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परीक्षा प्रणाली में सुधार के लिए ढाँचा (Structure of Examination System Reform)
विभिन्न स्तरों पर परीक्षा प्रणाली में सुधार के लिए सरकार ने शिक्षा विभाग को एक अन्तर संस्था कमेटी के गठन का सुझाव दिया था, जिसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT), अखिक भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) एवं राज्यों के माध्यमिक शिक्षा बोडों के प्रतिनिधि सम्मिलित होंगे। इस संरचना से आशा थी कि दिसम्बर 1993 तक वह अपना कार्य पूर्ण कर लेगी। इस स्तर पर यद्यपि ढाँचे की विशिष्टताओं का निर्धारण नहीं किया जा सका परन्तु इसने सुधार के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए-
1) प्राथमिक स्तर (Primary/Elementary Level)- भाषा, गणित एवं पर्यावरणीय अध्ययन कक्षा I-V तक न्यूनतम अधिगम स्तर (MLLS) विकसित किया जाएगा। इसी तरह से प्राथमिक स्तर पर अभ्यास के लिए पाठ्यक्रम विकसित किए जाऐंगे। इस न्यूनतम अधिगम स्तर को प्रत्येक राज्य की सम्बन्धित एजेंसियों द्वारा अपनाया जाएगा इससे भी स्थानीय परिस्थितियों का विशेष ध्यान रखना होगा। इस स्तर पर मूल्यांकन की प्रकृति नैदानिक होगी जिससे छात्रों की सुधारात्मक सहायता की जा सके।
प्रत्येक राज्य में सम्बन्धित एजेंसी सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की लचीली योजना तैयार करेगी जिससे विशेष रूप से मूल्यांकन, अध्यापन एवं अधिगम का अभिन्न भाग बन सके। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में विद्यार्थियों के संज्ञानात्मक, भावात्मक एवं ज्ञानात्मक क्षेत्र के विकास को सम्मिलित किया जाएगा। सम्बन्धित एजेंसी को प्रत्येक राज्य में इन मूल्यांकनों की पारदर्शिता, विश्वसनीयता, वैधता एवं वस्तुनिष्ठता को निश्चित करने के लिए उपयुक्त प्रक्रिया का निश्चय करना होगा।
2) माध्यमिक स्तर (Secondary Level) – पाठ्यक्रम विषयों में उपलब्धि के स्तर को विशिष्टकरण, सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की लचीली योजना के लिए मूल्यांकन अभिकल्प तैयार करना तथा चरणबद्ध रूप में सेमेस्टर प्रणाली को माध्यमिक स्तर पर लागू करना।
प्रत्येक राज्य IX से XII कक्षाओं की उपलब्धि के स्तर सम्भावित स्तरों को सुनिश्चित करेगा और इन स्तरों को प्राप्त करने के लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम को निर्धारित करना।
राष्ट्रीय शैक्षिक एवं अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने इसके लिए कुछ प्रारुप तैयार किए हैं। जिनकी सहायता राज्य एवं अन्य शैक्षिक एजेंसियाँ ले सकती हैं।
3) उच्च या विश्वविद्यालय स्तर (High or University Level)- सभी विश्वविद्यालयों के स्नातकोत्तर विभागों में सेमेस्टर पद्धति ग्रेडिंग, सतत् मूल्यांकन एवं क्रेडिट पद्धति को लागू करना। इसके साथ ही उच्च शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए परीक्षा (Test) को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) तथा राज्य सरकारों द्वारा प्रोत्साहित किया जाएगा।
राष्ट्रीय मूल्यांकन संगठन (National Evaluation Organisation) की सेवाएँ सहायता विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा प्रवेश परीक्षा एवं अभिकल्प में ली जा सकती है।
4) उच्च तकनीकी एवं व्यावसायिक स्तर (The Higher Technical and Professional Level)- प्रत्येक विश्वविद्यालय द्वारा विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं के मूल्यांकन के लिए निर्देश तैयार करना, बाहृय परीक्षाओं के स्थान पर संस्थागत आन्तरिक मूल्यांकन एवं प्रवेश के लिए सम्पूर्ण देश में परीक्षण कार्यक्रम (All India Testing Programmes) तथा तकनीकी पाठ्यक्रम को तैयार करना।
