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उपभोक्ता व्यवहार का अर्थ, परिभाषा, महत्व, प्रभावित करने वाले तत्व एवं विशेषताएँ

उपभोक्ता व्यवहार का अर्थ, परिभाषा, महत्व, प्रभावित करने वाले तत्व एवं विशेषताएँ
उपभोक्ता व्यवहार का अर्थ, परिभाषा, महत्व, प्रभावित करने वाले तत्व एवं विशेषताएँ

उपभोक्ता (क्रेता) व्यवहार का अर्थ (Meaning of Buyer (Consumer) Behaviour)

उपभोक्ता व्यवहार से आशय उपभोक्ताओं या क्रेताओं की क्रय आदतों, प्रवृत्तियों, क्रय ढंगों व क्रय प्रेरणाओं के अध्ययन से लगाया जाता है। दूसरे शब्दों में, किसी विशेष वस्तु को खरीदने से सम्बन्धित क्रेता की सम्पूर्ण निर्णय प्रक्रिया को ही उपभोक्ता या क्रेता का क्रय व्यवहार कहते हैं। मुनष्य प्रत्येक कार्य किसी न किसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए करता है। वह किसी वस्तु या सेवा का क्रय अपनी किसी विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करता है। विपणनकर्ता को यह अवश्य अध्ययन करना चाहिए कि उस संस्था की वस्तु उपभोक्ता क्यों, कब, किस प्रकार और कहाँ खरीदते हैं? उपभोक्ता के सम्बन्ध में इस प्रकार की जानकारी प्राप्त करना ही उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन कहलाता है।

उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन का महत्व (Importance of Consumer Behaviour)

उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन का महत्व निम्न तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है-

1. उत्पादन सम्बन्धी नीतियाँ (Production Policies)- उपभोक्ता अभिमुखी विचारधारा के अनुसार उन वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जिन्हें उपभोक्ता पसन्द करते हैं। अतः विपणनकर्ता को ही वे वस्तुयें उत्पन्न करनी चाहिए जो कि उपभोक्ताओं की रूचियों, आवश्यकतओं, आदतों, आय, फैशन आदि के अनुकूल हो । उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन के द्वारा ही वस्तुओं की विशेषताओं, गुणों आदि में वांछित परिवर्तन किये जा सकते हैं। अतः उत्पादन सम्बन्धी नीतियों में परिवर्तन के लिए उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन आवश्यक है।

2. मूल्य सम्बन्धी नीतियाँ (Price Policies)- उपभोक्ता व्यवहार वस्तु की कीमत को प्रभावित करता है। बहुत-सी वस्तुओं को उपभोक्ता इसलिए खरीदते हैं क्योंकि उनके उपभोग से उनका समाज में सम्मान बढ़ता है। ऐसी वस्तुओं का मूल्य प्रायः अधिक रखा जाता है। इसके विपरीत यदि उपभोक्ता वस्तुयें इसलिए खरीद रहे हैं, क्योंकि हमारी वस्तु के मूल्य से कम हैं, तो वस्तु के मूल्य प्रतिस्पर्धियों की वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि नहीं करनी चाहिए।

3. वितरण सम्बन्धी नीतियाँ (Distribution Policies)- उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन से पता लगाया जा सकता है कि उपभोक्ता वस्तु को कहाँ, किस स्टोर से, किस समय और किस प्रकार क्रय करते हैं। इनके आधार पर विपणनकर्त्ता वितरण वाहिकाओं का चयन कर सकता है, जैसे – सुविधाजनक वस्तुओं को अधिक से अधिक संख्या में विभिन्न दुकानों के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। ऐसी वस्तुयें जिनका मूल्य कम होता है और बार-बार क्रय किया जाता है उनको सरल एवं सुविधाजनक वितरण माध्यम से वितरित किया जाना चाहिए। इसके विपरीत, यदि वस्तु की कीमत अधिक है और उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन से पता चलता है कि वस्तु अच्छी विक्रयोपरान्त सेवा के कारण खरीदी जाती है तो संस्था को अपनी वस्तुओं का वितरण ऐसी विशिष्ट दुकानों के माध्यम से करना चाहिए जो ग्राहकों को आवश्यकतानुसार विक्रयोपरान्त सेवा प्रदान करती रहे। प्रायः ऐसी वस्तुओं की बिक्री के लिए संस्था को अपनी विक्रय शाखा या शोरूम खोलने चाहिए। इस प्रकार उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन से विपणनकर्ता वस्तु के वितरण माध्यम के सम्बन्ध में आसानी से निर्णय ले सकता है।

