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गृह-कार्य के लाभ या महत्त्व (Advantages or Importance of Home work)
इसके लाभ या महत्त्व इस प्रकार हैं-
1. श्रम की आदत (Habit of Hard Work)- गृह कार्य श्रम और नियमित रूप से काम करने की आदत का निर्माण करता है और यह आदत ज्ञानार्जन में अत्यन्त सहायक सिद्ध होती है।
2. नैतिक एवं बौद्धिक गुणों का विकास (Development of Moral and Intellectual Qualities) – गृहकार्य आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्म-निर्देशन जैसे नैतिक एवं बौद्धिक गुण विकसित करता है।
3. स्वतन्त्र कार्य के लिए अवसर (Opportunity for Independent Work) गृह कार्य विद्यार्थियों को स्वतन्त्रतापूर्वक अपना अध्ययन आयोजित करने का अवसर प्रदान करता है। इससे उनमें स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करने और अपने आप अध्ययन करने की आदतों का निर्माण होता है।
4. कक्षा शिक्षण का पूरक (Supplementing Classroom Teaching) गृहकार्य कक्षा शिक्षण का पूरक हैं और लम्बे तथा बोझिल पाठ्यक्रम को समाप्त करने का सशक्त माध्यम है।
5. अवकाश काल का सदुपयोग (Utilising Leisure Time)-गृह-कार्य विद्यार्थियों को अवकाश काल के सदुपयोग की योग्यता प्रदान करता है। इससे वे अपना समय गप्पों, इधर-उधर घूमने या सिनेमा देखने में नहीं गुजारते।
6. स्कूल कार्य की पुनरावृत्ति (Revision of School Work)- गृह कार्य स्कूल कार्य को दोहराने में सहायता प्रदान करता है।
7. अभिभावक-अध्यापक सहयोग (Parent-teacher Co-operation)-गृह-कार्य अभिभावक अध्यापक सहयोग की कड़ी है। अपने बच्चों का गृहकार्य देखकर माता-पिता को उनकी प्रगति का परिचय मिलता रहता है। वे उनकी अधिक प्रगति के लिए आवश्यक सुझाव भी दे सकते हैं। इससे अभिभावकों तथा अध्यापकों में प्रभावशाली सहयोग सुनिश्चित बनता है।
गृह-कार्य की सीमाएँ (Limitations of Home work)
इसकी सीमाएँ निम्न प्रकार है-
1. मनोरंजन के लिए समय नहीं (No time for recreation) – गृहकार्य के कारण बच्चों को मनोरंजन, रोचक कार्यों तथा सामान्य अध्ययन के लिए समय नहीं मिलता।
2. सामाजिक क्रियाओं का समय नहीं (No time for social activities)-गृह कार्यों के कारण बच्चों को अपने घरेलू जीवन का आनन्द लेने तथा सामाजिक क्रियाओं में भाग लेने के लिए समय नहीं मिलता।
3. माता-पिता की सहायता के लिए समय नहीं (No time for helping parents) – गृहकार्य के बोझ के कारण विद्यार्थियों को अपने माता-पिता के काम में हाथ बंटाने का समय नहीं मिलता और इसके परिणामस्वरूप माता-पिता में स्कूल के प्रति कुरुचि उत्पन्न हो जाती है।
4. स्वास्थ्य पर कुप्रभाव (Adverse effect on health)—अत्यधिक गृहकार्य से विद्यार्थियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अधिकांश भारतीय घरों में अस्वस्थ स्थितियाँ गृह कार्य को लाभदायक बनाने की बजाय हानिकारक बना देती हैं। वे (Bray) के शब्दों में, “दोपहर तक बच्चे द्वारा उचित कार्य कर लेने के पश्चात् उसे दिया गया गृह कार्य जो सामान्य रूप से दिया जाता है इस देश में लाभ की अपेक्षा हानि अधिक पहुँचाता है। सिवाय इसके कि वह परीक्षा में सफलता के लिए कुछ लाभदायक हो सकता है।”
गृह-कार्य देने के व्यावहारिक सुझाव (Practical Suggestions for Home work)
इसके लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-
1. अनुक्रमित (Be graded) गृह कार्य विद्यार्थियों की रुचियों, आवश्यकताओं तथा योग्यताओं के अनुसार अनुक्रमित किया जाना चाहिए। यह अध्यापकों की इच्छाओं और आकांक्षाओं पर आधारित नहीं होना चाहिए।
2. स्कूल कार्य का अभिन्न अंग (Be an integral part of school work)-गृह कार्य स्कूल के अध्ययन कोर्स का अभिन्न अंग होना चाहिए।
