School Management & Hygiene

प्रधानाध्यापक के गुण (QUALITIES OF HEADMASTER)

प्रधानाध्यापक के गुण (QUALITIES OF HEADMASTER)
प्रधानाध्यापक के गुण (QUALITIES OF HEADMASTER)

प्रधानाध्यापक के गुण (QUALITIES OF HEADMASTER)

प्रशासक के रूप में प्रधानाध्यापक के उपर्युक्त गुणों के अतिरिक्त उसके व्यक्तित्व में निम्न बातों का होना भी आवश्यक है-

1. विद्यालय की प्रगति हेतु उचित एवं स्वतन्त्र निर्णय लेने की क्षमता।

2. विद्यालय में चारित्रिक भावना को संचारित करने की क्षमता।

3. विषय से सम्बन्धित मौलिकता तथा कठिन कार्यों को करने हेतु पहलकदमी (इनशिएटिहनैस)।

4. निर्धारित कार्यक्रमों में निष्ठा तथा उनकी सफलता हेतु सक्रिय रूप से कार्य करने की क्षमता।

5. कर्तव्यपरायणता, आत्म-नियन्त्रण, आत्म-संयम, आत्म-विश्वासी, आत्म-आलोचक होने के गुण।

6. दृढ़ इच्छा वाला, वक्ता तथा संगठनकर्ता के गुण।

7. विभिन्न वर्गों, व्यक्तियों तथा समूहों में सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता।

8. विद्यालय को समाज के निकट लाने की क्षमता।

9. शिक्षा मनोविज्ञान, शिक्षा सिद्धान्त तथा शैक्षिक विधियों का जाता।

10. निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण करने सम्बन्धी बातों का सामान्य ज्ञान होना।

11. किसी प्रकरण को सुलझाने अथवा प्रस्तावों एवं कार्यक्रमों को संचालित करने में बगैर किसी भय के निर्णय ले सकने में दक्ष होना।

12. आशावादी तथा दूसरों को प्रेरित कर सकने की क्षमता।

13. अनुशासन एवं कार्यकारी (एक्जीक्यूटिव) क्षमता एवं नेतृत्व-शक्ति।

14. दूरदर्शिता (फोरसाइट) तथा दूसरों में आत्म-विश्वास उत्पन्न करने वाला व्यक्तित्व।

15. अवलोकन शक्ति तथा परिस्थितियों के अनुकूल उचित निर्णय लेने की शक्ति।

प्रधानाध्यापक के कर्तव्य एवं दायित्व (DUTIES AND RESPONSIBILITIES OF HEADMASTER)

प्रधानाध्यापक के कार्यों की गहनता एवं गम्भीरता देखते हुए उसके कर्तव्यों एवं दायित्वों को निम्न सात भागों में विभाजित किया जा सकता है-

1. प्रशासनिक कर्तव्य एवं दायित्व (Administrative Duties and Responsibilities)

प्रधानाध्यापक का पद अपने उत्तरदायित्वों एवं कर्तव्यों से लदा हुआ है। विद्यालय की प्रगति हेतु योजना बनाना, उसे कार्यान्वित करना, उसे संचालित करना तथा उसमें सफलता प्राप्त करना, आदि का दायित्व प्रधानाध्यापक पर है। प्रशासक के रूप में उसे संगठनकर्ता के प्रमुख कर्तव्य निभाने होते हैं। इस दृष्टि से उसे संगठन प्रक्रिया के स्वभाव से परम्परागतवादी तथा रूढ़िवादी विचारधारा को कम प्रश्रय देने वाला होना चाहिए जिससे वह अपने प्रशासनिक कर्तव्यों को आधुनिक परिस्थितियों के अनुसार निभा सके। प्रधानाध्यापक को पुरानी घिसी-पिटी बातों एवं परम्पराओं का विरोध करके प्रगतिवादी होना चाहिए। विद्यालय प्रशासन में सहयोगी शिक्षकों के मध्य उनकी रुचि के अनुकूल सन्तुलित रूप से कार्यों का विभाजन करना, उनमें समायोजन क्षमता उत्पन्न करना, विद्यालय प्रशासन को बनाये रखना, शिक्षकों, अभिभावकों तथा शिक्षार्थियों को शिक्षा के वर्तमान उद्देश्यों से अवगत कराना, विद्यालय में पुस्तकालय की उचित व्यवस्था करना, शिक्षक वर्ग की स्वयं आलोचना न करके उन्हें आत्म-मूल्यांकन कर सकने का अवसर देना, क्रियाओं का संचालन सुनियोजित एवं सुसंगठित रूप में करना, क्रियाओं के समाधान में संयुक्त शक्ति का उपयोग करना, आदि उसके प्रमुख प्रशासनिक दायित्व हैं।