4. विक्रय संवर्धन सम्बन्धी नीतियाँ (Sales Promotion Policies)- उपभोक्ता की क्रय प्रेरणाओं का अध्ययन करके यह पता लगाया जा सकता है कि ग्राहक किन प्ररेणाओं से प्रेरित होकर वस्तु को खरीदते हैं। विपणनकर्ता अपने विज्ञापन कार्यक्रमों में इन प्रेरणाओं का प्रचार करके उपभोक्ताओं की भावनाओं को जाग्रत करते हैं। उदाहरण के लिए टॉनिक के विज्ञापन में स्फूर्ति, ताजगी, स्वास्थ्य सुधार, आदि प्रेरकों का सहारा लिया जाता है। इसके अतिरिक्त उपभोक्ताओं की क्रय प्रेरणाओं का अध्ययन करके विपणनकर्त्ता वस्तु के ब्राण्ड, पैकिंग छूट, उपहार सम्बन्धी निर्णय लेता है जिससे कि वस्तु की बिक्री आसानी से बढ़ायी जा सके। अतः विक्रय संवर्द्धन नीतियों को निर्धारित करने में उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन महत्वपूर्ण योगदान देता है।

उपभोक्ता व्यवहार का विश्लेषण या आकलन (Analysis or Evaluation of Consumer Behaviour)

उपभोक्ता व्यवहार का विश्लेषण करने के लिए हम निम्न बातों का अध्ययन करते हैं:-

(1) उपभोक्ता कब क्रय करते हैं? (When Consumers Buy?)

प्रबन्धक को सबसे पहले यह पता लगाना चाहिए कि उपभोक्ता वस्तु का कब क्रय करते हैं। यहाँ पर एक विपणन कब का अर्थ तीनों बातों से लगाया जाता है कि वह (क) किस मौसम में, (ख) सप्ताह के किस दिन (ग) दिन के किस समय क्रय करते हैं। इन तीनों का विपणन में काफी महत्व है। इन्हीं के अनुरूप विपणन प्रयत्नों को नियोजित किया जाता है। कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनकी माँग किसी खास मौसम में काफी होती है। जैसे शादी के मौसम में कपड़ों व गहनों की माँग, जाड़ों में चाय, काफी व ऊनी कपड़ों की माँग, गर्मियों में ठण्डे पेय पदार्थों की मांग आदि। एक विपणन प्रबन्धक को माँग की पूर्ति हेतु अपने उत्पाद, विक्रय व अन्य क्रियाओं में आवश्यक समायोजन करना चाहिए।

इसी प्रकार साधारणतया यह देखा जाता है कि नौकरी वर्ग के व्यक्ति छुट्टी के दिन ही क्रथ करते हैं। अतः विपणन प्रबन्धक को अपना विज्ञापन छुट्टी वाले दिन से पहले वाले दिन या छुट्टी वाले दिन में प्रातः काल करना चाहिए।

(2) क्रय कौन करता है? (Who does the buying)

क्रेता व्यवहार के विश्लेषण का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व यह देखना है कि क्रय कौन करता है। इसमें तीन बातें आती हैं (क) क्रय करने का निर्णय कौन लेता है ? (ख) क्रय कौन करता है? (ग) वस्तु को वास्तविक रूप से प्रयोग में कौन लाता है ? सामान्यतया यह देखा जाता है कि वस्तु का उपभोग तो पूरा परिवार करता है लेकिन उसको क्रय करने का कार्य परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा किया जा सकता है। जैसे बच्चों के लिए क्रय उसके माता-पिता के द्वारा किया जाता है। पत्नी के लिए क्रय उसके पति के द्वारा किया जाता है। पति अपने लिए स्वंय क्रय कर सकते हैं। एक शिक्षित परिवार में पत्नी अपने लिए, बच्चों के लिए व पति के लिए भी क्रय करती है। इसी प्रकार बच्चे भी अपने माता-पिता के लिए क्रय कर सकते हैं।

