क्षेत्र काफी संकुचित है। इसका क्षेत्र उत्पादों की लागत गणना तक सीमित है। |
4. प्रकृति (Nature) | यह मुख्यतया भविष्य की घटनाओं से सम्बन्धित होता है। इसके अन्तर्गत आँकड़ों का विश्लेषण किया जाता है। जिनके आधार पर भविष्य के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिये जाते है। | यह भूतकालीन एवं र्वतमान की घटनाओं से सम्बन्धित होती है। |
5. पक्ष (Parties) | इसका प्रयोग आन्तरिक (प्रबन्ध) पक्ष के लिए होता है। | इसका प्रयोग आन्तरिक एवं बाह्य पक्ष दोनों के लिए होता है। |
6. वर्णन (Description) | इसमें सभी प्रकार की घटनाओं का लेखांकन होता है। | इसमें केवल मौद्रिक घटनाओं का ही लेखांकन होता है। |
7. सिद्धान्त (Principles) | इसके लिए कोई निश्चित सिद्धान्त नहीं है। | इसके लिए निश्चित सिद्धान्त होता है, ताकि लागत को कम किया जा सके। |
8. समंकों का प्रयोग (Data used) | इसमें परिणात्मक एवं गुणात्मक दोनों प्रकार की सूचनाओं का प्रयोग किया जाता है। | इसमें उन्हीं लेन-देनों का विवरण रहता है जिन्हें अंकों में प्रदर्शित किया जा सकता है अर्थात् इसमें केवल परिणामत्मक सूचनाओं का ही विवरण रहता है। |
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