3. निश्चित एवं सीमित (Be definite and limited) गृहकार्य निश्चित एवं सीमित होना चाहिए। सभी विषयों में इतना काम नहीं दिया जाना चाहिए कि विद्यार्थी उसे सुविधापूर्वक समाप्त ही न कर सकें। इसकी सीमा अग्र प्रकार होनी चाहिए-
(i) 11-13 वय वर्ग के विद्यार्थियों के लिए एक घण्टे का काम।
(ii) 14-16 वय वर्ग के विद्यार्थियों के लिए दो या तीन घण्टों का काम।
4. समय-सारणी की पहले से तैयारी (Prepare time table in advance) गृह कार्य की समय सारणी पहले से ही तैयार कर लेनी चाहिए। सभी विषयों को उचित महत्त्व दिया जाना चाहिए। इस समय सारणी की प्रतियाँ अभिभावकों को भेजनी चाहिए ताकि उनका सहयोग प्राप्त किया जा सके। इसके औचित्य के सम्बन्ध में उनके विचार भी आमन्त्रित करते रहना चाहिए।
5. अन्य अध्यापकों का सहयोग (Secure co-operation of other teachers)-गृह कार्य देने वाले विभिन्न विषय अध्यापकों में परस्पर सहयोग होना चाहिए। मुख्याध्यापक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अध्यापक परस्पर सहयोग से गृहकार्य आयोजित करें। 6. अभिभावकों का सहयोग (Secure co-operation of parents) गृह कार्य के सम्बन्ध में समय-समय पर अभिभावकों से भी परामर्श करते रहना चाहिए। उन्हें इस बात की सूचना देने की प्रार्थना करनी चाहिए कि गृहकार्य में निर्धारित समय से कम समय लगता है या अधिक।
7. गृह कार्य अनिवार्यत शैक्षणिक महत्त्व का नहीं होना चाहिए (House work be not necessarily of academic value) यह अनिवार्य नहीं कि गृहकार्य शैक्षणिक महत्त्व का हो इसका व्यावसायिक महत्त्व भी हो सकता है। इसमें विभिन्न विषयों से सम्बन्धित रोचक कार्यों को भी सम्मिलित किया जा सकता है, जैसे-एलबम बनाना, चार्ट या मॉडल बनाना, समुदाय के सामाजिक जीवन में भाग लेना, किसी नाटक की योजना बनाना, किसी तर्क-वितर्क या सांस्कृतिक क्रियाओं की तैयारी करना, आदि।
8. सुनियोजित (Well planned) गृहकार्य देने से पहले उस पर अच्छी प्रकार से विचार कर लेना चाहिए और उसे सुनियोजित करना चाहिए। यह स्कूल कार्य से सम्बन्धित होना चाहिए। विद्यार्थियों को यह कहना, “जो कुछ आपने आज पढ़ा है, उसे लिखकर लाओ” गृह कार्य देने का गलत ढंग है। इसी प्रकार, ” अगली प्रॉपोजीशन करो” या ” अगले पाँच प्रश्न करके लाओ” भी गृहकार्य देने को गलत विधियाँ हैं।
9. पूर्ण रूप से जाँचना (Thoroughly checked)-गृह-कार्य अच्छी तरह जाँचना चाहिए और उसे शुद्ध करना चाहिए। कोई भी ऐसा काम नहीं देना चाहिए जिसकी जाँच करना असम्भव हो। यदि गृह कार्य की जाँच न की जाये तो विद्यार्थी गृहकार्य नहीं करेंगे और उनमें नकल करने की बुरी आदत का निर्माण हो जायेगा।
10. दण्ड का साधन नहीं (Not tool of punishment)- गृह कार्य को दण्ड का साधन नहीं बनाना चाहिए, नहीं तो विद्यार्थियों को इसके प्रति घृणा हो जायेगी। गृहकार्य देते समय अध्यापक को बच्चे की घरेलू स्थितियों को भी सम्मुख रखना चाहिए अर्थात् घर में काम करने की स्थितियाँ कैसी हैं, बच्चे को कहीं काम तो नहीं करना पड़ता, घर में कोई बीमार तो नहीं, आदि।
निष्कर्ष (Conclusion) यदि गृह कार्य उचित न हो तो यह बच्चों के लिए बोझ बन जायेगा और उनमें शारीरिक एवं मानसिक तनाव का कारण बनेगा अत्यधिक गृहकार्य से विद्यार्थियों में झूठ बोलने, नकल करने और स्कूल से भागने की आदतों का निर्माण हो सकता है। इससे उनके मन में स्कूल के प्रति घृणा उत्पन्न हो सकती है। अतः गृहकार्य मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से आयोजित होना चाहिए और सोच समझकर दिया जाना चाहिए। उसकी पूरी जाँच होनी चाहिए। यह उपयोगी, आकर्षक तथा रोचक होना चाहिए।
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