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नवीन उत्पाद के विकास की प्रक्रिया (Process of New Product Development)
नवीन उत्पाद का विकास अत्यन्त जोखिमपूर्ण होता है क्योंकि एक अनुसंधान के अनुसार नवीन उत्पादों का लगभग 80 प्रतिशत भाग अपनी प्रारम्भिक अवस्था में ही असफल हो जाता है। परन्तु इतनी जोखिम के बाद भी नवीन उत्पादों का विकास व्यवसाय के लिए अत्यन्त आवश्यक है। यह बात सर्वविदित है कि कोई भी उत्पाद अनन्त समय तक बाजार में नहीं टिकी रह सकती, कभी न कभी उसे अप्रचलन की अवस्था में पहुँचना ही पड़ता है। अतः अप्रचलन में जाने वाली वस्तु के स्थान पर नई वस्तु का विकास अति आवश्यक है।
बूज, एलन एवं हैमिलटन ने एक नये उत्पाद के विकास की प्रक्रिया को निम्न प्रकार स्पष्ट किया है –
1. नये विचारों का अन्वेषण (Exploration of New Ideas)- अन्वेषण के अन्तर्गत कम्पनी के उत्पाद क्षेत्रों का निर्धारण एवं उपलब्ध विचारों तथा तथ्यों का एकत्रीकरण सम्मिलित होता है क्योंकि जितने अधिक विचारों का एकत्रीकरण होगा उतने ही अच्छे विचार के चुने जाने की सम्भावना अधिक होगी। इन विचारों को एकत्रित करने के लिए कम्पनी ग्राहक, प्रबन्ध, विक्रेता, प्रतियोगितायें, प्रयोगशाला आदि पर निर्भर करती है। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ अपने यहाँ इसी कार्य के लिए एक विचार प्रबन्धक की नियुक्ति कर लेती है जो कम्पनी के लिए विभिन्न तथ्य विचार एकत्रित करता है।
2. विचारों की छानबीन ( Screening of Ideas)- विचारों के एकत्रीकरण के पश्चात् प्रत्येक विचार का विस्तृत रूप से विश्लेषण एवं मूल्यांकन किया जाता है तथा जो विचार कम्पनी के लिए लाभकारी होते हैं, उन्हें अलग कर दिया जाता है ताकि उपयुक्त समय आने पर उनका लाभ उठाया जा सके। विभिन्न विचारों का मूल्यांकन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है तथा उन्हें उनके महत्व के क्रम में रखा जाता है। यह प्रक्रिया विचारों की छानवीन कहलाती है।
3. व्यावसायिक विश्लेषण (Business Analysis)- व्यावसायिक विश्लेषण के – अन्तर्गत यह पता लगाया जाता है कि नई वस्तु की बिक्री कैसी रहेगी? लाभों की स्थिति क्या रहेगी तथा लगायी गयी पूँजी पर प्रतिफल का प्रतिशत क्या होगा? यदि ये सभी बात विश्लेषण के अन्तर्गत कम्पनी के हित में आती हैं तो कम्पनी नया उत्पाद विकसित करने के बारे में विचार करती है, अन्यथा नहीं।
4. वस्तु विकास (Product Development)- जब वह विचार जो प्रत्येक दृष्टि से उचित एवं ठोस जान पड़ता है उसको कार्यरूप में परिणित करने के लिए कदम उठाये जाते हैं। वस्तु विकास के अन्तर्गत वस्तु के विभिन्न मॉडल पेपर तैयार करके यह विचार किया जाता है कि इस प्रकार का मॉडल अच्छा तथा मितव्ययी होगा। उपभोक्ताओं की रूचियों का परीक्षण किया जाता है तथा ब्राण्ड तथा पैकेजिंग के विषय में निर्णय किया जाता है।
5. परीक्षात्मक विपणन (Test Marketing)- नवीन वस्तु को विस्तृत रूप से बाजार में लाने से पूर्व परीक्षात्मक विपणन आवश्यक है अर्थात् बाजार के किसी चुने हुए भाग में वस्तु को लाकर यह परीक्षा की जानी चाहिए कि विक्रेताओं तथा ग्राहकों की ओर से क्या प्रतिक्रिया होती है ? यदि परीक्षण में कुछ कमियाँ सामने आती हैं तो उन्हें दूर करने के पश्चात् ही नवीन वस्तु को विस्तृत रूप से बाजार में लाना चाहिए। वास्तव में, परीक्षात्मक विपणन उत्पादक की जोखिम को कम करता है तथा उसे ग्राहकों की प्रतिक्रियाओं से अवगत कराता है।
