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अजायबघर, प्रयोगशाला, वर्कशॉप [MUSEUM, LABORATORY, WORKSHOP]
शिक्षा की नवीन विचारधारा ने शिक्षा जगत् में उथल-पुथल मचा दी है। प्रत्येक क्षेत्र में नवीन दृष्टिकोण को ग्रहण करने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं। इसी कारण विद्यालयों में संग्रहालय तथा विभिन्न विषयों के व्यावहारिक कार्यों को पूर्ण करने के लिए प्रयोगशालाओं तथा वर्कशॉपों की स्थापना पर बल दिया जाता है। इसकी स्थापना को ही पर्याप्त नहीं माना जाता, वरन् आवश्यकतानुसार उनको आधुनिकतम बनाना आवश्यक समझा जाता है। इसी कारण इनके लिए केन्द्रीय एवं राज्य सरकारें उदारता के साथ अनुदान देती हैं। इनकी आवश्यक साज-सज्जा एवं महत्त्व का पृथक्-पृथक् विवेचन नीचे दिया जा रहा है-
(अ) अजायबघर या संग्रहालय (MUSEUM)
‘म्यूजियम‘ (Museum) शब्द की उत्पत्ति यूनानी शब्द ‘म्यूजेज’ (Muses) से हुई है, जो कविता, कला, संगीत, विज्ञान, आदि का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनानी देवियाँ हैं, इस प्रकार म्यूजियम वह स्थान है, जहाँ कला, साहित्य, विज्ञान, आदि से सम्बन्धित विभिन्न वस्तुओं का संग्रह होता है।
संग्रहालय का विद्यालय के जीवन में बहुत महत्त्व है। इसकी वस्तुओं को देखकर बालकों के जीवन में प्रेरणा, उत्साह एवं जिज्ञासा का विकास होता है जिसका शिक्षा में बहुत महत्त्व है। जिज्ञासा ही ज्ञान की प्राप्ति का आधार है। इसके द्वारा संग्रह करने की मूल प्रवृत्ति को सन्तुष्ट किया जाता है। यह उनके सामान्य ज्ञान की वृद्धि में सहायक है। संग्रहालय राष्ट्रीय विरासत की झाँकी प्रदान करने में अपना एक अनुपम स्थान रखता है। यह बालकों की रचनात्मक मूल प्रवृत्ति को सन्तुष्ट करने में भी सहायक है। माध्यमिक शिक्षा आयोग के शब्दों में, “संग्रहालय बालकों की शिक्षा में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं इनके द्वारा उनके लिए घर को, नीरस व्याख्यानों, अतीत की खोजों तथा विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्रों में हुए विकासों की अपेक्षा अधिक विस्तृत रूप से स्पष्ट बनाया जाता है।” आयोग ने बताया कि पाश्चात्य देशों में संग्रहालय तथा बालकों के द्वारा समय-समय पर इनके निरीक्षण पर बहुत बल दिया गया है। इसके द्वारा इतिहास, कला तथा ज्ञान के अन्य क्षेत्रों के लिए ही उपयुक्त वातावरण प्रदान किया जाता है। परन्तु हमारे देश में इस प्रकार के संग्रहालय देखने को नहीं मिलते। हमारा विश्वास है कि शिक्षा के दृष्टिकोण से ऐसे संग्रहालय प्रत्येक विद्यालय में स्थापित न कर पायें तो उस नगर के समस्त विद्यालयों को मिलाकर एक संग्रहालय स्थापित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त सरकार को भी मुख्य स्थानों पर संग्रहालयों की स्थापना करनी चाहिए जिनमें प्राचीन तथा आधुनिक काल की विभिन्न वस्तुओं का संग्रह किया जाय और बालकों को इनको देखने के लिए भेजा जाय।
यहाँ स्वत: प्रश्न उठता है कि विद्यालय में संग्रहालय के क्या उद्देश्य होने चाहिए और इसको किस प्रकार सजाया जाय ? विद्यालय संग्रहालय की स्थापना निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए-
1. बालकों में सौन्दर्यपरक भाव के विकास के लिए।
2. बालकों की विभिन्न वस्तुओं का निरीक्षण करने, सृजनात्मक शक्ति तथा जिज्ञासा प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने के लिए।
3. विभिन्न विषयों प्राकृतिक अध्ययन, इतिहास, विज्ञान, कला, आदि के शिक्षण में सहायता प्रदान करने के लिए।