वस्तु के विपणन पर इस बात का प्रभाव पड़ता है कि क्रय कौन करता है? जैसे क्रय करने वाले होते हैं उसी अनुरूप वस्तु बनायी जाती है और वैसे ही विपणन माध्यम अपनाये जाते हैं, तथा उन्हीं के अनुरूप विज्ञापन कार्यक्रम व मूल्य नीतियाँ तैयार की जाती हैं। यदि वस्तु को स्त्रियों के द्वारा क्रय किया जाता है तो उनका रंग-रूप, डिजाइन व मूल्य उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए और यदि वस्तु द्वारा बच्चों द्वारा क्रय की जाती है तो ऐसी वस्तुओं में वे सभी गुण होने चाहिए जो बच्चे चाहते हैं।

(3) उपभोक्ता कैसे क्रय करते हैं? (How Consumers buy)

उपभोक्ताओं का क्रय करना उनकी आदतों एवं व्यवहारों के अनुसार वस्तु एवं मूल्य सम्बन्धी नीतियाँ निर्धारित की जाती है, विपणन कार्यक्रम तैयार किये जाते हैं, तथा प्रबन्धकीय निर्णय लिये जाते हैं। इसके अन्तर्गत सामान्य तथा निम्न बातों को देखते हैं- (क) उपभोक्ता किस मात्रा में वस्तु क्रय करता है ? (ख) वह कितनी बार क्रय करता है? (ग) वस्तु को प्राप्त करने में कितना प्रयास करता है? (घ) वस्तु के बारे में कितनी सेवा चाहता है? (ड.) वह नकद या उधार क्रय करता है? (च) वह वस्तु कैसे क्रय करना चाहता है? (छ) वह क्रय के उपरान्त वस्तु को घर तक किस प्रकार पहुँचाना चाहता है ? (ज) वस्तु का प्रयोग कैसे करता है।

उपभोक्ता वस्तु कैसे क्रय करते हैं? यह बात दुकान या स्टोर के स्थान एवं अभिन्यास निर्णयों पर भी प्रभाव डालती है। यदि किसी वस्तु को गृहणियों द्वारा अधिक क्रय किया जाता है तो गृहणियों के लिए अलग से दुकान या स्टोर खोला जा सकता है।

(4) उपभोक्ता कहाँ क्रय करते हैं? (Where Consumer buy?)

एक विपणन प्रबन्ध को अपनी विपणन नीतियों का निर्धारण करते समय इस बात का भी पता लगा लेना चाहिए कि उपभोक्ता कहाँ से क्रय करते हैं? इसमें दो बातें शामिल की जाती हैं- (क) उपभोक्ता क्रय करने का निर्णय कहाँ लेता है? व (ख) वास्तविक रूप से क्रय कहाँ पर किया जाता है?

सामान्यतया यह देखा जाता है कि उपभोक्ता बहुत सी वस्तुओं के सम्बन्ध से क्रय करने का निर्णय अपने परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर घर पर ही लेता है। टिकाऊ वस्तुओं जैसे- फ्रिज, टेलीविजन, वाशिंग मशीन आदि के क्रय निर्णय इस प्रकार लिये जाते हैं। कभी-कभी यह भी पाया जाता है कि उपभोक्ता घर से निर्णय करके वस्तु को क्रय करने नहीं जाता है बल्कि उसको जो वस्तु किसी दुकान पर या स्टोर पर पसन्द आ जाती है, उसको क्रय करने का निर्णय वहीं स्टोर पर ले लेता है। यह भी पाया जाता है कि उपभोक्ता घर पर वस्तु को क्रय करने का निर्णय तो लेता है लेकिन ब्राण्ड की पसन्द दुकान पर ही करता है। ऐसी स्थिति में वस्तु का पैकिंग अच्छा होना चाहिए तथा विज्ञापन भी किया जाना चाहिए ताकि उपभोक्ताओं को ब्राण्ड की जानकारी दी जा सके और उसको अपनी ओर आकर्षित किया जा सके। कोई भी उपभोक्ता अज्ञात ब्राण्ड को क्रय करना पसंद नहीं करता है चाहे उसका पैकेजिंग कितना भी आकर्षक क्यों न हो।

उपभोक्ता के क्रय व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Affecting Consumer’s Buying Behaviour)

उपभोक्ता के क्रय व्यवहार को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-

(1) आर्थिक तत्व (Economic Factors)

