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विपणन वातावरण का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति, आवश्यकता अथवा महत्व

विपणन वातावरण का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति, आवश्यकता अथवा महत्व
विपणन वातावरण का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति, आवश्यकता अथवा महत्व

विपणन वातावरण का अर्थ, परिभाषा (Meaning of Marketing Environment)

विपणन वातावरण (Marketing Environment) से आशय वातावरण की उन शक्तियों, दशाओं तथा घटकों से है जो विपणन क्रियाओं की प्रभावशीलता एवं कुशलता को प्रभावित करते हैं तथा जिन पर विपणन प्रबन्धकों या विपणन विभाग का कोई नियन्त्रण नहीं होता है।

कोटर तथा आर्मस्ट्रांग के अनुसार, “एक संस्था के विपणन वातावरण में विपणन के बाहर के वे सभी कारक एवं शक्तियाँ सम्मिलित हैं जो लक्ष्य ग्राहकों के साथ सफल सम्बन्ध बनाने एवं उन्हें बनाये रखने की विपणन प्रबन्ध की योग्यता को प्रभावित करती है।”

प्राइड तथा फैरेल के शब्दों में, “विपणन वातावरण में वे सभी बाह्य शक्तियाँ सम्मिलित हैं। जो किसी संगठन के संसाधनों (मानवीय, वित्तीय, प्राकृतिक, कच्चा माल तथा सूचनाएँ) की प्राप्ति तथा उत्पादों (माल, सेवाएँ या विचार) के सृजन को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभावित करती है।”

क्रेवेन्स के शब्दों में, “विपणन वातावरण वह है जो विपणन प्रबन्ध कार्य के बाहर का है, जो सामान्यतः अनियन्त्रण योग्य है, जो विपणन निर्णयन के लिए गर्भित रूप से प्रासंगिक है तथा जो परिवर्तनशील अथवा निरोधक है।”

सारांश के रूप में विपणन वातावरण से तात्पर्य विपणन विनिमय या विपणन प्रबन्ध के बाहरी वातावरण की उन गतिशील शक्तियों या परिस्थितियों से हैं जो विपणन क्रियाओं एवं विपणन प्रबन्ध की कार्यकुशलता एवं प्रभावशीलता को प्रभावित करती है तथा जिन पर विपणन प्रबन्ध का कोई नियन्त्रण नहीं होता है। परिणामस्वरूप विपणन प्रबन्धकों को ही स्वंय को उस वातावरण के अनुरूप ढालना पड़ता है तथा उसमें समुचित अवसर तलाश कर विपणन लक्ष्यों को पूर्णता प्रदान करनी पड़ती है।

विपणन प्रबन्ध के वातावरण की प्रकृति (Nature of Environment of Marketing Management)

विपणन प्रबन्ध या विपणन कार्य तथा वातावरण के मध्य एक विशिष्ट सम्बन्ध विद्यमान होता है। इनके मध्य पारस्परिक सम्बन्धों की प्रकृति को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. गतिशील वातावरण- प्रत्येक संस्था के विपणन प्रबन्ध का एक गतिशील वातावरण – होता है। उसे अपने इसी वातावरण के अन्तर्गत कार्य करना पड़ता है।

2. आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण- विपणन प्रबन्ध का अपना आन्तरिक एवं बाह्य दोनों ही प्रकार का वातावरण होता है। विपणन प्रबन्ध अपने आन्तरिक वातावरण पर प्रायः नियन्त्रण कर लेता है। अतः वह उसे बहुत अधिक प्रभावित नहीं करता है। किन्तु, बाह्य वातावरण पर विपणन प्रबन्ध का कोई नियन्त्रण नहीं होता है। अतः उसे बाह्य वातावरण के अनुरूप अपने आपको ढालना ही पड़ता है।

