अप्रत्यक्ष व्ययों का बँटवारा (Allocation of Indirect Expenses)
व्यापार में दो प्रकार के व्यय होते हैं-
(i) प्रत्यक्ष व्यय (Direct Expenses) (ii) अप्रत्यक्ष व्यय ( Indirect Expenses)
(i) प्रत्यक्ष व्यय (Direct Expenses) –
ऐसे व्यय जो किसी विशेष विभाग से सम्बन्धित होते हैं, प्रत्यक्ष व्यय कहलाते हैं। उदाहरणार्थ- मजदूरी, वेतन तथा ढुलाई इत्यादि। ऐसे व्यय सीधे ही सम्बन्धित विभाग में चार्ज (Debit) कर लिये जाते हैं जिसके फलस्वरूप ऐसे व्ययों को अनुपात में बाँटने का प्रश्न ही नहीं उठता।
(ii) अप्रत्यक्ष व्यय (Indirect Expenses) –
ऐसे व्यय जो सम्पूर्ण व्यवसाय में सामूहिक रूप से होते हैं तथा किसी विशेष विभाग से सम्बन्धित नहीं होते हैं, अप्रत्यक्ष व्यय कहलाते हैं। उदाहरणा:- किराया, विज्ञापन, मशीन पर हास, बिजली व्यय, विक्रय व्यय, मैनेजर का वेतन, इत्यादि । ये खर्चे किसी विशेष विभाग से सम्बन्धित नहीं होते हैं। अप्रत्यक्ष व्ययों को निम्न रूप से दो समूहों में बाँटा जा सकता है-
- (a) ऐसे व्यय जिनका बँटवारा किया जा सकता है।
- (b) ऐसे व्यय जिनका बँटवारा सम्भव नहीं है।
(a) ऐसे व्यय जिनका बँटवारा किया जा सकता है (Expenses which can be allocated) –
ऐसे व्ययों को प्रश्न में दिये गये निर्देशों के अनुसार बाँट देना चाहिये किसी निर्देश के अभाव में ऐसे व्ययों का बँटवारा निम्न आधारों पर करना चाहिए-
(1) बिक्री के आधार पर बँटवारा (Allocation according to Sales) – ऐसे व्यय जो बिक्री से सम्बन्धित होते हैं, उन्हें विभिन्न विभागों की बिक्री के आधार पर बाँटना चाहिए। ये व्यय निम्न प्रकार के हो सकते हैं- (i) बिक्री पर कमीशन (Commission on Sales), (ii) डूबत अथवा अप्राप्य ऋण (Bad-debts), (iii) स्वीकृत कटौती (Discount Allowed), (iv) यात्रा व्यय (Travelling Expenses), (v) बाह्य दुलाई (Carriage outwards ), (vi) विज्ञापन व्यय (Advertisement Expenses), (vii) गोदाम का भाड़ा (Godown Rent), (vii) निरीक्षण एवं स्थापना व्यय (Supervision and Establishment Expenses), (ix) यात्री एजेन्टों का वेतन (Travelling Agent’s Salary) आदि।
(2) स्थान के अनुसार बँटवारा (Allocation According to Space) – ऐसे व्यय जो प्रत्येक विभाग द्वारा घेरे गये स्थान से सम्बन्धित होते हैं, वे प्रत्येक विभाग द्वारा भवन के घेरे गये स्थान के क्षेत्रफल के आधार पर बाँटे जा सकते हैं, जैसे- (i) भवन का किराया (Rent of Building), (ii) स्थानीय कर और दर (Local Taxes and Rates). (iii) पुताई के व्यय (White washing Expenses), (iv) मरम्मत (Repair), (v) चौकीदार का वेतन (Salary of Watchman). (vi) सफाई पर किये गये व्यय (Sweeping Expences). (viii) नगर पालिका के कर (Municipal Taxes) इत्यादि ।
(3) क्रय के आधार पर बँटवारा (Allocation according to Purchases) – क्रय के आधार पर निम्न व्ययों को बाँटना चाहिए-
(i) आन्तरिक ढुलाई (Carriage Inwards ), (ii) प्राप्त कटौती (Discount received) आदि।
