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कोषों के स्रोत | कोषों का अनुप्रयोग | कोषों के प्रमुख उपयोग

कोषों के स्रोत | कोषों का अनुप्रयोग | कोषों के प्रमुख उपयोग
कोषों के स्रोत | कोषों का अनुप्रयोग | कोषों के प्रमुख उपयोग

कोषों के स्रोत (Sources of Fund )

(1) अंश पूँजी का निर्गमन (Issue of Share Capital) – अगर रोकड़ के प्रतिफल में समता अंश या पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन हुआ है, तो रोकड़ के रूप में चालू सम्पत्ति में वृद्धि होती है और इसके परिणामस्वरूप कार्यशील पूँजी में भी वृद्धि होती है। अतः इसे कोषों के स्रोतों में शामिल किया जाता है, किन्तु कभी-कभी अंशों का निर्गमन गैर रोकड़ मद में भी किया जाता है, जैसे-

(अ) स्थायी सम्पत्तियों को क्रय करने के फलस्वरूप अंशों का निर्गमन (ब) बोनस अंशों का निर्गमन (स) ऋणपत्रधारियों को उनके ऋणपत्रों का अंशों में परिवर्तन (द) आंशिक दत्त अंशों को पूर्ण दत्त करने के लिए लाभों का प्रयोग ।

ये सब ऐसी परिस्थितियाँ हैं, जो कार्यशील पूँजी को प्रभावित नहीं कर पाती है। अतः इन परिस्थितियों में अंशों के निर्गमन को स्रोतों के रूप में शामिल नहीं किया जाता है। ठीक इसी प्रकार अगर अंशों को प्रीमियम पर निर्गत किया गया है और प्रतिफल में रोकड़ की प्राप्ति हुई है, तो इसे भी कोषों का स्रोत माना जायेगा, क्योंकि रोकड़ की वृद्धि से कार्यशील पूँजी में वृद्धि होगी, किन्तु अगर प्रीमियम की राशि अन्य रूप में है, तो ऐसी स्थिति में यह भी कोष के स्रोत में शामिल नहीं होगा। दूसरी ओर अगर इन अंशों का कटौती पर निर्गमन किया गया है, तो ऐसी परिस्थिति में अंशों के अंकित मूल्य की राशि स्रोत नहीं मानी जायेगी, बल्कि कटौती घटाने के बाद जो राशि रोकड़ के रूप में प्राप्त होगी, उसे स्रोत में शामिल किया जायेगा।

(2) ऋणपत्रों का निर्गमन (Issue of Debentures) – अंशों की तरह ही ऋणपत्रों का निर्गमन भी कोषों के स्रोत में शामिल किया जाता है, बशर्तें इनका भी निर्गमन रोकड़ के प्रतिफल में हुआ हो। रोकड़ के प्रतिफल में निर्गमन के फलस्वरूप चालू सम्पत्तियों में वृद्धि होगी एवं कार्यशील पूँजी भी बढ़ेगी। यह स्रोत माना जायेगा। अगर इन ऋणपत्रों को भी प्रीमियम पर निर्गत किया गया है एवं प्रीमियम की राशि भी नकद है, तो यह प्रीमियम भी स्रोत होगा। अगर इन ऋणपत्रों को भी कटौती पर निर्गत किया गया है, तो ऐसी स्थिति में कटौती घटाने के बाद जो शुद्ध राशि की प्राप्ति हुई है; उसे स्रोत में शामिल किया जायेगा, न कि अंकित मूल्य को। अगर ऋणपत्रों को रोकड़ के अलावा किसी अन्य प्रतिफल के बदले में निर्गमित किया गया है और इसमें कार्यशील पूँजी प्रभावित नहीं हो रही है, तो ऐसी स्थिति में इन्हें स्रोत में शामिल नहीं किया जायेगा।

(3) संचालन से कोष (Fund from Operation)- व्यवसाय की परिचालन क्रियाओं (Operating Activities) के कारण जो कोष का निर्माण हो रहा है, वह एक आन्तरिक स्रोत है। इसे कोषों के स्रोत के रूप में शामिल किया जाता है। कभी-कभी विपरीत स्थिति भी उत्पन्न होती है। अर्थात संचालन क्रियाओं के कारण कोष में हानियाँ भी होती हैं। इसे कोष बर्हिगमन के रूप में लिया जाता है।

(4) दीर्घकालीन ऋणों की प्राप्ति तथा जनता से जमा (Raising of Long Term Loan and Public Deposit)- यदि बैंक या अन्य वित्तीय संस्थाओं से दीर्घकालीन ऋण रोकड़ के रूप में लिये जा रहे हैं या जनता से दीर्घकालीन जमा स्वीकार किया जा रहा है, तो इससे भी चालू सम्पत्ति में वृद्धि होती है एवं कार्यशील पूँजी प्रभावित होती है। इसे भी कोषों को स्रोत माना जाता है, किन्तु अगर दीर्घकालीन ऋण का सृजन किसी स्थायी सम्पत्ति के प्रतिफल में हुआ इससे कार्यशील पूँजी बिल्कुल प्रभावित नहीं हो पायेगी एवं यह स्रोत नहीं माना जायेगा। है तो

