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पाठ्यचर्या को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Curriculum in Hindi

पाठ्यचर्या को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Curriculum in Hindi
पाठ्यचर्या को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Curriculum in Hindi

पाठ्यचर्या को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Curriculum)

पाठ्यचर्या का निर्माण सदैव ही सामाजिक आवश्यकताओं को विचार करते हुए ही किया जाता रहा है। यही कारण है कि कई ऐसे कारक हैं जो पाठ्यचर्या को प्रभावित करते हैं। यद्यपि ये कारक पाठ्यचर्या हेतु सही दिशा निर्देश भी देते हैं।

पाठ्यचर्या को प्रभावित करने वाले तत्त्वों को एक रेखाचित्र के द्वारा प्रदर्शित किया गया है-

पाठ्यचर्या

  • सामाजिक परिवर्तन
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीतियां
  • पाठ्यचर्या निर्माण समिति
  • शिक्षा प्रणाली
  • परीक्षा प्रणाली
  • शासकीय नीतियां
  • आधुनिक विचारधारा
  • आर्थिक परिवर्तन

1) सामाजिक परिवर्तन – समाज में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन का प्रभाव पाठ्यचर्या पर पड़ता है। सामाजिक परिवर्तन से तात्पर्य शैक्षिक परिवर्तन, राजनैतिक परिवर्तन, आर्थिक परिवर्तन आदि से है। वर्तमान में विज्ञान तथा तकनीकी आदि ऐसे क्षेत्र हैं जिन्होंने समाज में व्यापक परिवर्तन किए हैं जिनकी आवश्यकता आज समाज में व्यक्तिगत एवं सामाजिक रूप से हो रही है। अतः सामाजिक परिवर्तन एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में सिद्ध हुआ है।

2) राष्ट्रीय शिक्षा नीतियाँ- भारत में कई शिक्षा नीतियों का योगदान शिक्षा के क्षेत्र में रहा है। स्वतन्त्रता के बाद से आज तक कई आयोगों ने शिक्षा की अनुशंसा की है। राधाकृष्णन आयोग (1948), मुदालियर आयोग (1952), कोठारी आयोग (1964), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986), नई शिक्षा नीति (1992) आदि नीतियों ने शिक्षा के प्रत्येक स्तर हेतु अपने सुझाव दिए हैं। उन सुझावों को समय-समय पर लागू किया गया है जिसके कारण पाठ्यचर्या में परिवर्तन किया जाता रहा है। इस प्रकार विभिन्न शिक्षा आयोगों के सुझावों के कारण भी पाठ्यचर्या विशेष रूप से प्रभावित होती है।

3) पाठ्यचर्या निर्माण समिति – पाठ्यचर्या का निर्माण पाठ्यचर्या निर्माण समिति के द्वारा किया जाता है। इन समितियों के द्वारा ही पाठ्यचर्या में आवश्यक एवं उपयोगी पाठ्य-वस्तुओं का संगठन किया जाता है। पाठ्यचर्या निर्माण समिति के सदस्यों की रुचियों, मानसिकता तथा दृष्टिकोण का प्रभाव भी पाठ्यक्रम पर पड़ता है। अतः कई बार तो ऐसी पाठ्य-वस्तु रखी जाती है जिसका तार्किक रूप से उपयोग नहीं होता है।

4) शिक्षा प्रणाली- हमारी शिक्षा प्रणाली अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में पाठ्यचर्या को प्रभावित करने में सिद्ध हुई है। जिस समय जैसी शिक्षा प्रणाली होती है, वैसे ही पाठ्यचर्या में परिवर्तन किए जाते हैं। इस प्रकार शिक्षा प्रणाली एवं पाठ्यचर्या का बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है।

5) परीक्षा प्रणाली- परीक्षा प्रणाली पाठ्यचर्या को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। परीक्षा प्रणाली का स्वरूप कभी निबन्धात्मक होता है तो कभी वस्तुनिष्ठ होता है। अतः परीक्षा प्रणाली के स्वरूप के आधार पर ऐसी पाठ्यवस्तु को पाठ्यचर्या में स्थान देना आवश्यक हो जाता है जो परीक्षा प्रणाली के अनुकूल हो। वस्तुनिष्ठ प्रश्न तात्कालिक ज्ञान हेतु रखे जाते हैं। निबन्धात्मक प्रश्न व्यापक एवं स्थायी ज्ञान को प्राप्त करने हेतु रखे जाते हैं।

6) शासकीय नीतियाँ- शासन जिस प्रकार से परिवर्तित होता रहता है, उसी के अनुसार पाठ्यचर्या में परिवर्तन किया जाता है क्योंकि देश की तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार ही पाठ्यचर्या निर्माण किया जाता है। शासकीय नीतियाँ, जिस प्रकार की शिक्षा नीतियाँ लागू करती हैं उसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यचर्या के स्वरूप भी प्रभावित होता हैं। प्रादेशिक शिक्षा नीतियों के अनुसार अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग पाठ्यचर्या है। जैसे- मध्य प्रदेश की जलवायु, राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था का पाठ्यचर्या अन्य राज्यों से अलग है क्योंकि अन्य राज्यों की जलवायु, राजनीति एवं आर्थिक व्यवस्था भिन्न है।

7) आधुनिक विचारधारा- वर्तमान युग आधुनिक युग कहलाता है। आधुनिक युग में विचारधारा में परिवर्तन आया है। जैसे- वर्तमान में महिला शिक्षा को प्रोत्साहित किया जा रहा है। अतः पाठ्यचर्या में महिलाओं के लिए उपयोगी पाठ्यवस्तु को सम्मिलित किया जा रहा है। आधुनिक समय में विज्ञान एवं तकनीकी को भी विशेष स्थान दिया जा रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के महत्त्व को पाठ्यचर्या के माध्यम से बालकों को प्रदान किया जाता है।

8) आर्थिक परिवर्तन- देश में होने वाले आर्थिक परिवर्तन भी पाठ्यचर्या को प्रभावित करते हैं। जैसे- देश की पंचवर्षीय योजनाओं में होने वाले खर्च, व्यावसायिक स्वरूप, देश की अर्थव्यवस्था की जानकारी भी पाठ्यचर्या में सम्मिलित की जाती है। देश की अर्थव्यवस्था भी परिवर्तनशील रही है। राष्ट्र के विकास का प्रतिशत भी कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था के ही साथ जोड़ा जाता है। अतः यह भी पाठ्यचर्या के सन्दर्भ में प्रभावी तत्त्व है।

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Anjali Yadav

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