3. परस्पर निर्भर घटक- गतिशील वातावरण के घटकों की एक प्रमुख विशेषता यह है- कि ये सभी घटक आत्मनिर्भर नहीं होते हैं। वस्तुतः ये सभी घटक एक-दूसरे को परस्पर प्रभावित करते हैं तथा परस्पर निर्भर भी होते हैं। आर्थिक घटक सामाजिक घटकों को राजनीतिक घटक तकनीकी घटकों को, धार्मिक घटक सामाजिक घटकों को तथा इसी प्रकार अन्य सभी घटक परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा एक-दूसरे पर निर्भर भी रहते हैं।

4. संसाधनों का विनिमय- प्रत्येक संस्था का विपणन विभाग अपने संसाधन बाह्य वातावरण से प्राप्त करता है। श्रम, पूँजी, यंत्र, उपकरण, कच्चा माल, मानव संसाधन वित्त आदि सभी संसाधन उसे अपने वातावरण से ही प्राप्त होते हैं। इन संसाधनों का उपयोग करके ही विपणन प्रबन्ध अपने कार्यों एवं उद्देश्यों को पूरा करता है। इन साधनों को प्राप्त करने में उसे कभी-कभी बहुत कठिनाई भी झेलनी पड़ती है। कभी-कभी भीषण प्रतिस्पर्द्धा का सामना भी करना पड़ता है तथा संसाधनों की भारी कीमत चुकानी पड़ती है। कभी-कभी संसाधनों की निरन्तर आपूर्ति के लिए कुछ समझौते एवं संयोजन भी करने पड़ते हैं।

विपणन प्रबन्ध या विपणन विभाग केवल संसाधनों की प्राप्ति के लिए ही बाह्य वातावरण पर निर्भर नहीं है, बल्कि अपने उत्पादों या सेवाओं के विक्रय के लिए भी इसी पर निर्भर रहता है। विपणन प्रबन्ध उत्पादों एवं सेवाओं का सफलतापूर्वक विक्रय तभी कर सकता है, जबकि वह अपने बाह्य वातावरण अर्थात् ग्राहकों एवं समाज की आवश्यकताओं एवं अपेक्षाओं की संतुष्टि करने में सक्षम हो।

5. गतिशील घटक- विपणन प्रबन्ध का वातावरण गतिशील घटकों से बनता है। ये घटक आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, तकनीकी आदि प्रकृति के होते हैं। ये घटक निरन्तर परिवर्तनशील या गतिशील होते हैं न कि स्थिर या चिरस्थायी।

6. भौगोलिक सीमा- प्रत्येक विपणन प्रबन्ध के बाह्य वातावरण की एक भौगोलिक सीमा होती है। यह सीमा विपणन प्रबन्ध के कार्यक्षेत्र के अनुसार विस्तृत एवं संकुचित हो सकती है।

7. विस्तृत बाजार- विपणन प्रबन्ध का वातावरण ही उसका विस्तृत बाजार है। विपणन प्रबन्ध अपनी संस्था द्वारा उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं को अपने वातावरण में उपलब्ध करता है। यह वातावरण जब उन्हें स्वीकार करता है तो संस्था का निरन्तर संचालन होता रहता है।

8. वातावरण की आवश्यकता की संतुष्टि- वातावरण प्रत्येक संस्था से अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि की अपेक्षा रखता है। जो संस्था वातावरण की इस अपेक्षा को पूरा नहीं कर पाती है उस संस्था का शनैः शनैः स्वतः ही अन्त हो जाता है। विपणन प्रबन्ध इस दायित्व को पूरा करने हेतु निरन्तर अपने वातावरण का अध्ययन एवं विश्लेषण करता रहता है।

9. चुनौतियाँ तथा बाधाएँ- प्रत्येक संस्था के विपणन प्रबन्ध का अपने वातावरण में कार्य करने तथा उसकी अपेक्षाओं को संतुष्ट करने में अनेक चुनौतियों एवं बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जिस संस्था का विपणन प्रबन्ध इन चुनौतियों एवं बाधाओं के बीच उपयुक्त अवसरों की खोज कर लेता है, वह संस्था सफल हो जाती है। ऐसा नहीं कर पाने पर उस संस्था का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है।

