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आयगत व्यय के कुछ अपवाद | Some Exceptions of Revenue Expenditure in Hindi

आयगत व्यय के कुछ अपवाद | Some Exceptions of Revenue Expenditure in Hindi
आयगत व्यय के कुछ अपवाद | Some Exceptions of Revenue Expenditure in Hindi

आयगत व्यय के कुछ अपवाद (Some Exceptions of Revenue Expenditure)

कुछ व्यय आमतौर पर आयगत व्यय ही दिखायी देते हैं जैसे- मजदूरी, कच्चा माल और स्टोर्स, तुलाई और भाडा, मरम्मत एवं नवकरण, वैधानिक व्यय, विज्ञापन, दलाली तथा मुद्रांक, विकास व्यय आदि परन्तु निम्न परिस्थितियों में ये आयगत व्यय पूँजीगत व्यय में माने जाते हैं-

(1) कच्चा माल तथा स्टोर्स (Raw Material and Stores) – उस कच्चे माल तथा स्टोर्स का मूल्य जो एक स्थायी सम्पत्ति के निर्माण तथा संस्थापन (Installation) में व्यय होता है, पूँजीगत व्यय समझा जाता है। इसलिए इस व्यय को उस सम्पत्ति खाते से डेबिट कर दिया जाता है।

(2) मजदूरी तथा वेतन (Wages and Salaries) – साधारणतः यह आयगत व्यय माना जाता है परन्तु जब व्यापार में काम करने वाले कर्मचारी किसी सम्पत्ति के निर्माण में काम करते हैं। तो उनकी मजदूरी तथा वेतन उस सम्पत्ति खाते में डेबिट कर दी जाती है और यह एक पूँजीगत व्यय कहलाता है।

(3) ढुलाई तथा भाड़ा (Carriage and Freight) – साधारणतः यह एक आयगत व्यय है परन्तु जब किसी स्थायी सम्पत्ति के क्रय पर दुलाई व भाड़ा अदा किया जाता है तो व्यय को सम्पत्ति खाते में डेबिट कर देते हैं।

(4) मरम्मत तथा नवीनीकरण (Repairs and Renewals) – यह एक आयगत व्यय माना जाता है। परन्तु जब कोई पुरानी मशीन या पुराना मकान खरीदकर उसे प्रयोग में लाने योग्य बनाने के लिए उसकी मरम्मत तथा सुधार पर व्यय किया जाता है तो यह व्यय उस सम्पत्ति की कुल लागत का एक अंग बन जाता है क्योंकि इस व्यय से एक बेकार सम्पत्ति की उपयोगिता बढ़ जाती है। इसलिए ऐसे मरम्मत तथा नवीनीकरण व्यय को उस सम्पत्ति खाते में डेबिट करना चाहिए।

(5) वैधानिक व्यय तथा आर्कटिक्ट की फीस (Legal Charges and Architect’s Fees)—साधारणत· इन्हें आयगत व्यय जाना जाता है परन्तु किसी सम्पत्ति के क्रय के सम्बन्ध में चुकाए गए वैधानिक व्यय तथा आर्कीटेक्ट की फीस पूँजीगत खर्च माने जाते हैं और इससे उस सम्पत्ति की लागत बढ़ जाती है।

(6) दलाली, स्टाम्प खर्च तथा एडवोकेट फीस (Brokerage Stamp duty and Advocate Fees) – इन व्ययों को आयगत व्यय समझा जाता है परन्तु किसी सम्पत्ति के क्रय के सम्बन्ध में यदि दलाली, है स्टाम्प खर्च तथा ऐडवोकेट फीस दी जाती है तो इन्हें उस सम्पत्ति खाते में डेबिट करना चाहिए क्योंकि इनसे उस सम्पत्ति की लागत बढ़ जाती है।

(7) विकास व्यय (Development Expenditure ) – रबर तथा चाय के बागानों, खानों तथा जनोपयोगी संस्थाओं (Public Utilities) में प्रारम्भिक व्यय बहुत अधिक करने पड़ते हैं और अनेक वर्षों तक कोई लाभ नहीं होता है। अतएव उस समय तक सभी लाभगत व्यय विकास खाता (Development Expenditure A/c) में डेबिट करते रहते हैं जब तक वे लाभ अर्जित नहीं करने लगते हैं, तो इस खाते को थोड़ा-थोड़ा लाभ-हानि खाते में अपलिखित (Write-off) करते जाते हैं जिससे आगे चलकर विकास खाता समाप्त कर दिया जाए।

(8) विज्ञापन ( Advertising) – साधारणतः बिक्री बढ़ाने के लिए किया गया विज्ञापन पर व्यय आयगत व्यय माना जाता है, परन्तु जब कोई संस्था अपना व्यापार करते समय अपनी ख्याति फैलाने में बहुत अधिक धन विज्ञापन में व्यय करती है तो उसे पूँजीगत व्यय माना जाता है और संस्था के चिट्ठे में सम्पत्ति पथ में दिखाया जाता है तथा आगामी वर्षों में थोड़ी-थोड़ी रकम लाभ हानि खाते में अपलिखित करते जाते हैं।

(9) निम्नांकित व्यय देखने में आयगत व्यय मालूम पड़ते हैं परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से इन्हें पूँजीगत व्यय माना जाता है क्योंकि ये व्यवसाय के निर्माण तथा कुशल संचालन से सम्बन्धित हैं।

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Anjali Yadav

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