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नेतृत्व के प्रकार अथवा भेद (Types of Leadership)
विभिन्न विद्वानों ने नेतृत्व को भिन्न-भिन्न प्रकार से विभक्त किया है जिसे अध्ययन अथवा प्रकृति की दृष्टि से निम्न भागों में विभक्त किया जा सकता है-
(1) जनतन्त्रीय नेता— यह नेता लक्ष्यों एवं नीतियों के निर्धारण में अपने कर्मचारियों से सहयोग लेता है। यह वही करता है, जो समूह चाहता है। इस प्रकार का व्यक्ति अपने अधिकारों के विकेन्द्रीयकरण के सिद्धान्त में विश्वास रखता है। यह अनुयायियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाता है। वह उनकी आवश्यकताओं व सुविधाओं का पूर्ण ध्यान रखता है।
(2) व्यक्तिगत नेता — यह नेता व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर नेतृत्व की स्थापना करता है। ऐसा नेता किसी कार्य के निष्पादन के सम्बन्ध में निर्देश एवं अभिप्रेरण स्वयं व्यक्तिगत रूप से देता है। इस प्रकार का नेता अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी होता है क्योंकि अपने अनुयायियों से इसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। इसमें नेता के बौद्धिक ज्ञान का विशेष महत्व होता है।
(3) अव्यक्तिगत नेता – अव्यक्तिगत नेतृत्व की स्थापना अप्रत्यक्ष रूप से नेता के सहायकों के माध्यम से लिखित आदेशों, अनुदेशों, नीतियों, योजनाओं, कार्यक्रमों आदि के माध्यम से होती है। इस प्रकार का नेतृत्व वहाँ स्थापित किया जाता है, जहाँ कर्मचारियों की संख्या अधिक होती है तथा नेता के लिए यह सम्भव नहीं होता कि वह प्रत्येक कर्मचारी से व्यक्तिगत सम्पर्क कर सके। वर्तमान में यह नेतृत्व अधिकांश उपक्रमों में पाया जाता है।
(4) निरंकुश नेता इसे तानाशाह नेता भी कहते हैं। यह नेता सभी अधिकारों को अपने पास केन्द्रित रखता है और सभी निर्णय स्वयं लेता है। निर्णयन के क्रियान्वयन हेतु अनुयायियों को आवश्यक निर्देश देता है। अनुयायियों को लक्ष्यों की जानकारी नहीं होती अतः वे पूर्णतः नेता पर आश्रित रहते हैं। इसमें नेता की यह धारणा होती है कि व्यक्ति स्वभाव से ही आलसी होते हैं तथा उत्तरदायित्व से बचना चाहते हैं।
(5) निर्बाधवादी नेता — यह नेता निर्देशन करने के लिए उत्सुक नहीं होता । यह अनुयायियों को स्वयं अपने लक्ष्य निर्धारित करने एवं आवश्यक निर्णय लेने की स्वतन्त्रता देता है। इससे नेता केवल एक सम्पर्क कड़ी का कार्य करता है, वह उन्हें कार्य करने के लिए केवल आवश्यक सूचना और साधन प्रदान करता है। इसमें नेता की यह धारणा होती है कि स्वतन्त्रता से कर्मचारियों में दायित्व बोध उत्पन्न होता है तथा अच्छे परिणामों की प्राप्ति होती है।
(6) व्यक्ति केन्द्रित नेता — यह नेता उत्पादन की तुलना में कर्मचारियों की आवश्यकताओं, कल्याण एवं भावनाओं पर बल देते हैं। ये समूह में मानवीय सम्बन्धों को उच्च प्राथमिकता देते हैं तथा दलीय भावना को प्रोत्साहित करते हैं। ये अपने अनुयायियों के दृष्टिकोण एवं भावनाओं का पूर्ण आदर करते हैं।
(7) क्रियात्मक नेता— क्रियात्मक नेता वह होता है, जो अपनी योग्यता, कुशलता, अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर अपने अनुयायियों का विश्वास प्राप्त करता है। वह जटिल विषयों के सम्बन्ध में अपने अनुयायियों को आवश्यक निर्देश एवं परामर्श देता है।
(8) चमत्कारिक नेता- ऐसे नेता अपने आकर्षक व्यक्तित्व, सम्मोहक नेतृत्व शैली तथा अपने विचारों व प्रस्तुतीकरण के तरीके से व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं। उनके व्यक्तित्व में एक अपील होती है। ये असाधारण प्रतिभा, अद्भुत वाक्चातुर्य, गहन आत्मविश्वास, दूरदृष्टि, दृढ़ संकल्प, फौलादी इरादों तथा आदर्श व्यवहार के धनी होते हैं।
(9) अनौपचारिक नेता — यह समूह का स्वाभाविक एवं वास्तविक नेता होता है। कुछ व्यक्ति संगठन में यद्यपि उनके पास कोई औपचारिक पद या सत्ता नहीं होती है, वह अपने ज्ञान, व्यक्तित्व, सम्बन्धों, सन्दर्भों अथवा अन्य असाधारण प्रतिभा के कारण नेतृत्व कायम कर लेते हैं। अनौपचारिक नेता प्रबन्ध पर पूरा दबाव बनाये रखता है। प्रबन्धक भी ऐसे नेताओं को महत्व देते हैं।
(10) रूपान्तरित नेता – ऐसे नेता संगठन में क्रान्तिकारी परिवर्तनों को प्रेरित करते हैं। ये नेता संस्था में नयी व्यवस्था, व्यूह रचनात्मक सुधारों व नवीन प्रणालियों का सूत्रपात करते हैं।
(11) व्यवहारात्मक नेता — यह नेता भूमिकाओं तथा कार्य की जरूरतों को स्पष्ट करते हुए अपने अनुयायियों को पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित व निर्देशित करते हैं।
