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विपणन प्रबन्ध का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Marketing Management)
विपणन प्रबन्ध का वह भाग है, जिसमें विपणन सम्बन्धी क्रियायें सम्पादित की जाती हैं। विभिन्न विद्वानों द्वारा विपणन प्रबन्ध की दी गई परिभाषायें निम्नलिखित हैं –
स्टेण्टन के अनुसार, “विपणन विचार का क्रियात्मक या व्यावहारिक रूप ही विपणन प्रबन्ध है।”
आधुनिक विपणन विचार इस तथ्य पर आधारित है कि कोई भी संस्था ग्राहक संतुष्टि के लक्ष्य को ध्यान में रखकर ही अधिकतम लाभ कमा सकती है। इस तथ्य को प्राप्त करने हेतु जिन क्रियाओं को प्रबन्ध द्वारा सम्पादित किया जाता है उन्हें विपणन प्रबन्ध कहा जाता है।
कण्डिफ एवं स्टिल के अनुसार, “विपणन प्रबन्ध, प्रबन्ध के विस्तृत क्षेत्र की एक शाखा के रूप में है, जो विपणन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु उद्देश्यपूर्ण क्रियाओं के संचालन से सम्बन्धित है।”
भारतीय अर्थव्यवस्था में विपणन प्रबन्ध का महत्व (Importance of Marketing Management in Indian Economy)
भारतीय अर्थव्यवस्था में विपणन प्रबन्ध के महत्व में निम्न दृष्टिकोणों से अधिक वृद्धि हो जाती है-
1. ग्रामीण विपणन (Rural Marketing) – आश्चर्य की बात है कि भारत में लगभग 80% जनसंख्या के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने के बावजूद भी भारतीय उत्पादकों और विक्रेताओं का प्रमुख आकर्षण शहरी उपभोक्ताओं पर ही जबकि गाँवों में विपणन के विकास के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं। यद्यपि स्वतन्त्रता के पश्चात् ग्रामीण क्षेत्रों में हरित क्रान्ति, आधुनिक उर्वरकों, बीजों, जल व्यवस्था में सुधार तथा सुधरे हुए उपकरण और कृषि पद्धतियों में सुधार आदि के परिणामस्वरूप ग्रामीण विपणन का विकास हुआ है जिसके कारण न केवल कृषकों की आय में ही वृद्धि हुई है अपितु इनके खर्च करने के तरीकों में भी परिवर्तन हुए हैं। अब वे आवश्यक एवं प्रतिष्ठा रक्षक वस्तुओं के अतिरिक्त अनेक आरामदायक व टिकाऊ वस्तुओं को भी खरीदने लगे परन्तु अभी ग्रामीण क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में विपणन विकास नहीं हो पाया है। इसके लिए व्यापक बाजार के अध्ययन एवं विश्लेषण की आवश्यकता है ताकि हम ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों की अधिक से अधिक आवश्यकताओं को संतुष्टि प्रदान करके देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि कर सके और ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों के रहन-सहन के स्तर में सुधार लाया जा सके।
2. निर्माताओं के लिए महत्व (Importance For Manufactures) – आधुनिक व्यावसायिक जगत में एक निर्माता के लिए विपणन प्रबन्ध का बहुत महत्व है। एक विपणन प्रबन्धक व्यवसाय के नियोजन व निर्णय लेने में सहायता करता है क्योंकि आज उत्पादन सम्बन्धी निर्णय यह सोचकर नहीं लिया जाता है कि हम कितना उत्पादन कर सकते हैं बल्कि यह सोचकर लिया जाता है कि उपभोक्ता किस प्रकार की वस्तु किस मात्रा में व किस मूल्य पर चाहता है, जिसकी सही जोनकारी विपणन प्रबन्ध के द्वारा ही उपलब्ध करायी जाती है। साथ ही आय सृजन, वस्तु वितरण व सूचनाओं के आदान-प्रदान में भी सहायता प्रदान करता है। आजकल निर्माता एवं उपभोक्ता एक- दूसरे से हजारों किलोमीटर दूर हैं लेकिन इन दोनों को मिलाने का कार्य विपणन प्रबन्धक के द्वारा ही किया जाता है।
