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बहुकारक सिद्धान्त (Multifactor Theory or Anarchic Theory)
अमेरिकी मनोवैज्ञानिक धार्नडाइक ने सन् 1926 में बुद्धि से सम्बन्धित स्पियरमैन के द्वि-तत्व सिद्धान्त को खण्डित करते हुए बहुतत्व सिद्धान्त प्रस्तुत किया।
थार्नडाइक ने अपने इस सिद्धान्त में बताया की बुद्धि की रचना दो तत्वों से नहीं अपितु अनेक तत्वों से होती है। प्रत्येक तत्व या कारक एक विशिष्ट मानसिक क्षमता (specific mental ability) का प्रतिनिधित्व करता है और दूसरे से स्वतन्त्र होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार सामान्य बुद्धि की जैसी कोई चीज नहीं होती है बल्कि इसमें बहुत सी क्रियाएं होती हैं।
थॉर्नडाइक ने सामान्य तत्व के अतिरिक्त कुछ मूल तत्व भी बताए हैं। जिनमें उन्होंने दिशात्मक योग्यता (directional ability), तर्क योग्यता (logical ability), भाषण योग्यता (lecture ability). आंकिक योग्यता (score ability), स्मरण शक्ति (remembering power) व शाब्दिक योग्यता (verbal ability) का प्रयोग किया।
जहाँ
- S = Score Ability
- V = Verbal Ability
- D= Directional Ability
- L = Logical Ability
- R = Remembering Ability
- L= Lecture Ability
गार्डनर मरफी के विचारानुसार, “एक क्षेत्र की प्रतिभा का दूसरे क्षेत्र की प्रतिभा (Brightness) के साथ एक निश्चित सकारात्मक सम्बन्ध होता है।”
According to Gardner Murphy. “There is a certain positive relationship between brightness in one field and brightness in another field and so on.”
ई.एच. थार्नडाइक ने बुद्धि के तीन प्रकार बताये हैं-
बुद्धि के प्रकार (Types of Intelligence)
1) सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) – सामाजिक बुद्धि से तात्पर्य ऐसी सामान्य मानसिक क्षमता से होता है जिसके सम्बन्ध में व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को ठीक ढंग से समझता है तथा व्यवहार कुशलता भी दिखाता है। ऐसे लोगों का सामाजिक सम्बंध काफी अच्छा होता है तथा इनकी समाज में काफी प्रतिष्ठा होती हैं। इनमें सामाजिक कुशलता अधिक होती है। जिन व्यक्तियों में सामाजिक बुद्धि होती है उनमें अन्य लोगों के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से व्यवहार करने की क्षमता, अच्छा आचरण करने की क्षमता, एवं समाज के अन्य लोगों से मिलजुलकर सामाजिक कार्यों में हाथ बँटाने की क्षमता अधिक होती है। ऐसी बुद्धि व्यक्ति के जीवन में व्यावहारिक सफलता प्राप्ति में सहायक होती है इसके अभाव में व्यक्तियों में अन्य तरह की बुद्धि होने के बावजूद वह अपने सामाजिक जीवन को सफल बनाने में सहायक नहीं हो पाता है क्योंकि वह इसके अभाव में समाज में प्रभावपूर्ण ढंग से व्यवहार नहीं कर सकता।
ड्रेवर के अनुसार, सामाजिक बुद्धि बुद्धि का एक प्रकार है, जो किसी व्यक्ति में अन्य व्यक्तियों एवं सामाजिक सम्बंधों के प्रति व्यवहार में निहित होता है।”
2) अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) – इस बुद्धि का सम्बन्ध पुस्तकीय ज्ञान से होता है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि पाई जाती है वह ज्ञानार्जन करने में विशेष रुचि लेता है। इस तरह की क्षमता दार्शनिकों, कलाकारों, कहानीकारों में अधिक होती है। ऐसे लोग प्राय: अपने-अपने विचारों, कल्पनाओं एवं मानसिक प्रतिभाओं के सहारे बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान कर लेते हैं। जिनमें अमूर्त बुद्धि अधिक होती है। वे सफल कलाकार, चित्रकार गणितज्ञ एवं कहानीकार बनते हैं।
3) मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence) – इसके सहारे व्यक्ति मूर्त या ठोस वस्तुओं के महत्त्व को समझता है। उसके बारे में सोचता है तथा अपनी इच्छा एवं आवश्यकतानुसार उनमें परिवर्तन कर उन्हें उपयोगी बनाता है। इसे व्यवहारिक बुद्धि भी कहा जाता है। जिन बालकों में मूर्त बुद्धि अधिक होती है उनमें हस्तकलाओं की क्षमता अधिक होती है तथा वे आगे चलकर सफल इंजीनियर या कुशल कारीगर बनने में सफलता प्राप्त करते हैं।
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