प्रशासनिक दृष्टि से विचार करने पर निरीक्षक के रूप में उसके निम्न प्रमुख कार्य हैं-

1. शिक्षकों के कार्यों का निरीक्षण करके उन्हें समय-समय पर निर्देशन देना एवं प्रगति हेतु प्रेरित करना।

2. छात्र जीवन से सम्बन्धित विद्यालय की आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार की क्रियाओं का निरीक्षण करना।

3. शिक्षकों द्वारा शिक्षण कार्य में अपनाई जाने वाली विधियों, प्रविधियों, प्रवृत्तियों, शिक्षा दर्शन एवं सहायक सामग्री का निरीक्षण करना।

4. विद्यालय की सम्पूर्ण गतिविधियों एवं अंगों का निरीक्षण करके उसमें सुधार लाने का प्रयास करना।

5. कार्यालय के कार्यों का निरीक्षण समय-समय पर करते रहना।

6. विद्यालय के विभिन्न रजिस्टरों की देख-रेख करते रहना तथा उन पर नियन्त्रण रखना।

7. छात्रावास का निरीक्षण करते रहना।

8. विद्यालय में गठित की जाने वाली पाठ्य सामग्री क्रियाओं का निरीक्षण करना जिसके माध्यम से बालकों के व्यक्तित्व का सन्तुलित विकास होता है।

9. विद्यालय के भौतिक तत्त्वों, खेल एवं शारीरिक क्रियाओं, विद्यालय सहकारी भण्डार, कैण्टीन, आदि का निरीक्षण करते रहना।

10. विद्यालय के पुस्तकालय, प्रयोगशालाओं, भवन, फर्नीचर, आदि का निरीक्षण करते रहना।

11. विद्यालय में सम्पन्न होने वाली विभिन्न परीक्षाओं तथा प्रश्न-पत्रों का निरीक्षण करते रहना चाहिए जिससे पाठ्य पुस्तकों तथा प्रश्न-पत्रों में साम्यता बनी रहे।

12. शिक्षकों को विभिन्न पाठ्य पुस्तकों के चयन करने में परामर्श देना तथा पाठ्य पुस्तकों का अध्ययन करके उपयोगिता की दृष्टि से निरीक्षण करना।

13. अभिभावकों से सम्पर्क बनाए रखना तथा ऐसी बातों का निरीक्षण करना जिनसे विद्यालय और अभिभावकों के मध्य सुदृढ़ सम्बन्ध स्थापित हो सकें।

14. विद्यालय में ऐसे तत्त्वों का निरीक्षण करते रहना एवं उन पर नियन्त्रण रखना जिनसे विद्यालय को हानि होने की सम्भावना बनी रहती हो।

15. विद्यालय में छात्रों की प्रवेश संख्या, शिक्षकों की संख्या तथा अन्य कर्मचारियों की संख्या में सन्तुलन बनाए रखने हेतु निरीक्षण करना।

2. शिक्षण व्यवस्था सम्बन्धी दायित्व (Responsibilities regarding Teaching Process)

