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सम्प्रेषण का अर्थ, परिभाषाएं, विशेषताएं, प्रक्रिया, प्रकार एवं माध्यम, महत्व, बाधाएं

सम्प्रेषण का अर्थ, परिभाषाएं, विशेषताएं, प्रक्रिया, प्रकार एवं माध्यम, महत्व, बाधाएं
सम्प्रेषण का अर्थ, परिभाषाएं, विशेषताएं, प्रक्रिया, प्रकार एवं माध्यम, महत्व, बाधाएं

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सम्प्रेषण का अर्थ (MEANING OF COMMUNICATION)

सम्प्रेषण का शाब्दिक अर्थ है- ‘सूचनाओं को किसी माध्यम से प्रेषित करना।’ सम्प्रेषण के बारे में सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात है कि इसमें दो व्यक्तियों या पक्षों का होना अनिवार्य है- एक संदेश भेजने वाला और दूसरा प्राप्त करने वाला। एक अकेला व्यक्ति संदेशवाहन नहीं कर सकता। प्रेषक के साथ प्राप्तकर्ता होने पर ही संदेशवाहन या सम्प्रेषण पूर्ण होता है।

इस प्रकार सम्प्रेषण से अभिप्राय किसी संस्था या संगठन में दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य सूचनाओं, विचार, तथ्यों, सम्मतियों एवं भावनाओं का इस दृष्टि से आदान-प्रदान है कि संदेश प्रेषक की बात को संदेश प्राप्तकर्ता उसी सन्दर्भ में समझें।

सम्प्रेषण प्रक्रिया (The Process of Communication)

सम्प्रेषण प्रक्रिया वह विधि है जिसके द्वारा प्रेषक से कोई संदेश प्रेषिती तक पहुंचता है। इसमें छः अवस्थाएं या पग होते हैं जिन्हें चित्र में दिखाया गया है।

चित्र: संदेशवाहन की प्रक्रिया

चित्र: संदेशवाहन की प्रक्रिया

(1) विचार का विकास – सर्वप्रथम प्रेषक को यह सोचना चाहिए कि उसे क्या संदेश प्रेषित करना है और क्यों? बिना सोचे-विचारे किया गया सम्प्रेषण व्यर्थ होता है।

(2) संकेतन- विचार का विकास होने के बाद परन्तु प्रेषित करने से पूर्व उपयुक्त शब्दों, प्रतीकों, चिन्हों एवं चार्टों द्वारा उसे ऐसा रूप दिया जाता है कि प्राप्तकर्ता समझ सके।

(3) प्रेषण – संदेशवाहन प्रक्रिया का यह तीसरा कदम है। प्रेषक संदेशवाहन के उपयुक्त माध्यम का चुनाव करता है और फिर उस माध्यम से संदेश को प्रेषित करता है।

(4) प्राप्ति- इस अवस्था में प्रेषक की भूमिका समाप्त हो जाती है और प्राप्तकर्ता की भूमिका प्रारम्भ हो जाती है। जैसे मौखिक सम्प्रेषण में प्राप्तकर्ता का अच्छा श्रोता होना जरूरी है।

(5) अर्थ निरूपण- सन्देशवाहन में प्राप्तकर्ता को सन्देश का वही अर्थ निकालना चाहिए जो कि प्रेषक व्यक्त करना चाहत है।

(6) उपयोग – यह सम्प्रेषण प्रक्रिया की अन्तिम अवस्था है। प्राप्तकर्ता प्राप्त संदेश के निर्देशानुसार या तो किसी कार्य को करता है या नहीं करता है।

सम्प्रेषण की परिभाषाएं (DEFINITION OF COMMUNICATION)

विभिन्न विद्वानों ने संदेशवाहन की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं। इनमें से कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएं निम्न हैं:

(1) न्यूमेन एवं समर के अनुसार, “सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों, विचारों, सम्पत्तियों अथवा भावनाओं का विनिमय है।”

(2) बेलोज एवं गिलसन के अनुसार, “सम्प्रेषण शब्दों, पत्रों, चिन्हों अथवा समाचार का आदान-प्रदान करने का समागम है और इस प्रकार से यह संगठन के एक सदस्य द्वारा दूसरे व्यक्ति में अर्थ एवं समझदारी मे हिस्सा बंटाना है।”