3. उपभोक्ताओं के लिए महत्व (Importance For Consumers)- विपणन प्रबन्ध का उपभोक्ताओं की दृष्टि से भी अत्यधिक महत्व है। एक उपभोक्ता को उस आर्थिक प्रणाली का ज्ञान होना चाहिए जिसका कि वह एक अंग है। जैसे वस्तु की गुणवत्ता, उसका चुनाव, मूल्य, बाजार में उपलब्धता आदि बातों की जानकारी के आधार पर ही एक उपभोक्ता सही वस्तु का चुनाव कर पाता है और इन सब बातों की सही जानकारी देने का कार्य एक कुशल विपणन प्रबन्ध के द्वारा ही किया जाता है। वह विज्ञापन के माध्यम से वस्तु की जानकारी उपभोक्ता को देता है और बाजार सर्वे के आधार पर उपभोक्ता की इच्छा व आवश्यकता की जानकारी निर्माताओं को कराता है ताकि वे उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं के अनुरूप वस्तुओं का उत्पादन कर सके। इस प्रकार विपणन प्रबन्धक उत्पादक व उपभोक्ता के बीच एक सेतु का कार्य करता है जिस पर चलकर दोनों पक्ष अपनी बात एक दूसरे को कहते हैं।
4. समाज के लिए महत्व (Importance for Society)- विपणन प्रबन्ध का समाज के लिए बहुत अधिक महत्व है। विपणन प्रबन्धक विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की बिक्री में वृद्धि कर नये-नये रोजगारों का सृजन करता है, नयी-नयी वस्तुयें उपलब्ध कराकर लोगों के रहन-सहन के स्तर में वृद्धि करता है। आज यदि वस्तु के निर्माण में 5 व्यक्ति लगे हैं तो 4 व्यक्ति उसके वितरण में लगे हुए हैं जिससे रोजगार के क्षेत्र में भी इसका अत्यधिक महत्व है। यह अर्थव्यवस्था को मन्दी से बचाता है, वितरण लागतों में कमी कर राष्ट्रीय आय में वृद्धि करता है। इस प्रकार विपणन प्रबन्ध समाज के उत्थान में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है।
5. अर्थव्यवस्था के लिए महत्व (Importance For Economy)- प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था में विपणन प्रबन्ध का अपना महत्व होता है। यदि कोई देश अपनी जनता को उचित मूल्य पर उचित क्वालिटी की वस्तु उपलब्ध कराना चाहता है, तो वह विभिन्न कानूनों का सहारा लेकर ऐसी व्यवस्था करता है लेकिन ऐसा उसी समय किया जाता है जबकि व्यवसायी सरकार के साथ सहयोग करने की भावना रखता है। वे देश जो विकास की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ औद्योगीकरण हो रहा है, जहाँ नगरीकरण का काम चल रहा है, वहाँ विपणन की नयी-नयी समस्याएँ सामने आती हैं, जिन्हें सुलझाने के लिए विपणन प्रबन्ध का महत्व बढ़ता चला जा रहा है।
6. निर्यात को प्रोत्साहन (Motivation to Export) – भारतीय अर्थव्यवस्था में निर्यात वृद्धि की अत्यन्त आवश्यकता है क्योंकि निर्यातों में वृद्धि किये बिना न तो हमारा देश ऋणग्रस्तता से मुक्त हो सकता है और न आत्म निर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है क्योंकि हमें अपने देश का समुचित विकास करने के लिए कुछ न कुछ मात्रा में वस्तुओं और तकनीकों का आयात करना पड़ता है और उसके भुगतान सन्तुलन के लिए निर्यातों की आवश्यकता होती है। निर्यातों में वृद्धि करने के लिए, उत्पादन में वृद्धि, उत्पादन की किस्म में सुधार, उत्पादन लागत में कमी व नई-नई विपणन नीतियों को प्रयोग करने की आवश्यकता होती है। गत वर्षों में हमारे निर्यातों में वृद्धि तो हुई है लेकिन यह वृद्धि सन्तोषजनक नहीं है। इसका प्रमुख कारण हमारी वस्तुओं की उत्पादन लागत अधिक होना एवं नई विपणन तकनीकों के प्रयोग का अभाव रहा है। अतः निर्यातों को प्रोत्साहित करने के लिए विपणन प्रबन्ध तकनीकों का प्रयोग करके सदैव नए-नएस बाजारों की खोज करते रहना चाहिए और उपलब्ध बाजारों में अपने निर्यात के भाग को अधिक करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए तथा प्रतिस्पर्धियों की नीतियों का अध्ययन करके यह निर्णय लेना चाहिए कि हमें उस स्थिति का सामना करने के लिए क्या-क्या अपनानी चाहिए।
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