शिक्षाशास्त्र / Education

अधिगम के क्रिया प्रसूत अनुबन्ध सिद्धान्त | क्रियाप्रसूत अनुबंधन का शैक्षिक अनुप्रयोग

अधिगम के क्रिया प्रसूत अनुबन्ध सिद्धान्त की विवेचना कीजिए। अथवा क्रिया प्रसूत अनुबंध सिद्धान्त क्या है ? इसके शैक्षिक अनुप्रयोगों का वर्णन कीजिए।

क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धान्त (Operant conditioning theory) – अमेरिका के मनोवैज्ञानिक बी०एफ० स्किनर द्वारा प्रतिपादित अनुबंधित अनुक्रिया को साधन अनुकूलन अथवा क्रियाप्रसूत अनुबंधन कहते हैं। स्किनर ने अपना प्रयोग चूहों पर किया। चूहा जब संदूक के लीवर को अकस्मात दबा देता है, तब उसे भोजन प्राप्त होता है, अन्यथा नहीं। इसी प्रकार थार्नडाइक के प्रयोग के अनुसार जब बिल्ली तार को खींचती हैं तभी वह बाहर आ पाती है और बाहर आते ही उसे भोजन प्राप्त होता है। इन प्रयोगों में प्राणी जब कोई वांछित व्यवहार करता है तो उसके फलस्वरूप पुरस्कार प्राप्त होता हैं। अन्य प्रकार की अनुक्रिया करने पर उसे कोई पुरस्कार प्राप्त नहीं होता है। वह पुरस्कृत व्यवहार शीघ्र ही सीख लिया जाता है। सभी व्यवहार में से वांछित व्यवहार का चयन ही सीखना है और यह चयन संतोष, पुरस्कार या सुखद अनुभूतियों पर आधारित है। दूसरे शब्दों में क्रियाप्रसूत अनुबंधन में ऐसी अनुक्रिया को सीखा जाता है जिससे कुछ पुरस्कार प्राप्त होना सुनिश्चित होता है। इसे नैमित्तिक अनुबंधन भी कहते हैं।

क्योंकि यह भोजन की प्राप्ति में या दुख के निवारण में एक साधन अथवा निमित्त है। क्लासिकल अनुबंधन में कुछ पुरस्कार नहीं होता, यह केवल एक अनुक्रिया का उद्दीपन से साहचर्य है। कभी-कभी नैमित्तिक अधिगम में सन्निहित व्यवहार को परिचालक व्यवहार कहा जाता है क्योंकि यह पर्यावरण का परिचालन करता हैं।

उपर्युक्त प्रयोग नैमित्तिक अधिगम के और वास्तव में मानव के अधिकांश अधिगम के बुनियादी लक्षणों को स्पष्ट करता है। प्राणी, सर्वप्रथम किसी प्रेरणा से अभिप्रेरित होता है। प्रेरणा प्राणी में अनुसंधानात्मक क्रिया उत्पन्न करती है। इस क्रिया के मध्य एक ऐसी अनुक्रिया घटित हो जाती है, जो उपर्युक्त लक्ष्य की उपलब्धि में साधन रूप होती है। यह क्रिया सीखी हुई अनुक्रिया बन जाती है।

क्लासिकल अनुबंधन के ही समान क्रियाप्रसूत या नैमित्तिक अधिगम के लिए भी ‘प्रबलन’ एक अनिवार्य तत्व है। किन्तु यहां प्रबलन की परिभाषा कुछ भिन्न हो जायेगी। “यह उस लक्ष्य की प्राप्ति हैं, जो अभिप्रेरणा को संतृप्ति प्रदान करता है।” स्कीनर के बक्स के भूखे चूहे के प्रयोग में भोजन को प्राप्त करना प्रबलन था। यदि प्राणी प्यासा है तो पानी को प्राप्त करना प्रवलन है। प्राणी को प्रबलन प्राप्त हुआ, केवल इसीलिए उसने उपर्युक्त अर्थपूर्ण अनुक्रिया को सीखा। प्रबलन को केवल शारीरिक अंतनोंद तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। बल्कि यह अन्य अन्तर्वोदों को, जैसे- कौतूहल, अनुसंधान, प्रहस्तन आदि को समाहित करता है। नैमित्तिक अधिगम में प्रदत्त और मूल द्वारा सही अनुक्रिया हो जाती है। किन्तु कुछ प्रबलनों के उपरांत यह अभ्यासगत हो जाती है।

पावलव के कुत्ते को घंटी बजाने के साथ-साथ प्रत्येक बार भोजन भी दिया जाता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि इस प्रयोग में प्रत्येक परीक्षण को सरलीकृत किया जाता है। केवल निर्णायक परीक्षण में भोजन नहीं दिया जाता। उस वक्त तक भी कोई ऐसा प्रमाण नहीं दिया जा सकता है कि कुत्ता घंटी का अर्थ सीख गया या नहीं। इसके विपरीत क्रियाप्रसूत अनुबंधन में सीखने वाले को व्यवहार ही सरलीकरण प्राप्त करने में सहायक होता है। उस स्थिति में प्राणी जितने भी व्यवहार करता है उसमें उपयुक्त व्यवहार को पुरस्कृत किया जाता हैं। स्किनर के अनुसार पुनर्बलन अनुक्रियाओं के लिए आरक्षण का निर्माण करता है।