(5) स्थायी सम्पत्तियों एवं दीर्घकालीन विनियोगों की बिक्री (Sale of Fixed Assets and Long Term Investment)- यदि स्थायी सम्पत्तियों, जैसे भवन, मशीन, फर्नीचर आदि एवं दीर्घकालीन विनियोगों की बिक्री रोकड़ के प्रतिफल में की जा रही है, तो इससे भी चालू सम्पत्ति में वृद्धि होती है और कार्यशील पूँजी भी इससे बढ़ती है। अतः इन्हें कोषों के स्रोत में शामिल किया जाता है, परन्तु यदि एक स्थायी सम्पत्ति का विनिमय (Exchange) दूसरी स्थायी सम्पत्ति के साथ हुआ है, तो ऐसी स्थिति में कार्यशील पूँजी प्रभावित नहीं हो पायेगी एवं इसे स्रोत नहीं माना जायेगा।

(6) गैर व्यापारिक प्राप्तियाँ (Non Trading Incomes or Receipts)- अधिकांश ऐसी प्राप्तियाँ हैं, जो व्यवसाय की परिचालन क्रियाओं से उत्पन्न नहीं होती है, जबकि वे रोकड़ के रूप में प्राप्त होती हैं। इन्हें संचालन से कोष के अन्तर्गत भी शामिल नहीं किया जाता है, जैसे अन्य कम्पनियों से लाभांश की प्राप्ति, अग्रिम कर की वापसी, अग्रिम कर पर ब्याज आदि। चूँकि ये गैर व्यापारिक प्राप्तियाँ भी रोकड़ के रूप में चालू सम्पत्तियों को प्रभावित करती हैं, अतः ये भी स्रोत के रूप में शामिल होते हैं।

(7) कार्यशील पूँजी में ह्रास (Decrease in Working Capital) – यदि गत वर्ष की तुलना में वर्तमान वर्ष में कार्यशील पूँजी में कमी आती है, तो इसे भी स्रोत के रूप में शामिल किया जाता है। कार्यशील पूँजी की कमी इस बात को प्रदर्शित करती है कि उतनी पूँजी का प्रयोग कोष के स्रोत के रूप में हुआ है।

कोषों का अनुप्रयोग (Application of Fund)

कोषों का अनुप्रयोग निम्नलिखित मदों में होता है।

(1) पूर्वाधिकार अंशों का विमोचन (Redemption of Preference Shares)- यदि रोकड़ देकर पूर्वाधिकार अंशों का विमोचन किया गया है, तो रोकड़ के रूप में चालू सम्पत्ति का बर्हिगमन होता है एवं इससे भी कार्यशील पूँजी घटती है। अतः इसे कोषों का उपयोग माना गया है। अगर पूर्वाधिकार अंशों को प्रीमियम पर विमोचित किया गया है तो प्रीमियम की राशि भी प्रयोग मानी जायेगी। ठीक इसी तरह अगर कटौती पर विमोचन हुआ है, तो शुद्ध दत्त राशि को ही कोषों का प्रयोग माना जायेगा, न कि अंकित मूल्य को, किन्तु अगर अंशों का विमोचन किसी दूसरे प्रतिफल के द्वारा किया गया है जिससे कार्यशील पूँजी बिल्कुल ही प्रभावित नहीं है तो इसे कोष का प्रयोग नहीं माना जायेगा।

(2) ऋणपत्रों का विमोचन (Redemption of Debentures) – पूर्वाधिकार अंशों की तरह ही अगर ऋणपत्रों का विमोचन रोकड़ के प्रतिफल में हुआ है, तो इसे कोष के प्रयोग में शामिल करेंगे, क्योंकि इससे कार्यशील पूँजी प्रभावित होगी, किन्तु अगर किसी अन्य किसी प्रतिफल से विमोचन हुआ है जिस कारण कार्यशील पूँजी प्रभावहीन है, तो यह विमोचन कोष का प्रयोग नहीं माना जायेगा।

(3) संचालन में लुप्त कोष (Fund lost in Operation)- व्यवसाय की परिचालन क्रियाओं के कारण किसी वर्ष व्यवसाय की हानि भी हो सकती हैं, जिससे व्यवसाय के कोष में कमी आती है। ऐसी स्थिति में यह भी अप्रत्यक्ष रूप से कोष का प्रयोग माना जाता है।