आर्थिक तत्वों के अन्तर्गत हम ऐसे तत्वों का अध्ययन करते हैं जो उपभोक्ता की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करते हैं। इनमें निम्नलिखित तत्वों को सम्मिलित किया जाता है-

1. व्यक्तिगत आय (Personal Income)- क्रेता की व्यक्तिगत आय उनकी क्रय शक्ति को प्रभावित करती है। क्रेताओं की व्यक्तिगत आय में वृद्धि प्रायः उपभोग में वृद्धि और व्यक्तिगत आय में कमी उपभोग में कमी करती है।

2. परिवार का आकार एवं आय (Size of the Family and Income)- परिवार का आकार और उसकी आय क्रेता के खर्च करने के व्यवहार को काफी सीमा तक प्रभावित करती है।

3. उपभोक्ता की आय आकांक्षायें (Consumer’s Income Expectation)- उपभोक्ता की आय आकांक्षाओं, जैसे विनियोग पर प्रत्याशित आय, जो कि उपभोक्ता को भविष्य में प्राप्त होने की आशा है, का उसके वर्तमान उपभोग व्यवहार पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।

4. उपभोक्ता की तरल सम्पत्ति (Consumer’s Liquid Assets)- प्रायः उपभोक्ता अपनी वर्तमान आय के अनुसार उपभोग करता है लेकिन उसके पास रखी हुई सुरक्षात्मक नकदी भी वर्तमान उपभोग को प्रभावित कर सकती है। इस प्रकार की नकदी आकस्मिक घटनाओं के लिए रखी जाती है।

5. उपभोक्ता की साख (Consumer’s Credit)- उपभोक्ता की वस्तु को साख पर खरीदने की क्षमता भी उपभोक्ता के व्यवहार को प्रभावित करती है। साख सुविधा प्राप्त होने से उपभोक्ता अधिक वस्तुयें खरीदने के लिए प्रेरित होते हैं।

6. स्वाधीन आय (Discretionary Income)- स्वाधीन आय से आशय ऐसी आय से है जो आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात बच जाती है। इस प्रकार की आय को उपभोक्ता अपनी इच्छानुसार खर्च कर सकता है। जितनी ऐसी आय अधिक होगी उपभोक्ता उतनी ही अधिक वस्तुओं का उपभोग करने के लिए उत्सुक होता है।

(2) मनोवैज्ञानिक तत्व (Psychological Factors)

उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले प्रमुख मनोवैज्ञानिक तत्व अग्रलिखित हैं-

1. ज्ञान सिद्धान्त (Learning Theory) – उत्पादकों या निर्माताओं को ज्ञान सिद्धान्त की सहायता से उपभोक्ता व्यवहार को समझने में बहुत सहायता मिलती है। इस सिद्धान्त की सहायता से उत्पादक यह पता लगाते हैं कि ग्राहक किसी वस्तु को क्यों खरीदते हैं, उसके सम्बन्ध में जानकारी कैसे प्राप्त करते हैं, वस्तु स्थिति का उनके मनोविज्ञान पर क्या प्रभाव पड़ता है? ज्ञान सिद्धान्त के अनुसार उपभोक्ता व्यवहार पर निम्न तत्व प्रभाव डालते हैं-

क. अभिप्रेरणा (Motivation)- क्रय प्रेरणायें उपभोक्ता व्यवहार पर बहुत प्रभाव डालती हैं। क्रय प्रेरणाओं के अन्तर्गत भावात्मक, विवेकपूर्ण, स्वाभाविक एवं सीखे हुए प्रयोजन आदि सम्मिलित होते हैं।

ख. नित्यता (Repetition) – उपभोक्ता के सम्पर्क में किसी चीज को निरन्तर लाने से उसके वस्तु ज्ञान में वृद्धि होती है, जैसे किसी वस्तु के निरन्तर विज्ञापन से उपभोक्ता को वस्तु के बारे में ज्ञान प्राप्त हो जाता है, और वह वस्तु खरीदने के लिए प्रेरित होती है।

ग. वस्तु स्थिति (Reality) – वस्तु स्थिति का ज्ञान भी उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए यदि किसी वस्तु का पैकिंग आकर्षक बना दिया जाये तो अनेक नये उपभोक्ता उस वस्तु को खरीदना प्रारम कर देते हैं।

