परिवार से आपका क्या तात्पर्य है ? परिवार का अर्थ तथा मुख्य परिभाषाएँ दीजिए। परिवार की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?
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परिवार (Family)
परिवार मानव समाज की पूर्णतः मौलिक तथा सार्वभौमिक इकाई है। यह एक प्राथमिक समूह है। रॉल्फ लिन्टन (Ralph Linton) ने कहा है कि माता-पिता तथा बच्चे का प्राचीन त्रित्व (Trinity) किसी अन्य मानव सम्बन्धों की अपेक्षा अधिकाधिक उतार-चढ़ावों के बावजूद विद्यमान रहा है। यह समस्त अन्य संरचनाओं का आधार स्तम्भ है। मनुष्य की आवश्यकताओं को दो प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है-प्रथम, प्राथमिक आवश्यकताएँ, ऐसी आवश्यकताएँ जो उसके जीवन-यापन के लिए प्रमुख हैं; तथा द्वितीय, द्वितीयक आवश्यकताएँ, वे आवश्यकताएँ जो उसके जीवन के लिए प्रमुख तो नहीं, किन्तु वे भी अपना महत्त्व रखती हैं। परिवार इन दोनों प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। समाज के अस्तित्व व निरन्तरता के लिए आवश्यक है कि नए सदस्य आएँ तथा वे सामाजिक गुणों से पूर्ण हों। इस कार्य को परिवार प्रजनन तथा समाजीकरण के आधार पर करता है। मानव समाज में परिवार की स्थिति केन्द्रीय होती है। परिवार मनुष्य की जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति पूरे उत्तरदायित्व तथा कर्त्तव्यनिष्ठा से करता है।
समूहों अथवा सदस्यों के सन्दर्भ में परिवार एक समिति है। परिवार को जब नियमों या कार्यपद्धतियों के सन्दर्भ में देखा जाता है तो यह एक संस्था है। परिवार को चाहे समिति के दृष्टिकोण से देखें अथवा संस्था के, पर इस तथ्य पर दो मत नहीं हो सकते हैं कि परिवार समाज की महत्त्वपूर्ण मौलिक इकाई है। सामाजिक जीवन के बनाने में एवं समाजीकरण में परिवार को एक विशेष भूमिका है। इसी कारण चार्ल्स कूले ने परिवार को एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिक समूह माना है।
परिवार का अर्थ तथा परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Family)
व्युत्पत्ति की दृष्टि से हिन्दी शब्द ‘परिवार’, अंग्रेजी भाषा के ‘फैमिली’ (Family) शब्द का रूपान्तर है। यह लैटिन भाषा के ‘फैमुलस’ (Famulus) शब्द से बना है। ‘फैमुलस’ का लैटिन भाषा में अर्थ एक ऐसा समूह है, जिसमें सभी सदस्य (अर्थात् माता-पिता, सन्तान, यहाँ तक की नौकर तथा गुलाम इत्यादि) आ जाते हैं।
परिवार की एक संक्षिप्त, स्पष्ट तथा समस्त विशेषताओं को सम्मिलित करने वाली परिभाषा देना अत्यन्त कठिन है। कुछ विद्वानों ने परिवार को एक समूह के रूप में, कुछ ने एक समिति के रूप में, कुछ ने एक संस्था के रूप में तथा कुछ अन्य विचारकों ने इसे सामाजिक इकाई के रूप में परिभाषित किया है। प्रमुख विद्वानों ने परिवार को निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया है-
1. ऑगवर्न तथा निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) के अनुसार- “परिवार पति और पत्नी की सन्तान-रहित या सन्तान-सहित या केवल पुरुष या स्त्री की बच्चों सहित, कम या अधिक स्थायी समिति है।”
2. इलियट तथा मैरिल (Elliott and Merrill) के अनुसार- “परिवार को पति-पत्नी तथा बच्चों की एक जैविक सामाजिक इकाई के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। परिवार एक सामाजिक संस्था भी है और समाज द्वारा मान्य एक ऐसा संगठन भी है, जिसके द्वारा कुछ मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है। “
3. बगैस तथा लॉक (Burgess and Locke) के अनुसार- “परिवार व्यक्तियों का एक समूह है, जो विवाह, रक्त एवं गोद लेने वाले सम्बन्धों से जुड़े होते हैं, जो एक गृहस्थी का निर्माण करते हैं, जो पति-पत्नी, माता-पिता, पुत्र-पुत्री तथा भाई-बहन के रूप में अपनी-अपनी सामाजिक भूमिकाओं को निभाते हुए, एक-दूसरे से अन्तःसंचार तथा अन्तर्क्रिया करते रहते हैं तथा एक सामान्य संस्कृति का निर्माण करते हैं।”
4. मैकाइवर तथा पेज (Maclver and Page) के अनुसार- “परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्ध द्वारा परिभाषित एक समूह है, जो पूर्ण तथा निश्चित रूप से सन्तान के जन्म तथा पालन-पोषण की व्यवस्था करने की क्षमता रखता है। “
विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परिवार को एक समूह, समिति, संस्था तथा एक सामाजिक इकाई के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसके सदस्य विवाह, रक्त सम्बन्धों अथवा विधिवत् गोद लिए जाने के कारण परस्पर जुड़े होते हैं। उनमें परस्पर स्नेह, सहानुभूति, सेवा और त्याग की भावना पाई जाती है।
