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जैड विचारधारा की विशेषताएँ एंव की आलोचनाएँ | Characteristics and Criticisms of Z Theory
अमेरिका के प्रो० विलियम जी० आठची ने अमेरिका और जापान की प्रबन्ध व्यवस्था की अनेक बड़ी कम्पनियों में अध्ययन करने के पश्चात् प्रबन्ध व्यवस्था की जिस विचारधारा को जन्म दिया उसे Z विचारधारा के नाम से जाना जाता है। प्रो० आउची ने सन् 1981 में अपनी इस विचारधारा के सम्बन्ध में एक पुस्तक ‘Theory Z’ लिखी जिसमें उन्होंने उन बिन्दुओं पर प्रकाश डाला जिसके कारण जापान की प्रबन्ध व्यवस्था अमेरिका की प्रबन्ध व्यवस्था से श्रेष्ठ है। इस प्रकार जैड विचारधारा जापानी प्रबन्ध व्यवस्था का दूसरा नाम है।
प्रो० आउची की विचारधारा का मूल आधार संगठन में कर्मचारियों की भागीदारी (Involvement) करना है और यही जापान की अर्थव्यवस्था की उत्पादकता की कुंजी है। प्रो० आठची ने जापान की बड़ी-बड़ी कम्पनियों की उत्पादकता का रहस्य जानने के लिए 1973 से लगातार 8 वर्ष तक अध्ययन किया और यह निष्कर्ष निकाला कि जापान की उत्पादकता का रहस्य श्रेष्ठ अधिकारियों द्वारा उनके कर्मचारियों में निहित विश्वास, आत्मीयता और कर्मचारियों के व्यवहार तथा व्यक्तित्व के सम्बन्ध में प्राप्त सूचना जानकारी में सन्निहित है। प्रो० आठची के अनुसार विश्वास, मर्मज्ञता और आत्मीयता, उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। मर्मज्ञता कर्मचारियों के व्यक्तित्व की एक ऐसी गहन पहचान है जिसके आधार पर फौरमैन यह जानता है कि कौन सा कर्मचारी, किस कर्मचारी के साथ अच्छी प्रकार से काम कर सकता है। यह मर्मज्ञता प्रभावशाली कार्यशैली बनाने में सहायक सिद्ध होती है। प्रो० आउची ने कहा है कि जापानी प्रबन्ध का सारतत्व विश्वास, मर्मज्ञता तथा आत्मीयता इन तीन शब्दों में अन्तर्निहित है ।
जैड विचारधारा की विशेषताएँ (Characteristics of Z Theory)
प्रो० आउची की जैड विचारधारा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) संगठन व कर्मचारियों में मजबूत बन्धन— इस विचारधारा की विशेषता यह है कि कर्मचारियों तथा संगठन के मध्य सुदृढ़ बन्धन स्थापित हो । यह बन्धन कार्य की निश्चितता कार्य का स्वस्थ्य वातावरण, पदोन्नति के अवसर, प्रबन्ध में सहभागिता आदि द्वारा सम्भव है। इससे कर्मचारियों की उपक्रम के प्रति निष्ठा बढ़ती है, जो उनकी कार्यदक्षता को बढ़ाती है।
(2) अनौपचारिक संगठन ढाँचे की स्थापना — यह विचारधारा इस बात पर बल देती है कि उपक्रम में किसी औपचारिक संगठन संरचना को न अपनाया जाये बल्कि कर्मचारी एक टीम के रूप में सूचनाओं का अदान-प्रदान करते हुए अपने कार्य सम्पादित करें। इससे कर्मचारियों का अहम संतुष्ट होता है और वह अधिक उत्तरदायित्वों से कार्य निर्वाह करेंगे।
(3) विश्वास- उपक्रम में कर्मचारियों, पर्यवेक्षकों, प्रबन्धकों, श्रम संघों आदि में सद्भावना व विश्वास का सम्बन्ध ही जैड विचारधारा का आधार है। आठची के अनुसार विश्वास, मर्मज्ञता तथा खुलापन एक प्रभावशाली संगठन के आवश्यक अंग है। जब प्रबन्ध इन सिद्धान्तों पर निर्भर करता है तो कर्मचारियों में पारस्परिक सहयोग बढ़ता है, जिससे टकराव नहीं होते।
(4) व्यक्तियों में समन्वय की भावना- यह विचारधारा उपक्रम में कार्यरत व्यक्तियों के समन्वय पर बल देती है। भौतिक संसाधनों व तकनीकी में समन्वय पर नहीं। किसी भी उपक्रम में नेतृत्व द्वारा मानव संसाधनों का विकास एवं समन्वय ही उपक्रम की सफलता का आधार है।