नेतृत्व के सिद्धान्त (Theories of Leadership)
वर्तमान व्यावसायिक जगत में नेतृत्व प्रबन्ध का मूल घटक है। नेतृत्व के सम्बन्ध में समय-समय पर भिन्न-भिन्न विचारों को प्रबन्धशास्त्रियों ने प्रकट किया। यदि इन विद्वानों द्वारा प्रकट किये गये विचारों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाये तो नेतृत्व के प्रमुख सिद्धान्त या विचारधाराएँ निम्नलिखित स्पष्ट होती है।
(1) निर्देशन का सिद्धान्त- यह सिद्धान्त यह बताता है कि एक उपक्रम नेतृत्व जितना प्रभावशाली होगा, उपक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कर्मचारी उतना ही अधिक योगदान देगा।
(2) अभिप्रेरणा का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के अनुसार अनुयायियों से कुशलतापूर्वक व अधिक कार्य लेने के लिए यह आवश्यक है कि अनुयायियों को अभिप्रेरित किया जाय। नेतृत्व मूलतः अभिप्रेरण पर ही निर्भर करता है।
(3) व्यवहारवादी सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार नेता का आचरण व्यवहारवादी होना चाहिये। यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि नेतृत्व का अध्ययन नेता क्या करता है, के आधार पर किया जाना चाहिये, न कि नेता क्या है के आधार पर। दूसरे शब्दों में इस विचारधारा का सम्बन्ध नेता के व्यवहार से है, न कि उसके व्यक्तिगत गुणों से रे० ए० किलियन के अनुसार, “चाहे एक नेता मूलरूप में निर्णय लेता हो, सामंजस्य सुलझाने वाला हो, परामर्श देने वाला हो, सूचना देने वाला हो अथवा नियोजन देने वाला हो, उसे अनुयायियों के समक्ष आदर्श व्यवहार प्रस्तुत करना चाहिये।
(4) अनुयायी सिद्धान्त- इस सिद्धान्त का प्रतिपादन एफ० एच० सेन्सफोर्ड ने किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार अनुयायियों की कुछ प्राथमिक आवश्यकताएँ होती हैं और जो व्यक्ति इन आवश्यकताओं की पूर्ति में सबसे अधिक रूचि लेते हैं, वे उसी को अपना नेता मान लेते हैं। अतः वही व्यक्ति नेता है जिसे अधिकांश अनुयायी स्वीकार तथा पसन्द करते हैं।
(5) गुणमूलक सिद्धान्त – इस सिद्धान्त या विचारधारा का प्रतिपादन वर्नार्ड तथा आर्डवेटीड ने किया है। यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि वही व्यक्ति एक सफल नेता हो सकता है, जिसमें नेतृत्व सम्बन्धी कुछ विशिष्ट गुण होते हैं। इन गुणों में शारीरिक, मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक गुणों को सम्मिलित किया जाता है।
(6) उद्देश्यों में एकता का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार नेता तथा उसके अनुयायियों के उद्देश्यों में एकता होनी चाहिए। अन्य शब्दों में संस्था के उद्देश्य उसके नेता और उनके अनुयायियों के उद्देश्यों के समान होने चाहिए क्योंकि दोनों मिलकर संस्था के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए ही कार्यरत हैं।
(7) क्रियाशील सम्बन्धों का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार नेता और उसके अनुयायियों के मध्य क्रियाशील सम्बन्धों का होना नितान्त आवश्यक है। किसी कार्य का निष्पादन कराने में नेता सबसे आगे खड़ा होकर अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन करता है।
( 8 ) प्रत्यक्ष पर्यवेक्षण का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार नेता अपने अनुयायियों की क्रियाओं का प्रत्यक्ष रूप से पर्यवेक्षण करता है। नेता एवं कर्मचारियों के मध्य जितना अधिक व्यक्तिगत व प्रत्यक्ष सम्पर्क होगा, नेतृत्व भी उतना ही अधिक प्रभावशाली होगा।
(9) नियन्त्रण के विस्तार का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार नेतृत्व की प्रभावशीलता के लिए यह भी आवश्यक है कि नियन्त्रण का विस्तार सीमित हो अर्थात् नेता के आधीन कार्यरत अनुयायियों की संख्या सीमित होनी चाहिए ।
(10) आदेश की एकता का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार अनुयायियों को एक ही नेता से आदेश व निर्देश प्राप्त होने चाहिएं। इससे किसी बात का भ्रम नहीं रहता फलतः उनके कार्य में गति व सुधार आता है।
(11) क्रियात्मक सिद्धान्त- इस सिद्धान्त का प्रतिपादन कुर्त लेविन ने किया। इस सिद्धान्त के अनुसार नेता का एक व्यक्ति के रूप में अध्ययन करने की अपेक्षा समूह के रूप में अध्ययन किया जाना चाहिये, क्योंकि नेता का सम्बन्ध एक व्यक्ति विशेष से न होकर अनेक व्यक्तियों अथवा समूहों से होता है।
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