प्रधानाध्यापक को विद्यालय के शिक्षण-स्तर को ऊँचा उठाने के लिए प्रधानाध्यापक की स्थिति के अनुकूल सहयोग तथा सद्भावना के साथ शैक्षिक योजनाएँ तैयार करनी चाहिए। उसे शिक्षकों को समय समय पर उचित परामर्श देना चाहिए और उनका ध्यान उनकी त्रुटियों एवं अभावों की और सहानुभूतिपूर्ण ढंग से आकर्षित करना चाहिए। विद्यालय में विभिन्न विषयों के शिक्षण हेतु अलग-अलग कक्षों की व्यवस्था करने के साथ ही विषय-विशेषज्ञ शिक्षकों की नियुक्ति विद्यालय में करवाना प्रधानाध्यापक का प्रमुख दायित्व है। शिक्षण व्यवस्था से सम्बन्धित प्रधानाध्यापक के निम्न दायित्व प्रमुख हैं-

1. विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले सभी विषयों का समुचित शिक्षण किया जाए।

2. विद्यार्थियों को अपनी रुचि एवं योग्यता के अनुसार विषय को चुनने की सुविधा उपलब्ध हो ।

3. शिक्षकों को उनकी रुचि, योग्यता, क्षमता तथा अनुभव के आधार पर विभिन्न विषयों के शिक्षण का कार्य सौंपा जाए।

4. विभिन्न विषयों का समुचित रूप से शिक्षण कराने हेतु मनोवैज्ञानिक ढंग से समय-सारणी तैयार की जाए।

5. शिक्षण कार्य से सम्बन्धित सम्पूर्ण सत्र के लिए योजनाएँ तैयार की जाएँ।

6. कक्षा में छात्रों की संख्या न अधिक और न हो न्यूनतम रूप से रखी जाए। कक्षा में छात्र संख्या औसत स्तर की हो।

7. एक कक्ष से दूसरे कक्ष में जाते समय छात्रों के मध्य अनुशासन बनाये रखना।

8. जिस विषय के शिक्षकों का अभाव है, उस विषय के शिक्षकों की नियुक्ति करवाना।

9. शिक्षण में प्रगति लाने हेतु विषय विशेषज्ञों द्वारा भाषण, परिसंवाद, सभाओं तथा विचार गोष्ठियों का विद्यालय में आयोजन करवाना।

10. प्रशासनिक व्यवस्था और शिक्षण कार्य में तालमेल बैठाये रखना।

3. शिक्षकों से सम्बन्धित कर्तव्य तथा दायित्व (Responsibilities and Duties regarding Teachers)

प्रधानाध्यापक का प्रमुख दायित्व विद्यालय में योग्य, अनुभवी तथा कुशल शिक्षकों की नियुक्ति करना है। उसका शिक्षकों के प्रति ऐसा व्यवहार हो कि उसके माध्यम से शिक्षकों में आत्मविश्वास, श्रद्धा तथा बल की वृद्धि हो सके। उसे शिक्षकों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए और उदार दृष्टिकोण रखते हुए कार्य करना चाहिए। शिक्षकों को आत्म-मूल्यांकन के लिए प्रेरित करते हुए उनको सक्रिय रखना उसका परम कर्तव्य है। प्रशासक के रूप में प्रधानाध्यापक के शिक्षकों से सम्बन्धित प्रमुख दायित्व निम्नलिखित हैं-

1. शिक्षकों की प्रगति हेतु योजनाएँ व नियम बनाना।

2. शिक्षकों के लिए शिक्षण सुविधा की दृष्टि से उपयुक्त सहायक सामग्री जुटाने की व्यवस्था करना।

3. विज्ञान के विषयों के शिक्षण से सम्बन्धित प्रयोगशालाओं की समुचित व्यवस्था कराना।

4. शिक्षकों के मध्य पक्षपातरहित होकर कार्य का विभाजन करना तथा उनकी शैक्षणिक योग्यता, अनुभव, शिक्षण- कुशलता के आधार पर शिक्षण कार्य सौंपना।