(5) कर्मचारियों की सहभागिता — इस विचारधारा में प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर कर्मचारियों को सहभागी बनाने, उनके द्वारा दिये गये सुझावों पर ध्यान तथा कुछ कम महत्व के मामलों में निर्णय लेने का कार्य उन्हीं पर छोड़ने पर बल दिया गया है। इससे कर्मचारियों में उत्तरदायित्व एवं जिम्मेदारी की भावना बढ़ती है और पूर्ण समर्पण की भावना से कार्य करते हैं।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आठची की जैड विचारधारा अभिप्रेरण के पहलुओं को पूर्णतः नये तरीके से प्रस्तुत करती है और कर्मचारियों को उपक्रम के प्रबन्ध का मुख्य आधार मानती है। इस प्रकार यह विचारधारा मानवीय संसाधनों के विकास तथा संगठन के खुलेपन पर बल देती है।
जैड विचारधारा की आलोचनाएँ (Criticisms of Z Theory)
यह विचारधारा जापानी प्रबन्ध व्यवस्था पर आधारित है और वहाँ के औद्योगिक वातावरण के अनुकूल हो सकती है किन्तु भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में इस विचारधारा की उपयोगिता संदिग्ध है। इस विचारधारा की निम्न आधार पर आलोचना की गई है-
(1) समूह भावना में कमी – भारत विभिन्न जातियों व क्षेत्रों वाला देश है और किसी उपक्रम में विभिन्न जातियों व क्षेत्रों और भाषा वाले लोग कार्यरत होते हैं अतः उनमें समूह भावन जागृत नहीं हो पाती जबकि जैड विचारधारा समूह भावना पर बल देती है।
(2) संगठन ढाँचे का अभाव — आउची ने अनौपचारिक संगठन पर बल दिया है जबकि कोई भी अनौपचारिक संगठन अकेले कार्य नहीं कर सकता है और विशाल उपक्रम में बिना औपचारिक संगठन के क्रियाओं को सम्पादित करना भी कठिन है।
(3) विनियोक्ताओं में सहनशीलता की कमी – जैड विचारधारा में यह कहा गया है कि कर्मचारियों को सेवामुक्त करने की स्थिति में अंशधारियों, विनियोक्ताओं तथा स्वामियों को अपने लाभों को कम कर देना चाहिए अथवा हानि भी सहन करने के लिए तैयार रहना चाहिए। भारत के विनियोक्ता व स्वामी यह कभी भी करने को तैयार नहीं होगे क्योंकि उनकी मूल भावना लाभ में निहित है।
(4) समानान्तर अदला-बदली में विशिष्टीकरण में कमी- आठची ने कर्मचारियों की समानान्तर स्तर पर विभिन्न विभागों में अदला-बदली करने पर बल दिया है किन्तु ऐसा करने से कर्मचारी कभी भी विशेषज्ञ नहीं बन सकते जबकि आधुनिक औद्योगीकरण पूर्णतः विशिष्टीकरण पर आधारित है।
(5) जीवनपर्यन्त रोजगार देने की समस्या- जैड विचारधारा सुदृढ़ बन्धन के लिए कर्मचारियों को जीवनपर्यन्त रोजगार देने पर बल देती है, जो व्यावहारिक रूप से सम्भव नहीं है भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में तो यह इसलिए भी सम्भव नहीं है कि वर्तमान से अधिक कार्यक्षमता वाले श्रमिक हमेशा उपलब्ध हैं।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत जैसे विशाल जनसंख्या, क्षेत्रीयता वो देश में जहाँ समान योग्यता वाले कर्मचारियों की भीड़ लगी है, पूँजीपति में साहस का अभाव है तथा क्षेत्रीयता का बोलबाला है, वहाँ यह विचारधारा उपयोगी नहीं है। भारत में केवल इस विचारधारा से मारूति उद्योग लिमिटेड में जो जापान के पूर्ण प्रबन्धकीय नियन्त्रण में है, लागू किया गया है और प्रारम्भ में यह सफल भी रहा किन्तु आज अनेकों विदेशी कम्पनियाँ भारत में इस व्यवसाय में आ गयी है अतः मारूति उद्योग लि० को भी तीव्र प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है और अपनी नीतियों में आवश्यक संशोधन करने पड़ रहे हैं।
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