(3) फ्रेड जी. मायर के अनुसार, ‘सम्प्रेषण शब्दों, पत्रों अथवा सूचना, विचारों, सम्मतियों का आदान-प्रदान करने का समागम है।”

(4) सी. जी. ब्राउन के अनुसार, “सम्प्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सूचना का हस्तान्तरण है, चाहे उसके द्वारा विश्वास उत्पन्न हो या नहीं अथवा विनिमय हो या नहीं, किन्तु हस्तान्तरण की गई सूचना प्राप्तकर्ता को समझ में आनी चाहिए।”

(5) लुइस ए. ऐलन के अनुसार, “सम्प्रेषण उन समस्त बातों का योग है जिन्हें एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के मस्तिष्क में समझ-बूझ उत्पन्न करने के लिए करता है। यह अर्थ का पुल है। इसमें कहने, सुनने तथा समझाने की एक विधिवत् निरंतर प्रतिक्रिया चलती रहती है।”

(6) चार्ल्स ई. रेडफील्ड के अनुसार, “सम्प्रेषण से तात्पर्य उस व्यापक क्षेत्र से हैं जिसके माध्यम से मानव तथ्यों एवं सम्पत्तियों का आदान-प्रदान करते हैं। टेलीफोन, तार, रेडियो अथवा इसी प्रकार के तकनीकी साधन संदेशवाहन नहीं है।

(7) शोभना खण्डवाला के अनुसार, “सामान्यतः संदेशवाहन से तात्पर्य कहे गए अथवा लिखित शब्दों से होता है। किन्तु वास्तव में यह इससे कहीं अधिक है। संदेशवाहन अनेक बातों का योग है; जैसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में, जाने या अनजाने शब्दों का प्रेषण, प्रवृत्तियां, भावनाएं, क्रियाएं, इशारे अथवा स्वर । कभी-कभी शांति भी प्रभावपूर्ण संदेशवाहन का कार्य करती है। “

निष्कर्ष- सम्प्रेषण की उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् निष्कर्ष रूप में इसकी परिभाषा निम्न प्रकार दी जा सकती हैं : “सम्प्रेषण दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य संदेशों, विचारों, भावनाओं, सम्पतियों, तथ्यों तथा तर्कों का पारस्परिक आदान-प्रदान है।”

सम्प्रेषण (संदेशवाहन) के प्रकार एवं माध्यम (TYPES AND MEDIA OF COMMUNICATION)

संदेशवाहन के बहुत से प्रकार और माध्यम हैं जिनका निम्नांकित चार्ट में वर्गीकरण किया गया है:

सम्प्रेषण (संदेशवाहन) के प्रकार एवं माध्यम

सम्प्रेषण (संदेशवाहन) के प्रकार एवं माध्यम

(I) नीचे की ओर, ऊपर की ओर एवं समतल संदेशवाहन

(a) नीचे की ओर संदेशवाहन (Downward Communication)- किसी संगठन में उच्च अधिकारियों द्वारा अपने अधीनस्थ अधिकारियों तथा कर्मचारियों को भेजा गया संदेश ‘नीचे की ओर संदेशवाहन’ कहलाता है। यह मौखिक अथवा लिखित किसी भी प्रकार का हो सकता है।

चित्रः नीचे की ओर, ऊपर की ओर एवं समतल संदेशवाहन

चित्रः नीचे की ओर, ऊपर की ओर एवं समतल संदेशवाहन

(b) ऊपर की ओर संदेशवाहन (Upward Communication)- जब अधीनस्थ अधिकारी या कर्मचारी उच्च अधिकारियों को कोई संदेश, रिपोर्ट, ज्ञापन, प्रार्थना-पत्र, शिकायत या सुझाव के रूप में भेजते हैं तो उसे ऊपर की ओर संदेशवाहन कहते हैं।

(c) समतल संदेशवाहन (Horizontal Communication)- जब किसी संगठन में एक ही स्तर पर कार्यरत अधिकारियों के मध्य सूचनाओं या विचारों का आदान-प्रदान होता है, तो उसे समतल संदेशवाहन कहते हैं।