5) समस्त स्तरों के लिए रणनीतियाँ (Strategies for All Level)-प्रत्येक स्तर पर छात्रों के विकास एवं अधिगम के लिए स्मृति की अपेक्षा उच्च क्षमताओं की समझ, उपयोग, विश्लेषण, संश्लेषण, निर्णय एवं समानान्तर मानकों (Parameters) का निर्माण करना।
माध्यमिक स्तर पर सेमेस्टर प्रणाली लागू करने के साथ-साथ कुछ आवश्यक परिवर्तन भी किए जाएंगे जो निम्नलिखित हो सकते हैं-
1) पाठ्यचर्या में लचीलापन ।
2) क्रेडिट का संचय जिससे विद्यार्थी / छात्र अपना स्वाभाविक विकास कर सकें।
3) परीक्षा प्रणाली में सुधार के लिए इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) द्वारा दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से राष्ट्रीय शैक्षिक एवं अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के साथ मिल कर उपयुक्त पाठ्यचर्या का विकास किया जाएगा।
4) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में एक परीक्षा प्रणाली सुधार केन्द्र स्थापित किया जाएगा जिससे विभिन्न स्तरों में समन्वय स्थापित किया जा सके। NCERT विद्यालय स्तर पर यही कार्य करेगी।
वर्तमान परीक्षा प्रणाली के क्षेत्र एवं सीमाएँ (Scope and Limitations of the Present Examination System)
हमारे देश में वाह्य एवं आन्तरिक दोनों ही प्रकार की परीक्षाओं का प्रारुप एक-सा ही है। दोनों प्रकार की परीक्षाओं में मुख्यतः विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि का परीक्षण करना है। यह विद्यार्थियों के अन्य पक्षों के विकास का परीक्षण नहीं करती हैं।
बीसवीं शताब्दी में शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों का विस्तार हुआ है परन्तु विद्यालयों का सम्बन्ध केवल शैक्षिक या बौद्धिक विकास तक सीमित रह गया है। छात्रों का सामाजिक, नैतिक, शारीरिक एवं व्यावहारिक विकास किस प्रकार से होगा इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं रह गया है। यदि परीक्षाओं को वास्तव में मूल्यवान बनाना है तो उन्हें नवीन तथ्यों पर ध्यान देना होगा तथा छात्रों के चतुर्मुखी विकास का परीक्षण करना होगा।
वर्तमान समय में परीक्षाओं की वैधता और विश्वसनीयता पर भी प्रश्न चिह्न लगा हुआ है। वर्तमान परीक्षा प्रणाली में निबन्धात्मक प्रश्नों के कारण परीक्षक की आत्मनिष्ठता (Subjectivity) उसमें शामिल हो जाती है जिससे परीक्षा की विश्वसनीयता प्रभावित होती है। इससे छात्रों की बौद्धिक उपलब्धि का ठीक से मूल्यांकन नहीं हो पाता है।
परीक्षा प्रणाली का शिक्षा पर प्रभाव (Effect of the Examination System on Education)
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था अभी भी काफी हद तक छात्रों की बौद्धिक उपलब्धि को ही महत्त्व देती है। इसके परिणाम स्वरूप सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली प्रभावित होती है। इससे परीक्षा प्रणाली भी प्रभावित होती है। परीक्षा न केवल शिक्षा की सामग्री का निर्धारण करती है वरन् यह शिक्षण विधियों का भी निर्धारण करती है। इससे सम्पूर्ण विद्यालय प्रभावित होता है।
इससे केवल विद्यार्थी ही नहीं बल्कि शिक्षक भी प्रभावित होते हैं। शिक्षक के लिए परीक्षा प्रणाली अनेक समस्याओं का सरल हल प्रदान करती है। शिक्षा के अच्छे परिणामों को तत्काल मापना सम्भव नहीं है क्योंकि ये अत्यन्त जटिल प्रक्रिया है।
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