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बुद्धि का स्वरूप | Nature of Intelligence in Hindi

बुद्धि का स्वरूप | Nature of Intelligence in Hindi
बुद्धि का स्वरूप | Nature of Intelligence in Hindi

बुद्धि का स्वरूप (Nature of Intelligence)

मनोविज्ञान की उत्पत्ति से लेकर आज तक बुद्धि का स्वरूप निश्चित नहीं हो पाया। समय-समय पर जो परिभाषाएँ विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की जाती रहीं, वह इसके एक पक्ष या विशेषताओं से सम्बन्धित थी लेकिन बुद्धि का स्वरूप क्या है? इसका वर्णन हम निम्न आधार पर करेंगे-

1) सीखने की योग्यता (Ability of Learning) – डियरबॉर्न के अनुसार, बुद्धि सीखने या अनुभव से लाभ उठाने की क्षमता है।”

According to Dearborn, “Intelligence is the capacity to learn or to profit by experience.”

भारतीय मनीषियों एवं विद्वानों ने ज्ञान को जीवन का प्रमुख साधन और साध्य माना है। अतः जो व्यक्ति अधिक से अधिक ज्ञान ग्रहण कर लेता है, उसे समाज उच्च स्थान देता है। इसके प्रमुख प्रतिपादक वुडवर्थ, थार्नडाइक और बकिंघम हैं।

2) समस्या समाधान की योग्यता (Ability of Problem Solving) – रायबर्न के अनुसार, बुद्धि वह शक्ति है, जो हमको समस्याओं का समाधान करने और अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने की क्षमता देती है।

According to Ryburn, “Intelligence is the power which enables us to solve problem and to achieve our purposes.”

प्रत्येक व्यक्ति को विकास के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना होता है, जो व्यक्ति इन समस्याओं पर जितनी जल्दी विजय प्राप्त कर लेता है या उससे छुटकारा प्राप्त कर लेता है, वही सबसे अधिक बुद्धिमान माना जाता है। अतः समस्या समाधान में प्रयोग की गई योग्यता ही बुद्धि है।

3) अमूर्त चिन्तन की योग्यता (Ability of Abstract Thinking) – टरमन के अनुसार, एक व्यक्ति, उसी अनुपात में बुद्धिमान होता है, जितनी उसमें अमूर्त चिन्तन की योग्यता होती है।

According to Terman, “An individual is intelligent in proportion as he is able to carry on abstract thinking.”

प्रत्येक व्यक्ति दो प्रकार से चिन्तन प्रक्रिया को अपनाता है-

i) मूर्तरूप से चिन्तन करके ज्ञान प्राप्त करना ।

(ii) अमूर्त रूप से चिन्तन करके (अमूर्त रूप से तात्पर्य जो हमारे साथ नहीं है) उनकी कल्पना और स्मृति के आधार पर ज्ञान प्राप्त करना। अतः अमूर्त चिन्तन में जो व्यक्ति सफल होता है, उसे बुद्धिमान कहा जाता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बुद्धि एक समान नहीं रहती है अपितु ज्ञान में वृद्धि के साथ-साथ बुद्धि में भी निरन्तर वृद्धि होती रहती है। बुद्धि व ज्ञान में वृद्धि की जा सकती है।

4) पर्यावरण से से सामंजस्य की योग्यता (Ability of Environmental Adaptability) – विलियमस्टर्न के अनुसार, ‘जीवन की परिस्थितियों और नवीन समस्याओं में सामान्य मानसिक अनुकूलन ही बुद्धि है।”

According to Williumstern, “Intelligence is a general mental adaptability to new problem and condition of life.”

प्रत्येक व्यक्ति जीवन में विकास करता है। विकास के समय सफलताएँ व असफलताएँ दोनों ही आती है। जो व्यक्ति दोनों में सामाजीकरण एवं सामंजस्य करते हुए विकास करता है उसे बुद्धिमान माना जाता है। वह जल्दी ही पर्यावरण को अपने अनुकूल कर लेता है।

बुद्धि के स्वरूप की परिवर्तनशीलता व विस्तार ने विषय के बारे में विद्वानों को एकमत नहीं होने दिया। अतः आज हमें बुद्धि के स्वरूप को निर्धारित करते समय सृजनात्मकता पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह एक ऐसा तत्व है जिसके अन्तर्गत सभी पूर्व मत, सीखना सामजस्य, अमूर्त चिन्तन व समस्या समाधान आते हैं। इसके अलावा इसका क्षेत्र विस्तृत है। यह किसी भी व्यक्ति की किसी एक योग्यता का निर्धारण नहीं करती है बल्कि सम्पूर्ण मानसिक योग्यताओं का, चाहे वे जन्मजात हो या अर्जित का निर्धारण करती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बुद्धि व्यक्ति की जन्मजात योग्यता है जिसका प्रकटीकरण सृजनात्मकता के द्वारा होता है।

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Anjali Yadav

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