5. शिक्षकों की सेवा शर्तों में स्पष्टता लाना तथा सेवाओं में स्थायित्वता लाना।

6. शिक्षकों के बच्चों की मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था कराना, उन्हें निवास स्थान दिलाना, छुट्टियों में रेलवे कन्सेशन की व्यवस्था कराना, उनके वेतनमान में वृद्धि कराना, उनके पेंशन, प्रॉवीडेण्ट फण्ड तथा बीमा, आदि की व्यवस्था कराना।

7. शिक्षकों के विचारों, भावनाओं, तर्कों, निर्णयों तथा प्रस्तावों का स्वागत करना तथा उन पर गम्भीरता से, प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण को बनाए रखते हुए विचार करना।

8. शिक्षकों से समय-समय पर सम्पर्क बनाए रखना तथा उनका रचनात्मक नेतृत्व ग्रहण करना।

9. शिक्षकों में शिक्षकीय कार्य के प्रति रुचि बनाए रखना, उन्हें प्रेरित करना तथा उनको शिक्षण की नवीन विधियों तथा प्रविधियों से अवगत कराते रहना।

10. शिक्षकों की शिक्षण सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण करने के साथ ही उनकी व्यक्तिगत एवं सामूहिक समस्याओं पर भी सहयोग, सहानुभूति एवं सहृदयता के साथ समाधान हेतु विचार करना।

4. छात्रों सम्बन्धित कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व (Responsibilities and Duties regarding Students)

प्रधानाध्यापक का प्रशासक के रूप में छात्रों के प्रति गम्भीर उत्तरदायित्व है। उसे अपने विद्यालय में इस प्रकार की प्रशासनिक नीति अपनानी चाहिए जिससे शिक्षा के लक्ष्य, बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास को प्राप्त किया जा सके। विद्यालयीन शिक्षा के माध्यम से हमें उत्तरदायी स्व-नियन्त्रित, योग्य एवं उत्साही कार्यकर्ता के रूप में भावी नागरिक उत्पन्न करने का प्रयास करना चाहिए जिससे व्यक्ति और समाज दोनों का समुचित विकास हो सके। इस दृष्टि से प्रधानाध्यापक के विद्यालय प्रशासक के रूप में अग्रलिखित दायित्व प्रमुख हैं-

1. छात्रों को विद्यालय में प्रवेश देते समय विद्यालय की क्षमता, कक्षा की व्यवस्था तथा उनके अनुसार विषय की महत्ता को ध्यान में रखकर प्रवेश देना।

2. छात्रों का विभिन्न वर्गों में विषयों में तथा समूहों में वर्गीकरण करते समय मनोवैज्ञानिक रीतियों को आधार बनाना।

3. छात्रों की उपलब्धियों तथा व्यक्तित्व का समय-समय पर शिक्षकों की सहायता से मूल्यांकन करना।

4. छात्रों की मानसिक प्रगति, उनकी उपलब्धियों तथा उनके विकास हेतु निर्मित योजनाओं अथवा कार्यक्रमों का अभिलेख करना।

5. छात्रों की प्रगति का प्रतिवेदन प्रतिमाह पालकों को भेजना और उनसे सक्रिय सहयोग प्राप्त करना।

6. छात्रों को विद्यालय में तथा विद्यालय के बाहर अनुशासन से रहने की शिक्षा प्रदान करना।

7. छात्रों को उनकी व्यक्तिगत तथा सामूहिक, शैक्षिक एवं व्यावसायिक समस्याओं का निराकरण करने हेतु विद्यालय में निर्देशन या परामर्श देने की व्यवस्था करना।

8. छात्रों की खेलकूद, पाठ्यक्रमेतर क्रियाओं, विविध क्रियाओं, आदि में अवसर की समानता के सिद्धान्त’ के आधार पर भाग लेने की सुविधा उपलब्ध कराना।

