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निसंक्रमण तथा निसंक्रामक | DISINFECTION AND DISINFECTANTS

निसंक्रमण तथा निसंक्रामक | DISINFECTION AND DISINFECTANTS
निसंक्रमण तथा निसंक्रामक | DISINFECTION AND DISINFECTANTS

निसंक्रमण तथा निसंक्रामक | DISINFECTION AND DISINFECTANTS

निसंक्रमण (Disinfection) यह निसंक्रामक के प्रयोग की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा निसंक्रामको को पर्याप्त समय तक तथा पर्याप्त मात्रा एवं शक्ति में प्रयुक्त करके संक्रामक रोगों के विशेष जीवाणुओं को नष्ट किया जाता है। निसंक्रमण रोग-काल तथा रोग की समाप्ति दोनों ही समय किया जाना चाहिए। जब व्यक्ति रोगग्रस्त हो तब उसके विसर्जनों को तुरन्त निसंक्रमित कर देना चाहिए। निसंक्रमण (Concurrent Disinfection) कहते हैं। जब रोगी अच्छा हो जाए तब उसके कमरे या अन्य निसंक्रमण को समवर्ती सामग्री का निसंक्रमण करना आवश्यक है। ऐसे निसंक्रमण को अन्तिम निसंक्रमण (Terminal Disinfection) कहते हैं।

निसंक्रामक (Disinfectants)—निसंक्रामक वे पदार्थ या तत्त्व होते हैं जो जीवाणुओं को समूल नष्ट करने की शक्ति रखते हैं। निसंक्रामकों को तीन समूहों में बाँटा जा सकता है- (1) प्राकृतिक निसंक्रामक (Natural Disinfectants), (2) भौतिक निसंक्रामक (Physical Disinfectants) तथा (3) रासायनिक निसंक्रामक (Chemical Disinfectants)। इन तीनों प्रकार के समूहों में आने वाले निसंक्रामक पदार्थों या तत्त्वों का पृथक्-पृथक् विवेचन नीचे किया जा रहा है-

(1) प्राकृतिक निसंक्रामक- प्राकृतिक निसंक्रामकों में शुद्ध वायु (Fresh Air) तथा सूर्य के प्रकाश (Sunlight) को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ये दोनों छूत को समाप्त करने तथा संक्रामक रोगों को रोकने में बहुत सहायता प्रदान करते हैं। सुखाने से जीवाणुओं की बढ़ोतरी को रोका जा सकता है। साथ ही उनको शक्तिहीन बनाया जा सकता है। वायु की ऑक्सीजन जीवाणुओं को मारने में बहुत बड़ा भाग लेती है। सूर्य का प्रकाश एक शक्तिहीन जीवाणुनाशी (Germicide) है क्योंकि इसमें क्रियाशील किरणें (Actinic Rays) रहती हैं। मुख्यत: यह कार्य अल्ट्रावायलट रश्मियों द्वारा किया जाता है। क्रियाशील किरणें वायुमण्डल में अपनी क्रिया द्वारा ओजोन (Ozone) तथा हाइड्रोजन परऑक्साइड का निर्माण करती हैं। ये दोनों ऑक्सीकरण के लिए प्रमुख साधन (Agent) के रूप में कार्य करते हैं। डिफ्थीरिया के जीवाणु एक घण्टे के सूर्य के सीधे प्रकाश में समाप्त हो जाते हैं। इसी प्रकार ट्यूवर्किल जीवाणु (Tubercle Microbes) भी सूर्य के प्रकाश से शीघ्र ही समाप्त हो जाते हैं।

(2) भौतिक निसंक्रामक- इन निसंक्रामकों को दो भागों में विभक्त किया जाता है- (1) शुष्क ताप (Dry Heat) तथा (2) आई ताप (Moist Heat) इनका पृथक्- विवेचन निम्न प्रकार है-

(1) शुष्क ताप- इसके अन्तर्गत दो प्रकार के निसंक्रामक आते हैं (i) जलाना (Burning) तथा (ii) गर्म शुष्क हवा (Hot Dry Air)