(II) औपचारिक एवं अनौपचारिक संदेशवाहन (Formal and Informal Communication)

(a) औपचारिक संदेशवाहन (Formal Communication)- सामान्यतः एक ही संस्था में काम करने वाले कर्मचारियों व अधिकारियों के मध्य औपचारिक सम्बन्ध होते हैं। जब कोई सम्प्रेषक (Sender) ऐसे सम्बन्धों के आधार सम्प्रेषिती को कोई संदेश भेजता है तो वह औपचारिक संदेशवाहन कहा जाता है।

(b) अनौपचारिक संदेशवाहन (Informal Communication)- एक ही संस्था, संगठन, कार्यालय या कारखाने में काम करने वाले लोगों के मध्य बहुधा मैत्री, घनिष्ठता या समूह भावना के अनौपचारिक सम्बन्ध विकसित हो जाते हैं जिन्हें उच्च अधिकारी रोक नहीं सकते। जब इन अनौपचारिक सम्बन्धों के सहारे से कोई संदेश एक व्यक्ति से दूसरे, दूसरे से तीसरे और इसी प्रकार बहुत से लोगों के मध्य फैल जाता है। तो इस प्रकार के सम्प्रेषण को अनौपचारिक संदेशवाहन कहते हैं। कुछ लोग उसे ‘अंगूरीलता’ (grapewine) की संज्ञा भी देते हैं।

(III) मौखिक एवं लिखित संदेशवाहन (Oral and Written Communication)

(a) मौखित सन्देशवाहन (Oral Communication)- जब दो व्यक्तियों या पक्षों मध्य सूचनाओं, संदेशों या तथ्यों का आदान-प्रदान लिखित रूप में न होकर मौखिक शब्दों के द्वारा होता है, तो उसे मौखिक संदेशवाहन के रूप में जाना जाता है।

मौखिक सम्प्रेषण के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं:

(1) प्रत्यक्ष वार्तालाप (Direct Conversation);

(2) भाषण (Speech);

(3) बातचीत (Discussions);

(4) रेडियो (Radio);

(5) टेलीविजन (T.V.);

(6) टेलीफोन (Telephone);

(7) सम्मेलन एवं सभाएं (Conference & Meetings);

(8) लाउडस्पीकर (Loudspeaker)

(b) लिखित संदेशवाहन (Written Communication)- जब किसी संदेश के सम्प्रेषण के लिए मौखिक शब्दों की अपेक्षा लिखित शब्दों का उपयोग किया जाता है तो उसे लिखित संदेशवाहन कहते हैं।

लिखित संदेशवाहन के प्रमुख साधन व उदाहरण निम्नलिखित है:

(1) संस्थागत पत्रिकाएं (House Magazines);

(2) कार्यालय बुलेटिन (Office Bulletin);

(3) कार्यालय हैण्डबुक (Office Handbook);

(4) कार्यालय डायरी (Office Diary);

(5) संगठन निर्देशिका (Organisation Manual);

(6) नीति पुस्तिकाएं (Policy Manual);

(7) कार्यविधि पुस्तिकाएं (Procedure Manual);

(8) सभाओं के सूक्ष्म (Minutes of Meetings)।

मौखिक बनाम लिखित संदेशवाहन (ORALVs. WRITTEN COMMUNICATION)

सामान्यतया संदेशवाहन या सम्प्रेषण की मौखिक विधि, लिखित विधि की तुलना में अधिक प्रयोग में लायी जाती है। मौखिक सम्प्रेषण के निम्न लाभ हैं:

(1) शीघ्रगामी (Quick)- मौखिक संदेशवाहन में लेखनी या छपाई की आवश्यकता नहीं पड़ती, अतः इसे तुरंत क्रियान्वित किया जा सकता है और इसमें अधिक व्यय भी नहीं करना पड़ता।

(2) सहयोग में वृद्धि (Increase in Co-operation)– मौखिक संदेशवाहन श्रोता को तुरंत जवाब देने का सुअवसर प्रदान करता है। इससे दोनों पक्षों के मध्य आपसी समझ व सहयोग में वृद्धि होती है।