9. विद्यालय में प्रतिभावान, पिछड़े, अपराधी, कुसमायोजित तथा समस्यात्मक बालकों को ध्यान में रखकर पठन-पाठन की उचित व्यवस्था कराना।

10. छात्रों में संस्था और उसके नियमों, नीतियों तथा आदर्शों के प्रति श्रद्धा तथा विश्वास की भावना जाग्रत करना जिससे उनमें कर्तव्यपरायणता के गुणों का विकास हो सके। छात्रों में आत्म-संयम, आत्म-प्रकाशन, श्रेष्ठ तर्क एवं न्यायसंगतता, आदि दृष्टिकोणों का विकास करना।

11. प्रधानाध्यापक को चाहिए कि वह बालकों में पनपने वाली अवांछित चेष्टाओं एवं आदतों के प्रति सतर्क रहे तथा उनका मनोवैज्ञानिक रूप से रूपान्तर करे।

12. छात्रों में सौन्दर्यानुभूति की अभिवृद्धि करना, कल्पना शक्ति का विकास करना, अवकाश के समय का सदुपयोग करने की आदत डालना, अच्छी विरुचिपूर्णता (हॉबीज) उत्पन्न करना तथा उनकी रुचियों के अनुकूल विद्यालय में कार्यक्रमों को आयोजित करना।

13. छात्रों के ज्ञानवृत्त को वृहद बनाने तथा उन्हें नवीनतम सूचनाओं से युक्त रखने की प्रेरणा प्रदान करना।

14. विद्यालय का पर्यावरण इस प्रकार का हो कि जिससे छात्रों में समभाव की वृद्धि हो सके। उनकी वेशभूषा एकसमान हो और उनमें प्रजातन्त्र के चार प्रमुख सिद्धान्तों समानता, स्वतन्त्रता, भ्रातृत्व तथा न्यायप्रियता के प्रति व्यावहारिक रूप से निष्ठा उत्पन्न हो सके।

15. छात्रों को विद्यालय छोड़ने पर रोजगार दिलाने के लिए ‘फालोअप सेवाएँ विद्यालय में गठित कराना तथा उनके व्यावसायिक जीवन को सफल बनाने हेतु समय-समय पर उनकी सहायता करना।

5. विद्यालय क्रियाओं का संचालन करने सम्बन्धी दायित्व (Responsibilities regarding Organisation of School Activities)

पाठ्यक्रम के साथ ही विद्यालयों में विभिन्न क्रियाकलापों का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। प्रधानाध्यापक को चाहिए कि वह बालक की आयु, रुचि, उनकी मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक स्थितियों, छात्रों की आदतों, उनके वंशानुक्रम तथा वातावरण एवं उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने की दृष्टि से विद्यालय में विभिन्न क्रियाओं का संचालन करे क्रियाओं के संचालन में विभिन्न क्रियाओं के मध्य शैक्षिक सन्तुलन तथा संगठन भी बनाये रखना चाहिए जिससे उनके द्वारा विद्यालय के किसी पहलू को हानि न हो सके। विद्यालय क्रियाओं के संचालन सम्बन्धी प्रधानाध्यापक के प्रमुख दायित्व निम्नलिखित हैं-

1. विभिन्न क्रियाओं का शैक्षिक महत्ता की दृष्टि से चयन करना तथा उनके आधार पर विद्यालय की स्थिति के अनुसार योजनाएँ बनाना।

2. क्रियाओं का संचालन एवं नेतृत्व करने के साथ ही छात्रों का सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से विद्यालय में बाल-सभा, संघ या समितियों का निर्माण करना।

3. विद्यालय में छात्रों को उनकी योग्यता, रुचि एवं आदतों के आधार पर विभिन्न समितियों में विभाजित करना तथा विद्यालय में समय-समय पर अथवा समय-सारणी के अनुसार पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं; जैसे-खेल-कूद, वाद-विवाद, भाषणमाला, निबन्ध प्रतियोगिता, साहित्यिक गोष्ठियाँ, अन्त्याक्षरी, कवि सम्मेलन व अभिनय, आदि का आयोजन कराना।