(i) जलाना- यह निसंक्रमण की सर्वोत्तम विधि है। इस विधि को कम मूल्य की वस्तुओं के लिए प्रयुक्त करना चाहिए। जलाने का कार्य भट्टी में किया जाना चाहिए परन्तु यह भट्टी खुले स्थान पर होनी चाहिए। प्लेग जैसे संक्रामक रोग से प्रभावित झोपड़ियों या कम कीमत वाले रिहायशी स्थान को जला दिया जाना चाहिए। हैजे तथा आन्त्र-ज्वर (Enteric Fever) वाले रोगियों के मल-मूत्र को अवश्य जलाना चाहिए। रोगी के थूक, खखार या बलगम तथा अन्य विसर्जनों को जलाकर पूर्णतः समाप्त किया जा सकता है।

(ii) गर्म शुष्क हवा- इस विधि में रोगाणुओं को नष्ट करने की कम शक्ति है। इस कारण इसका अधिक प्रयोग नहीं किया जाता है। यह चमड़े की वस्तुओं, पुस्तकों, रबड़ की वस्तुओं, आदि को निसंक्रमित करने के लिए उपयुक्त है। यह जुओं तथा अन्य कीटों को मारने के लिए उपयुक्त है।

(2) आर्द्र ताप- इसके अन्तर्गत भी दो प्रकार के निसंक्रामक आते हैं-

(i) उबालना (Boiling) तथा (ii) भाप (Steam) इनका विवेचन निम्न प्रकार है-

(i) उबालना- यह एक कुशल एवं अच्छी विधि है। साधारण जीवाणुओं (Germs) को नष्ट करने के लिए 10 मिनट का उबाल पर्याप्त है, परन्तु स्पोर उबाल के समय कम से कम आधा घण्टा चाहिए। रक्त या मल से सने कपड़ों को पहले साबुन से धोना चाहिए। इसके बाद उन्हें औटाया जाना चाहिए। ऊनी कपड़ों को निसंक्रमित करने के लिए उबालना उपयुक्त नहीं है। इससे बैडशीट, बैडपैन, यूरीन, पॉट, भोजन पकाने के बर्तन, आदि को निसंक्रमित किया जा सकता है।

(ii) भाप- आर्द्र ताप को निःसंक्रमण के उद्देश्य से प्रयुक्त करने के लिए यह सबसे अच्छी विधि है। इसको निम्नलिखित तीन रूपों में प्रयुक्त किया जाता है—

(अ) करेण्ट भाप (Current Steam)-इसको ‘लो प्रेशर स्टीम’ (Low Pressure Steam) भी कहा जाता है। इसमें उबलते हुए पानी के समान निसंक्रमित करने की शक्ति होती है। यह निसंक्रामक प्रारम्भ में सस्ता है, परन्तु दीर्घकाल में यह अधिक व्ययी हो जाता है क्योंकि इसमें अधिक ईंधन (Fucl) काम में आता है।

(ब) संतृप्त भाप (Saturated Steam) जब पानी को किसी बन्द बर्तन में उबालकर भाप बनाई जाती है तब दबाव अधिक बढ़ जाता है। इस प्रकार से बनाई गई भाप को संतृप्त भाप कहते हैं। निसंक्रमण के लिए यह अधिक उपयुक्त है।

(स) अतितापित भाप (Superheated Steam) — इसको दो प्रकार से बनाया जा सकता है (1) जब भाप को दबाव के बढ़ाये बिना तापित किया जाता है तब भाप का तापक्रम बढ़ जाता है। ऐसी भाप को अतितापित भाप कहते हैं तथा (2) इसके नमकीन घोल को उबालकर भी बनाया जा सकता है क्योंकि साधारण जल की अपेक्षा नमकीन जल उच्च तापक्रम से उबलता है। इस भाप में सूखी या शुष्क गैस के गुण पाये जाते हैं, परन्तु इसका निसंक्रामक के रूप में कोई महत्त्व नहीं है, क्योंकि इसका भौतिक गुण समाप्त हो । जाता है। यह घनीभूत नहीं कर सकती है।

(3) रासायनिक निसंक्रामक- इन निसंक्रामकों को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया जा सकता है—

(i) ठोस (Solids)

(ii) द्रव्य (Liquids)