4. बालकों के सामान्य ज्ञान की वृद्धि के लिए।
इनको स्थापित करने के लिए विद्यालय भवन में पर्याप्त रूप से बड़ा कक्ष होना चाहिए जिसमें विभिन्न प्रकार की सामग्री को संजोया जा सके। इसको विभिन्न भागों में विभक्त कर दिया जाय, उदाहरणार्थ- प्राकृतिक विज्ञान, इतिहास, भूगोल, कृषि, आदि विभाग इन विभागों में इनसे सम्बन्धित प्राचीन एवं आधुनिक-दोनों प्रकार की सामग्री का संग्रह किया जाय। विभिन्न वस्तुओं को संजोकर रखने के लिए इसमें शीशे की अल्मारियाँ, शो-केस, मेजों, आदि की व्यवस्था होनी चाहिए। इसकी व्यवस्था का भार बालकों पर रखा जाय। परन्तु उनके उचित मार्ग प्रदर्शन के लिए योग्य शिक्षक को नियुक्त किया जाना चाहिए। इसमें बालकों द्वारा निर्मित एवं संग्रह की हुई वस्तुओं को स्थान मिलना चाहिए। इसके अतिरिक्त इसकी समस्त सामग्री का लेखा रखा जाना चाहिए। यदि विद्यालय में स्थान का अभाव है अर्थात् यदि इसके लिए एक पृथक् कक्ष की व्यवस्था नहीं की जा सकती है तो इसको निम्न ढंग से संयोजित किया जा सकता है-
प्रत्येक विभाग में उस विषय से सम्बन्धित विचित्र वस्तुओं को एकत्रित करके एक स्थान पर रखा जा सकता है; उदाहरणार्थ— जीव विज्ञान की प्रयोगशाला में उसके लिए पृथक् स्थान प्रदान किया जा सकता है। इसमें बालकों द्वारा निर्मित एवं संग्रह की गई वस्तुओं को स्थान दिया जाना चाहिए। कृषि कक्ष में कृषि से सम्बन्धित तथा इतिहास, कला, विज्ञान, आदि से सम्बन्धित वस्तुएँ इनके पृथक्-पृथक् कक्षों में संजोई जा सकती हैं। परन्तु विद्यालय के समस्त बालकों को प्रदर्शित करने के लिए समय-समय पर हॉल में इनकी नुमाइश लगायी जाय और उन विद्यालयों के छात्रों को भी आमन्त्रित किया जाये, जिनके पास स्वयं के संग्रहालय नहीं हैं। इस प्रकार विद्यालय संग्रहालय को प्राचीन एवं आधुनिक ज्ञान का भण्डार बनाया जा सकता है तथा इसके प्रयोग से जीवन में सजीवता लाई जा सकती है।
(ब) प्रयोगशाला का महत्त्व एवं उसकी साज-सज्जा (IMPORTANCE AND MAINTENANCE OF LABORATORY)
वैज्ञानिक प्रवृत्ति ने प्रत्येक विषय के शिक्षण के लिए प्रयोगशाला की आवश्यकता पर बल दिया है। इसके परिणामस्वरूप आज विद्यालय में पढ़ाए जाने वाले प्रत्येक विषय के लिए इसके महत्त्व को मान्यता प्रदान की जाने लगी है। प्रयोगशाला का महत्त्व इस कारण है कि इसमें बालक स्वयं क्रिया करके ज्ञान की प्राप्ति करता है। यह विभिन्न वस्तुओं का निरीक्षण एवं प्रयोग करके सैद्धान्तिक ज्ञान की वास्तविकता को समझने में समर्थ होता है। प्रयोगशाला के विभिन्न क्रिया-प्रधान शिक्षण विधियों के प्रयोग को सफल बनाने में सहायता प्रदान की है। प्रयोगशाला द्वारा विषय विशेष के हेतु उपयुक्त एवं अनुकूल वातावरण निर्मित किया जाता है जो कि प्रभावशाली एवं व्यावहारिक शिक्षण के लिए अत्यन्त लाभदायक होता है। इसके द्वारा व्यावहारिक कार्य कराया जा सकता है जो कि विविधता एवं प्रेरणा प्रदान करता है। प्रयोगशाला छात्रों में पहलकदमी, आलोचनात्मक दृष्टिकोण, साधन-सम्पन्नता, सहयोग, वैयक्तिक कार्य करने की शक्ति, आदि गुणों को विकसित करने में सहायता प्रदान करती है तथा विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में व्यावहारिक कार्यों व योजनाओं के लिए प्रोत्साहित करती है।
प्रयोगशाला की साज-सज्जा (Maintenance of Laboratory)- प्रत्येक विषय की आवश्यकताएँ भिन्न होने से उसकी प्रयोगशाला की साज-सज्जा भिन्न होगी। नीचे हम कुछ विषयों की प्रयोगशालाओं की साज-सज्जा का संकेत-मात्र दे रहे हैं-