4. विद्यालय को कुछ विशेष क्रियाओं; जैसे—स्काउटिंग, गाइडिंग, बालचर, एन. सी. सी. ए. सी. सी., आदि के प्रशिक्षण की व्यवस्था विद्यालय में कराना।

5. विद्यालय का वातावरण इस प्रकार निर्मित किया जाए कि विद्यालय के सभी छात्र एवं शिक्षक विभिन्न क्रियाओं में स्वतन्त्र रूप से भाग ले सकें और उनके संगठन में अपने उत्तरदायित्व को निभा सकें।

6. विद्यालय की विभिन्न क्रियाओं का संचालन इस प्रकार का हो कि जिससे छात्रों में कर्तव्यपरायणता, सहयोग, धैर्य, नेतृत्व करना, सामाजिकता, आदि गुणों का विकास हो सके।

7. विद्यालय में विभिन्न क्रियाओं के संगठन भौतिक साधनों तथा आर्थिक स्थिति के अनुसार ही करना चाहिए।

8. प्रधानाध्यापक को विद्यालय क्रियाओं का समय-समय पर निरीक्षण ही नहीं करना है वरन् उनका पर्यवेक्षण करके उनके संगठन हेतु पथ-प्रदर्शन भी करते रहना है।

9. सभी छात्रों को उनकी रुचि एवं योग्यता के अनुसार कार्य करने के लिए अवसर प्रदान किये जाने चाहिए तथा एक ही छात्र को अनेक कार्य करने को कदापि नहीं दिये जाने चाहिए।

10. छात्रों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर समाज के सभी संगठनों के सहयोग से सुनियोजित कार्यक्रम विकसित करना चाहिए।

6. शिक्षा विभाग और उसके अधिकारियों से सम्बन्धित दायित्व (Responsibilities related to Education Department and its Officers)

प्रधानाध्यापक विद्यालय एवं शिक्षा विभाग के बीच की कड़ी है। कुशल प्रधानाध्यापक अपने व्यक्तित्वशील गुणों के आधार पर शिक्षा विभाग की नवीन नीतियों को सरल रूप में विद्यालय में अपना लेते हैं। विद्यालय में प्रधानाध्यापक एक ऐसा व्यक्ति है जिसे शिक्षा विभाग की सामान्य नीतियों को केवल अमल में ही नहीं लाता है वरन् उनमें प्रगति करने हेतु उसे योजना भी बनाना है। शिक्षा विभाग एवं उसके अधिकारियों के साथ सुद्द सम्बन्ध स्थापित करने हेतु प्रधानाध्यापक को निम्नलिखित बातों को अमल में लाना चाहिए-

1. विद्यालयीन शिक्षा की भिन्न-भिन्न शाखाओं से सम्बन्धित परिस्थितियों से शिक्षा विभाग को अवगत कराना।

2. विद्यालय में होने वाली शिक्षा की प्रगति के सम्बन्ध में अधिकारियों को सूचित करना।

3. शासन की शिक्षा नीति की विद्यालय में प्रतिक्रिया से शिक्षा विभाग को अवगत कराना।

4. विद्यालय की शैक्षिक आवश्यकताओं से अधिकारियों को अवगत कराना।

5. विद्यालय में अनुशासन बनाए रखना तथा अधिकारियों को ऐसे तत्त्वों से अवगत कराते रहना जो विद्यालय की प्रगति में बाधक हैं।

6. विद्यालय में शिक्षकों व कर्मचारियों की गतिविधियों तथा कार्य प्रणालियों से शिक्षा विभाग को अवगत कराते रहना।

7. शिक्षा विभाग द्वारा माध्यमिक शिक्षा से सम्बन्धित सभी नियमों तथा उपनियमों जिनका सम्बन्ध छात्रों के विद्यालय में प्रवेश पाने, विद्यालय में उपस्थित रहने, उन्हें कक्षोन्नति देने, अपराध करने पर दण्ड देने तथा विद्यालय समय-सारणी, आदि से है, को नियमबद्ध रूप से लागू करना।