10. सूचनाओं का विनिमय- विपणन प्रबन्ध अपने बाह्य वातावरण से सूचनाओं का आदान-प्रदान भी करता है। सर्वप्रथम विपणन प्रबन्ध अपने बाह्य वातावरण का अध्ययन करता है और अपने आर्थिक, तकनीकी, राजनीतिक-सामाजिक, सांस्कृतिक वातावरण आदि के सम्बन्ध में कुछ अनुमान भी लगाता है।

विपणन प्रबन्ध इन सूचनाओं का अपने कार्यों के निष्पादन में उपयोग करता है। इन्हीं के आधार पर विपणन प्रबन्ध उत्पादन, विक्रय, वित्त आदि कार्यों का नियोजन, निर्णयन तथा नियन्त्रण करता है। इन सूचनाओं के आधार पर ही विपणन प्रबन्ध अपने बाह्य वातावरण आदि के सम्बन्ध में कुछ अनुमान भी लगाता है।

विपणन प्रबन्ध सूचनाएँ केवल अपने लिए ही एकत्र नहीं करता है, बल्कि वह अपने बाह्य वातावरण को भी उपलब्ध कराता है। कुछ सूचनाएँ तो बाह्य वातावरण को कानूनी आवश्यकता के कारण उपलब्ध करानी पड़ती हैं। कभी-कभी कुछ बाह्य व्यक्ति एवं संस्थाएं भी संगठन से कुछ सूचनाएँ मांगते हैं तब भी विपणन प्रबन्ध सूचनाएँ उपलब्ध कराता है। कभी-कभी विपणन प्रबन्ध अपनी स्वेच्छा से भी बाह्य वातावरण को सूचनाएँ उपलब्ध कराता है। तब ये सूचनाएँ संस्था के विज्ञापनों, प्रेस विज्ञप्तियों आदि के माध्यम से उपलब्ध की जाती है।

विपणन वातावरण के विश्लेषण के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Analysis of Study of Marketing Environment)

विपणन वातावरण का विश्लेषण एवं अध्ययन निम्नलिखित मुख्य प्रमुख कारणों की वजह से आवश्यक एवं महत्वपूर्ण हो गया है-

1. वातावरणीय जटिलता का ज्ञान- वातावरण की जटिलताओं से आशय उन सभी बाह्य घटकों एवं उन घटकों की विविधताओं की श्रेणी से लगाया जाता है, जिनके प्रति किसी संस्था के विपणन प्रबन्ध को प्रत्युत्तर देना होता है। चूँकि आधुनिक विपणन वातावरण को अनेक घटक प्रभावित करते हैं तथा उन घटकों का प्रभाव विविध रूपों में होता है, फलतः विपणन वातावरण में अत्यधिक जटिलताएँ उत्पन्न हो गई हैं। इन जटिलताओं का मापन एवं ज्ञान करने के लिए विपणन वातावरण का अध्ययन करना अति आवश्यक हो गया है।

2. परिवर्तनों का पूर्ण ज्ञान- विपणन कार्य एक गतिशील वातावरण में सम्पन्न किया जाता है, जिसमें सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। उपभोक्ताओं की रूचियों, प्रतिस्पर्द्धा, तकनीक, उत्पाद के रंग, रूप, आकार, गुण, आराम एवं विलासिता की नवीन वस्तुओं की उपलब्धता आदि सभी में परिवर्तन होता रहता है। इन सबकी जानकारी प्राप्त करने के लिए वातावरण का निरन्तर व्यवस्थित अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।

3. घटकों के पारस्परिक प्रभाव का अध्ययन- विपणन वातावरण के अनेक घटक हैं। वे घटक आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। किन्तु एक घटक में परिवर्तन का दूसरे घटकों पर कैसा एवं कितना प्रभाव हो रहा है, इसका अध्ययन करने के लिए सम्पूर्ण विपणन वातावरण का अध्ययन आवश्यक है।