(1) सामाजिक अध्ययन की प्रयोगशाला- सामाजिक अध्ययन की प्रयोगशाला किस प्रकार की होनी चाहिए, इस सम्बन्ध में पाश्चात्य देशों में पर्याप्त अनुसन्धान कार्य हुए हैं। यहाँ हम जे. बी. वीचमैन तथा जे. डब्ल्यू. वाल्डविन के पर्यवेक्षणों के आधार पर इसकी साज-सज्जा का उल्लेख कर रहे हैं-
1. सामान्य कक्ष से बड़ा कमरा, जिसमें प्रायोगिक मेजों व कुर्सियों की उचित व्यवस्था हो।
2. बुलेटिन बोर्ड (Bulletin Board) |
3. श्यामपट्ट
4. अल्मारियाँ शिक्षण सामग्री को सुरक्षित रखने के लिए।
5. पंजिकाएँ (Files)।
6. ओवर हैड तथा स्लाइड प्रोजेक्टर की व्यवस्था ।
7. बैठने की व्यवस्था
8. चार्ट, मानचित्र, रेखाचित्र, ग्लोब, फिल्मस्ट्रिप्स, आदि।
9. पाठ्य पुस्तकें, शब्दकोश, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, विभिन्न प्रतिवेदन, आदि।
10. रेडियो, दूरदर्शन, वी. सी. आर., आदि।
(2) विज्ञान प्रयोगशाला (Science Laboratory)-आज के वैज्ञानिक युग में एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में, जिसमें वैज्ञानिक वर्ग की शिक्षा की व्यवस्था है, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र एवं जीव विज्ञान की प्रयोगशालाओं को विशेष महत्त्व देना चाहिए। इनके अतिरिक्त व्याख्यान-कक्ष (Lecture Theatre) भी होने चाहिए और प्रत्येक प्रयोगशाला से सम्बन्धित एक भण्डार गृह तथा तैयारी कक्ष होने से विशेष सुविधा रहती है। इन प्रयोगशालाओं का आकार छात्रों की संख्या के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिए जिसमें प्रत्येक छात्र को कार्य करने के लिए 30 वर्ग फीट स्थान अवश्य प्राप्त हो सके।
इन प्रयोगशालाओं व व्याख्यान कक्षों में हवा व प्रकाश का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। दरवाजे व खिड़कियाँ एवं कृत्रिम प्रकाश की व्यवस्था ऐसी हो कि विद्यार्थियों को प्रयोग करने व पढ़ने-लिखने में कठिनाई न हो।
(क) भौतिकशास्त्र की प्रयोगशाला की साज-सज्जा (Maintenance of Physics Laboratory)
(i) प्रायोगिक मेजें- इनमें नीचे आल्मारियाँ हों। इनकी ऊपरी सतह चौरस होनी चाहिए।
(ii) गैस की उपयुक्त व्यवस्था तथा गैस-बर्नर और स्प्रिंट लैम्प हों।
(iii) दीवार में आल्मारियाँ जिनमें सामान को सुरक्षित रखा जा सके।
(iv) दीवार के साथ बैलेन्स रखने के लिए ऐसी व्यवस्था हो, जिससे उनका प्रयोग सरलता से हो सके।
(v) भिन्न-भिन्न प्रयोग से सम्बन्धित यन्त्र (Apparatus) तथा उपयुक्त सामग्री।
(vi) पानी की उपयुक्त व्यवस्था पाइप, टेप और सिंक (Sink)।
(ख) रसायनशास्त्र की प्रयोगशाला की साज-सज्जा (Maintenance of Chemistry Laboratory)
(i) शुद्ध हवा का उचित प्रबन्ध – इसके लिए पर्याप्त मात्रा में खिड़कियाँ, दरवाजे, रोशनदान तथा हवा निकालने वाले पंखों का समुचित प्रबन्ध हो ।
(ii) प्रायोगिक मैजें- जिनमें कपबोर्ड, ड्राअर, गैस तथा पानी की पाइप, टेप तथा सिंक की व्यवस्था हो। मेजों पर टैस्ट-ट्यूब रखने के स्टैण्ड भी हों।
(iii) बेलेन्स को रखने के लिए तथा वहाँ काम करने के लिए शीशेदार कमरा हो। यह कमरा मुख्य प्रयोगशाला से बिल्कुल अलग होना चाहिए। उसमें पत्थर की मेजें दीवार में लगी हों तथा विद्यार्थियों के बैठने के लिए स्टूलों की भी व्यवस्था हो।
(iv) एसिड प्रूफ ड्रेनेज व्यवस्था ।
(v) दीवार की अल्मारियाँ जिनमें सामान रखा जा सके।
(vi) फ्यूम कपबोर्ड, आदि।
(vii) विभिन्न प्रयोगों के लिए यन्त्र तथा उपयुक्त सामग्री।
(viii) स्रवित जल बनाने की व्यवस्था।
(ix) Microscope की संख्या इतनी होनी चाहिए कि एक Microscope पर एक समय पर दो विद्यार्थियों से अधिक प्रयोग न करें।
