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केन्द्रीय विश्वविद्यालय | CENTRAL UNIVERSITIES
केन्द्रीय विश्वविद्यालय अधोलिखित प्रकार कार्यरत हैं-
(1) अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University Aligarh) इस विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 में एक आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में की गई थी। इसमें 76 विभागों के साथ 10 संकाय तथा जवाहरलाल मेडिकल कॉलेज तथा जाकिर हुसैन कॉलेज सहित चार कॉलेज है। इसमें लगभग 17,200 छात्र, 1.200 शिक्षक तथा 5.200 शिक्षणोत्तर कर्मचारी हैं।
(2) बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस (Banaras Hindu University, Banaras ) यह विश्वविद्यालय (बी. एच. यू.) एक शिक्षण व आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में सन् 1916 में स्थापित किया गया था। इसमें मुख्यतः आयुर्विज्ञान संस्थान, प्रौद्योगिकी संस्थान, कृषि विज्ञान संस्थान शामिल हैं। कुल मिलाकर इसमें 14 संकाय व 14 शैक्षिक विभाग हैं। बनारस नगर के चार कॉलेज भी इसके क्षेत्राधिकार में हैं। यह एक महिला महाविद्यालय तथा 3 स्कूल स्तर के संस्थानों का भी अनुरक्षण करता है। इसमें 14,500 छात्र, 1,265 शिक्षक तथा 6,758 गैर शिक्षक कर्मचारी हैं।
(3) दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली (Delhi University, Delhi)– एक शिक्षण तथा सम्बन्धन विश्वविद्यालय के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय को संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया। इसमें भूटान के शेरूबत्से (Sherubtse) कॉलेज सहित 76 कॉलेज सम्बद्ध हैं। उत्तर तथा दक्षिण परिसरों में स्थित विश्वविद्यालयों में 15 संकाय तथा शैक्षिक विभाग हैं। गैर-कॉलेज महिला शिक्षा बोर्ड पत्राचार-पाठ्यक्रम व सतत् शिक्षा स्कूल अंशकालिक तथा पत्राचार शिक्षा के लिए अवसर प्रदान करते हैं। विश्वविद्यालय में छात्रों की कुल संख्या 2 लाख से अधिक है जिसमें लाख बीस हजार से अधिक नियमित छात्र हैं। संकायों के सदस्यों की संख्या 740 है।
(4) जामिया मिलिया इस्लामिया (Jamia Milia Islamia)- जामिया मिलिया इस्लामिया, जो सन् 1969 से सम-विश्वविद्यालय (Deemed University) के रूप में कार्य कर रहा था, को 26 दिसम्बर, 1986 में संसद के एक अधिनियम द्वारा एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है। विश्वविद्यालय नर्सरी स्तर से लेकर स्नातकोत्तर तथा डॉक्टोरल स्तर तक समेकित शिक्षा प्रदान करता है। इसमें 8750 छात्र, 451 शिक्षक तथा 1042 गैर-शिक्षक कर्मचारी हैं। सन् 1993-94 से जामिया मिलिया इस्लामिया में निम्नलिखित नवीन पाठ्यक्रम तथा शैक्षिक कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये हैं-
1. एम. फिल. अंग्रेजी साहित्य/अंग्रेजी भाषा शिक्षण,
2. एम. ए. मानव संसाधन विकास,
3. एम. एड. (अवकाश),
4. बी. ई. (इलेक्ट्रीकल/मेकेनिकल),
5. पी. जी. डिप्लोमा इन ऑफीसियल लेंग्वेज हिन्दी,
6. पी. जी. डिप्लोमा इन ट्रान्सलेशन,
7. पी. जी. डिप्लोमा इन क्रियेटिव राइटिंग (हिन्दी)।
(5) इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (Indira Gandhi National Open University IGNOU)- इस विश्वविद्यालय की स्थापना संसद के एक अधिनियम द्वारा सितम्बर, 1985 में की गई थी। इसका उद्देश्य देश की शिक्षा पद्धति में मुक्त विश्वविद्यालय व दूरस्थ शिक्षा पद्धति को शुरू करना व बढ़ावा देना है तथा इन पद्धतियों के स्तरों का निर्धारण तथा समन्वय करना है। इस विश्वविद्यालय ने 1994-95 के दौरान तीन प्रमाण-पत्र कार्यक्रम, 16 डिप्लोमा कार्यक्रम, सात अवर स्नातक डिग्री कार्यक्रम तथा तीन स्नातकोत्तर डिग्री कार्यक्रम आरम्भ किये। इसने अभी तक 215 शिक्षक तथा 700 तकनीकि व्यावसायिक प्रशासनिक एवं सहायक स्टॉफ की भर्ती की है। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय अंशकालिक आधार पर करीब 620 समन्वयकों व सहायक समन्वयकों तथा लगभग 12 हजार शैक्षिक परामर्शकों की सेवाओं का उपयोग कर रहा है। इस विश्वविद्यालय ने देश के विभिन्न भागों में 16 क्षेत्रीय केन्द्र तथा 230 अध्ययन केन्द्र स्थापित किये हैं। दूरदर्शन मई, 1991 से प्रत्येक सोमवार, बुधवार तथा शुक्रवार को इस विश्वविद्यालय के कार्यक्रम प्रसारित कर रहा है। सन् 1992 से सप्ताह में तीन दिन इस विश्वविद्यालय के कुछ चयनित श्रव्य कार्यक्रम बम्बई (मुम्बई) तथा हैदराबाद के स्टेशनों से भी प्रसारित किये जा रहे हैं।
(6) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru University Delhi)- इस विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 1966 में संसद के अधिनियम के द्वारा की गई थी। इस विश्वविद्यालय में 24 अध्ययन केन्द्रों वाले 7 विद्यालय हैं। इसके अतिरिक्त इसमें जैव प्रौद्योगिकी (Bio-Technology) के लिए एक पृथक केन्द्र है। इसमें 3.873 छात्र नामांकित हैं। इसके शिक्षण तथा शिक्षणेत्तर स्टॉफ की संख्या क्रमश: लगभग 375 और 1350 है।
(7) हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad) हैदराबाद विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 1974 में संसद के एक अधिनियम द्वारा मुख्यत: स्नातकोत्तर तथा शोध अध्ययन के लिए की गई। सन् 1994-95 में इसमें कुल 877 छात्रों को प्रवेश दिया गया। इसमें संकाय सदस्यों की कुल संख्या 234 है।
(8) उत्तरी-पूर्वी पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलॉग (North-Eastern Hill University, Shillong)- इस विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 1973 में संसद के एक अधिनियम द्वारा की गई थी। इसका क्षेत्राधिकार उत्तरी पूर्वी क्षेत्र अर्थात् मेघालय और मिजोरम तक फैला हुआ है। इसका मुख्यालय शिलाँग में है। इसमें 60972 छात्र नामांकित हैं। इसमें 350 संकाय सदस्य तथा 2,000 गैर-शिक्षक स्टॉफ है। इसमें सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र प्रबन्ध (Economic Management), सूचना विज्ञान, जीव विज्ञान, मानव व पर्यावरण विज्ञान, शारीरिक विज्ञान, मानविकी तथा शिक्षा के स्कूल हैं।
(9) पॉण्डिचेरी विश्वविद्यालय (University of Pondicherry)– इस विश्वविद्यालय की स्थापना संसद के एक अधिनियम द्वारा अक्टूबर, 1985 में एक शिक्षण सम्बन्धन विश्वविद्यालय के रूप में हुई थी। इस विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में संघ शासित क्षेत्र पाण्डिचेरी तथा अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह आते हैं। इस समय इसमें दो निदेशालय, छ: स्कूल, 17 विभाग तथा सात केन्द्र हैं। साथ ही इससे 19 संस्थाएँ सम्बद्ध हैं। मुख्य परिसर में 1100 छात्र तथा 132 संकाय सदस्य एवं 539 शिक्षणेत्तर कर्मचारी हैं।
(10) विश्वभारती (Visva-Bharti) गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शिक्षा संस्था विश्वभारती अधिनियम, 1951 द्वारा एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित की गई थी। विश्वविद्यालय की संकाय तथा छात्र संख्या क्रमश: 468 तथा 5,648 है। सन् 1994 में जापानी अध्ययन केन्द्र ‘निप्पन भावना’ स्थापित किया गया।
(11) असोम विश्वविद्यालय, सिल्चर (Assam University, Silchar)- यह विश्वविद्यालय संसद के एक अधिनियम द्वारा 15 जनवरी, 1994 को स्थापित किया गया। यह एक सम्बद्ध विश्वविद्यालय है और राज्य के पाँच जिलों कछार (Cachar), करीमगंज (Karimganj), उत्तरी कछार (North Cachar Hills), हेलाकण्डी (Hailakandi) तथा कर्बी अंगलोंग (Karbi Anglong) के कॉलेज इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हैं। इसमें दो वर्षीय एम. ए./एम. एस-सी./एम. कॉम. कार्यक्रम चल रहे हैं।
(12) तेजपुर विश्वविद्यालय, तेजपुर (Tezpur University, Tezpur)- यह विश्वविद्यालय संसद के एक अधिनियम द्वारा सन् 1993 में स्थापित किया गया। इसका उद्घाटन प्रधानमन्त्री ने 21 जनवरी, 1994 को नापाम में एक असम्बद्ध विश्वविद्यालय के रूप में किया विश्वविद्यालय ने 15 जुलाई, 1994 से निम्नलिखित पाठ्यक्रमों में कक्षाएँ शुरू की-
(i) एम. ए. एम. एस-सी. (गणित),
(ii) एम. सी. ए. (Master of Computer Applications) तथा
(iii) पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन इंग्लिश लेंग्वेज टीचिंग (ELT) |
(13) नागालैण्ड विश्वविद्यालय (Nagaland University)-नागालैण्ड विश्वविद्यालय को 6 सितम्बर, 1994 को एक सम्बद्ध विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया गया और इसका क्षेत्राधिकार सम्पूर्ण नागालैण्ड राज्य है।
शिक्षा विभाग निम्नलिखित विश्वविद्यालय/संस्थान स्थापित कर रहा है-
1. अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,
2. उर्दू विश्वविद्यालय,
3. राजीव गाँधी संगणक एवं सम्बद्ध विज्ञान संस्थान अन्त में हम कह सकते हैं कि शिक्षा एक समवर्ती (Concurrent) विषय है। समवर्ती का अभिप्राय केन्द्र सरकार तथा राज्यों के बीच एक सार्थक सहभागिता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में इस सम्बन्ध में उल्लेख किया गया है-
“शिक्षा के सम्बन्ध में राज्यों की भूमिका और उनके उत्तरदायित्व में कोई परिवर्तन नहीं होगा। केन्द्रीय सरकार की कोटि तथा स्तरों (सभी स्तरों पर शिक्षण व्यवसाय सहित) को बनाये रखने, अनुसन्धान तथा प्रोन्नत अध्ययन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विकास हेतु जनशक्ति के सम्बन्ध में सम्पूर्ण देश की शैक्षिक अपेक्षाओं का अध्ययन और उनका अनुश्रवण करने की शिक्षा, संस्कृति तथा मानव संसाधन के अन्तर्राष्ट्रीय पहलुओं की देखभाल करने और सामान्य तौर पर देश भर में शैक्षणिक पिरामिड (संस्वीकृत) के सभी स्तरों पर उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा के राष्ट्रीय तथा समेकित स्वरूप को लागू करने के लिए अपने व्यापक उत्तरदायित्व को स्वीकार करेगी।”
मानव संसाधन विकास मन्त्रालय का शिक्षा विभाग राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा निर्धारित दायित्वों को पूरा करने का प्रयास कर रहा है।
केन्द्रीय शिक्षा प्रबन्ध नियन्त्रण की समस्याएँ (PROBLEMS OF CENTRAL EDUCATION CONTROL MANAGEMENT)
शैक्षिक प्रबन्ध की दृष्टि से केन्द्रीय सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं को हम निम्नलिखित रूप में स्पष्ट कर सकते हैं-
