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गाँधी जी का शिक्षा दर्शन (Gandhiji’s Philosophy of Education)
महात्मा गाँधी के जीवन वृत्त से यह स्पष्ट होता है, कि वह एक कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ एक अच्छे समाज सुधारक एवं धार्मिक प्रवृत्ति के भी थे। गाँधी जी प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित करना चाहते थे, उन्होंने पुस्तकीय ज्ञान एवं परीक्षा प्रधान शिक्षा का विरोध करते हुए अनेक सुझाव भी दिए। गाँधी जी के अनुसार साक्षरता का अभिप्राय न तो शिक्षा का आरम्भ है और न अन्त। गाँधी जी का मानना है कि यदि मनुष्य पढ़ लिख कर भी अनैतिक व्यवहार करता है तो वह व्यक्ति शिक्षित नहीं माना जाएगा चाहे उसे कितनी ही बड़ी डिग्री क्यों न मिल गई हो। इससे साफ पता चलता है कि गाँधी जी का झुकाव नैतिकता पर भी था।
गाँधी जी के अनुसार, “साक्षरता न तो शिक्षा का आरम्भ है और न अन्त। यह विभिन्न साधनों में से एक साधन है जिसके द्वारा पुरुषों और स्त्रियों को शिक्षित किया जा सकता है।
According to Mahatma Gandhi, “Literacy is neither the beginning nor the end of education. It is only one of the means where by men and women can be educated.” इस प्रकार ये शिक्षा द्वारा मनुष्य को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। इसके लिए इन्होंने हस्तकौशलों की शिक्षा पर विशेष बल दिया जिससे मनुष्य रोजी-रोटी कमाने के योग्य बन सके। इसके साथ-साथ गाँधी जी मनुष्य की आत्मिक उन्नति भी कराना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने मनुष्य को शिक्षा द्वारा एकादश व्रत (सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्वाद, अस्तेय, अपरिगृह अभय, अस्पृश्यता, निवारण, कायिक श्रम, सर्वधर्म सम्भाव और विनम्रता) के पालन पर भी बल दिया।
शिक्षा का सम्प्रत्यय (Concept of Education)
गाँधी जी शिक्षा द्वारा बालक का सर्वागीण विकास चाहते थे। सर्वागीण विकास का तात्पर्य बालक के शारीरिक, मानसिक आध्यात्मिक, सामाजिक आदि विभिन्न पहलुओं का विकास। शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए उन्होंने लिखा है- “शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक तथा प्रौढ़ के शरीर, मन और आत्मा में अन्तर्निहित सर्वोत्तम शक्तियों के सर्वांगीण प्रकटीकरण से है”। इनके अपने शब्दों में, “शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक और मनुष्य के मन, शरीर और आत्मा के उच्चतम विकास से हैं।” (By education I mean an all-round drawing out of the best, in child and man’s body, mind and spirit).
इस प्रकार गाँधी जी मनुष्य के शरीर, मन, हृदय, और आत्मा का विकास करना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने 3Rs (Reading, Writing and Arithmetic) को 3H (Hand, Head and Heart) में परिवर्तित करते हुए पढ़ना, लिखना और गणित के स्थान पर हाथ, मस्तिष्क और हृदय के विकास पर अत्यधिक बल दिया है।
शिक्षण विधि (Teaching Method)
गाँधी जी प्रचलित शिक्षण- पद्धतियों तथा विधियों को दोषपूर्ण बतलाते हुए, शिक्षण विधियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन चाहते थे। प्रचलित शिक्षण विधि में बालक निष्क्रिय अवस्था में रहता है, और अध्यापक व्याख्यान देकर चला जाता है, इस प्रकार की दोषपूर्ण शिक्षण पद्धति का विरोध करते हुए गाँधी जी ऐसी शिक्षण पद्धति लाना चाहते थे जिसमें बालक निष्क्रिय श्रोता न रहकर सक्रिय कार्यकर्ता, निरीक्षणकर्ता और प्रयोगकर्ता के रूप में शिक्षा प्राप्त करें। शिक्षण के क्षेत्र में सबसे अधिक बल क्राफ्ट केन्द्रित शिक्षण-विधि पर देते थे इसके साथ-साथ गाँधी जी कथन, व्याख्यान और प्रश्नोत्तर विधि के महत्त्व को भी स्वीकार करते थे, साथ ही उपनिषद् एवं वेदान्त द्वारा प्रतिपादित श्रवण, मनन, निदिध्यासन की विधि में भी इनका विश्वास था। ज्ञान को क्रिया के माध्यम से विकसित करना इनकी शिक्षण विधि का मुख्य आधार था। इसे सहसम्बन्ध विधि भी कहते हैं।
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