अधिगम के स्थानान्तरण का शैक्षिक महत्व विस्तार से समझाइये
अधिकम के स्थानान्तरण का शैक्षिक महत्व-अधिगम के स्थानान्तरण का शैक्षिक दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्व है। स्थानान्तरण या अन्तरण के फलस्वरूप बालकों की अधिगम कुशलता में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप वे नवीन बातों को सरलता, शीघ्रता तथा स्थायी रूप से सीख लेते हैं। अतः शिक्षा प्रक्रिया के नियोजकों तथा संचालकों को सीखने के अन्तरण से संबंधित ज्ञान का उपयोग बालकों की शिक्षा को सरल, सुगम तथा प्रभावशाली बनाने के लिए करना चाहिए। सीखने के अन्तरण के महत्व को निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है-
(1) पाठ्यक्रम निर्माण में महत्व— पाठ्यक्रम के निर्माण में सीखने के अन्तरण का विशेष महत्व हैं। सीखने का अन्तरण किस प्रकार से होता है तथा किन-किन कारकों से प्रभावित होता है, इसे ध्यान में रखकर ही पाठ्यक्रम की रचना की जानी चाहिए। पाठ्यक्रम के विभिन्न विषय तरा इकाइयाँ छात्रों की परिस्थितियों तथा आवश्यकताओं व रुचियों के अनुरूप होनी चाहिए। पाठ्यवस्तु छात्रों के भावी जीवन से संबंधित होनी चाहिए। पाठ्यवस्तु अध्यापकों की दृष्टि से उपयी होनी चाहिए। पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो छात्रों की भी व्यावसायिक संश्यकताओं की पूर्ति करने में समर्थ हो सके।
( 2 ) शिक्षण विधियों की दृष्टि से महत्व- अध्यापक के द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली शिक्षण विधि अन्तर की मात्रा को प्रभावित करती हैं। अतः अध्यापक को ऐसी शिक्षण विधियों का प्रयोग के चाहिए जिनसे अन्तरण अधिकतम सम्भव हो सके। शिक्षण विधि का चयन अन्तरण प्रक्रिया को प्रभावित करने वाली विभिन्न दशाओं द्वथा कारकों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
(3) अध्यापकों के लिए महत्व – शिक्षा प्रक्रिया के वास्तविक संचालक अध्यापक होते हैं। अध्यापकों के लिए सीखने के अन्तरण की प्रक्रिया का ज्ञान अत्यंत लाभप्रद हो सकता है। निम्न बातों को ध्यान में रखकर अध्यापक शिक्षा प्रक्रिया में अन्तर का सार्थक उपयोग कर सकता है-
(i) अध्यापक को कक्षा में पढ़ाते समय अपने छात्रों को विशिष्ट समस्याओं की अपेक्षा सामान्य सिद्धान्तों का ज्ञान देना चाहिए।
(ii) अध्यापकों को कक्षा में विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित अनेक उदाहरण देकर अपनी बात को स्पष्ट करना चाहिए।
(iii) अध्यापक को कक्षा में पढ़ाए जाने वाले प्रकरण के मुख्य बिन्दुओं को छात्रों के समक्ष भली भांति स्पष्ट करना चाहिए।
(iv) अध्यापक को शिक्षण कार्य करते समय छात्रों के दैनिक जीवन की वास्तविक परिस्थितियों तथा शिक्षण कार्यों में सामंजस्य बनाना चाहिए।
(v) अध्यापक को जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से सम्बन्धित ज्ञान तथा समस्याओं को भी कक्षा में प्रस्तुत करना चाहिए।
(vi) यदि पढ़ाये जाने वाले प्रकरण के लिए कोई पूर्व-ज्ञान आवश्यक हैं तो अध्यापक को देख लेना चाहिए कि छात्र उस आवश्यक पूर्व-ज्ञान रखते हैं कि नहीं।
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