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अधिगम के गौण नियम | Secondary Laws of Learning in Hindi

अधिगम के गौण नियम | Secondary Laws of Learning in Hindi
अधिगम के गौण नियम | Secondary Laws of Learning in Hindi

अधिगम के गौण नियम (Secondary Laws of Learning)

अधिगम के गौण नियम निम्नलिखित हैं-

1) बहु अनुक्रिया का सिद्धान्त (Law of Multiple Response) — जब कोई उद्दीपक जीव को उत्तेजित करता है तो वह सन्तुष्टि प्राप्त करने के लिए उसी प्रकार की अनुक्रियाएँ करता है। सही अनुक्रिया के पूर्व बहुत सी अनुक्रियाएँ होती हैं जिनमें अनेक निरर्थक होती हैं। यदि वह बहुत सी निरर्थक अनुक्रिया नहीं करेगा तो वह सही अनुक्रिया करना भी नहीं सीख सकता। बहु अनुक्रिया के नियम के अनुसार अधिगम के विभिन्न उपायों और विधियों की खोज में अधिगमकर्ता का प्रयास उसी त्रुटियों में सुधार करता है। अधिगमकर्ता को इस नियम के अनुसार अधिगम हेतु पर्याप्त अवसर देना चाहिए जिससे वह कम से कम निरर्थक प्रयास करे :

2) मानसिक स्थिति अथवा मनोवृत्ति का नियम (Law of Mental set-up or Attitude) — अधिगम को मानसिक स्थिति अथवा मनोवृत्ति अत्यधिक प्रभावित करते हैं। अनुकूल मनोवृत्ति के कारण तत्परता आती है। यदि अधिगमकर्ता में अनुकूल अधिगम की मनोवृत्ति नहीं होती तो वह अधिगम नहीं कर सकता है। थार्नडाइक के अनुसार व्यक्ति किसी उददीपक के प्रति किस प्रकार प्रतिक्रिया करेगा यह उसके समाज से समायोजन करने से पूर्व अनुभवों, उसके विचार, संस्कृति आदि पर निर्भर करता है। इस प्रकार यह नियम यह बताता है कि शिक्षण क्रिया से पूर्व बालक को अधिगम हेतु मानसिक रूप से तैयार होना आवश्यक है।

3) तत्वों की पूर्व समर्थता का सिद्धान्त (Law of Prepotency of Element ) – इस नियम का दूसरा नाम अनुक्रिया का नियम भी है। इसके अनुसार अधिगमकर्ता समस्यात्मक परिस्थिति के सभी तत्वों के प्रति अनुक्रिया न करके कुछ चुने हुए तत्वों से ही अनुक्रिया कर सकता है। जिन स्थितियों के प्रति अधिगमी अनुक्रिया कर सकने में समर्थ होता है उसे समर्थता का तत्व कहते हैं। यह समर्थता तत्व अधिगमी में पहले से विद्यमान रहता है। इन्हीं तत्वों के आधार पर वह प्रतिक्रिया करता है। इन तत्वों की पहचान अधिगमकर्ता की बुद्धि पर निर्भर होती है।

4) सादृश्यता द्वारा अनुक्रिया का नियम (Law of Response by Analogy) – इसका अर्थ यह है कि अनुक्रिया दो परिस्थितयों, समानता और सादृश्यता के आधार पर होती है। इसमें पूर्व ज्ञान या पूर्व अनुभव का उपयोग नवीन अधिगम परिस्थितियों में कर लिया जाता है। यहाँ पर अन्तरण का सिद्धान्त कार्य करता है। जब किसी ज्ञान अथवा अनुभव को धारण अथवा आत्मसात कर लिया जाता है तो किसी दूसरी या नवीन अधिगम परिस्थिति में उसका अन्तरण सरलता से किया जा सकता है। इसीलिए इसे आत्मीकरण का नियम भी कहते हैं। इसमें बालक को यह ध्यान रखना चाहिए कि वर्तमान में उसे जो कुछ भी सिखाया जा रहा है, भविष्य में वह उसके अधिगम हेतु सहायक होगा तथा यह उसे यह अनुभव कराएगा कि यह इस ज्ञान के सम्बन्ध में बहुत कुछ जानता है। इसके द्वारा वह पूर्व ज्ञान का नवीन ज्ञान से सम्बन्ध स्थापित कर अधिगम को सरल बनाता है।

5) साहचर्य परिवर्तन का नियम (Law of Associative Change) – साहचर्य परिवर्तन के नियम में अधिगमकर्ता की अनुक्रिया का स्थान परिवर्तित होता है, स्थान पूर्व तथा पश्चात् की परिस्थिति के रूप में होता है जिसमें समानता होती है। यदि अधिगमकर्ता को नवीन ज्ञान के प्रदान करते समय वही परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी जाएँ, जो इसके पूर्व अधिगम के समय विद्यमान थी तो अधिगमी पूर्व के अनुसार ही प्रतिक्रिया करेगा। पूर्व एवं नवीन स्थितियों में इस प्रकार की समानता स्थापित करना ही साहचर्य परिवर्तन कहलाता है। इस प्रकार प्रयास यह होना चाहिए कि अधिगम से पूर्व सहचरी परिस्थितियों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे अधिगमकर्ता अपने ज्ञान के स्थान का परिवर्तन कर सके।

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Anjali Yadav

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