(3) संदेहों का निवारण (Elimination of Doubs) – मौखिक सम्प्रेषण में संदेश देने वाला और प्राप्त करने वाला आमने-सामने होते हैं, अतः किसी बात पर यदि कोई असहमति या मन-मुटाव है तो उसका निवारण तुरंत वहीं कर दिया जाता है।

(4) प्रतिक्रिया की जानकारी (Knowledge of Reaction)– मौखिक संदेशवाहन में जब वक्ता और श्रोता आमने-सामने हों तो संदेश देने वाले को श्रोता के चेहरे तथा हाव-भाव से उस पर पड़ने वाली प्रतिक्रिया का तुरंत आभास हो जाता है और वह यदि उचित समझता है तो उस प्रतिक्रिया या विरोध को कम करने हेतु उपाय कर सकता है।

(5) अपनत्व की भावना (Sense of Belonging) – मौखिक सम्प्रेषण अधीनस्थों में यह भावना उत्पन्न करता है कि जब शीर्ष अधिकारी उनसे प्रत्यक्ष बात कर रहा है इसका मतलब है कि वह उन्हें अपना समझता है और उनका भी संस्था में एक स्थान है।

यद्यपि उपर्युक्त तथ्य मौखिक सम्प्रेषण की लिखित सम्प्रेषण के ऊपर श्रेष्ठता सिद्ध करते हैं, परन्तु फिर भी निम्न कारणों से लिखित सम्प्रेषण के महत्व को कम नहीं कर सकते:

(1) अधिक प्रभावपूर्ण (More Effective)- लिखित सम्प्रेषण अधिक निश्चित, स्पष्ट तथा कुलशतापूर्वक सम्पादित होता है। इसमें चार्ट, ग्राफ आदि का प्रयोग करके इसे अधिक मर्मस्पर्शी तथा प्रभावोत्पादक बनाया जा सकता है।

(2) कानूनी साक्ष्य (Legal Evidence)- लिखित सम्प्रेषण का एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसे रिकार्ड के रूप में सुरक्षित रखा जा सकता है और समय पर कानूनी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

(3) गौरविक सम्प्रेषण की कमजोरियां (Weaknesses of Oral Communication)- मौखिक सम्प्रेषण में कुछ ऐसी कमजोरियां हैं जो उत्तरदायी व्यक्तियों को लिखित सम्प्रेषण के लिए बाध्य करती हैं, जैसे :

(i) मौखिक सम्प्रेषण यदि एकदम प्रत्यक्ष नहीं है तो उसको बदलकर प्रस्तुत किया जा सकता है।

(ii) मौखिक सम्प्रेषण ऊपर से नीचे तक पहुंचते-पहुंचते लगभग अपना एक-तिहाई संदेश खो देता है, अतः उसका प्रभाव कम हो जाता है।

(iii) प्रत्यक्ष मौखिक सम्प्रेषण से अनावश्यक वाद-विवाद उत्पन्न सकता है जिससे अनुशासनहीता पनपती है और सम्प्रेषण का उद्देश्य नष्ट हो जाता है।

(iv) मौखिक सम्प्रेषण में संदेश की विश्वसनीयता संदेश देने वाले के व्यक्तित्व से प्रभावित होने का भय रहता है।

उपर्युक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष तो नहीं निकाल जा सकता है कि कौन-सी एक विधि दूसरी से श्रेष्ठ है, परन्तु यह कहा जा सकता है कि संदेश की प्रकृति, महत्व तथा अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही कोई एक विधि चुनी जाए।

व्यवसाय तथा प्रबन्ध में सम्प्रेषण (संदेशवाहन) का महत्व (IMPORTANCE OF COMMUNICATION IN BUSINESS AND MANAGEMENT)

प्रबन्ध में संदेशवाहन के महत्व एवं उपयोगिता का अनुमान निम्नलिखित बातों से लगाया जा सकता है :

(1) शीघ्र निर्णय एवं उसका कार्यान्वयन (Quick Decision and its Implementation)- संदेशवाहन की कुशल व्यवस्था होने पर विचार-विमर्श शीघ्रगामी और सुगम हो जाता है। इससे समस्याओं के तुरंत समाधान और शीघ्र निर्णय लेने में मदद मिलती है।