6. वस्तु का वाणिज्यीकरण (Commercialisation of Product)- एक नवीन उत्पाद के विकास की सभी प्रारम्भिक अवस्थायें पूरी करने के बाद वस्तु के वाणिज्यीकरण की समस्या आती है अर्थात् जब वस्तु परीक्षात्मक विपणन में खरी उतरती है तो उसे व्यावसायिक रूप से बाजार में लाने की तैयारी की जाती है। वस्तु को बाजार में लाने से पूर्व वस्तु के मॉडल, ब्राण्ड तथा पैकेजिंग आदि के बारे में फिर से एक बार विचार करना होता है क्योंकि उत्पादक की पूँजी का एक बड़ा भाग वस्तु के उत्पादन में लग जाता है। अतः वस्तु के वाणिज्यीकरण की अवस्था अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है।
नये उत्पाद की असफलता के कारण (Reasons for Failure of New Product)
सामान्यतः अधिकतर नये उत्पाद बाजार में सफल नहीं हो पाते। ऐसा देखा गया है कि नये उत्पादों का 80-90 प्रतिशत भाग असफल ही रहता है। ऐसे उत्पाद भी जो उचित नियोजन के पश्चात् बाजार में लाये जाते हैं, असफल हो जाते हैं। इन असफलताओं के निम्नलिखित कारण सकते हैं-
1. वस्तु के दोष (Defects of the Product)- वस्तु के कार्य, डिजाइन, आकार, सजावट, किस्म, पैकिंग आदि में पाये जाने वाले दोषों के कारण वस्तु बाजार में असफल हो जाती है।
2. उत्पाद के मूल्य (Prices of the Product)- यदि उत्पाद का मूल्य अधिक रखा जाता है तब भी उत्पाद के असफल हो जाने की सम्भावना रहती है। यदि उत्पाद की लागत अधिक आती है तो मूल्य भी अधिक रखा जाता है और कभी-कभी तो लागत का ठीक प्रकार से अनुमान न लग पाने के कारण भी वस्तु का मूल्य आवश्यकता से अधिक निर्धारित हो जाता है।
3. अपर्याप्त बाजार विश्लेषण (Inadequate Market Analysis)- यदि नवीन उत्पाद के विकास से पूर्व बाजार विश्लेषण अर्थात् माँग का अनुमान ग्राहकों की रूचि तथा प्रचलित रीति-रिवाज के अनुरूप ठीक प्रकार से नहीं लगाया जाता है तो भी नवीन उत्पाद को असफलता का मुँह देखना पड़ता है।
4. प्रतिस्पर्धा (Competition)- यदि प्रतिस्पर्धी अपनी वस्तु की कीमत कम कर दे या विक्रय संवर्धन तकनीक में सुधार कर ले अथवा अपनी वस्तु की किस्म में सुधार करके उसे बाजार में लायें तो भी नवीन उत्पाद को असफलता का सामना करना पड़ सकता है।
5. वितरण की कमियाँ (Distribution Weaknesses) – कभी-कभी वितरण सम्बन्धी कमियाँ, जैसे- समय पर उत्पाद का बाजार में न पहुँचना, मध्यस्थों की शिथिलता आदि के कारण भी नवीन उत्पाद असफलता के कगार पर पहुँच जाती है।
6. विपणन प्रयासों की अपर्याप्तता (Insufficiency in Marketing Efforts) – विपणन सम्बन्धी प्रयासों की कमी भी नवीन उत्पाद को असफल बना देती है। अपर्याप्त विज्ञापन, विक्रय कला का अभाव, आदि इसके उदाहरण हैं।
7. विक्रेता की अयोग्यता (Incapability of Salesman)- यदि विक्रेता अनुभवहीन तथा अशिक्षित है और उनमें प्रेरणा का अभाव है तो नवीन उत्पाद बाजार में असफल हो जाता है।
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