घ. समूह प्रभाव (Group Influence)- समूह प्रभाव भी उपभोक्ता व्यवहार को अभिप्रेरित करता है। यदि समाज का कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति किसी वस्तु का उपभोग करना प्रारम्भ कर देता है तो समाज के अन्य सदस्य भी उसका अनुसरण करना आरम्भ कर देते हैं।

2. लाक्षणिक मनोविज्ञान (Clinical Psychology)- लाक्षणिक मनोविज्ञान के अन्तर्गत निम्नलिखित दो तत्वों को सम्मिलित किया जाता है (क) अचेत अवस्था अचेत अवस्था से आशय उस अवस्था से होता है जिसमें उपभोक्ता वस्तु विशेष को खरीदने या न खरीदने के कारण नहीं बता सकता। (ख) विवेकीकरण यह मस्तिष्क सम्बन्धी क्रिया है जिसके द्वारा यह जाना जा सकता है कि उपभोक्ता किसी वस्तु का क्रय क्यों नहीं करता है?

3. आधारभूत आवश्यकतायें एवं उपभोक्ता व्यवहार (Basic Needs and Consumer Behaviour) – उपभोक्ता व्यवहार आधारभूत आवश्यकताओं से अधिक प्रेरित होता है। सर्वप्रथम वह इन आवश्यकताओं को ही पूरा करता है।

4. छवि एवं उपभोक्ता व्यवहार (Image and Cunsumer Behaviour)- उत्पाद छवि अथवा वस्तु ब्राण्ड छवि का उपभोक्ता व्यवहार पर अधिक प्रभाव पड़ता है।

निष्कर्ष (Conclusion)- उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक तत्वों का अध्ययन करने के पश्चात अब प्रश्न यह उठता है कि उपभोक्ता व्यवहार पर आर्थिक तत्व अधिक प्रभाव डालते हैं या मनोवैज्ञानिक तत्व ? उपभोक्ता व्यवहार पर आर्थिक तत्वों की अपेक्षा मनोवैज्ञानिक तत्वों का प्रभाव अधिक पड़ता है। विपणनकर्ता को आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक दोनों ही तत्वों का अध्ययन करना चाहिए।

उपभोक्ता व्यवहार की विशेषताएँ (Characteristics of Consumer Behaviour)

उपभोक्ता व्यवहार की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार हैं जिनसे उसकी प्रकृति का अनुमान लगाया जा सकता है-

1. क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं से प्रकटीकरण- उपभोक्ता व्यवहार उपभोक्ता की उन क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं से प्रकट होता है जो वह किसी उत्पाद या सेवा के क्रय करने से पहले या बाद में अथवा क्रय करने के दौरान करता है।

2. शारीरिक, मानसिक, सामाजिक क्रियाएँ तथा प्रतिक्रियाएँ- क्रय व्यवहार व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक अथवा सामाजिक क्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं द्वारा अथवा इन सभी की सम्मिलित क्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं से प्रकट होता है।

3. अनेक घटकों के प्रभावों का परिणाम- उपभोक्ता व्यवहार की एक विशेषता यह है कि यह उपभोक्ता से सम्बन्धित अनेक घटकों के प्रभावों का परिणाम है। उपभोक्ता का क्रय-व्यवहार उसके व्यक्तिगत, आर्थिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक घटकों तथा विभिन्न विपणन सूचनाओं के प्रभावों का सामूहिक परिणाम है। कुर्ज तथा बून (Kurtz and Boone) ने ठीक ही लिखा है कि, “उपभोक्ता व्यवहार उपभोक्ता के व्यक्तिगत प्रभावों तथा बाह्य वातावरण के घटकों के प्रभावों का परिणाम है।”

4. क्रय-व्यवहार क्रय-निर्णयन प्रक्रिया- उपभोक्ता का व्यवहार उसके क्रय-व्यवहार की प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत वह किसी उत्पाद/सेवा के क्रय का निर्णय करता है। कुर्ज तथा बून (Kurtz and Boone) का कहना है कि “एक व्यक्ति का क्रय-व्यवहार उसकी सम्पूर्ण क्रय-निर्णयन प्रक्रिया है न कि केवल क्रय प्रक्रिया का एक चरण । इसमें न केवल क्रय से पहले एवं बाद के चरण सम्मिलित हैं बल्कि क्रय करने के दौरान आने वाले विभिन्न चरण भी सम्मिलित हैं।

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Anjali Yadav

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