(2) प्रभावशाली समन्वय एवं नियंत्रण (Effective Co-ordination and Control)- एक अकुशल सम्प्रेषक एक बुरा प्रबन्धक होता है। समन्वय और नियंत्रण के लिए सुगम संदेशवाहन की आवश्यकता होती है। आधुनिक व्यवसाय में श्रम विभाजन, विशिष्टीकरण एवं विभागीकरण का बहुत प्रयोग होने लगा है। इससे समन्वय और नियंत्रण की आवश्यकता भी बढ़ गयी है। संदेशवाहन समन्वय और नियंत्रण को प्रभावशाली बनाने में सहायक है।

(3) न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन (Maximum Production at Minimum Cost)- प्रतिस्पर्द्धा के कारण व्यवसाय में वही फर्में सफल होती हैं जो न्यूनतम लागत पर अधिक- से अधिक उत्पादन करें। यह तभी सम्भव है जबकि उत्पादन निरंतर जारी रहे और नियोक्ता व कर्मचारी के मध्य मधुर सम्बन्ध बने रहें। एक सुव्यवस्थित संदेशवाहन की व्यवस्था प्रबन्धकों एवं अधीनस्थ कर्मचारियों व श्रमिक के मध्य संवाद की सतत् सम्भावना बनाए रखती है।

(4) प्रबन्ध में जनतांत्रिक मूल्यों का उपयोग (Use of Democratic Values in Management)- आधुनिक युग में जनतांत्रिक मूल्यों का उपयोग सिर्फ राजनीतिक व्यवस्था में ही नहीं होता, अपितु व्यावसायिक प्रबन्ध भी इससे अछूता नहीं है। प्रबन्ध में जनतांत्रिक मूल्यों व सिद्धांतों का समावेश कर्मचारियों एवं श्रमिकों के मनोबल को ऊंचा करता है। संदेशवाहन प्रत्येक वर्ग को सूचना प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान कर जनतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करता है।

निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि संदेशवाहन की प्रभावपूर्ण व्यवस्था व्यवसाय की कुशलता और उत्पादकता को मजबूत बनाती है। भारत जैसे विकासशील देश के औद्योगिक श्रमिकों के लिए तो यह और भी अधिक आवश्यक है क्योंकि उनके अपने सूचना स्रोत बहुत सीमित होते हैं।

सम्प्रेषण (संदेशवाहन) में बाधाएं (BARRIERS IN COMMUNICATION)

प्रभावशाली और कुशल संदेशवाहन में निम्नलिखित बाधाएं अवरोध उत्पन्न करती हैं-

(1) संगठित बाधाएं (Organisationa’ Barries)- जैसे-जैसे व्यवसाय का आकार बढ़ता जाता है, प्रबन्धकों और उनके अधीनस्थों के बीन प्रत्यक्ष सम्पर्क टूटता जाता है । संगठनों की यह विषम स्थिति सूचनाओं के प्रवाह में बड़ी बाधा है क्योंकि संदेशवाहन की लम्बी प्रक्रिया में संदेश दूषित हो जाता है। अनेक बार तो मूल संदेश अपना अर्थ ही खो बैठता है।

(2) पदों एवं स्थितियों में भिन्नता के कारण अवरोध (Barries as to Difference in Status and Position) – संस्था के सदस्यों में सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक आधार पर बहुत अन्तर होता है। इसके अलावा उनके हितों और लक्ष्यों में भी अन्तर पाया जाता है। यह अन्तर संदेशवाहन में अवरोध उत्पन्न करता है।

(3) भाषा सम्बन्धी अवरोध (Language Barriers)- भाषा संदेशवाहन का माध्यम होती है। प्रबन्धक को उसी भाषा में अधीनस्थों से संवाद करना चाहिए जिसे वे समझते हैं। अंग्रेजी भाषा एवं भारी-भरकम तकनीकी शब्दावली का प्रयोग संदेशवाहन को अवरुद्ध करता है।

(4) सुरक्षा का आवरण (Protective Screening) – पदों, स्थितियों और अधिकारों की भिन्नता के कारण, सुरक्षात्मक आइ या आचरण के लिए हर सदस्य तथ्यों को अपनी रक्षा और स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ करता है। एक अधीनस्थ अपने अधिकारी के समक्ष वही तथ्य प्रस्तुत करने का प्रयास करता है, जिसे उसका अधिकारी सुनना पसन्द करता है। अप्रिय बातों और तथ्यों को अक्सर छुपाया जाता है। इस प्रकार सुरक्षा का आवरण संदेशवाहन को दूषित कर देता है।