(ग) जीव-विज्ञान की प्रयोगशाला की साज-सज्जा (Maintenance of Biology Laboratory)
(i) विभिन्न प्रकार के मृत जीव-जन्तु एवं जीव-इतिहास से सम्बन्धित चार्ट, मॉडल और स्लाइड्स (Slides) |
(ii) प्रायोगिक मेजें-जिनमें ड्राअर तथा पानी की व्यवस्था हो
(iii) ट्रे-जिनमें जीव-जन्तुओं की चीरफाड़ की जा सके।
(iv) अल्मारियाँ—जिनमें विभिन्न प्रकार की सामग्री एवं यन्त्रों को सुरक्षित रखा जा सके।
(v) जन्तुओं व पौधों का जलाशय (Aquarium), मेहकों के रखने का स्थान (Frogerry) तथा जरमीनेशन बैड (Germination Bed) के लिए भी स्थान होना चाहिए।
(vi) प्रयोगशाला के बाहर फूल-पौधों को उगाने की व्यवस्था होनी चाहिए।
(vii) Epidiascope 3 Slide Projector
विज्ञान के व्याख्यान कक्षों में प्रदर्शन-मेज हो जिसमें पानी, गैसें एवं उचित रोशनी का प्रबन्ध हो। इसके अतिरिक्त श्यामपट्ट व अल्मारियाँ हों तथा बैठने की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें प्रत्येक बालक किए जाने वाले प्रदर्शन को देख सके।
(स) वर्कशॉप एवं उसकी साज-सज्जा (WORKSHOP AND ITS MAINTENANCE)
आज का युग वैज्ञानिक एवं तकनीकी का युग है। देश की समृद्धि एवं बेकारी की समस्या को दूर करने के लिए वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा को परम आवश्यकता है। परन्तु इसका सैद्धान्तिक ज्ञान ही हमारे लिए आवश्यक नहीं है, वरन् उन सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप प्रदान करना भी आवश्यक है। इस व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए विषय-वस्तु से सम्बन्धित कारखाने (Workshop) की अत्यन्त आवश्यकता है।
माध्यमिक शिक्षा आयोग ने बहुउद्देशीय विद्यालयों की स्थापना पर बल दिया है। इन विद्यालयों के लिए, प्राविधिक वर्ग (Technical Group) की भी व्यवस्था की है। इस वर्ग में आने वाले विषयों से सम्बन्धित वर्कशॉप की साज-सज्जा का संक्षेप में विवेचन नीचे दिया जा रहा है-
(क) लकड़ी के कार्य की वर्कशॉप (Wood Worshop)
(i) एक बड़ा कमरा या शैड-जिसका आकार छात्रों की संख्या के अनुसार होना चाहिए।
(ii) इसमें हवा एवं प्रकाश का समुचित प्रबन्ध हो
(iii) एक छोटा-सा पृथक् कक्ष भी हो, जिसमें छात्रों के औजारों की पेटियाँ सुरक्षित रखी जा सकें।
(iv) विभिन्न प्रकार की लकड़ी काटने तथा रन्दा करने की मशीनें।
(v) लेथ (Lathe) – जिसके द्वारा लकड़ी को गोल किया जा सके।
(vi) मेजें–जिन पर बाँक (Vice) लगे हुए हों।
(vii) श्यामपट्ट-जिन पर ड्राइंग, आदि बनाई जा सके।
(viii) शीशे की आल्मारियाँ या रैंक (Rack-लकड़ी की बनी वस्तुओं को सजाने व सुरक्षित रखने के लिए)।
(ख) लुहारखाना (Smithy Workshop)
(i) कमरे या शैड में पर्याप्त स्थान तथा हवा एवं प्रकाश का उचित प्रबन्ध।
(ii) भट्टियों और उनके धुएँ को बाहर निकालने का उचित प्रबन्ध और भट्टियों को सुलगाने के लिए हवा फेंकने वाले पंखों की व्यवस्था।
(iii) प्रत्येक भट्टी के पास लकड़ी पर रखी निहाइयाँ (Anvils)।
(iv) विभिन्न वजन के हथौड़े एवं सड़ासियाँ।
(v) अन्य विभिन्न यन्त्र एवं लोहा।
(vi) निर्मित वस्तुओं को रखने के लिए अल्मारियाँ या रैक।
उक्त समस्त सामग्री के साथ-साथ दोनों प्रकार के वर्कशॉप में पानी व प्रकाश की उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त प्राथमिक चिकित्सा का उचित प्रबन्ध हो, जिससे किसी बालक के चोट लग जाने या जल जाने पर उसको तुरन्त ही प्राथमिक सहायता प्रदान की जा सके।
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