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किशोरावस्था का वर्गीकरण | Classification of Adolescence in Hindi

किशोरावस्था का वर्गीकरण | Classification of Adolescence in Hindi
किशोरावस्था का वर्गीकरण | Classification of Adolescence in Hindi

किशोरावस्था का वर्गीकरण (Classification of Adolescence)

किशोरावस्था एक संक्रमण काल (Transition period) है जिसमें बालक में कुछ गुण बाल्यावस्था के तथा कुछ गुण युवावस्था ( adulthood) के होते हैं।

किशोरावस्था को पुल (Bridge) भी कह सकते हैं जिसके द्वारा बालक जीवन विकास क्रम की बाल्यावस्था से युवावस्था तक पहुँच सकता है। जीवन नदी का एक किनारा बाल्यावस्था तथा दूसरा युवावस्था है।

बाल्यावस्था से युवावस्था तक पहुँचने में किशोरावस्था एक पुल की भाँति है। इस तथ्य को निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-

किशोरावस्था के पुल के द्वारा ही हम इस नदी को पार कर सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि किशोरावस्था में सर्वांगीण विकास बहुत महत्वपूर्ण होता है।

इस अवस्था में जितना ही मूल्यपरक विकास होगा, जितने ही अच्छे संस्कार विकसित होंगे व्यक्ति भविष्य में उतने ही अच्छे नागरिक के रूप में विकसित होकर समाज एवं राष्ट्र के विकास में अपना योगदान देने में सक्षम होगा।

किशोरावस्था तीव्र परिवर्तनों की अवस्था है- जो वयः सन्धि अवस्था से प्रारम्भ होती है एवं प्रौढ़ावस्था की प्रारम्भिक अवस्था तक रहती है। किशोरावस्था का अध्ययन सही तरीके से करने के लिए विद्वानों ने इस अवस्था के विकासक्रम को दो अवस्थाओं में बाँटा है-

  1. पूर्व किशोरावस्था (Early Adolescence) 13- 16 वर्ष,
  2. उत्तर किशोरावस्था ( Late Adolescence) 17-21 वर्ष ।

1) पूर्व किशोरावस्था (Early Adolescence) – पूर्व किशोरावस्था वयः सन्धि अवस्था की समाप्ति अर्थात् 13 वर्ष से प्रारम्भ होकर 16-17 वर्ष तक चलती है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि इसका प्रारम्भ बालिकाओं में 13 वर्ष से एवं बालकों में लगभग एक वर्ष बाद यानि 14 वर्ष से होता है। इस अवस्था को समस्या बाहुल्य की अवस्था भी कहते हैं क्योंकि द्रुत शारीरिक परिवर्तन होने के कारण समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।

2) उत्तर किशोरावस्था (Late Adolescence) – उत्तर किशोरावस्था 16 या 17 वर्ष से प्रारम्भ होती है एवं 21 वर्ष तक चलती है। हरलॉक ने 17 वर्ष की आयु को पूर्व किशोरावस्था एवं उत्तर किशोरावस्था के मध्य की विभाजक रेखा कहा है। विकास की दृष्टि से यह अवस्था अति महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह प्रौढ़ जीवन की तैयारी का काल होता है। इस अवस्था में जिस प्रकार के व्यवहार प्रतिमान, अभिवृत्तियाँ एवं रुचियाँ आदि निर्धारित कर लिए जाते हैं- वे ही प्रौढ़ जीवन का आधार बनते हैं।

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Anjali Yadav

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