परिवार की प्रमुख विशेषताएँ (Major Characteristics of Family)
यद्यपि विभिन्न समाजों में परिवार की प्रकृति एवं स्वरूप में भिन्नता पाई जाती है, परन्तु निम्नलिखित कतिपय प्रमुख विशेषताएँ प्रत्येक प्रकार के परिवार में पाई जाती हैं-
सामान्य विशेषताएँ (General Characteristics)
परिवार की सामान्य विशेषताएँ निम्नांकित हैं-
1. विभिन्न स्वरूप (Different forms) – परिवार का स्वरूप एक विवाह, बहुपति विवाह, बहुपत्नी विवाह या समूह विवाह के रूप में सम्भव है। यह भिन्न समाजों में भिन्न-भिन्न होता है।
2. सामान्य निवास (Common residence) – सामान्यतः परिवार एक निश्चित निवास अथवा घर होता है अर्थात् परिवार के सदस्य एक साथ निवास करते हैं।
3. विवाह सम्बन्ध (Mating relationship) – परिवार का उद्भव स्त्री-पुरुष के वैवाहिक सम्बन्धों से होता है। अतः विवाह परिवार के निर्माण का प्रथम आधार है। नाम की एक
4. वंश नाम या नामावली की व्यवस्था (System of nomenclature) – प्रत्येक परिवार में वंश व्यवस्था पाई जाती है। वंश नाम मातृवंशीय अथवा पितृवंशीय हो सकता है।
विशिष्ट विशेषताएँ (Distinctive Characteristics)
परिवार की कुछ कतिपय विशिष्ट विशेषताएँ निम्नांकित हैं-
1. सामाजिक संरचना में केन्द्रीय स्थिति (Nuclear position in the social structure) – समाज की संरचना परिवार पर ही निर्भर है। इसका कारण यह है कि परिवार ही नए सदस्यों के जन्म तथा उन्हें समाज के अनुसार सामाजिक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मानवं किस सीमा तक समाज के ढंग, मान्यताओं या कार्यप्रणाली को अपनाएगा, यह सभी परिवार पर ही निर्भर करता है।
2. रचनात्मक प्रभाव (Constructive influence) – कूले ने परिवार को प्राथमिक समूह कहा है तथा मानव का जन्म तथा विकास परिवार में ही होता है। परिवार के द्वारा ही मानव के चरित्र, व्यक्तित्व, सामाजिक व्यवहार के ढंग आदि का निर्माण होता है। परिवार का लक्ष्य सभी सदस्यों को समान लाभ पहुँचाना है। यह व्यक्तित्व के विकास में अपना निर्माणात्मक प्रभाव डालता है तथा समाज के विचारों, विश्वासों तथा मूल्यों का विकास बच्चों में करता है।
3. सीमित आकार (Limited size) – परिवार का आकार छोटा होता है। कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार किसी भी परिवार का सदस्य नहीं बन सकता है। बगैस तथा लॉक के अनुसार परिवार की सदस्यता जन्म, विवाह तथा गोद लेने से ही मिलती है। इसी कारण, परिवार का आकार छोटा होता है।
4. स्थायी व अस्थायी प्रकृति (Permanent and temporary nature)- परिवार समिति भी है और संस्था भी। सदस्यों के आधार पर परिवार एक समिति है व अस्थायी है। नियमों तथा कार्यप्रणालियों के रूप में परिवार एक स्थायी संस्था है।
5. भावात्मक आधार (Formative basis) – परिवार के सभी सदस्य भावनाओं में बँधे हुए हैं। ये सम्बन्ध भाई-बहन, पति-पत्नी, पिता-पुत्र, माँ-पुत्री या किसी भी प्रकार के हो सकते हैं। इस कारण व्यक्तिगत स्वार्थ को प्रश्रय नहीं मिलता है। सभी सदस्यों के सामने पारिवारिक सुख, समृद्धि तथा शक्ति का लक्ष्य रहता है। निस्वार्थ स्नेह, प्रेम एवं वात्सल्य केवल परिवार में ही पाया जाता है।
6. सदस्यों का उत्तरदायित्व (Responsibility of members) – परिवार में प्रत्येक व्यक्ति की प्रस्थिति तथा भूमिका निश्चित होती है। परिवार के सभी सदस्य अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और आवश्यकता पड़ने पर बड़े से बड़ा त्याग करने से नहीं हिचकते हैं। परिवार एक ऐसा स्थान है जहाँ व्यक्ति निजी स्वार्थ को कोई महत्व नहीं देता।
7. सार्वभौमिकता (Universality) – परिवार एक ऐसा संगठन है, जो सर्वकाल में पाया गया है। आज भी समाज चाहे सभ्य हो, चाहे आंदिम, परिवार किसी न किसी रूप में अवश्य ही पाया जाता है।
8. सामाजिक नियमन (Social regulation) – व्यक्ति साधारणतः परिवार की प्रथाओं, रूढ़ियों, मूल्यों, संस्कारों आदि का उल्लंघन नहीं करता। परिवार अपने सदस्यों को समाज के अनुरूप बनाता है। वह उन्हें इस बात के लिए बाध्य करता है कि वे समाज के नियमों को मानें। मनुष्य को व्यवहार, शिक्षा, धर्म, कर्त्तव्य-बोध आदि अनेक सामाजिक तथ्यों का ज्ञान परिवार से ही होता है।
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