क्रियाप्रसूत अनुबंधन का शैक्षिक अनुप्रयोग-

स्किनर महोदय ने प्रारम्भ में प्रयोगशाला की नियंत्रित परिस्थितियों में कई प्रयोग जानवरों पर किए। उन्होंने अपने अध्ययनों के आधार पर कतिपय व्यवहार संबंधी नियमों का निर्माण किया। उन्होंने इन सिद्धांतों का अनुप्रयोग मानव पर करने की पृष्ठभूमि तैयार की। उन्हें विश्वास हो गया कि क्रियाप्रसूत अनुबंधन का प्रयोग विद्यालयीय शिक्षण में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है। उन्होंने एक नवीन शिक्षण विधा का निर्माण किया जो कि पूर्वनियोजित अधिगम के नाम से प्रसिद्ध है।

स्किनर महोदय ने अमेरिकी शिक्षा पद्धति के अनेक दोषों पर ध्यान दिया और सीखने की एक नवीन पद्धति का विकास किया। यदि हम अपनी शिक्षा पद्धति का परीक्षण करें तो हमारी शिक्षा पद्धति भी उन्हीं दुर्बलताओं से परिपूर्ण है। हमारी शिक्षा पद्धति की सामान्य कमजोरियां निम्नलिखित हैं-

(1) व्यवहार घृणा की उत्तेजनाओं से दबा हुआ है। हमारे विद्यालयों का सम्पूर्ण वातावरण भय तथा दुखद अनुभूतियों के अधीन है। यद्यपि शारीरिक दण्ड का बहिष्कार कानूनी तौर पर कर दिया गया है। फिर भी शिक्षक अब भी इसका प्रयोग करते हैं। छात्र दण्ड से बचने के लिए भय के कारण कार्य करते हैं। अतएव विद्यालय क्रियाप्रसूत अनुबंधन का प्रयोग भय के निवारण तथा विलोपन के लिए कर सकते हैं। वे इसके लिए सकारात्मक प्रबलन का प्रयोग कर सकते हैं।

( 2 ) हमारे विद्यालयों में व्यवहार तथा प्रबलन के बीच बहुत अंतर पाया जाता है। वांछित व्यवहार को तुरंत पुरस्कृत नहीं किया जाता। प्रबलन में विलम्ब पुनर्बलन करने वाली उत्तेजनाओं के प्रभाव को कम कर देती है। उदाहरण के लिए एक लड़का परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करता है लेकिन शिक्षक द्वारा उसके इस व्यवहार को तुरंत पुरस्कृत नहीं किया जाता है और उसे कुछ दिनों बाद प्रबलन प्राप्त होता है तो इस प्रकार के प्रबलन का उसके व्यवहार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अनुक्रिया के तुरंत बाद ही पुनर्बलित करने वाली उत्तेजनाओं का उपस्थित होना व्यवहार पर प्रभाव डालने के लिए आवश्यक है।

(3) क्रमिक प्रबलन के कार्यक्रमों का अभाव- हमारे शिक्षण तथा अधिगम का कार्यक्रम अंतिम व्यवहार के पूर्व क्रमिक प्रबलन के कार्यक्रम को प्रगतिशील ढंग से नहीं अपनाता। हम लोग कक्षा के अंदर व्यवहार का पुनर्बलन अनाप-शनाप ढंग से करते हैं। पूर्वयोजित अधिगम का कार्यक्रम प्रारम्भिक व्यवहार से अंतिम व्यवहार तक क्रमिक ढंग से आगे बढ़ाता है।

(4) उद्देश्य भ्रामक तथा अस्पष्ट हैं- हमारी शिक्षा पद्धति का सबसे बड़ा दोष यह है कि पाठ्यक्रम के लक्ष्य क्रियात्मक रूप से भलीभांति परिभाषित नहीं है। पूर्वयोजित अधिगम में लक्ष्य स्पष्ट रूप से परिभाषित कर दिये जाते हैं।

(5) व्यवहार की विशिष्ट परिभाषा करना – शिक्षक प्रारम्भिक और अंतिम व्यवहार जो कि छात्रों में उत्पन्न करना चाहता है उसे क्रियात्मक रूप से परिभाषित कर देता है। शिक्षक कक्षा में क्रियाप्रसूत अनुबंधन के सिद्धांत को कुशल तथा प्रभावी शिक्षण के लिए प्रयुक्त कर सकता है। हमारे देश में शिक्षण की नवीन विधाओं को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। इसलिए पूर्वयोजित अधिगम की भी आलोचना परम्परावादी शिक्षाविदों द्वारा हो रही है। लेकिन फिर भी क्रियाप्रसूत अनुबंधन के सिद्धांतों का प्रयोग कक्षा-शिक्षण में किया जा सकता है। शिक्षक अपनी योजना की पूर्व तैयारी कर सकता है, व्यवहार की अंतिम रूपरेखा तैयार कर सकता है तथा विद्यालय वातावरण के उन सभी तत्वों का सर्वेक्षण कर सकता हैं जो कि छात्रों को पुनर्बलन प्रदान कर सकते हैं। वह बालकों को अधिगम की प्रक्रिया में सक्रिय रूप में लगा सकता है ताकि उनकी अभिरुचि अधिगम की क्रियाओं में बनी रहे।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment