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केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड | CENTRAL ADVISORY BOARD OF EDUCATION-CABE
यह मण्डल सबसे प्राचीन संस्था है। शिक्षा सम्बनधी मामलों में प्रान्तीय सरकारों को सलाह देने के लिए इसकी स्थापना 1921 ई. में की गई थी। 1923 में इसको ‘Retrenchment Committee’ की सिफारिश पर विघटित कर दिया गया था। परन्तु हटाँग समिति (Hartong Committee) की सिफारिश के परिणामस्वरूप इसको 1935 ई. में पुनः स्थापित किया गया और वह अब तक कार्य कर रहा है।
यह बोर्ड मन्त्रालय की समस्त क्रियाओं की महत्त्वपूर्ण धुरी है, जिसके चारों ओर सम्पूर्ण कार्यक्रम फैला हुआ है। इसका संगठन इस प्रकार किया गया है-
1. केन्द्रीय शिक्षामन्त्री (चेयरमैन) ।
2. भारत सरकार का शिक्षा-परामर्शदाता।
3. भारत सरकार द्वारा मनोनीत 15 सदस्य, जिनमें 4 स्त्रियाँ होती हैं।
4. संसद के पाँच सदस्य, जिनमें 2 राज्यसभा तथा 3 लोकसभा के सदस्य।
5. भारत सरकार के विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों में अन्तर विश्वविद्यालय मण्डल द्वारा चुने हुए 2 सदस्य। 6. अखिल भारतीय प्राविधिक शिक्षा परिषद् के 2 सदस्य, जिनको स्वयं परिषद् मनोनीत करती है।
7. प्रत्येक राज्य सरकार का एक प्रतिनिधि, जो शिक्षामन्त्री होता है।
8. मण्डल का सचिव, उसको केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। सामान्यतः केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय का शिक्षा सचिव ही इसके सचिव का कार्य करता है।
इस मण्डल के दो प्रमुख कार्य हैं-
1. किसी भी शिक्षा सम्बन्धी प्रश्न पर, जो केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा उसके समक्ष प्रस्तुत किया जाय, परामर्श देना।
2. भारत सरकार के शैक्षिक विकास से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सूचनाओं एवं परामर्शों को एकत्रित करना तथा उनकी जाँच करके अपनी सिफारिशों के साथ भारत सरकार तथा राज्य सरकारों को प्रस्तुत करना ।
इस बोर्ड की वर्ष में एक बार बैठक अवश्य होती है। यह अपनी बैठक में देश की प्रमुख शैक्षिक समस्याओं पर विचार-विमर्श करता है तथा उनके सम्बन्ध में अपने सुझाव प्रदान करता है। यह बोर्ड अपनी चार स्थायी समितियों—प्राथमिक तथा बेसिक शिक्षा समिति, सामाजिक शिक्षा समिति, माध्यमिक शिक्षा समिति तथा उच्च शिक्षा समिति के द्वारा कार्य करता है।
1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड को शिक्षा के प्रबन्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करने का दायित्व सौंपा गया है। यह बोर्ड शैक्षिक विकास का पुनरावलोकन करेगा। शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए आवश्यक परिवर्तनों को सुनिश्चित करेगा और कार्यान्वयन सम्बन्धी देखरेख में निर्णायक भूमिका अदा करेगा। बोर्ड उपर्युक्त समितियों के माध्यम से एवं मानव संसाधन विकास के विभिन्न क्षेत्रों के बीच सम्पर्क तथा समन्वय के लिए बनाये गये प्रक्रमों के माध्यम से कार्य करेगा। केन्द्र तथा राज्यों के शिक्षा विभागों को सुदृढ़ बनाने के लिए इनमें व्यावसायिक दक्षता रखने वाले व्यक्तियों को लाया जाएगा।
अखिल भारतीय प्रारम्भिक शिक्षा परिषद् (ALL INDIA COUNCIL FOR ELEMENTARY EDUCATION)
इस परिषद् की स्थापना शिक्षा तथा वैज्ञानिक अनुसन्धान मन्त्रालय द्वारा 1957 में की गई थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष तक के सभी बालकों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रकार के कदम उठाना है। केन्द्रीय सरकार प्रारम्भिक शिक्षा के क्षेत्र में अपने दायित्व का निर्वाह इसी परिषद् के माध्यम से करती है तथा इस क्षेत्र में राज्य सरकारों एवं स्थानीय निकायों का नेतृत्व एवं पथ प्रदर्शन करती है। इस परिषद् का संगठन निम्नलिखित संस्थाओं द्वारा भेजे गए प्रतिनिधियों से होता है-
1. राज्य सरकारों के प्रतिनिधि।
2. केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड।
3. अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद् ।
4. प्रशिक्षण महाविद्यालयों के प्रतिनिधि।
5. बेसिक शिक्षा से सम्बन्धित शिक्षा मर्मज्ञ।
6. शिक्षा मन्त्रालय के प्रतिनिधि।
7. पिछड़े वर्गों एवं लड़कियों की शिक्षा से सम्बन्धित शिक्षा मर्मज्ञ।
इस परिषद् के अधोलिखित कार्य निर्धारित किये गये-
1. प्रारम्भिक शिक्षा से सम्बन्धित मामलों पर केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार तथा स्थानीय निकायों को सलाह देना।
2. प्रारम्भिक शिक्षा की प्रशासनीय, वित्तीय एवं शिक्षणशास्त्र सम्बन्धी समस्याओं पर अनुसन्धान कार्य कराना तथा उनके निष्कर्षों को प्रकाशित करना।
3. ऐसा साहित्य तैयार करना, जिससे शिक्षा विभागों तथा शिक्षकों को प्रारम्भिक शिक्षा के स्तर को उन्नत बनाने में सहायता मिल सके।
4. प्रारम्भिक शिक्षा के विस्तार एवं उन्नति के लिए उपयुक्त प्रकार का निर्देशन एवं नेतृत्व प्रदान करना।
5. प्रत्येक राज्य में प्रारम्भिक शिक्षा की उन्नति एवं विस्तार के लिए विस्तृत कार्यक्रम तैयार करना।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अनुसार प्रारम्भिक शिक्षा की नई दिशा में दो बातों पर विशेष बल दिया जाएगा– (क) 14 वर्ष की अवस्था तक के सब बच्चों को विद्यालय में भर्ती तथा उनका विद्यालयों में टिके रहना तथा (ख) शिक्षा की गुणवत्ता में काफी सुधार इन दोनों उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अखिल भारतीय प्रारम्भिक शिक्षा परिषद् महत्त्वपूर्ण कदम उठा रही है। यह सभी प्राथमिक विद्यालयों को आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करने के लिए ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड (Operation Black Board) की योजना का संचालन कर रही है। साथ ही ऐसे बच्चों के लिए जो बीच में विद्यालय छोड़ गये हैं या जो ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहाँ स्कूल नहीं है या जो काम में लगे हैं और वे लड़कियाँ जो दिन के स्कूल में पूरे समय नहीं जा सकतीं, इन सबके लिए एक विशाल तथा व्यवस्थित गैर-औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा (Non-formal Education) का कार्यक्रम संचालित करा रही है। सरकार इस क्षेत्र के समस्त दायित्वों का भार स्वयं उठायेगी।
बाल भवन सोसायटी, भारत (BAL BHAVAN SOCIETY INDIABBST)
बाल भवन सोसायटी भारत, नई दिल्ली भारत के प्रथम प्रधान मन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू की पहल पर वर्ष 1955 में भारत सरकार द्वारा स्थापित की गई थी। यह शिक्षा विभाग द्वारा वित्त पोषित एक स्वायत्त संगठन है। सोसायटी 5 से 16 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के बीच सृजनात्मक कार्यकलापों को बढ़ावा देने में योगदान दे रही है। बाल भवन में विशेष तौर पर समाज के आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे तथा अन्य सृजनात्मक प्रदर्शन कलाओं, पर्यावरण, खगोल विज्ञान, छायाचित्रण, समेकित कार्यकलापों, शारीरिक कार्यकलापों से लेकर विज्ञान से सम्बन्धित कार्यकलापों तथा अपनी अन्य रुचियों के कार्यकलापों में भाग लेने के लिए आते हैं। सोसायटी के 52 बाल भवन केन्द्र हैं जो दिल्ली भर में फैले हैं। सोसायटी श्रीनगर तथा मण्डी स्थित जवाहर बाल भवनों को निधियाँ प्रदान करती है। बाल भवन का राष्ट्रीय प्रशिक्षण संसाधन केन्द्र शिक्षकों तथा शिक्षक प्रशिक्षकों सहित इच्छुक व्यक्तियों को प्रणाली विज्ञान में प्रशिक्षण प्रदान करता है। देश के राज्य जिला बाल भवन, बाल भवन सोसायटी भारत से सम्बद्ध हैं। बाल भवन सोसायटी इन राज्य जिला बाल भवनों को सामान्य दिशा-निर्देश, प्रशिक्षण तथा सूचनाएँ प्रदान करती है। बाल भवन सोसायटी का प्रमुख उद्देश्य स्वतन्त्रता तथा प्रसन्नता के वातावरण में बच्चों का चहुँमुखी विकास करना है।
अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद् (ALL INDIA COUNCIL FOR SECONDARY ED TION)