(iii) गैस (Gases)*

(iv) एरोविलय (Aerosols)।

रासायनिक निसंक्रामकों में प्रमुख का विवेचन किया जा रहा है-

(1) बाइक्लोराइड ऑफ मरकरी (Bichloride of Mercury)-इसको ‘परक्लोराइड ऑफ मरकरी’ (Perchloride of Mercury) भी कहते हैं। यह जीवाणुओं तथा स्पोरों (Spores) को नष्ट करने के लिए बहुत ही शक्तिशाली निसंक्रामक है। इसको और 1000 के अनुपात में प्रयुक्त किया जाता है। इस मात्रा के प्रयोग से ग्लेण्डरम्, डिप्थीरिया, टाइफाइड तथा एन्थ्रैक्स के जीवाणुओं को 10 मिनट में समाप्त किया जा सकता है। स्पोरों को समाप्त करने के लिए 1 500 के अनुपात में मात्रा होनी चाहिए। यह गन्धनाशक (Deodrant) नहीं है। इसका घोल पूर्णत: रंगहीन तथा विषैला होता है।

(2) कार्बोलिक एसिड या फिनाइल (Carbolic Acid or Phenol)—यह कोलतार (Coaltar) के आसवन से प्राप्त होता है। यह एक सस्ता तथा लाभप्रद निसंक्रामक है, परन्तु यह स्पोरों को नष्ट नहीं कर पाता है।

(3) पोटेशियम परमैंगनेट (Potassium Permanganate)- इसको निसंक्रामक शक्ति ऑक्सीजन की वजह से है। इसका प्रयोग हैजा फैलने के समय पानी को निसंक्रमित करने के लिए किया जाता है। यह केवल गन्धनाशक के रूप में कार्य करता है।

(4) चूना (Lime) – यह सबसे सस्ता तथा शक्तिशाली निसंक्रामक है। इसको बुझाकर ही प्रयोग में लाना चाहिए। इसको पानी, मल, फर्श, आदि को निसंक्रमित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। चूने का 1 प्रतिशत घोल जीवाणुओं को कुछ घण्टों में समाप्त कर देता है।

(5) क्लोरोनीकृत चूना या ब्लीचिंग पाउडर (Chlorinated Lime or Bleaching Powder) — यह हवा की आर्द्रता तथा कार्बन डाइऑक्साइड को सरलता एवं तत्परता से ग्रहण कर लेता है। यह गन्धनाशक तथा निसंक्रामक दोनों ही रूपों में कार्य करता है। ब्लीचिंग पाउडर का 5 प्रतिशत घोल मल को निःसंक्रमित करने के लिए पर्याप्त होता है। कमरों को निःसंक्रमित करने के लिए 1 : 30 का घोल काफी है। कुओं को निःसंक्रमित करने के लिए 1/2 औंस पाउडर 1000 गैलन पानी के लिए पर्याप्त होता है।

(6) साबुन (Soap) — अधिकाधिक प्रयोग के कारण साबुन निसंक्रामक के रूप में कम महत्त्वपूर्ण है, परन्तु यह सफाई करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में काम करता है। डिफ्थीरिया बैसली (Bacilli) को नष्ट करने में साबुन तथा गर्म पानी द्वारा सफाई लाभप्रद है। कोकोनट साबुन टाइफाइड के जीवाणुओं को निसंक्रमित करने में सहायक है।

(7) सल्फर डाइऑक्साइड (Sulphur dioxide)—यह गैस सल्फर को जलाकर बनायी जाती है। यह मुख्यत: जहाजों, कारों, अस्तबलों, आदि को निसंक्रमित करने के लिए प्रयुक्त की जाती है। यह विषैली गैस है। इसकी जीवाणुनाशक क्रिया आर्द्रता की उपस्थिति पर निर्भर है।

(8) फार्मेल्डिहाइड गैस (Formaldehyde Gas)–यह एक शक्तिशाली निसंक्रामक है। इसको वाम के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। यह धातु पर किसी भी प्रकार का बुरा प्रभाव नहीं डालती है। इसका शक्तिशाली घोल आँखों तथा फेफड़ों के लिए बहुत ही क्षोभकारी होता है। कमरे से इसकी गन्ध को अमोनिया के छिड़काव से दूर किया जा सकता है। इसका निम्नलिखित ढंगों से प्रयोग किया जा सकता है.–