4. विद्यमान योजनाओं एवं उद्देश्यों का मूल्यांकन- विपणन वातावरण का विश्लेषण करके विपणन प्रबन्धक अपनी विद्यमान योजनाओं एवं उद्देश्यों का मूल्यांकन भी कर सकते हैं। वे यह ज्ञात कर सकते हैं कि वर्तमान वातावरण में विद्यमान विपणन योजनाओं से विपणन उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है अथवा नहीं। यदि नहीं तो उनमें किस प्रकार का एवं कितना परिवर्तन करना होगा, इस बात को भी ज्ञात किया जा सकता है। अतः विपणन वातावरण का विश्लेषण या अध्य आवश्यक हो जाता है।

5. उच्चावचनों का पूर्ण ज्ञान- विपणन वातावरण के प्रत्येक घटक में अनेक उच्चावचन आते रहते हैं और वातावरण गतिशील बना रहता है। किन्तु उच्चावचनों की दर समान नहीं होती है। कभी यह दर अधिक होती है तो कभी कुछ कम । उदाहरणार्थ वर्तमान में इलेक्ट्रोनिक्स व्यवसाय के विपणन वातावरण के तकनीकी एवं प्रतिस्पद्ध घटकों में यह दर अधिक पायी जा रही है, जबकि सीमेन्ट, स्टील, चीनी उद्योग में उच्चावचनों की दर बहुत सामान्य ही है। इन सबका अध्ययन करने के लिए विपणन वातावरण का अध्ययन अति आवश्यक है।

6. संसाधनों की प्राप्ति- विपणन प्रबन्ध को संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। इन – संसाधनों की न्यूनतम लागत पर प्राप्ति के लिए सम्पूर्ण बाह्य वातावरण का अध्ययन बहुत बहुत जरूरी है।

7. उत्पादों या सेवाओं का वितरण- संस्था के उत्पादों या सेवाओं के प्रभावकारी एवं मितव्ययी वितरण के लिए भी विपणन वातावरण का अध्ययन परमावश्यक है। ऐसा न करने पर उत्पादों या सेवाओं से उचित एवं पर्याप्त लाभ नहीं मिल सकेगा।

8. दीर्घकालीन या व्यूहरचनात्मक नियोजन- विपणन वातावरण के अध्ययन की आवश्यकता दीर्घकालीन या व्यूहरचनात्मक नियोजन के लिए भी पड़ती है। दीर्घकालीन विपणन नियोजन के लिए सर्वप्रथम विद्यमान वातावरण का विश्लेषण किया जाता है तथा भावी वातावरण का अनुमान लगाया जाता है। इन घटकों का अध्ययन करके ही दीर्घकालीन विपणान योजनाओं, व्यूहरचनाओं तथा उद्देश्यों को भली-भाँति निर्धारित किया जा सकता है।

9. वातावरण या विभिन्न घटकों से समन्वय- हिक्स एवं गुलेट के अनुसार, “यदि – किसी संस्था को सफल एवं समृद्ध होना है, तो इसे अपने वातावरण से निरन्तर रूप से समन्वय करना तथा अपने आपको इसके अनुरूप ढालना होगा।” वस्तुतः प्रत्येक संस्था का विपणन प्रबन्ध एक बाह्य वातावरण में कार्य करता है। इस बाह्य वातावरण में विभिन्न प्रभाव वाले अनेक घटक होते हैं। कोई भी विपणन प्रबन्ध इन घटकों को परिवर्तित करने में बहुत अधिक सफल नहीं हो सकता है। स्वयं विपणन प्रबन्ध को ही इन घटकों के साथ समन्वय करना पड़ता है। ऐसा करने के लिए वातावरण का अध्ययन बहुत जरूरी है।

10. प्रभावकारी निर्णयन- प्रभावकारी एवं ठोस निर्णय वे होते हैं जो वातावरण की अपेक्षाओं एवं आवश्यकताओं के अनुरूप हो। परन्तु ऐसे अच्छे निर्णय वातावरण का अध्ययन किये बिना नहीं लिये जा सकते हैं। रेनकी तथा शॉल के शब्दों में, “वातावरण सम्बन्धी वास्तविकताओं का समुचित अध्ययन ही ठोस निर्णयों का आधार है।” अतः विपणन वातावरण का अध्ययन ठोस निर्णयों के लिए भी प्राथमिक आवश्यकता है।

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Anjali Yadav

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