(4) दीर्घकालीन ऋणों का भुगतान (Payment of Long Term Loans) – यदि दीर्घकालीन ऋणों का भुगतान रोकड़ के प्रतिफल में हुआ है, तो इसे कोष का प्रयोग माना जायेगा, किन्तु अन्य प्रतिफल में भुगतान हुआ है और इससे कार्यशील पूँजी नहीं है, तो यह कोष के प्रयोग में शामिल नहीं होगा।

(5) स्थायी सम्पत्तियों का क्रय (Purchase of Fixed Assets) – यदि स्थायी सम्पत्ति का क्रय रोकड़ देकर हुआ है, तो इससे चालू सम्पत्ति में कमी आयेगी एवं यह कोष का प्रयोग होगा, किन्तु अन्य प्रतिफल में अगर स्थायी सम्पत्तियों का क्रय किया गया है, तो इसे कोष के प्रयोग में शामिल नहीं किया जायेगा।

(6) कर एवं लाभांश का भुगतान (Payment Tax and Dividend) – कर एवं लाभांश का भुगतान भी कोष का प्रयोग माना जाता है, क्योंकि इससे भी रोकड़ में कमी आती है एवं कार्यशील पूँजी प्रभावित होती है, किन्तु कभी-कभी लाभांश के प्रतिफल में भुगतान किया जाता है। यह कोष का प्रयोग नहीं माना जायेगा, क्योंकि यह कार्यशील पूँजी को प्रभावित नहीं कर पाता है।

(7) कार्यशील पूँजी में वृद्धि ( Increase in Working Capital) – कार्यशील पूँजी में वृद्धि को भी कोष का प्रयोग माना गया है, क्योंकि कार्यशील पूँजी में वृद्धि चालू सम्पत्तियों में वृद्धि या चालू दायित्व में कमी के कारण होती है। दोनों ही स्थितियों में कोष का प्रयोग होता है।

कोषों के प्रमुख उपयोग (Uses of Funds)

कोषों के प्रमुख उपयोग निम्न वर्णित है-

(1) अधिमान अंशों का शोधन एवं समता अंशों का पुनः क्रय (Redemption of Preference Shares and Buyback of Equity Shares) – यदि शोधनीय अधिमान अंशों का शोधन या समता ‘अंशों का पुनः क्रय नकद या चालू सम्पत्ति से किया गया हो तो यह कोषों का उपयोग होगा, क्योंकि इससे कार्यशील पूँजी में कमी होती है। यदि शोधनीय अधिमान अंशों का शोधन अथवा समता अंशों का पुनः क्रय इस हेतु बनाये गये किसी कोष से किया गया है तो यह कोषों का उपयोग नहीं होगा, क्योंकि ऐसी स्थिति में कार्यशील पूँजी अप्रभावित रहती है।

(2) दीर्घकालीन ऋणों का पुनः भुगतान तथा ऋणपत्रों का शोधन (Repay- ment of Long-term Loans and Redemption of Debentures) – दीर्घकालीन ऋणों के पुनः भुगतान तथा ऋणपत्रों के शोधन पर भुगतान की गयी शुद्ध राशि से कार्यशील पूँजी कम हो जाती है। अतः यह कोषों का उपयोग है। यह ध्यान देने योग्य है कि यदि इन ऋणों का भुगतान इस हेतु बनाये गये किसी कोष; जैसे- ऋणपत्र शोधन कोष (Debenture Redemption fund) आदि से किया गया है तो कोषों का उपयोग नहीं होगा, क्योंकि ऐसी स्थिति में कार्यशील पूँजी अप्रभावित रहेगी।

(3) क्रियाशील हानि (Operating Losses) – जिस प्रकार क्रियाशील लाभ कोषों का स्रोत होते है। ठीक इसके विपरीत क्रियाशील हानि कोषों का उपयोग होती है, क्योंकि इसके फलस्वरूप कोष व्यवसाय से बाहर जाते हैं।

(4) स्थायी संपत्तियों तथा दीर्घकालीन विनियोगों का क्रय (Purchase of Fixed Assets and Long-term Investments) – स्थायी संपत्ति जैसे भूमि एवं भवन प्लान्ट एवं मशीनरी, फर्नीचर तथा दीर्घकालीन विनियोगों आदि के क्रय करने से कार्यशील पूँजी में कमी होती है, अतः ये कोषों के उपयोग होते हैं। यदि स्थायी संपत्तियों या दीर्घकालीन विनियोगों का क्रय अन्य किसी स्थायी संपत्ति या दीर्घकालीन विनियोगों के बदलें किया गया है या दीर्घकालीन दायित्वों के बदले (जैसे अंश पूँजी निर्गमित करके या ऋणपत्र निर्गमित करके) किया गया है तो इससे कोष प्रवाह नहीं होगा, क्योंकि ऐसी स्थिति में कार्यशील पूँजी अप्रभावित रहेगी।

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Anjali Yadav

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