(5) अनुचित श्रवण की बाधाएं (Barriers to Improper Listening) – सफल संदेशवाहन के लिए ‘उचित श्रवण’ (Proper Listening) एक अनिवार्य तत्व है। सम्प्रेषक कितनी ही कोशिश क्यों न करे यदि संदेश प्राप्तकर्ता उचित ढंग से सुनेगा नहीं तो संदेशवाहन असफल हो जाएगा।

(6) भौगोलिक दूरी (Geographic Distance)- प्रेषक और प्रेषिती के बीच निकटता संदेशवाहन को सफल बनाती हैं और दोनों के मध्य दूरी से उसमें बाधा उत्पन्न हो जाती है।

(7) भावात्मक बाधाएं (Emotional Barriers)- कभी – कभी सम्प्रेषक और सम्प्रेषिती की भावनात्मक स्थिति में अन्तर होने के कारण दोनों एक-दूसरे की बात को नहीं समझते हैं।

(8) मानवीय सम्बन्ध सम्बन्धी बाधाएं (Barriers as to Human Relation)-  संगठन में काम करने वाले प्रबन्धकों, अधिकारियों व कर्मचारी श्रमिक वर्ग में अच्छे सम्बन्ध न होने से उनके मध्य होने वाला संदेशवाहन प्रदूषित हो जाता है। प्रबन्धक और अधीनस्थों के मध्य पूर्वाग्रह युक्त दृष्टिकोण पैदा हो जाता है।

प्रभावी सम्प्रेषण (संदेशवाहन) की विशेषताएं या तत्व (ESSENTIALS OR ELEMENTS OF EFFECTIVE COMMUNICATION)

प्रभावी संदेशवाहन से अभिप्राय उस स्थिति से है जबकि संदेशवाहन के उद्देश्य पूरे होते । हों। इस स्थिति में सम्प्रेषक और सम्प्रेषिती, दोनों की सक्रिय भूमिका जरूरी है। प्रभावी सन्देशवाहन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

(1) स्पष्ट एवं सरल अभिव्यक्ति (Clear and Simple Expression) – संदेशवाहन का उद्देश्य आपसी समझदारी को पैदा करना होता है। सम्प्रेषक को ऐसी स्पष्ट एवं सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो कि सम्प्रेषिती को आसानी से समझ में आती हो। क्लिष्ट, भारी-भरकम और तकनीकी शब्दावली का प्रयोग यथासम्भव नहीं करना चाहिए।

(2) प्रभावी ढंग से सुनना (Effective Listening) – संदेशवाहन में संदेशवाहक द्वारा की गई बातों ‘संदेश प्राप्तकर्ता को सावधानी, धैर्य और सतर्कता के साथ सुनना चाहिए। वस्तुतः प्रभावी ढंग से सुनना एक कला है। इसमें संदेशवाहक को भी हर सम्भव सहयोग प्रदान करना चाहिए।

(3) पारस्परिक सहयोग एवं विश्वास (Mutual Co-operation and Confidence)- सम्प्रेषक एवं सम्प्रेषिती, दोनों में पारस्परिक सहयोग एवं विश्वास की भावना होनी चाहिए और किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह (Prejudices) नहीं होने चाहिए। दोनों को एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।

(4) समुचित सम्प्रेषण तकनीक (Appropriate Transmission Technique) – संदेश को कितने ही अच्छे तरीके से तैयार किया गया हो, यदि सम्प्रेषण विधि या तकनीक अभद्र है तो इससे संदेश प्राप्त करने वाले के आत्म-सम्मान को ठेस लग सकती है। सम्प्रेषण की समुचित तकनीक सम्प्रेषक और सम्प्रेषिती के पदस्तर, अवसर तथा प्रचलित रीतियों पर निर्भर करती है।