इस परिषद् की स्थापना सन् 1955 में की गई थी। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य यह था कि वह देश में माध्यमिक शिक्षा की उन्नति के लिए एक विशेष संस्था के रूप में कार्य करे। उस समय इस परिषद् के सदस्यों की संख्या 22 थी और उसका चेयरमैन भारत सरकार का शिक्षा परामर्शदाता था। इस परिषद् को दो प्रकार के कार्य सौंपे गये-परामर्श सम्बन्धी तथा कार्यपालिका सम्बन्धी। यह परिषद् माध्यमिक शिक्षा के सभी क्षेत्रों में भारत सरकार तथा राज्य सरकारों को सलाह देने वाली संस्था होने के साथ-साथ स्वयं इस क्षेत्र में माध्यमिक शिक्षा के प्रसार एवं उन्नति के लिए पहला कदम उठाने की भी अधिकारिणी थी। इस परिषद् ने सन् 1955-58 तक इसी रूप में कार्य किया, परन्तु सन् 1958 में इस परिषद् का पुनर्गठन किया गया, उसके कार्यपालिका सम्बन्धी कार्यों को एक दूसरी संस्था ‘Directorate of Extension Programmes for Secondary Education (DEPSE)’ को सौंप दिया गया और इसको माध्यमिक शिक्षा परिषद् से सम्बन्धित रखा गया। अब इस पुनर्संगठित माध्यमिक शिक्षा परिषद् का कार्य केवल परामर्श देने तक ही सीमित है। इस पुनसँगठित परिषद् में निम्नलिखित निकायों को प्रतिनिधित्व प्राप्त हैं-
1. केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय।
2. केन्द्रीय वित्त मन्त्रालय।
3. अखिल भारतीय प्राविधिक शिक्षा परिषद्।
4. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग।
5. अखिल भारतीय शिक्षा समुदायों का संघ।
6. प्रशिक्षण महाविद्यालयों का समुदाय।
7. प्रत्येक राज्य का एक प्रतिनिधि–इनको भारत सरकार द्वारा मनोनीत किया जाता है।
8. अखिल भारतीय प्रारम्भिक शिक्षा परिषद् ।
शिक्षा विभाग विद्यालयीय शिक्षा के क्षेत्र में उपर्युक्त अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद् के अतिरिक्त निम्नांकित संगठनों से भी कार्य लेता है। इन संगठनों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है-
(अ) केन्द्रीय विद्यालय संगठन (KENDRIYA VIDYALAYA SANGTHANKVS)
विभिन्न रक्षा प्रतिष्ठानों में चल रहे तत्कालीन क्षेत्रीय (Regimental) स्कूलों को अंगीकृत करते हुए सन् 1963-64 में केन्द्रीय विद्यालय संगठन ने एक स्वायत्त निकाय के रूप में कार्य प्रारम्भ किया। इस संगठन ने विद्यालयीय शिक्षा में गति निर्धारक के रूप में अपना अस्तित्व बनाया है। इस वक्त देश में 1196 केन्द्रीय विद्यालय हैं। इनमें 7 लाख से अधिक छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इनमें प्रधानाचार्यों सहित 42 हजार शिक्षक कार्य कर रहे हैं। ये विद्यालय उन कर्मचारियों के बच्चों के लिए खोले गये हैं जिनके पद स्थानान्तरित हैं। केन्द्रीय विद्यालय संगठन शिक्षण अधिगम की गुणवत्ता की बेहतरी के लिए दृढ़ प्रयास कर रहा है।
(ब) केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CENTRAL BOARD OF SECONDARY EDUCATION-CBSE)
भारत सरकार ने जुलाई, 1952 में इस बोर्ड की स्थापना की। इस बोर्ड का प्रमुख कार्य सम्बन्धन (Affiliation), शैक्षिक (Academic) जैसे बहुविधि, कार्यकलाप हैं जो परीक्षा के अलावा इसके क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं। शैक्षिक क्षेत्र में यह बोर्ड अपने से सम्बद्ध स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता के सुधार के लिए कदम उठाता है। यह पाठ्यक्रम को माध्यमिक स्तरों के लिए शिक्षण कार्य में रत अध्यापकों तथा विभिन्न विषयों में पाठ्यक्रम समितियों के माध्यम से अद्यतन बनाता है, साथ ही यह शिक्षकों के लिए सेवाकालीन प्रबोधन कार्यक्रमों का भी आयोजन करता है। बोर्ड ने वाणिज्य तथा कृषि पर आधारित विभिन्न पाठ्यक्रमों का निर्धारण किया। इन व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के निर्धारण में स्वरोजगार की नवीन सम्भावनाओं की खोज तथा उनको कौशलोन्मुख बनाने पर बल दिया है। बोर्ड ने अपनी परीक्षाओं में प्रश्न-पत्रों की विधि सैटों का प्रयोग करके नकल की बुराई के उन्मूलन के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
(स) नवोदय विद्यालय समिति (NAVODAYA VIDYALAYA SAMITI – NVS)
यह सर्वस्वीकार्य है कि विशिष्ट प्रतिभा वाले बच्चों को अच्छी शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराके तेज गति से आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करने चाहिए चाहे वे इसकी कीमत अदा करने की क्षमता न रखते हों। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में यह परिकल्पना की गई थी कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक दिये हुए नमूने पर ‘Pace Setting School’ स्थापित किये जायें जिनमें नवीन पद्धतियों तथा प्रयोगों की गुंजाइश हो। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभाशाली बच्चों को अच्छी आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने सन् 1985-86 में देश के प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय स्थापित करने की योजना प्रारम्भ की। इन विद्यालयों के प्रबन्धन एवं संचालन के लिए ‘नवोदय विद्यालय समिति’ की स्थापना की गई जो कि मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के अन्तर्गत एक स्वायत्त संस्था है। यह संस्था समिति के रूप में 28 फरवरी, 1985 को पंजीकृत की गई थी। यह केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से सम्बद्ध है। समिति के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार है-
1. समानता एवं सामाजिक न्याय के साथ उत्कृष्टता के उद्देश्यों को पूरा करना।
2. देश के विभिन्न भागों के बच्चों को साथ रहने तथा सीखने का अवसर प्रदान करने के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना।
3. उनकी क्षमता का पूर्ण रूप से विकास करना, तथा
4. राष्ट्रीय विकास के लिए प्रेरणादायक बनाना।
समिति का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है। इसके अतिरिक्त पुणे, भोपाल, चण्डीगढ़, हैदराबाद, जयपुर, शिलांग, लखनऊ तथा पटना में क्षेत्रीय कार्यालय हैं। ये कार्यालय प्रत्येक अपने क्षेत्राधिकार के अधीन विद्यालयों के शैक्षिक, वित्तीय व प्रशासनिक कार्यों का अनुवीक्षण करते हैं।
(द) राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय (NATIONAL OPEN SCHOOL – NOS)
केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, नई दिल्ली ने सन् 1979 में पहला मुक्त विद्यालय एक परियोजना के रूप में शुरू किया था। मुक्त अध्ययन प्रणाली तथा दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से समाज के लाभ से वंचित वर्गों को विद्यालयीय शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए मुक्त विद्यालय के कार्यकलापों में पर्याप्त विस्तार की उभरती हुई आवश्यकता को ध्यान में रखकर नवम्बर, 1989 में शिक्षा विभाग, मानव संसाधन विकास मन्त्रालय की एक पंजीकृत स्वायत्त सोसायटी के रूप में ‘राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय’ को स्थापित करने का निर्णय लिया तथा इसके साथ केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा खोले गये मुक्त विद्यालय को मिला दिया। अक्टूबर, 1990 में भारत सरकार के एक संकल्प के माध्यम से राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय को डिग्री पूर्व स्तर तक के पाठ्यक्रम के लिए विद्यालय में पंजीकृत छात्रों की परीक्षा तथा उन्हें प्रमाण पत्र देने के लिए प्राधिकृत किया गया। भारतीय विश्वविद्यालय संघ (Association of Indian Universities) ने सभी विश्वविद्यालयों को दिनांक 25-7-91 की अपनी अधिसूचना के माध्यम से राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय की उच्चतर माध्यमिक परीक्षा (Senior Secondary Examination) को उच्च अध्ययन के लिए संस्थाओं में दाखिले के प्रयोजनार्थ उच्चतर माध्यमिक/ पूर्व विश्वविद्यालय परीक्षा के समकक्ष माना है।
राष्ट्रीय खुला विद्यालय दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से लाखों लोगों को वैकल्पिक तथा पूरक शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराता है जिनमें ग्रामीण जन, शहरी क्षेत्रों के गरीब लोग, महिलाएँ, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लोग, कामगार, वयस्क तथा स्कूलों से छूट चुके वे लोग शामिल हैं जो औपचारिक विद्यालय व्यवस्था से जुड़ने में असमर्थ हैं। यह शिक्षा को प्रेरित छात्रों तक ले जाता है और उन्हें उनकी सहूलियत के समय, स्थान तथा क्षमतानुसार पढ़ने की इजाजत देता है। इस विद्यालय ने कई व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की भी शुरूआत की है। इस समय राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय के पूरे देश में 350 से अधिक मान्यता प्राप्त अध्ययन केन्द्र हैं जिनमें 40 से अधिक व्यावसायिक शिक्षा के हैं।
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