8. विभिन्न कक्षाओं के लिए निर्धारित पाठ्यचर्याओं तथा पाठ्य पुस्तकों का शिक्षा विभाग की अनुमति से चयन करना।

9. विद्यालय भवन, छात्रावास भवन, विद्यालय उपकरणों एवं साज-सज्जा, विद्यालय अभिलेखों तथा विद्यालय की मान्यता सम्बन्धी नियमों को विधिवत् रूप से लागू करना तथा उनकी प्रगति से शिक्षा विभाग को समय-समय पर सूचित करते रहना।

10. शासन द्वारा निर्धारित सहायता, अनुदान, छात्रवृत्तियों तथा शुल्क सम्बन्धी नियमों को शिक्षा विभाग की नीतियों के आधार पर अमल में लाना।

7. समाज के प्रति तथा अभिभावकों से सम्बन्धित दायित्व (Responsibilities regarding Parents and towards Society)

प्रधानाध्यापक को चाहिए कि वह समाज तथा अभिभावकों से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखे। प्रधानाध्यापक का उपर्युक्त दोनों के साथ उचित सम्पर्क बनाये रखने पर विद्यालय में अच्छी नीतियों का विकास हो सकेगा, उन्हें श्रेष्ठ रूप से समझा जा सकेगा, उन्हें विद्यालय में उत्तम रूप से कार्यान्वित किया जा सकेगा तथा विद्यालय और समाज के सम्बन्धों को और अधिक दृढ किया जा सकेगा। विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने वाले सभी छात्र समाज के ही अंग हैं। उनकी कौटुम्बिक तथा सामाजिक संस्थाओं का प्रभाव विद्यालय पर पड़े बिना नहीं रहता। छात्रों के अभिभावक भी अपनी विभिन्न माँगों और इच्छाओं द्वारा विद्यालय के वातावरण को प्रभावित करते रहते हैं। इस दृष्टि से प्रधानाध्यापक को समाज से तथा अभिभावकों के साथ सम्पर्क बनाये रखने हेतु निम्नलिखित कार्य करना आवश्यक हैं-

1. विद्यालय का कार्यक्रम इस रूप में निर्धारित किया जाए कि उससे समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।

2. विद्यालय के विकास के लिए नियोजित कार्यक्रमों को निश्चित करने हेतु विकास समिति में समाज के प्रमुख सदस्यों को रखा जाए।

3. प्रधानाध्यापक द्वारा विद्यालय को सामुदायिक विद्यालय के रूप में विकसित करना।

4. विद्यालय और समाज के सम्बन्धों में वृद्धि करने के लिए समाज के गणमान्य व्यक्तियों की एक ऐसी संयोजक समिति का निर्माण करना जो छात्रों, उनके परिवारों तथा सामाजिक कार्यों में रुचि लेती हो ।

5. विद्यालय और समाज के बीच इस प्रकार समन्वय स्थापित करना कि समाज के रचनात्मक दृष्टिकोण का प्रभाव विद्यालय पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ सके।

5. प्रधानाध्यापक को चाहिए कि वह राज्य के सभी अच्छे विद्यालयों से सम्पर्क बनाये रखे और उनकी सेवाओं से लाभ उठाये।

6. प्रधानाध्यापक को चाहिए कि वह स्थानीय आवश्यकताओं से अवगत रहे और उन्हें विद्यालय के माध्यम से पूरा करे जिससे समाज का सहयोग विद्यालय के विकास हेतु प्राप्त हो सके।

7. प्रधानाध्यापक को चाहिए कि वह राज्य के सभी अच्छे विद्यालयों से सम्पर्क बनाए रखे और उनकी सेवाओं से लाभ उठाए।