(5) संदेशवाहन में निरंतरता (Continunity in Communication)- कभी-कभी विचारों के आदान-प्रदान की अपेक्षा निरंतर संदेशवाहन सदैव अच्छा माना जाता है। इससे गलतफहमियों के पैदा होने की सम्भावनाएं बहुत कम होती हैं।

(6) गतिप्रदायकों का उपयोग (Use of Expeditors) – जब प्रबन्धकों को यह आशा होती है कि कोई महत्वपूर्ण संदेश मार्ग में खो सकता है या दूषित हो सकता है, तो ऐसे गतिप्रदायकों (Expeditors) की नियुक्ति की जाती है जो सभी औपचारिकताओं को पूरा करते हुए और सभी अवरोधों को तोड़ते हुए संदेश की प्रगति को गति प्रदान करते हैं।

(7) अनुभूति इकाइयों का प्रयोग (Use of Sensing Units) – प्रबन्धकों को कुछ ऐसी अनुभूति इकाइयों और व्यक्तियों का भी उपयोग करना चाहिए जो कि ऐसी बातों की सूचना देते रहें जो उनके पास तक नहीं पहुंचतीं या उनसे जानबूझकर छुपाई जाती हैं।

(8) कार्य, शब्दों से अधिक जोर से बोलते हैं (Actions Speak Louder than Words) – सम्प्रेषण में यह भी देखा जाता है कि सम्प्रेषक की कथनी और करनी में कोई अन्तर तो नहीं है। इसलिए प्रबन्धक वर्ग को संदेशवाहन करते समय अपने कार्यों और व्यवहार की तुलना अपने संदेश और कथनों से करते रहना चाहिए। जब सम्प्रेषक वही कहता है जिसका वह स्वयं आचरण करता है उससे संदेशवाहन बहुत प्रभावशाली हो जाता है।

सम्प्रेषण के विभिन्न प्रकार

सम्प्रेषण के प्रकार निम्नलिखित हैं-

(a) संगठन संरचना के आधार पर

1. औपचारिक सम्प्रेषण – यदि सम्प्रेषक तथा सम्प्रेषिती के मध्य औपचारिक सम्बन्ध हो तो सम्प्रेषण को औपचारिक तरीके से लिखित रूप में प्रस्तुत किया जाता है। ऐसा सम्प्रेषण अधीनस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों के मध्य होता है।

2. अनौपचारिक सम्प्रेषण- सम्प्रेषक तथा सम्प्रेषिती में अनौपचारिक सम्बन्ध होने पर (जैसे दो समस्तरीय अधिकारी) संदेश अनौपचारिक रूप में भेजा जाता है।

(b) दिशा के आधार पर

1. अधोगामी सम्प्रेषण- जब सम्प्रेषण उच्च अधिकारियों की ओर से अपने अधीनस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों को किया जाता है तो यह अधोगामी सम्प्रेषण कहलाता है।

2. उपरिगामी सम्प्रेषण – यदि सम्प्रेषण अधीनस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों की ओर से उच्चाधिकारियों को किया जाता है तो इसे उपरिगामी सम्प्रेषण कहा जाता है।

3. क्षैतिज सम्प्रेषण – व्यावसायिक इकाई के विभागाध्यक्षों या समान स्तर के अलग- अलग अधिकारियों के बीच होने वाला सम्प्रेषण क्षैतिज सम्प्रेषण कहलाता है।

4. आरेखी या कर्णीय सम्प्रेषण- आरेखी सम्प्रेषण उन व्यक्तियों के बीच में होता है जो न तो एक ही विभाग के होते हैं न ही एक ही स्तर के होते हैं।

(c) अभिव्यक्ति की विधि के आधार पर

1. लिखित सम्प्रेषण – लिखित संदेश को लिखित शब्दों में अभिव्यक्त किया जाये तो यह लिखित सम्प्रेषण कहलाता है।

2. मौखिक सम्प्रेषण – यदि संदेश को वोले गये शब्दों द्वारा व्यक्त किया जाता है तो यह मौखिक सम्प्रेषण कहलाता है।

3. हाव-भाव या अशाब्दिक सम्प्रेषण – जब सम्प्रेषण को शरीर के अंगों के हाव-भाव के माध्यम से व्यक्त किया जाता है तो इसे अशाब्दिक सम्प्रेषण कहा जाता है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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