(1) आर्थिक असमानता- भारत देश कई राज्यों में बँटा है, ये राज्य आर्थिक दृष्टि से समान नहीं हैं। इनमें कुछ राज्यों में आर्थिक सम्पन्नता अधिक है जबकि कुछ राज्य अत्यधिक विपन्नता से घिरे हैं। ऐसे राज्यों में जहाँ आर्थिक असमानता व्याप्त है वहाँ प्रबन्ध करना भी कठिन कार्य है, अतः इस असमानता के कारण प्रबन्ध नियन्त्रण में भी असमानता बनी रहती है।
(2) शिक्षा का विकेन्द्रीकरण- भारत में शिक्षा का स्वरूप विकेन्द्रित है, फलस्वरूप केन्द्रीय योजनाएँ विभिन्न कार्यक्रमों एवं अनेक शैक्षिक नीतियों को तुरन्त लागू नहीं किया जा सकता और सभी राज्यों में इन नीतियों को समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता। इसका कारण है विकेन्द्रीकरण के कारण राज्यों में शिक्षा की नीतियों के क्रियान्वयन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
(3) वित्तीय संकट- केन्द्र सरकार के समक्ष भी वित्तीय संकट बना रहता है इसलिए सभी राज्यों में शिक्षा का विकास समान रूप से नहीं हो पाता है। सभी राज्यों को समान रूप से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना अत्यन्त कठिन कार्य है। सही मायने में तो सभी को समान सहायता उपलब्ध कराने में केन्द्र सरकार असमर्थ है।
(4) केन्द्रीय नियन्त्रण में कठोरता- केन्द्र सरकार के ऐच्छिक अधिकार हैं। इन अधिकारों में वृद्धि होने से नियन्त्रण में कठोरता आना स्वाभाविक है; अतः केन्द्रीय नियन्त्रण में कठोरता के फलस्वरूप शिक्षा का विकास प्रभावित होता है। केन्द्र द्वारा आर्थिक सहायता के रूप में अधिक अनुदान देने के कारण केन्द्रीय नियन्त्रण में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि केन्द्रीय नियन्त्रण को कठोर बना देती है।
(5) प्रशासनिक दृष्टि से राज्य की तुलना में केन्द्र का अधिक उत्तरदायी होना– भारतीय संविधान में राज्य सूची, केन्द्रीय सूची और समवर्ती सूची शिक्षा के क्षेत्र में निर्मित की गई है। केन्द्र सरकार को केन्द्रीय और समवर्ती सूची में अधिक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। उन शक्तियों के फलस्वरूप केन्द्र का उत्तरदायित्व अधिक बढ़ जाता है। उत्तरदायित्व में यह वृद्धि राज्य में शिक्षा विकास को प्रभावित करती है अर्थात् राज्यों को शैक्षिक विकास के लिए केन्द्र पर आश्रित रहना पड़ता है।
(6) प्रशासनिक समन्वय का अभाव- केन्द्र सरकार का उत्तरदायित्व अधिक होने से देश के विभिन्न भागों में शैक्षिक प्रशासन में समन्वय स्थापित नहीं हो पाता है। राज्य सरकार और केन्द्र सरकार में प्रशासनिक दृष्टि से समन्वय का अभाव विकास को प्रभावित करता है।
(7) केन्द्रीय करों की अधिकता- राज्य में केन्द्रीय करों की अधिकता के कारण धन का अभाव बना रहता है। वांछित धन के अभाव में राज्य शिक्षा का समुचित विकास नहीं कर पाते हैं और आर्थिक असमानता के कारण प्रशासनिक असमानता भी बनी रहती है।
अतः स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार को शिक्षा प्रबन्ध नियन्त्रण की अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कहीं समन्वय का अभाव है तो कहीं धन का अभाव, कहीं करों की अधिकता है तो कहीं प्रशासनिक कठोरता। इन सब समस्याओं के कारण शैक्षिक विकास उतनी गति से और समान रूप से नहीं हो पाता है जिस गति और समानता से होना चाहिए। आवश्यकता है इन समस्याओं को दूर कर गति को तीव्र करने की, ताकि आम जनता लाभान्वित हो सके और सबको शिक्षा का अधिकार व्यावहारिक रूप में उपलब्ध हो सके।
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