8. प्रधानाध्यापक को कृषि, बगीचों, दुकानों, संस्थाओं, प्रयोगशालाओं, आदि से शिक्षा सम्बन्धी लाभ प्राप्त करते रहना चाहिए।

9. विद्यालय शिक्षा का स्वरूप इस प्रकार निर्मित करे कि उसके माध्यम से बालक का समाजीकरण स्वाभाविक रूप से हो सके।

10. विद्यालय में अभिभावकों का सहयोग प्राप्त करने हेतु प्रधानाध्यापक को चाहिए कि वे समय-समय पर उनको बालक/बालिकाओं की प्रगति के सम्बन्ध में सूचना देते रहें।

11. प्रधानाध्यापक को बालकों के घर जाकर यदा-कदा उनके अभिभावकों से सम्पर्क साधते रहना चाहिए।

12. विद्यालय में आयोजित होने वाले सभी समारोहों में अभिभावकों को आमन्त्रित करते रहना चाहिए।

13. प्रधानाध्यापक को चाहिए कि विद्यालय की प्रगति हेतु जो भी सुझाव अथवा परामर्श अभिभावकगण दें, उनका हार्दिक रूप से स्वागत करें तथा उनकी शिकायतों, प्रार्थनाओं तथा बातों पर समुचित रूप से ध्यान दें।

14. प्रधानाध्यापक को चाहिए कि वह समाज की प्रवृत्तियों, क्रिया-कलापों एवं विभिन्न अवस्थाओं को विद्यालय में प्रतिबिम्बित करे जिससे छात्र अपने विद्यालयीन जीवन में ही भावी नागरिक जीवन के प्रत्यक्ष एवं व्यावहारिक अनुभव प्राप्त कर सकें।

15. प्रधानाध्यापक का एक दायित्व यह भी है कि वह विद्यालय के माध्यम से छात्रों को समाज के आदशों, विचारधाराओं एवं परम्पराओं, आदि से अवगत कराता रहे तथा उनमें समाज को समृद्ध बनाने के लिए उत्कण्ठा उत्पन्न करे।

16. प्रधानाध्यापक विद्यालय की प्रगति हेतु जो भी कार्यक्रम तैयार करे उसका सम्बन्ध सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक जीवन से अवश्य हो ।

17. प्रधानाध्यापक को चाहिए कि वह विद्यालय व्यवस्था में पारिवारिक जीवन के गुणों का समावेश करे जिससे छात्रों को स्नेहमयी एवं सहयोगी वातावरण मिल सके तथा वे विद्यालय को घर समझकर शिक्षा ग्रहण कर सकें।

18. छात्रों को विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।

19. विद्यालय में विशिष्ट व्यक्तियों एवं विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान आयोजित कराते रहना चाहिए तथा यदि आवश्यकता हो तो कुछ विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा विशिष्ट बातों की शिक्षा देने हेतु प्रयोगात्मक प्रदर्शन भी कराते रहना चाहिए।

20. विद्यालय से सम्बन्धित शिक्षक-पालक संघ को सुदृढ़ बनाना चाहिए तथा पालकों को विद्यालय के निकट लाने हेतु आकर्षणपूर्ण तथा प्रभावी कार्यक्रम तैयार किये जाने चाहिए।

प्रधानाध्यापक के इन दायित्वों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट पता चलता है कि वह विद्यालय और समाज दोनों की प्रगति के लिए उत्तरदायी है। उसे विद्यालय को एक सामाजिक संस्था के रूप में चलाना है जिससे शिक्षा के माध्यम से वह विद्यालय की प्रगति के साथ ही समाज की भी प्रगति कर सके। प्रधानाध्यापक के इस गम्भीर उत्तरदायित्व के आधार पर प्रशासक के रूप में उसे केवल विद्यालय को ही नेतृत्व प्रदान नहीं करना है वरन् उसे सम्पूर्ण समाज को नेतृत्व प्रदान करने हेतु तत्पर रहना चाहिए।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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