(1) परमैंगनेट विधि (Permanganate Method)—इसमें प्रति हजार घन फीट स्थान को निसंक्रमित करने के लिए 5 औंस पोटेशियम परमैंगनेट तथा 10 से 15 औंस तक 40 प्रतिशत की फॉरमैलिन मिलायी जाती है। फॉरमैलिन को उतने आयतन के पानी में घोला जाता है। यह विधि सरल तथा प्रभावकारी है, परन्तु इसके प्रयोग के समय अग्नि को इसके पास नहीं लाना चाहिए क्योंकि यह ज्वलनशील है। अत: विस्फोट हो सकता है।

(ii) ब्लीचिंग पाउडर विधि (Bleaching Powder Method) इसमें प्रति हजार घनफीट स्थान को निसंक्रमित करने के लिए 2 पौण्ड ब्लीचिंग पाउडर तथा 40 औंस फॉरमैलिन काफी है। इसमें पहले पाउडर को पानी में मिलाकर पेस्ट के रूप में बदला जाता है। इसके बाद उस पेस्ट में फॉरमैलिन डाली जाती है।

(iii) पैराफर्म विधि (Paraform Method)-इसमें प्रति हजार घनफीट स्थान को निसंक्रमित करने के लिए 25 पेराफार्म की टिक्कियाँ एल्फॉरमेण्ट लैम्प (Alphorment Lamp) से गर्म की जाती हैं। यह टिक्की एक ग्राम की होती है। फॉरमैलिन को गर्म करने से एल्डिहाइड (Aldehyde) ठोस पोलीमिराइड पैराफार्म (Polymeriod Paraform) में परिवर्तित हो जाते हैं।

(9) क्लोरीन गैस (Chlorine Gas)– यह निसंक्रामक एवं गन्धनाशक दोनों है। यह आँखों के लिए सल्फर डाइऑक्साइड से अधिक क्षोभकारी है। प्रति हजार घनफीट स्थान को निसंक्रमित करने के लिए एक पौण्ड सल्फ्यूरिक एसिड (Sulphuric Acid) या हाइड्रोक्लोरिक एसिड तथा 2 पौण्ड ब्लीचिंग पाउडर काफी है। इन दोनों के मिश्रण से क्लोरीन गैस की हो जाती है।

(10) हाइड्रोसाइनिक एसिड गैस (Hydrocyanic Acid Gas) इस गैस का बैक्टीरिया पर कोई प्रभाव नहीं होता है। इसका प्रयोग मुख्यत: चूहों, पिस्सु तथा अन्य पीड़ित वस्तुओं को नष्ट करने के लिए किया जाता है। यह रासायनिक रूप से निष्क्रिय है। अमेरिका में व्यावहारिक रूप से इस गैस ने धूमक (Fumigant) के रूप में सल्फर डाइऑक्साइड का स्थान ले लिया है। प्रति हजार घनफीट स्थान को निसंक्रमित करने के लिए 5 आँस पोटेशियम साइनाइड (Potassium Cyanide): 7 औंस सल्फ्यूरिक एसिड तथा 10 औंस पानी के मिश्रण से बनी यह गैस पर्याप्त है।

(11) एरोसोल (Aerosols)—–ऐरोसोल या एरोविलय वह तत्त्व है जो अपने अन्तिम रूप में छिड़काव के योग्य होता है। अच्छे एरोविलय में निम्नलिखित गुण होते हैं-

(i) तीव्र जीवाणुनाशक क्रिया (Rapid Germicidal Action)

(ii) उच्च विसर्जनता (High Dispersibility)।

एरोविलय मानव प्राणियों या पशुओं पर बुरा प्रभाव नहीं डालता है। ये विषाणु नहीं होते हैं; इनमें सोडियम हाइपोक्लोराइड (Sodium Hypochloride), एथिलीन (Ethylene), ग्लाइकॉल (Glycol) तथा प्रोपैलीन ग्लाईकॉल (Propylene Glycol) प्रमुख हैं।

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Anjali Yadav

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