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किशोरावस्था में सामाजिक विकास (Social Development during Adolescence) (13 से 19-20 वर्ष तक)
यह काल परिर्वतनों का संक्रमण काल है। किशोरावस्था में शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक परिवर्तन तीव्र गति से होते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति विभिन्न समूहों का निर्माण करता है और उनके सदस्यों के प्रति लगाव, प्रतिस्पर्धा तथा समूह भक्ति की भावना को प्रदर्शित करता है। विषमलिंगी मित्रों की घनिष्ठता के कारण उनके व्यवहार में परिपक्वता झलकने लगती है। इस अवस्था में व्यक्ति का व्यापक विकास होता है। किशोरावस्था में व्यक्ति में वीर पूजा की प्रवृत्ति का विकास होता है। इससे साहस तथा उत्साह का संचार होता है। किशोर अपनी रुचि के अनुसार आदर्श व्यक्ति अथवा अभिनेता का अनुसरण एवं उनके आदर्श विचारों का पालन करने लगता है। इससे उसमें नैतिक मूल्यों के प्रति श्रद्धा तथा आदर्श मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। किशोरावस्था के अंतिम वर्षों में व्यक्ति के व्यवहार में स्थायित्व आ जाता है, जो उसके जीवन-दर्शन निर्माण में सहायक होता है। अतः कहा जा सकता है कि किशोरावस्था में सामाजिक विकास अपने चरम पर होता है।
इस अवस्था में किशोरों को समाज में समायोजन करने हेतु कई प्रकार की भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं जिससे वह समाज में अनुकूलन कर सकें और सामाजिक अनुमोदन प्राप्त कर समाज में एक सम्मानीय स्थान प्राप्त कर सकें। इस अवस्था में सामाजिक विकास में विद्यालय के शिक्षकों एवं मित्रों का अधिक प्रभाव पड़ता है।
किशोरावस्था (13-19 / 20वर्ष) में सामाजिक विकास (Social Development during Adolescence)
- साथियों का प्रभाव (Peer Influence) मित्रों का प्रभाव पड़ता है
- नेतृत्व (Leadership) सहयोग, सहानुभूति एवं प्रतिस्पर्धा की भावना
- लिंग सम्बन्धी चेतना (Gender Consciousness) अपने लिंग के अनुसार वेश-भूषा, हाव-भाव के प्रति सतर्क रहते हैं
- विद्रोह की भावना (Feeling of Revolt) स्वतंत्रता का हनन होने की दशा में विद्राह करते हैं। माता-पिता से वैचारिक मतभेद की दशा में उद्दण्ड हो जाते हैं तथा आक्रामक हो जाते हैं।
- व्यवसाय चयन (Selection of Vocation or Profession) भविष्य की योजनाएँ बनाते हैं अपनी रुचि एवं योग्यता के अनुसार व्यवसाय चुनते हैं
- सामाजिक रुचि (Social Interest) सामाजिक समारोहों, पार्टियों तथा त्योहारों में सक्रीय भागीदारी करते हैं
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