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योजना के प्रकार | Types of Plans in Hindi

योजना के प्रकार | Types of Plans in Hindi
योजना के प्रकार | Types of Plans in Hindi

योजना के प्रकार (TYPES OF PLANS)

योजना के प्रकार- सामान्यतया आधुनिक उपक्रमों में लागू योजनाओं को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है:

(1) समय के आधार पर- समय के आधार पर योजनाओं को दो भागों में वांटा जा सकता है:

(अ) दीर्घकालीन योजना- यह सामान्यतया एक वर्ष से अधिक अवधि की होती है। दीर्घकालीन योजना की अधिकतम अवधि उद्योग या कार्य की प्रकृति पर निर्भर करती है; जैसे निर्माणी उद्योगों में यह अवधि पांच या दस वर्ष हो सकती है लेकिन खनिज विदोहन, विद्युत सम्प्रेषण एवं आपूर्ति तथा बागान उद्योगों में यह अवधि पच्चीस या तीस वर्ष भी हो सकती है।

(ब) अल्पकालीन योजना- यह सामान्यतया एक वर्ष या उससे कम अवधि की होती है। यह एक सप्ताह, एक माह या तीन माह की भी हो सकती है। वास्तव में, जहां दीर्घकालीन योजना एक उपक्रम के विस्तार, विविधीकरण जैसी महत्वपूर्ण बातों से सम्बन्ध रखती है वहां अल्पकालीन योजना उत्पादन, विपणन तथा अन्य परिचालन कार्यों से सम्बन्ध रखती है।

(2) प्रबन्ध के स्तर के आधार पर- प्रबन्ध के स्तर के आधार पर योजनाओं को अग्रांकित तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है:

(अ) उच्च स्तरीय योजना- यह उपक्रम के सर्वोच्च प्रबन्ध द्वारा तैयार की जाती है और इसमें उपक्रम के प्रमुख लक्ष्य, उद्देश्य व नीतियां दी जाती हैं। यह योजना प्रबन्धकों का पथ-प्रदर्शन करती है।

(ब) मध्य-स्तरीय योजना- यह विभागीय प्रबन्धकों द्वारा अपने विभागों के लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बनाई होती है और प्रथम स्तरीय प्रबन्धकों तथा पर्यवेक्षकों को मार्गदर्शन प्रदान करती है।

(स) प्रथम-स्तरीय योजना- यह सामान्यतया प्रत्येक उपविभाग के अधीक्षकों तथा पर्यवेक्षकों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा दैनिक कार्यों का संचालन करने के लिए बनाई जाती है। सामान्यतया यह पाया गया है कि योजना बनाने में सर्वाधिक समय उच्च प्रबन्ध देता है, मध्य प्रबन्ध उससे कम तथा प्रथम स्तरीय प्रबन्ध सबसे कम समय देता है।

(3) उपयोग के आधार पर- उपयोग के अनुसार योजना दो प्रकार की हो सकती है:

(अ) स्थायी योजनाएं (Standing Plans) – इनमें सर्वोच्च प्रबन्ध द्वारा निर्धारित नीतियां, कार्यविधियां व नियम सम्मिलित किए जाते हैं, जिनके आधार पर प्रबन्ध उपक्रम के कार्यों का संचालन करते हैं। इनमें प्रबन्धकों के लिए मार्गदर्शक बातें निश्चित कर दी जाती हैं ताकि निर्णय लेने में बार-बार अपने वरिष्ठ प्रबन्धकों के पास न दौड़ें और उपक्रम स्वाभाविक रूप से अपने उद्देश्यों की ओर बढ़ता रहे।

(ब) एकल उपयोग योजनाएं (Single use Plans)– इनमें बजट, प्रोग्राम तथा प्रोजेक्ट सम्मिलित किए जाते हैं। ये योजनाएं परिचालन कार्य से अधिक सम्बन्ध रखती हैं। ये विशिष्ट कार्यों को पूरा करने के लिए बनाई जाती हैं और एक बार ही प्रयोग में आती हैं, इनकी पुनरावृत्ति नहीं की जाती । उदाहरण के लिए, एक फर्म में किसी वर्ष की प्रथम छमाही का ब दूसरी छमाही के लिए प्रयोग में नहीं लाया जा सकता।

(4) महत्व के आधार पर – महत्व के आधार पर योजनाओं को निम्न तीन भागों में बांटा गया है:

(अ) रणनीतिक योजना (Strategic Planing)- इसके अन्तर्गत उच्च प्रबन्ध बाह्य वातावरण तथा आन्तरिक संसाधनों का आकलन करके लक्ष्य निर्धारित करता है तो उन्हें प्राप्त करने के लिए बहुविकल्पीय योजना बनाता है ताकि परिस्थितियों के अनुरूप उपयुक्त योजना लागू की जा सके।

(ब) युक्तिकुशल योजना (Tactical Planing)– यह मध्यस्तरीय प्रबन्ध द्वारा बनाई जाती है। इसमें रणनीतिक योजनाओं को वास्तविकता के सन्निकट लाया जाता है। मध्यस्तरीय प्रबन्ध आन्तरिक संसाधनों का सही आकलन करके मानवीय, वित्तीय एवं भौतिक संसाधनों को सर्वोपयुक्त मिश्रण इस दृष्टि से तैयार करता है जिससे कि संगठनात्मक लक्ष्य अत्यधिक कुशलतापूर्वक प्राप्त किए जा सकें।

(स) परिचालन नियोजन (Operating Planing)– यह नियोजन कार्य प्रथम-स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा किया जाता है। पर्यवेक्षक अपने-अपने क्षेत्रों में अल्पकालीन (सामान्यतया एक सप्ताह से एक वर्ष तक) योजनाएं बना लेते हैं। ये योजनाएं प्रत्येक कार्यात्मक क्षेत्र; जैसे उत्पादन, विक्रय, क्रय, वित्त आदि के लिए पृथक्-पृथक् बनाई जाती हैं और ये बजट आदि द्वारा निर्दिष्ट होती हैं।

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Anjali Yadav

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