(4) कर्मचारियों की संख्या के अनुपात में बँटवारा (Allocation in the proportion of Number of Employees): ऐसे व्यय जो कर्मचारियों अथवा श्रमिकों की संख्या से सम्बन्धित होते हैं उन्हें श्रमिकों की संख्या अथवा कुल मजदूरी की राशि के अनुपात में बाँटा जाता है। ये निम्न हो सकते हैं- (i) श्रम कल्याण पर व्यय (Labour welfare Expenses), (ii) कैन्टीन व्यय (Canteen Expenses), (iii) डिस्पेन्सरी के व्यय (Dispensery Expenses), (iv) नाश्ता अथवा भोजन के व्यय (Refereshment or Lunch Expenses), (v) कर्मचारी राज्य बीमा योजना के अन्तर्गत दिया गया चन्दा (Subscription given for Workmen State Insurance) इत्यादि ।
(5) बिके माल की लागत के आधार पर विभाजन (Allocation according to cost of Goods (sold)- यदि प्रश्न में किसी व्यय को विभागों द्वारा बिक्रीत माल की लागत के आधार पर बाँटने का निर्देश दिया गया है तो उन्हें बिक्रीत माल की लागत निकालने के बाद इस लागत के अनुपात में बाँटना चाहिए। बिक्रीत माल की लागत निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात की जा सकती है-
बिक्रीत माल की लागत = प्रारम्भिक रहतियाँ + क्रय + प्रत्यक्ष व्यय – अन्तिम रहतिया ।
Cost of Goods sold = Opening stock + Purchases + Direct Expenses – Closing stock
(6) अन्य आधारों पर बँटवारा (Allocation on other Basis) – कुछ विशेष प्रकार के व्ययों का बँटवारा निम्न अनुपात के आधार पर किया जाता है-
(i) बीमा प्रीमियम (Insurance Premium) – बीमे प्रीमियम की राशि को बीमित वस्तु की राशि के आधार पर बाँटना चाहिए।
(ii) कार्यशाला प्रबन्धक का वेतन (Works Manager’s Salary) :- कार्यशाला के प्रबन्धक का वेतन, प्रबन्धक द्वारा प्रत्येक विभाग पर लगाये गये समय के अनुपात में बाँटा जाता है। यदि प्रश्न में इस सम्बन्ध में सूचना का अभाव होता है तो इसे सभी विभागों में समान अनुपात में बाँट देना चाहिए।
(iii) मशीनों की मरम्मत तथा हास (Repairs and Depreciation on Machines) – मशीनों की मरम्मत तथा ह्रास की राशि को प्रत्येक विभाग में लगी मशीनों के मूल्य के अनुपात में बांटा जाना चाहिए।
(iv) विद्युत प्रकाश (Electric lighting) – इन्हें प्रत्येक विभाग में लगे हुए मीटरों की रीडिंग के अनुपात में अथवा प्रत्येक विभाग के बिजली के पाइन्टों तथा उन पर लगे बल्बों की शक्ति (Voltage) के अनुपात में बाँटना चाहिए।
(v) विद्युत पावर : (Electric Power ) – इन्हें भी सर्वप्रथम प्रत्येक विभाग में लगे हुए मीटरों की रीडिंग अथवा विभिन्न विभागों में लगी मशीनों की संख्या, उनकी हार्स पावर तथा उनके चलने के घंटों को ध्यान में रखकर बाँटना चाहिए।
(b) ऐसे व्यय जिनका बँटवारा नहीं किया जा सकता है (Expenses which can not be allocated) –
व्यापार में कई व्यय इस प्रकार के होते हैं जिनका बँटवारा सम्भव नहीं होता है। इन व्ययों को अपनी इच्छानुसार विभागों में न बाँटकर सामान्य लाभ-हानि खाते (General Profit and Loss A/c) में दर्शाना चाहिए। ये व्यय निम्न हो सकते हैं-
(i) आयकर (Income Tax), (ii) जनरल मैनेजर का वेतन (Salary to General Manager), (ii) संचालकों का पारिश्रमिक (Director’s Remuneration), (v) कानूनी व्यय (Legal Expenses), (vi) लाभांश (Dividends) (vii) ऋण पर ब्याज (Interest on Loan), (viii) संचय में हस्तान्तरण (Transfer to Reserve) इत्यादि ।
नोट: यदि प्रश्न में आयकर के बांटने के सम्बन्ध में कोई सूचना न दी गई हो तो इसे विभागों के कर से पूर्व के लाभ के अनुपात में बाँटा जा सकता है।
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